Sunday 30 June 2013

एक पाठक की आपबीती



एक पाठक को हिंदी और अंग्रेजी का एक बहुचर्चित उपन्यास खरीदना था, उन्होंने दोनों स्थितियां इस प्रकार बयान कीं ...

हिंदी
१. किताब किसी भी वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं
२. प्रकाशक के वेबसाइट पर गया, परन्तु इधर-उधर हेकड़ी मारता रहा और हाथ कुछ न आया
३ . अंत में फिर से खोजबीन करने पर एक वेबसाइट मिली जो सिर्फ हिंदी किताबों का क्रय-विक्रय करती है
४ . वेबसाइट देख कर लगा कि पता नहीं वास्तविक है या बस यूँ ही । उनके वेबसाइट और हिंदी कि वर्तमान स्तिथि में कोई फर्क न था
५. खैर, सोचा जोखिम ले ही लूं । आश्चर्य तो तब हुआ जब ३-४ ऐसी कृति जो कही और उपलब्ध न था, उनके स्टॉक में दिखाई दे रहा था । दुविधावश मैंने उन्हें फ़ोन लगाकर पुछा तो कहा आप हमे पुस्तकों के नाम ईमेल कर दीजिये, हम पुनः निश्चय करके आपको सूचित कर देंगे ।
६. दुसरे दिन उत्तर आया (मूल्य और भुगतान माध्यम के साथ )
७. मैंने भुगतान कर दिया और इंतज़ार शुरू (न कोई छूट या मुफ्त शिपिंग)
८. ३-४ दिन तक कोई खबर न आने के बाद मैंने उनके दोबारा फ़ोन लगाया तो पता चला कि वह अमुक कूरियर द्वारा प्रेषित किया जा चूका है । कूरियर भी वह जिसका नाम मैंने पहले कभी नहीं सुना ।
९ . १-२ और प्रतीक्षा करने के बाद मैंने कूरियर वाले को फ़ोन लगाया तो जानकारी दी गयी की वो हमारे क्षेत्र में 'डिलीवर' नहीं करते , उपाय यह कि मुझे हि जाना होगा
१० . दुसरे दिन चिलचिलाती गर्मी में २१ km मोटरसाइकिल चलाकर गया और प्राप्त किया (भाग्य से)
११ . घर आकर खोला तो पुस्तके तो सही थी परन्तु मुझसे मूल्य गलत लिया गया। अंकित मूल्य कुछ और था और मुझसे लिया गया कुछ और
१२ . मैंने फिर से उन्हें ईमेल किया (दाम का जितना फर्क नहीं, उतना मोबाइल बिल आ जाता उन्हें समझाने में )
१३ . उत्तर अपेक्षित है
नौ की मुर्गी तो नहीं कहूँगा क्युकी वो किताबें मेरे लिए अमूल्य है, परन्तु नब्बे का मसाला अवश्य लग गया (पैसा हि नहीं, समय भी )

अंग्रेजी
१. flipkart से लेकर snapdeal पर उपलब्ध
२. २० - ४० प्रतिशत कि छूट और ख़ास दाम के बाद शिपिंग मुफ्त
३. परेशानी तब हुई जब एक हि पुस्तक के कई संस्करण मौजूद थे (वास्तव में चुनाव के लिए ढेर सारा विकल्प)
४. भुगतान के बाद पुस्तके ३-४ दिन में मेरे निजी पुस्तकालय में थीं !
माँ (हिंदी) से रूठा नहीं जाता, अन्यथा भाषा को छोड़ एक भी ऐसा कारण नहीं कि लोग हिंदी क्यों ख़रीदे और पढ़े ... ?

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