Wednesday 19 June 2013

क्या आपने ये किताबें पढ़ी हैं? नहीं, तो अब पढ़ लीज‌िए न

गबन - प्रेमचंद
कितने पाकिस्तान - कमलेश्वर
मां - गोर्की
तमस - भीष्म साहनी
किसान - बॉलजाक
युद्ध और शांति - लेव तोलस्तोय
टोबा टेक सिंह - सआदत हसन मंटो
वयं राष्ट्र रक्षामः - आचार्य चतुरसेन शास्त्री
राग दरबारी - श्रीलाल शुक्ल
साये में धूप - दुष्यंत कुमार
संसद से सड़क तक - धूमिल
आग का दरिया - कुर्तुलन हैदर
आधा गांव - राही मासूम रजा
दोपी शुक्ला - राही मासूम रजा
आदि विद्रोही - हावर्ड फास्ट
मेरा सफर - अली सरदार जाफरी
हिंदी साहित्य का इतिहास - आचार्य रामचंद्र शुक्ल
पुनरुत्थान - लेव तोलस्तोय
आधे अधूरे - मोहन राकेश
खंडहर - बॉलजाक
चरनदास चोर - हबीब तनवीर
कुली - मुल्क राज आनंद
जब दस दिन दुनिया हिल उठी - जॉन रीड
मृत्युंजय - शिवाजी सावंत
सात आसमान - असगर वजाहत
क्या भूलूं, क्या याद करूं - हरिवंश राय बच्चन
दीपशिखा - महादेवी वर्मा
समर गाथा - हावर्ड फास्ट
घासी राम कोतवाल - विजय तेंदुलकर
अन्ना केरेनीना - लेव तोलस्तोय
हजार चौरासी की मां- महाश्वेता देवी
एक पुस्तक माता-पिता के लिए- मकारेंको
कांथा पुरा - राजा राव
बौड़म - दोस्तोयेव्स्की
परिमल - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
चाक - मैत्रेयी पुष्पा
उस चिड़िया का नाम - पंकज बिष्ट
देवदास - शरतचंद्र
बस्ती - इंतजार हुसैन
वे अंधेरे दिन - तस्लीमा नसरीन
आवारा मसीहा- विष्णु प्रभाकर
काला जल - शानी
नौकर की कमीज - विनोदकुमार शुक्ला
वैशाली की नगरवधू - आचार्य चतुरसेन
गुनाहों का देवता - धर्मवीर भारती
परती परिकथा - फणीश्वरनाथ रेणु
जंगल - अप्टन सिंक्लेयर
मैला आंचल - फणीश्वरनाथ रेणु
धीरे बहो दोन रे - मिखाइल सोलोखोव
मय्यादास की माड़ी - भीष्म साहनी
काशी का अस्सी - काशीनाथ सिंह
केशर कस्तूरी - शिवमूर्ति

बाल साहित्य

पिता का पत्र पुत्री के नाम - जवाहर लाल नेहरू
कुत्ते की कहानी - प्रेमचंद
बजरंगी-नौरंगी - अमृतलाल नागर
पहाड़ चढ़े गजनंदनलाल - विष्णु प्रभाकर
गीत भारती - सोहनलाल द्विवेदी
आटे-बाटे सैर सपाटे - कन्हैयालाल मत्त
बतूता का जूता - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
तीनों बंदर महाधुरंधर - डॉ. शेरजंग गर्ग
मेरे प्रिय शिशुगीत - डॉ. श्रीप्रसाद
सूरज का रथ - बालस्वरूप राही
कमलेश्वर के बाल नाटक - कमलेश्वर
गणित देश और अन्य नाटक - रेखा जैन
दूसरे ग्रहों के गुप्तचर - हरिकृष्ण देवसरे
घडिय़ों की हड़ताल - रमेश थानवी
भोलू और गोलू - पंकज बिष्ट
मैली मुंबई के छोक्रा लोग - हरीश तवारी
चिडिय़ा और चिमनी - देवेंद्र कुमार
शेरसिंह का चश्मा - अमर गोस्वामी
किताब : शिब्बू पहलवान - क्षमा शर्मा
एक सौ एक कविताएं - दिविक रमेश
लड्डू मोती चूर के -  रमेश तैलंग
फूलों का कुर्ता - यशपाल

पहले सोपान पर बस इतना ही

कोई पश्चाताप नहीं है, यहां तक, इस तरह पहुंचने का। न आगे के सफर के लिए।
स्वयं में हर व्यक्ति एक अलग तरह की पठनीयता से पूर्ण उपन्यास होता है। उसके जीवन की अपनी नितांत भिन्न और खट्टी-मीठी विविधताओं भरी यात्रा होती है।
जीवन की हर सुबह शाम के सिरहाने तक ले जाती है। रात के पार शुरू होती है एक और नयी सुबह। दिन-अनुदिन जीवन चलता चला जाता है।
मू्र्त सोपानों से गुजरते, अतीत को सौंपते हुए अमूर्त अनुभवों में नयी-नयी उपलब्धियां आकार लेती जाती रहती हैं। अपने जीवन की उपलब्धि-अनुपलब्धियों की आलोचना-प्रत्यालोचना और वर्गीकरण वह व्यक्ति स्वयं करता रहता है।
उसने कहां पहुंचने के सपने देखे थे, उसे वहां कब तक पहुंच जाना था और वह कहां पहुंच गया है, मन और बुद्धि निरंतर हिसाब-किताब लगाते रहते हैं।
कुछ इसी तरह के जीवन के बनते-बिगड़ते मुहावरे रचते-रचाते मीडिया की ऊबड़-खाबड़ सहयात्रा ने पिछले तीन दशक बाद तक मेरे जीवन के भी सपनों, संभावनाओं को नोचा-खसोटा, सहेजा-संभाला और पल-प्रतिपल का हिसाब-किताब लगाये रखा है।
आम आदमी की कोई आत्मकथा नहीं होती है। और मैं तो निरा मामूली ठहरा। तो इस मंच से क्या-क्या साझा करना चाहिए मुझे, जो साथियों, शुभचिंतकों, पाठकों, ब्लॉग प्रेमियों के लिए सुखद हो, मेरा अनुत्तरित द्वंद्व और दुविधा है।
किसी के पास इतनी फुर्सत भी कहां है कि मेरे जीवन के आना-पाई, रत्ती-रेशे, पल-प्रतिपल की उधेड़-बुन में स्वयं को कुछ क्षण भी यहां उलझाना और व्यस्त रखना चाहेगा।
जब अटकते-भटकते हुए यहां तक आ ही गया हूं तो कुछ-न-कुछ साझा करूंगा ही। कोशिश होगी कि इस राह पर कोई अप्रिय और अवांछित न हो जाये किसी के लिए। असावधानी वश ऐसा कुछ हो भी गया तो सबसे क्षमा सहित।
पूरा जीवन सूचनाओं की दुनिया में बीता जा रहा है, साहित्य रिझाता-लुभाता रहा है, दोनो पलड़ों पर झूलता आ रहा हूं, पत्रकार और साहित्यकार, दोनो मेरे लिए समान भाव से प्रिय रहे हैं और आज भी हैं तो स्वाभाविक रूप से यहां की शब्दयात्रा भी जीवन और अनुभवों के द्वैत से असंपृक्त न होगी।
बहुत-कुछ ऐसा भी साझा होगा-ही-होगा कि मनुष्यता के अपहर्ताओं का जी दुखा दे। वैसा कुछ होना किसी मनुष्य के लिए दुखद नहीं होता है।
पहले सोपान पर बस इतना ही।