Saturday 28 March 2015

ड्रोन विमानों की मदद से दूर-दराज के इलाकों में भी इंटरनेट उपलब्ध कराया जा सकेगा

फेसबुक का हालिया परीक्षण यदि सफल रहा तो जल्द ही सौर ऊर्जा से चलने वाले ड्रोन विमानों की मदद से दूर-दराज के इलाकों में भी इंटरनेट उपलब्ध कराया जा सकेगा. समाचार पत्र 'द गार्डियन' के अनुसार, फेसबुक के कोफाउंडर मार्क जकरबर्ग ने बताया कि उन्होंने इंग्लैंड में इस तरह के ड्रोन विमानों का सफल परीक्षण किया, जिसके पंखों की लंबाई किसी कमर्शियल प्लेन जितनी ही है.
गांवों और ऐसे इलाकों में जहां इंटरनेट नहीं है इंटरनेट सुविधा मुहैया कराने के लिए तैयार ये ड्रोन धरती पर लेजर बीम के जरिए इंटरनेट तरंगें भेजेंगी. जकरबर्ग ने एक ब्लॉग पोस्ट की है जिसके अनुसार, 'पूरी दुनिया को इंटरनेट से जोड़ने के हमारे अभियान के तहत हमने मानवरहित ड्रोन विमानों का निर्माण किया है, जो आकाश से ही धरती पर इंटरनेट किरणें प्रेषित करेंगे.'
जकरबर्ग ने लिखा, 'हमने ब्रिटेन में अपने इस ड्रोन विमान का पहला सफल परीक्षण किया. ये ड्रोन विमान पूरी दुनिया में इंटरनेट सुविधा मुहैया कराने में मददगार होंगे, क्योंकि ये विमान इंटरनेट से वंचित विश्व के उन 10 फीसदी लोगों को इंटरनेट सुविधा प्रदान करने की क्षमता रखते हैं.' इस तरह के ड्रोन विमान के पंख की लंबाई 29 मीटर से भी अधिक है, जो बोइंग 737 विमान से भी अधिक है, हालांकि इनका वजन किसी कार से कम है. गौरतलब है कि शीर्ष इंटरनेट कंपनी गूगल भी गुब्बारों एवं ड्रोन विमानों की मदद से अब तक इंटरनेट की सीमा से दूर रहने वाले लोगों तक इंटरनेट पहुंचाने पर काम कर रही है.

क्या मैं उपन्यास इसलिए लिखता हूं कि मुझे साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिले?

आज 'गालियों' की बात पर याद आती है राही मासूम रजा की ये दोटूक टिप्पणी, चाहे भले उन्होंने अपने उपन्यास 'आधा गांव' के बहाने कही हो - '' बड़े-बूढ़ों ने कई बार कहा कि गालियां न लिखो, जो 'आधा गांव' में इतनी गालियां न होतीं तो तुम्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार अवश्य मिल गया होता परंतु मैं यह सोचता हूं कि क्या मैं उपन्यास इसलिए लिखता हूं कि मुझे साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिले? पुरस्कार मिलने में कोई नुकसान नहीं, फायदा ही है परंतु मैं साहित्यकार हूं। मेरे पात्र यदि गीता बोलेंगे तो मैं श्लोक लिखूंगा और वह गालियां बकेंगे तो मैं अवश्य उनकी गालियां भी लिखूंगा। मैं कोई नाजी साहित्यकार नहीं हूं कि अपने उपन्यास के शहरों पर अपना हुक्म चलाऊं और हर पात्र को एक शब्दकोश थमाकर हुक्म दूं कि जो एक भी शब्द अपनी तरफ से बोले, उसे गोली मार दो। कोई बड़ा-बूढ़ा यह बताए कि जहां मेरे पात्र गाली बकते हैं, वहां मैं गालियां हटाकर क्या लिखूं? डॉट डॉट डॉट ? तब तो लोग अपनी तरफ से गालियां गढ़ने लगेंगे! और मुझे गालियों के सिलसिले में अपने पात्रों के सिवा किसी पर भरोसा नहीं है। गालियां मुझे भी अच्छी नहीं लगतीं। मेरे घर में गाली की परंपरा नहीं है परंतु लोग सड़कों पर गालियां बकते हैं। पड़ोस से गालियों की आवाज आती है और मैं अपने कान बंद नहीं करता। यही आप करते होंगे। फिर यदि मेरे पात्र गालियां बकते हैं, तो आप मुझे क्यों दौड़ा लेते हैं? वे पात्र अपने घरों में गालियां बक रहे हैं। वे न मेरे घर में हैं, न आपके घर में। इसलिए साहब, साहित्य अकादमी के इनाम के लिए मैं अपने पात्रों की जुबान नहीं काट सकता।''

किसी पुस्तक का प्रचार नहीं, समाजविरोधी धन-मीडिया के खिलाफ एक अभियान है

'मीडिया हूं मैं' किसी पुस्तक का प्रचार नहीं, बल्कि मीडिया के उन अमानवीय पक्षों का आद्योपांत पाठ है, जिसे आज के सूचनाप्रधान समय में जर्नलिज्म के छात्र को जानना जितना जरूरी है, नये पत्रकारों को, स्त्रियों को, रचनाकारों, कानूनविदों, अर्थशास्त्रियों, कृषि विशेज्ञों को, जनपक्षधर संगठनों को और जर्नलिज्म के टीचर्स को भी...यह पुस्तक नहीं, एक ऐसे अभियान का उपक्रम है, जो सामाजिक सरोकारों के प्रति हमे सजग करता है, उस पर चुप रहना उतना ही खतरनाक है, जितना किसी दुखियारे व्यक्ति के आंसुओं की अनदेखी कर देना.... क्योंकि जॉन पिल्जर कहता था...मुझे पत्रकारिता, प्रोपेगंडा, चुप्पी और उस चुप्पी को तोड़ने के बारे में बात करनी चाहिए। और ये किताब अपनी आत्मकथा कुछ इस तरह सुनाती है- 'चौथा स्तंभ। मीडिया हूं मैं। सदियों के आर-पार। संजय ने देखी थी महाभारत। सुना था धृतराष्ट्र ने। सुनना होगा उन्हें भी, जो कौरव हैं मेरे समय के। पांडु मेरा पक्ष है। प्रत्यक्षदर्शी हूं मैं सूचना-समग्र का। जन मीडिया। अतीत के उद्धरणों में जो थे, आदम-हौवा, नारद, हनुमान। जनसंचार के आदि संवाहक। संजय का 'महाभारत लाइव' था जैसे। अश्वत्थामा हाथी नहीं था। अरुण कमल के शब्दों से गुजरते हुए जैसेकि हमारे समय पर धृतराष्ट्र से कह रहा हो संजय- 'किस बात पर हंसूं, किस बात पर रोऊं, किस बात पर समर्थन, किस बात पर विरोध जताऊं, हे राजन! कि बच जाऊं।' मैं पराजित नहीं हुआ था स्वतंत्रता संग्राम में। 'चौथा खंभा' कहा जाता है मुझे आज। आखेटक हांफ रहे हैं। हंस रहे हैं मुझ पर। 'चौथा धंधा' हो गया हूं मैं।'  

जयपुर में चौदह राज्यों के मीडिया शिक्षकों का सम्मेलन 2 से 4 अप्रैल तक


राजस्थान विश्व विद्यालय, जयपुर के मानविकी सभागार में दो अप्रैल से देश भर के जाने-माने मीडिया शिक्षक जुटेंगे। वे 'समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में मीडिया की भूमिका' विषय पर आयोजित किए जा रहे तीन दिवसीय अखिल भारतीय मीडिया शिक्षक सम्मेलन में शिरकत करेंगे।
राजस्थान विश्व विद्यालय, जनसंचार केंद्र के अध्यक्ष प्रो.संजीव भानावत ने बताया कि सम्मेलन में अब तक ढाई सौ से अधिक अतिथियों के आने की अनुमति मिल चुकी है। राजस्थान विश्व विद्यालय, जयपुर, मणिपाल विश्वविद्यालय, जयपुर मीडिया एडवोकेसी स्वयंसेवी संगठन, लोक संवाद संस्थान और सोसायटी ऑफ मीडिया इनिशियेटिव फॉर वैल्यूज, इंदौर के तत्वावधान में आयोजित सम्मेलन के पहले दिन दो अप्रैल को सुबह दस बजे विवि के मानविकी पीठ सभागार में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बीके कुठियाल प्रथम सत्र का उदघाटन करेंगे।
प्रो.भानावत ने बताया कि सम्मेलन में देश के चौदह से अधिक राज्यों के प्रतिनिधि भाग लेने के लिए पंजीकरण करा रहे हैं। पूरे मीडिया जगत में इस तरह के पहले विशाल सम्मेलन में राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति हनुमान सिंह भाटी, नेशनल बुक ट्रस्ट के चेयरमैन बल्देव भाई शर्मा, टीवी 18 नेटवर्क के पत्रकार रमेश उपाध्याय, मणिपाल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.संदीप संचेती, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.सच्चिदानंद जोशी, ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के महासचिव एन.के. सिंह आदि मुख्य रूप से भाग लेंगे।