Monday 30 September 2013

आज है मजरूह सुल्तानपुरी का दिन


सन 1919 में आज ही के दिन एक अक्तूबर को उर्दू शायर मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म हुआ था. 1950 और 1960 के दशकों में मजरूह का हिन्दी फिल्मों के संगीत पर गहरा प्रभाव रहा. मजरूह सुल्तानपुरी आजमगढ़ के निजामाबाद में पैदा हुए जहां उनके पिता पुलिस में काम करते थे. वह नहीं चाहते थे कि उनके बेटे को अंग्रेजी में तालीम दी जाए इसलिए उन्हें मदरसा भेजा गया जहां उन्होंने अरबी और फारसी सीखी. उसके बाद मजरूह लखनऊ के तकमील उत तिब यूनानी कॉलेज में दाखिल हुए और हकीम के तौर पर पैसे कमाने की कोशिश करने लगे. इसी दौरान सुल्तानपुर में उन्होंने एक मुशायरे में अपनी गजल पेश की. उनकी यह गजल इतनी मशहूर हुई की उन्होंने अपनी हकीम की दुकान बंद कर केवल गजल लिखने का फैसला किया. यादों की बारात, तीसरी मंजिल, हम किसी से कम नहीं, कयामत से कयामत तक और जो जीता वही सिकंदर जैसे फिल्मों में गीतों के बोल मजरूह ने ही दिए. मजरूह को वैसे तो हिन्दी फिल्मों में गीत लिखने के लिए जाना जाता हैं लेकिन उनकी कविताएं भी बहुत मशहूर हुईं. मजरूह की मौत साल 2000 में मुंबई में हुई. मजरूह सुल्तानपुरी की शायरी और फिल्मी नग्मों में जमीन से गहराई तक जुड़े उनके सरोकारों की छाप मिलती है। इसके अलावा, उन्होंने इश्क के तरानों को भी अपनी लेखनी से नए आयाम दिए हैं। मैं अकेला ही चला था जानिबे-मंजिल मगर, लोग आते गए और कारवां बनता गया।.......बचा लिया मुझे तूफां की मौज ने वर्ना, किनारे बाले सफीना मेरा डुबो देते (सफीना - नाव)। ...........रहते थे कभी जिनके दिल में, हम जान से भी प्यारों की तरह, बैठे हैं उन्हीं के कूंचे में हम, आज गुनहगारों की तरह।...........दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें, तुमको ना हो ख्याल तो हम क्या जवाब दें ...जफा के नाम पर तुम क्यों संभलकर बैठ गए, तुम्हारी बात नहीं, बात है जमाने की। (जफा : जुल्म)। ...पहले सौ बार इधर और उधर देखा है, तब कहीं डर के तुम्हें एक नार देखा है।....क्या ग़लत है जो मैं दीवाना हुआ, सच कहना......मेरे महबूब को तुम ने भी अगर देखा है, ये आग और नहीं दिल की आग है नादां। .......चिराग हो के न हो, जल बुझेंगे परवाने, शमा भी, उजाला भी मैं ही अपनी महफिल का, मैं ही अपनी मंजिल का राहबर भी, राही भी। ......मिली जब उनसे नार, बस रहा था एक जहां, हटी निगाह तो चारों तरफ थे वीराने, तकदीर का शिकवा बेमानी, जीना ही तुझे मंजूर नहीं।

अमेरिका में शटडाउन का ऐलान, सभी सरकारी दफ्तर बंद


सरकारी खर्च विधेयक पर अमेरिकी कांग्रेस मे सहमति नहीं बन पाने के कारण ह्वाइट हाउस ने सभी गैर जरूरी सरकारी एजेंसियों को बंद करने का आदेश दे दिया है। तकरीबन 10 लाख सरकारी र्कमचारियो को बिना वेतन छुट्टी पर भेजा जा सकता है। 17 साल में यह पहला मौका है जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था में ऐसी स्थिति पैदा हुई है। राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा लाये जा रहे स्वास्थ्य रक्षा कानून का विरोध कर रहे रिपब्लिकन पार्टी के नेता सरकारी व्यय विधेयक को पारित करने पर राजी नहीं हुए जिससे जारी वित्त वर्ष की बाकी अवधि के लिए बजट की व्यवस्था की जानी है। स्वास्थ्य रक्षा कानून को अमेरिका में ओबामा रक्षा कानून भी कहा जा रहा है। इससे अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ेगा। रिपब्लिकन पार्टी की मांग है कि अगर सरकार सरकारी खर्च विधेयक पारित कराना चाहती है तो वह स्वास्थ्य रक्षा कानून वापस ले। सरकारी खर्च विधेयक पारित नहीं होने के कारण जारी वित्त वर्ष में सरकारी खर्च के लिए बजट की कमी हो गई है। लेकिन ओबामा और उनकी डेमोक्रटिक पार्टी इस बात पर अड़ी है कि वे किसी भी सूरत मे स्वास्थ्य रक्षा विधेयक से समझौता नहीं करेंगे। बजट पर गतिरोध लंबा खिंचने से 17 साल बाद एक बार फिर से अमेरिका को शटडाउन का सामना करना पड़ा है। अमेरिका की सत्ताधारी पार्टी डेमोक्रेट्स और विपक्षी दल रिपब्लिकन संघीय बजट पर सहमति नहीं बनी, जिसके बाद ये फैसला लेना पड़ा। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा और विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी चालू वित्त वर्ष के बचे हुए छह महीनों के लिए वित्तीय प्रबंधन पर कोई फैसला नहीं ले पाए। 17 साल बाद वित्त की कमी के कारण अमेरिकी सरकार को फिर शटडाउन करना पड़ा है। संघीय एजेंसियों और कार्यक्रमों के लिए पैसे की कमी होने पर एंटीडेफिशिएंसी एक्ट के मुताबिक संघीय एजेंसियों को अपना कामकाज रोकना पड़ता है। प्रशासन बजट न होने के कारण कर्मचारियों की छुट्टी कर देता है। इस दौरान उन्हें वेतन भी नहीं दिया जाता है। दरअसल, अमेरिका में ओबामा प्रशासन को संघीय बजट के लिए विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी से जूझना पड़ रहा है। इस शटडाउन का असर कई जरूरी सेवाओं पर असर पड़ने के साथ अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा। इससे पहले 1995 में अमेरिकी प्रशासन को शटडाउन का सामना करना पड़ा था, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा था। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि शटडाउन का अमेरिकी अर्थव्यस्था पर काफी बुरा असर पड़ सकता है। अमरीकी संसद के ऊपरी सदन यानी सीनेट ने बजट बिल को नकारते हुए इसे निचले सदन यानी प्रतिनिधि सभा को वापिस भेजा है। राष्ट्रपति बराक ओबामा का हेल्थकेयर क़ानून जिसे ओबामाकेयर कहा गया है, इस राजनैतिक अड़चन की मुख्य वजह है। प्रतिनिधि सभा में रिपब्लिकन सदस्यों और सीनेट में उनके सहयोगियों ने मांग करते हुए कहा कि इस कानून को वापस लिया जाए या इस पर होने वाले खर्च के लिए पैसा ना दिए जाएं तभी वो सरकारी ख़र्च के लिए बिल पारित करेंगे।