Saturday 23 July 2016

नहीं रहे नीलाभ अश्क

प्रसिद्ध साहित्यकार उपेंद्रनाथ अश्क के पुत्र एवं जाने माने लेखक-रंगकर्मी नीलाभ अश्क (70) नहीं रहे। जीवन के आखिरी दिनो में उन्हें असहनीय घरेलू संताप से दो-चार होना पड़ा था, यद्यपि बाद में सब सामान्य हो चुका था।
पढ़ाई के बाद सबसे पहले नीलाभ अश्क प्रकाशन के पेशे से जुड़े और बाद में उन्होंने पत्रकारिता को अपनाया। वह जनवादी आंदोलन से आखिरी वक्त तक जुड़े रहे। उन्होंने चार साल तक लंदन में बीबीसी (ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग सर्विस) की हिन्दी सेवा में बतौर प्रोड्यूसर कार्य किया। 1984 में स्वदेश वापसी के बाद वो पुनः लेखन और प्रकाशन कार्य से जुड़ गए।
उन्होंने हिंदी पाठकों को संस्मरणारंभ, 'अपने आप से लम्बी बातचीत', 'जंगल ख़ामोश है', 'चीजें उपस्थित हैं', 'शब्दों से नाता अटूट है', 'शोक का सुख', 'ख़तरा अगले मोड़ के उस तरफ है' और 'ईश्वर को मोक्ष' जैसे कविता संग्रह दिए।
संप्रति वो राष्ट्रीय नाट्यविद्यालय की पत्रिका रंग प्रसंग के संपादक के तौर पर कार्यरत थे। नीलाभ हिन्दी ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय थे। अपने ब्लॉग 'नीलाभ का मोर्चा' पर वो आत्मसंस्मरण भी लिख रहे थे। अपने लेखन एवं जीवन में जुझारूपन के लिए वह हमेशा याद किए जाएंगे।