Monday 19 February 2018

'हल्दीघाटी' की रिकार्डिंग पर वाह-वाह

वह सब बड़ा धुंधला-धुंधला सा रह गया है स्मृतियों में। ओझल होता हुआ। प्रसिद्ध कवि रामावतार त्यागी की एक पंक्ति अक्सर मन पर तैरने लगती है- 'जिंदगी तू ही बता तेरा इरादा क्या है,...।' मौत बुलाई नहीं जाती, आ जाती है, बिना पूछताछ, अपना वक्त देखकर। रामावतार त्यागी जितने लोकप्रिय कवि, उतने ही बेहतर इंसान भी थे। आज वह हमारे बीच नहीं हैं लेकिन जब भी वह याद आते हैं, मुंबई का एक खुशहाल दिन दिल में खिल उठता है। लगभग तीस साल पहले 'हल्दीघाटी' के रचनाकार पं.श्याम नारायण पांडेय के साथ मुंबई जाना हुआ था। चौपाटी पर कवि सम्मेलन के अगले दिन 'हल्दीघाटी' की कविताओं की रिकार्डिंग होनी थी। उस समय मोबाइल का जमाना नहीं था, सो रामावतार त्यागी का दूत बार-बार पांडेयजी से सम्पर्क साधने आ टपकता कि चलिए, रिकार्डिंग का समय हो रहा है।
इससे पांडेयजी को बड़ी झुझलाहट होती। इसकी एक और वजह थी। उन दिनो मंचों पर छाई रहीं कवयित्री माया गोविंद पांडेयजी को उनके सुमित्र हरिवंश राय बच्चन से मिलवाने ले जाना चाहती थीं। उस वक्त दिनो उनके पुत्र अमिताभ बच्चन 'कुली' के फिल्मांकन में घायल होने के बाद 'प्रतीक्षा' में स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे। माया गोविंद के साथ उनके दामाद भी थे, जो बच्चन जी से मिलने के बहाने अमिताभ बच्चन से मिलना चाहते थे। पांडेयजी बार-बार मुझसे पूछते कि क्या करें। मेरा विचार था कि पहले रिकार्डिंग हो जाए, फिर समय बचता है तो बच्चनजी से मिलने चलें क्योंकि रामावतार त्यागी उन दिनो साहित्यिक विरासत के तौर पर देश के प्रमुख कवि-साहित्यकारों के शब्द उनकी जुबानी रिकार्ड करा रहे थे।
भीतर से मन तो मेरा भी था कि बच्चन जी से मुलाकात हो जाए, क्योंकि पांडेयजी से उनकी अंतरंग मित्रता के दिनो की अनेकशः कहानियां सुन रखी थीं किंतु तब तक मुलाकात नहीं हुई थी। इस बीच बच्चन जी के फोन आते रहे कि 'पांडेय कब पहुंचोगे, मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं!' अंततः पांडेयजी पहले बच्चन जी से मिलने पहुंचे, साथ में माया गोविंद और उनके दामाद सहित हम तीनो भी। उस मुलाकात की बात विस्तार से और कभी। उस दिन इतना अप्रिय जरूर हुआ कि अमिताभ मिले नहीं। ज्योंही हम 'प्रतीक्षा' के मुख्य द्वार में प्रविष्ट हुए, परिसर के मंदिर से निकलकर अमिताभ सीधे अपने विश्राम कक्ष में चले गए। फिर लाख मिन्नत पर भी मिलने नहीं निकले।
वहां से हम पहुंचे रामावतार त्यागी के साथ रिकार्डिंग रूम। श्याम नारायण पांडेय 'हल्दीघाटी' का कविता पाठ करते रहे, और हम तीनो को साथ में वाह-वाह करने के लिए बैठा लिया गया। उन दिनो रामावतार त्यागी सांस की बीमारी से परेशान थे। बमुश्किल रिकार्डिंग करा सके लेकिन उस वाकये जैसे वक्त से एक सीख मिली कि उन दिनो बंबई जैसी चमक-दमक की दुनिया में भी साहित्य को लेकर वहां के चुनिंदा कवि-साहित्यकारों में कितना अनुराग और तल्लनीनता थी। 'हल्दीघाटी' का वह रिकार्ड कविता-पाठ तो कभी सुनने को नहीं मिला और रामावतार त्यागी भी नहीं रहे लेकिन कविता के प्रति उनकी लगन और मेहनत आज भी प्रेरणा देती रहती है। काश, वह रिकार्डिंग सुनने को कहीं से मिल जाती-

'रण बीच चौकड़ी, भर भरकर,
चेतक बन गया निराला था,
राणा प्रताप के घोड़े से,
पड़ गया हवा का पाला था'...।     

किसी मंच पर श्याम नारायण पांडेय जब ये पंक्तियां पढ़ रहे थे (...चेतक बन गया निराला था), मंच पर मौजूद निराला जी चौंक पड़े थे- क्या कहा, 'निराला' था!