Tuesday 4 February 2014

शंभुनाथ सिंह

सोन हँसी हँसते हैं लोग
हँस-हँस कर डसते हैं लोग।
रस की धारा झरती है
विष पिए हुए अधरों से,
बिंध जाती भोली आँखें
विषकन्या-सी नज़रों से।
नागफनी को बाहों में
हँस-हँस कर कसते हैं लोग।

जलते जंगल जैसे देश
और क़त्लगाह से नगर,
पाग़लख़ानों-सी बस्ती
चीरफाड़घर जैसे घर।
अपने ही बुने जाल में
हँस-हँस कर फँसते हैं लोग।

चुन दिए गए हैं जो लोग
नगरों की दीवारों में,
खोज रहे हैं अपने को
वे ताज़ा अख़बारों में।
भूतों के इन महलों में
हँस-हँस कर बसते हैं लोग।

भाग रहे हैं पानी की ओर
आगजनी में जलते से,
रौंद रहे हैं अपनों को
सोए-सोए चलते से।
भीड़ों के इस दलदल में
हँस-हँस कर धँसते हैं लोग।

वे, हम, तुम और ये सभी
लगते कितने प्यारे लोग,
पर कितने तीखे नाख़ून
रखते हैं ये सारे लोग।
अपनी ख़ूनी दाढ़ों में
हँस-हँस कर ग्रसते हैं लोग।

मसखरे : उदयप्रकाश


मसखरे एक दूसरे के प्रति बहुत गम्भीर होते हैं।
मसखरे जो होते हैं, उन्हें लोग मसखरा ही कहते हैं
लेकिन मसखरों के नाम भी होते हैं और वे
आपस में उन्हीं का इस्तेमाल करते हैं।
मसखरे ही कर सकते हैं
मसखरों का सही मूल्यांकन।
मसखरे दूसरों के सामने कभी हँसते नहीं हैं
हँसना उनके पेशे के चीज़ है, जिसका उपयोग
वे किसी मक़सद से करते हैं।
सच्चे मसखरे
कभी मान ही नहीं सकते
कि वे मसखरे हैं।
मसखरे भाषा का इस्तेमाल
किफ़ायत के साथ करते हैं
वे अपनी हिफ़ाजत का सबसे पहले ध्यान रखते हैं।
अख़बार
पाठ्य-पुस्तकें
सरकार
यहाँ तक की इतिहास में
मसखरों का उल्लेख गम्भीरता से होता है।
मसखरे जिसका विरोध करते हैं
उसके विरोध को फिर असम्भव बना देते हैं
इसीलिए मसखरे हमेशा
अनिवार्य होते हैं।
मसखरे
अमूमन दम्भी और ताकतवर होते हैं
उन्हें आटे का लोंदा
या माटी का माधो न समझना।
मसखरे
’अन’ पर समाप्त होने वाली
कई क्रियाओं के कर्ता होते हैं
उदाहरण के लिए
शासन, उदघाटन, लेखन,
विमोचन, उत्पादन, प्रजनन चिन्तन आदि।
मसखरे ही जानते हैं
अपनी कला की बारीकियाँ
और कोई नहीं जानता।
ऎसा भी होता है एक दिन
जब हम देखते हैं
मसखरों के हाथ में अमरूद की तरह अपनी दुनिया
मसखरे
दिखाते हैं अमरूद का करतब
हमें हँसाने के लिए
और हम डरना शुरू करते हैं।
यह तो नहीं कहीं
कि हम एक विराट मसखरा साम्राज्य के
प्रजाजन हैं।