Saturday 22 February 2014

चचा बनारसी

वैद हकीम मुनीम महाजन साधु पुरोहित पंडित पोंगा,
लेखक लाख मरे बिनु अन्न, चचा कविता करि का सुख भोगा।
पाप को पुण्य भलो की बुरो, सुरलोक की रौरव कौन जमोगा,
देश बरे की बुताय पिया हरखाय हिया तुम होहु दरोगा।


धूमिल

हर तरफ धुआँ है, हर तरफ कुहासा है
जो दांतों और दलदलों का दलाल है
वही देशभक्त है।
अंधकार में सुरक्षित होने का नाम है-तटस्थता।
यहां कायरता के चेहरे पर सबसे ज्यादा रक्त है।
जिसके पास थाली है
हर भूखा आदमी उसके लिए सबसे भद्दी गाली है।
हर तरफ कुआँ है हर तरफ खाईं है
यहां, सिर्फ, वह आदमी, देश के करीब है
जो या तो मूर्ख है या फिर गरीब है