Saturday 27 September 2014

विमल राय की बेटी होने पर गर्व

रिंकी कहती हैं, 'मेरे लिए उनकी बेटी होना बहुत गर्व की बात है. ये ज़रूर है कि लोग मुझे बिमल रॉय की बेटी के तौर पर ही पहचानते हैं जबकि मैं ख़ुद पत्रकार हूं. किताबें संपादित करती रही हूं.'

भारतीय सिनेमा को 'दो बीघा ज़मीन', 'सुजाता', 'मधुमति' और 'बंदिनी' जैसी फ़िल्में देने वाले फ़िल्म निर्देशक बिमल रॉय का करियर छोटा लेकिन बेहतरीन रहा. हालांकि उनकी बेटी रिंकी भट्टाचार्य को इस बात पर अफ़सोस है कि उनके पिता की फ़िल्मों को समझने-पढ़ने की ज़रूरत महसूस नहीं की गई. इसलिए उन्होने ख़ुद ही एक किताब लिख दी अपने पिता की बनाई क्लासिक फ़िल्म मधुमति पर.रिंकी भट्टाचार्य कहती हैं, ''मुझे बहुत ग़ुस्सा आता है ये सोच कर बिमल रॉय जैसे इतने सम्मानित व्यक्ति को कभी समझने और लिखने लायक नहीं समझा गया. फिर मैंने सोचा कि यह मुझे ख़ुद ही करना होगा.''
बिमल रॉय को भारतीय सिनेमा में उनके यथार्थवादी चित्रण के लिए ख़ास माना जाता है. किताब लिखने की प्रक्रिया में रिंकी उन जगहों पर गईं जहां बिमल रॉय ने इसकी शूटिंग की थी. हैरत की बात ये थी कि उनकी मुलाक़ात ऐसे लोगों से भी हुई जिन्होंने बिमल रॉय को मधुमति की शूटिंग करते हुए देखा था. 1958 में प्रदर्शित मधुमति में वैजयंतीमाला और दिलीप कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई थी.
मधुमति ही क्यों, मधुमति 1958 में रिलीज़ हुई थी. ये सवाल पूछने पर रिंकी कहती है कि मुझसे बहुत लोग ये पूछ चुके हैं कि आख़िर बिमल रॉय जैसे फ़िल्मकार ने, जो सामाजिक मुद्दों पर फ़िल्में बनाते रहे, मधुमती जैसी फ़िल्म क्यों बनाई. रिंकी कहती हैं कि उनकी नज़र में वो फ़िल्म और ख़ासकर उसमें फ़िल्माए गए दृश्य भारतीय सिनेमा के चंद सबसे बेहतरीन दृश्यों में से एक हैं. अपने पिता के साये से न निकल पाने का मलाल भी उन्हें बिल्कुल नहीं है. रिंकी कहती हैं, ''मेरे लिए उनकी बेटी होना बहुत गर्व की बात है. ये ज़रूर है कि लोग मुझे बिमल रॉय की बेटी के तौर पर ही पहचानते हैं जबकि मैं ख़ुद पत्रकार हूं. किताबें संपादित करती रही हूं. लेकिन इस बात का कोई अफ़सोस नहीं कि मैं सिर्फ़ बिमल रॉय की बेटी के तौर पर ही जानी जाती हूं.''
(बीबीसी हिंदी से साभार)