Sunday 27 September 2015

अथ फेसबुक प्रपंच

दो-तीन वर्षों में जाना-पहचाना है कि फेसबुक पर दो तरह के प्राणी विचरते हैं। सच्चे मन के विद्वान-मनीषी और भांति-भांति के लंपट। विद्वान-मनीषी यहां रोजाना बने रहने के लिए अपने शब्दों की जादूगरी से ललचाते-रिझाते हैं और लंपट तत्व तरह तरह की खुराफातों में व्यस्त रहते हैं। आह-आह, वाह-वाह के शब्दजाल से लैस ऐसे तत्वों की कुदृष्टि स्त्रियों पर रहती हैं। खोखली पंक्तियों पर भी वे दिल खोलकर वाहवाही लुटाते फिरते हैं। वह कोई पोस्ट पढ़ें-न-पढ़ें, खासकर स्त्रियों के सीधे चैट बॉक्स में घुसकर नाना प्रकार के लंपट-संवाद कर गुजरने के लिए दुष्प्रयासरत होते हैं, बार बार फोन नंबर और पता मांगते हैं... गुड मॉर्निंग से, गुड नाइट तक... हलो-हाय से लव यू तक।
एक जनाब तो, जो देश के एक महानगर में विराजते हैं, अपनी फ्रेंड लिस्ट की कई कई स्त्रियों के कन्हैया बन चुके हैं। अपने महानगर में उन स्त्रियों को घूमने-फिरने के लिए आमंत्रित करते रहते हैं। उनके लिए होटल बुक कराना, वाहन उपलब्ध कराना, उनके फोन रिचार्ज कराना, खाने-पीने के उम्दा से उम्दा इंतजाम करना, शहर व उसके आसपास के पर्यटन स्थलों पर देर रात तक टहलाना-घुमाना, मौज-मस्ती करना उनका शगल होता है। ये बहुंरगी कर्मकांड वह अपने पत्नी-बच्चों से छिप-छिपाकर करते हैं। एक जनाब लड़कियों के फोन रिचार्ज कराते कराते अब कंगाल-से हो चुके हैं।
ऐसे ही एक श्रृंगार रसावतार इन दिनो लड़कियों और स्त्रियों को ज्ञान देते डोल रहे हैं कि उन्हें अपनी फ्रेंड लिस्ट में से किस-किस को आउट कर देना चाहिए, और उनके नेतृत्व में अपना समूह बनाकर साहित्य और समाज की भलाई के लिए कालीदास के 'कुमार संभव' से लेकर 'लोलिता' तक जैसी पुस्तकों पर आधुनिक टिप्पणियों की बहस चलानी चाहिए....। ऐसे और भी अनेकशः महापुरुष यहां दिन-रात एक किए हुए हैं। खुली-खाटी निखालिस बात कहें तो फेसबुक सामंती थूथन वाले ऐसे छुपेरुस्तम निर्लज्जों के लिए 'कोठा' है। उनके और भी कई तरह के क्रिया-कलाप हैं, जिन पर लिखने में भी घिन आती है। स्त्रियां और भले लोग उनसे बचते-भागते तंग आ चुके हैं और कई-एक डाट-फटकार के साथ बेइज्जत भी.....

Friday 25 September 2015

मध्य प्रदेश के बाबा कालू दास का दर्द

........ सीधी, शहडोल, सागर, विदिशा, उमरिया आदि ऐसे जिले, जहां के लाखों बाशिंदों का दर्द पन्नों पर दर्ज नहीं। इतनी कड़वी सच्चाइयां कि जो जाने-सुने, हैरत में पड़ जाए। वहां के ऐसे गांव-के-गांव, पीढ़ियों से वहां रहने के बावजूद, उन जमीनों के उनके नाम पट्टे नहीं, जिन पर उनके मकान बने हैं। ऊपर ही ऊपर जमीनों के सौदे हो जाते हैं, वे अपनी जड़ों से उजड़कर कहीं और जा बसते हैं। ऐसे तमाम लोग उन बांधों के नीचे झुग्गियां डालकर मेहनत-मजदूरी से जीवन बसर कर रहे हैं या जंगलों में जाकर शरण ले रहे हैं। सरकार कहती कुछ है, जमीनी हकीकत कुछ और है।
बाबा कालूदास बताते हैं कि पीढ़ियों से वहां होने के बावजूद उनके नाम तो कार्ड नहीं, जिनके पास ट्रैक्टर-गाड़ियां हैं, उनके पूरे के पूरे परिवार गरीबी रेखा के नीचे दर्शाकर उन्हें राशन कार्ड दिए गए हैं। जब ये गरीब राशन अथवा तेल मांगने जाते हैं, फटकार कर भगा दिया जाता है। जीहुजूरी पर लीटर दो लीटर मिल जाता है, बाकी सब दबंगों को बांट दिया जाता है।
बाबा कालूदास इस समय नैक्डोर के उस आंदोलन से जुड़े हैं, जो अशोक भारती और संजय भारती के नेतृत्व में हर भूमिहीन आदिवासी को पांच-पांच एकड़ जमीन देने की लड़ाई लड़ रहा है। ये लोग पंचायत अधिनियम और भूमि वितरण कानून का भी इन दिनो बारीकी से अध्ययन कर रहे हैं।
उनका कहना है कि हम अपनी लड़ाई को किसी भी हद तक ले जाएंगे मगर अब पीछे नहीं हटेंगे। हमारा दुख न राज्य सरकार सुन रही है, न केंद्र सरकार। हमे सुनियोजित तरीके से हमारे इलाकों से खदेड़ा जा रहा है। हमारी जमीनें, हमारे जंगल, खदानें, पानी पर लगातार सरकार के सहयोग से कब्जे होते जा रहे हैं। कहीं सुनवाई नहीं, जैसे लगता ही नहीं कि हम अपने देश में रह रहे हैं।

Thursday 24 September 2015

रंजीता के शब्द

Tum kavi udas na hona
Tum kavi nirash na hona,
Tab vi nahi jab jeewan ke gahantam andhero me
Tumhe kuch na sujhta ho,
Ya tab jab tanhai tumhe Mar dalne lage..
Saavi tumhe paraye se dikhne lage ,
Aur har rishta jab chor chale tumhara sath.

Tab vi nahi ..
Tab vi tum kavi udas na hona,
Tab vi tum kavi nirash na hona,
Main hu .........
Aur hamesha hi rahungi ,
Tumhare sath .....
Tumhare pas,
Ek shardha ki tarah. ....
Ek pooja ki tarah ......
Ek aastha ki tarah.....
Nirakar.............
Bhale hi kai bar tum mujhe dekh na payoge,
Par mujhe har pal. .partial jina,
Mehsoos karna .......
Apni tmam chetan aur achetan vichardhara me,
Main hu...
Aur.....
Rahungi .... hamesha
Tumhare pas.....Tumhare sath. .
Bas tum hausla aur zazba bachaye rakhna.
Mere khawab apne palkoN pe sajaye rakha.

Tuesday 22 September 2015

जयप्रकाश त्रिपाठी

जो है, क्या-क्या है, जो नहीं है, 
क्या नहीं है, मेरे पास, उनके पास...।
सब चेहरे, सब खुशियां, सब सुबहें उनके वश में,
उजियारे, रंग सारे, उनके मन में, उनके रस में,
जो भी है, सब वहीं है, उनके पास, उनके पास...।
सब कर्ज-कर्ज किस्से, सब दर्द-दर्द लम्हे,
जले सर्द-सर्द चेहरे, जो बुझे-से, मेरे हिस्से,
मेरे नाम सब उधारी, कई खाते हैं, बही है, 

मेरे पास, मेरे पास...।

Sunday 20 September 2015

सिर्फ आकाश ही क्यों, उसका एक नीड़ हो / रंजिता सिंह

Nanhi chiria ka aakash kitna hai
Uska parisiman kaun tai karega
Tum ya mai ya hamdono
Sirf aakash hi kyo
Uska ek neer vi to banana hoga
Tinka tinka jor ke lana hoga
Kya tunhe lagta hai tum De sakoge
Ek mukt aakash aur ek surakhit neer
Ek kilol aur sapno ke dher sare peroN par
Vicharti ...hansti. .vihasti wo nanhi chiria
Kya uski chonch me dana bharna
Tumhe uski dega. .kya barish se gile
Uske pankh ko tum apne pankhoN se
Dhak doge. .kya unchi aur lambi uran se
Thaki bahut thaki wo nanhi chiria
Sukh ke kuch nirwidhn nind le payegi
Aur jab aankh khole to apne neer me
Pahle se rakha dana-pani chug payegi
Aur fir aasman ke Jane kitne naye kone haiN
Jo usne kavi nahi vichra
Un sundar sapnile path ki rah dikha payoge tum
Us naye nawele neel gagan me
Sang uske urr payoge tum.
 रंजिता सिंह

Saturday 19 September 2015

मेरी पुस्तक 'मीडिया हूं मैं' उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से पुरस्कृत

वर्ष 2014 में प्रकाशित मेरी पुस्तक 'मीडिया हूं मैं' को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने पुरस्कृत किया है। हिंदी दिवस के मौके पर 14 सितंबर 2015 को लखनऊ में संस्थान के यशपाल सभागार में आयोजित एक समारोह में मुझे सम्मानित करते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, संस्थान के निदेशक सुधाकर अदीब, मुख्य सचिव अटोरिया, विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय आदि।