Sunday 25 June 2017

नजीर अकबराबादी के शब्दों में ईद मुबारक

नज़ीर अकबराबादी साहब उर्दू में नज़्म लिखने वाले पहले कवि माने जाते हैं। उन्होंने आम आदमी की शायरी की। आगरा की जमीं पर यूं तो मीर और गालिब की शायरी भी गूंजी हैं, लेकिन नजीर की नज्मों ने जुबां पर जो पकड़ बनाई, उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। मुबारक ईद पर -
ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी।
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी।
पिछले पहर से उठ के नहाने की धूम है,
शीर-ओ-शकर सिवईयाँ पकाने की धूम है,
पीर-ओ-जवान को नेम‘तें खाने की धूम है,
लड़कों को ईद-गाह के जाने की धूम है।
कोई तो मस्त फिरता है जाम-ए-शराब से,
कोई पुकारता है कि छूटे अज़ाब से,
कल्ला किसी का फूला है लड्डू की चाब से,
चटकारें जी में भरते हैं नान-ओ-कबाब से।
क्या है मुआन्क़े की मची है उलट पलट,
मिलते हैं दौड़ दौड़ के बाहम झपट झपट,
फिरते हैं दिल-बरों के भी गलियों में गट के गट,
आशिक मज़े उड़ाते हैं हर दम लिपट लिपट।
काजल हिना ग़ज़ब मसी-ओ-पान की धड़ी,
पिशवाज़ें सुर्ख़ सौसनी लाही की फुलझड़ी,
कुर्ती कभी दिखा कभी अंगिया कसी कड़ी,
कह “ईद ईद” लूटें हैं दिल को घड़ी घड़ी।
रोज़े की ख़ुश्कियों से जो हैं ज़र्द ज़र्द गाल,
ख़ुश हो गये वो देखते ही ईद का हिलाल,
पोशाकें तन में ज़र्द, सुनहरी सफेद लाल,
दिल क्या कि हँस रहा है पड़ा तन का बाल बाल।
जो जो कि उन के हुस्न की रखते हैं दिल से चाह,
जाते हैं उन के साथ ता बा-ईद-गाह,
तोपों के शोर और दोगानों की रस्म-ओ-राह,
मयाने, खिलोने, सैर, मज़े, ऐश, वाह-वाह।
रोज़ों की सख़्तियों में न होते अगर अमीर,
तो ऐसी ईद की न ख़ुशी होती दिल-पज़ीर,
सब शाद हैं गदा से लगा शाह ता वज़ीर,
देखा जो हम ने ख़ूब तो सच है मियां ‘नज़ीर‘।