Saturday 29 June 2013

कोंस्तांतीन सीमोनोवका एक कविता संग्रह


प्रेम मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा सुख होता है| कभी यह सबसे बड़ा दुख भी बन जाता है| इस बार हम आपको एक ऐसी प्रेम-कथा सुनाने जा रहे हैं जिसमें प्रेम सुख भी था और दुख भी| यह कथा है रूसी कवि कोंस्तांतीन सीमोनोव और अभिनेत्री वलेंतीना सेरोवा की|
सन् 1942 में कोंस्तांतीन सीमोनोवका एक कविता संग्रह छपा था जिसका नाम था: “तुम्हारे संग, तुम्हारे बिना”| इसके मुखपत्र पर था समर्पण: वलेंतीना सरोवा को! यह पुस्तक हाथोंहाथ बिक गई| लोग अपनी कापियों में हाथ से इन कविताओं की नक़ल उतारते थे, इन्हें कंठस्थ करते थे| उन दिनों द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था–लोग मोर्चे पर लड़ रहे अपने सगों को ये कविताएँ अपने पत्रों में लिखकर भेजते थे| इसी संग्रह में एक कविता थी:“तुम करना इंतज़ार”| यह कविता युद्ध के शुरू में ही लिखी गई थी| इसमें इंतज़ार की जो अरज़ है उससे साफ़ पता चलता है कि कवि को यह अहसास हो गया था कि लड़ाई बहुत लंबी चलने वाली है| बड़ी जल्दी ही सारे देश में मोर्चे में लड़ रहे सिपाही भी और पीछे छूटे उनके सगे भी – सभी इसे एक मन्त्र की तरह दोहराने लगे| यह था प्रेम और इंतज़ार का मन्त्र| आइए, हम आपको सुनाते हैं इसका हिंदी रूपांतर जो हमारे सहयोगी योगेन्द्र नागपाल ने किया है:

तुम करना इंतज़ार, मैं लौट आऊंगा|
बस हर पल करना तुम इंतज़ार|
ठंडी बरखा करे उदास - तुम करना इंतज़ार| चलें बर्फीली आंधियां - तुम करना इंतज़ार|
गर्मी भारी तड़पाए - तुम करना इंतज़ार|
भुला के बीते पल,
छोड़ दें सब इंतज़ार - तुम करना इंतज़ार|
न मिले खबर दूर से,
न आए पाती - तुम करना इंतज़ार|
हो जाएं संगी-साथी हताश - तुम करना इंतज़ार|

तुम करना इंतज़ार, मैं लौट आऊंगा|
अब भुला भी दो कहते हैं जो,
अनसुना उनको तुम कर दो|
मान ले मां, नहीं रहा बेटा|
नहीं रहा बाप, मान ले बेटा| भाई-बंधु थक जाएं, करते-करते इंतज़ार| घूंट कड़वा लगा लें, मेरी आत्मा की शांति का| तुम करना इंतज़ार, नहीं भरना वह घूँट|
तुम करना इंतज़ार, मैं लौट आऊंगा,
हर मौत को देके धोखा| नहीं था जिनको इंतज़ार कहेंगे – खुशकिस्मत है| क्या समझेंगे वे, नहीं जानते जो इंतज़ार, बरसती आग में बचाया कैसे तुमने मुझे, अपने इंतज़ार से| कैसे रह गया मैं ज़िंदा, जानती हो तुम, जानता हूं मैं| करना तुम सा इंतज़ार, नहीं जानता कोई और|

वलेंतीना सेरोवा एक अनुपम अभिनेत्री और अति सुंदर नारी थीं | उनमें कुछ ऐसा सम्मोहन था कि जो उन्हें देखता उन पर फ़िदा हो जाता| आम दर्शक, बड़े-बड़े राजनेता, कलाकार और कवि – सभी उनके दीवाने थे| उनकी हर हीरोइन अपने आप में अनोखी और मनमोहक थी| किंतु उनका वास्तविक जीवन इससे बहुत भिन्न था|

उनका जन्म सन् 1917 में यूक्रेन के खारकोव नगर के पास हुआ था| उनकी मां भी अपने ज़माने की मशहूर अभिनेत्री थीं| वलेंतीना छह वर्ष की थीं, जब मां-बाप के साथ मास्को आ गईं| रंगमंच से लगाव तो उन्हें मां के दूध के साथ ही मिला था| तो इसमें आश्चर्य की क्या बात कि आठ वर्ष की नन्ही उम्र में ही वह रंगमंच पर उतर आई थीं| चौदह साल की होते - होते आम स्कूल की पढ़ाई छोड़कर रंगमंच विद्यालय में दाखिला ले लिया| वहाँ साल भर शिक्षा पाई और पंद्रह साल की उम्र में ही उन्हें थियेटर मंडली में रख लिया गया|

मई 1938 में उनका परिचय स्पेन में चल रहे गृहयुद्ध के वीर, टेस्ट पायलट अनातोली सेरोव से हुआ| हंसमुख, हाज़िरजवाब, सलोना अफसर युवा अभिनेत्री को देखते ही अपनी सुध-बुध खो बैठा| उसी दिन शाम को वलेंतीना लेनिनग्राद जा रही थीं| अनातोली उन्हें छोड़ने स्टेशन पर गए, उन्हें ट्रेन में बिठाकर विदा किया| और अगले दिन सुबह तड़के हवाई जहाज़ से लेनिनग्राद पहुँच गए – स्टेशन पर वलेंतीना का स्वागत करने| दो दिन तक वह वलेंतीना की परछाईं बने उनके पीछे-पीछे घूमते रहे| तीसरे दिन मन की रानी से कह दिया: सदा के लिए मेरी हो जाओ| पहली मुलाक़ात के आठ दिन बाद ही 11 मई को वे विवाह-सूत्र में बंध गए|

वलेंतीना के जीवन में ये सबसे सुखी दिन थे| वह अब सच्चे अर्थों में एक अनुपम अभिनेत्री मानी जाती थीं| “मैं नहीं अबला” फिल्म की हीरोइन की भूमिका ने उन्हें लाखों लोगों की चहेती बना दिया| उस ज़माने के संस्मरण बताते हैं कि जहाँ-जहाँ यह फिल्म दिखाई जाती थी वहाँ लोगों की भीड़ टूट पड़ती थी| थियेटर में जिन नाटकों में वह भाग लेती थीं उनके टिकट हाथोंहाथ बिक जाते थे| वलेंतीना 21 वर्ष की हो गई थीं| उनके पति अनातोली सेरोव के साथ उन्हें अक्सर क्रेमलिन में बुलाया जाता था| पर रूसी में ये मुहावरे अकारण ही नही बने हैं: “शादी मई में, खुशी खाई में”, “मई की शादी, लाए बर्बादी”| वलेंतीना के भाग्य ने इन्हें सच्चा कर दिखाया| 5 मई 1939 को वलेंतीना और अनातोली को क्रेमलिन में दावत पर बुलाया गया| यहीं पर स्टालिन ने अनातोली को नए विमान के परीक्षण का काम सौंपा| अपने विवाह की वर्षगांठ वाले दिन, 11मई को वलेंतीना को “गलीना” नाम की कामेडी में प्रमुख भूमिका अदा करनी थी| जब उनका मेक-अप पूरा हो गया तो उन्होंने देखा कि थियेटर के नेपथ्य में बहुत सारे सैनिक जमा हैं और कुछ अजीब ढंग से उन्हें देख रहे हैं| थियेटर के डायरेक्टर के चेहरे पर खून का कतरा तक न था, वलेंतीना के पास आकर वह भर्राए कंठ से बोला: “अनातोली ठीक नहीं”| वलेंतीना ने पूछा: “ज़िंदा हैं?” जवाब मिला : “नहीं, मारे गए”| यह सब नाटक आरंभ होने से कुछ क्षण पहले ही हुआ| वलेंतीना सेरोवा जब मंच पर पहुंचीं तो सारा हाल स्तब्ध रह गया| रेडियो पर मशहूर पायलट के दुर्घटना में मारे जाने की खबर आ चुकी थी| परंतु सेरोवा ने सारा नाटक हंसते-खेलते पूरा किया| ईश्वर ही जानता है तब उनके मन पर क्या गुज़र रही थी| चार महीने बाद उनके बेटा हुआ जिसका नाम उन्होंने अपने पति की याद में अनातोली ही रखा| वह था भी हुबहू अपने पिता की नक़ल|

दिन-रात काम में डूबी रहकर ही युवा नारी अपने इस दुख से उबर पाई| गोर्की के मशहूर नाटक की नई प्रस्तुति में वलेंतीना को एक प्रमुख भूमिका सौंपी गई| इसके हर शो में पहली कतार में ही सदा एक नौजवान बैठा होता था जो टकटकी लगाए अभिनेत्री को निहारता रहता था| जिस किसी नाटक में वलेंतीना की कोई भूमिका होती थी उसके हर शो में यह नौजवान मौजूद होता था| नाटक समाप्त होने पर वह थियेटर के पिछले दरवाज़े पर जहाँ से सभी अभिनेता-अभिनेत्रियां निकलते थे पहरा देता था - हाथ में गुलदस्ता लिए| अंततः सेरोवा ने इस हठी प्रशंसक को उत्तर दे ही दिया| एक पर्ची उस तक पहुंचाई: “मुझे फोन करना| वलेंतीना सेरोवा”| यह नौजवान और कोई नहीं 24 वर्षीय कवि कोंस्तांतीन सीमोनोव ही थे जो इस उम्र में ही ख्याति पा चुके थे|

सीमोनोव का जन्म 1915 में पीटर्सबर्ग में हुआ था, उनकी मां ऊंचे राजसी घराने की थीं| अपने पिता की सीमोनोव को कोई याद नहीं रही, बेटे के जन्म के कुछ ही समय बाद वह प्रथम विश्युद्ध के मोर्चे पर लापता हो गए थे| हां सौतेले पिता का ज़िक्र सदा बड़े आदर और स्नेह से करते थे| वह अफसर थे, रूस-जापान युद्ध में लड़े थे और पहले विश्वयुद्ध में भी| उन्होंने ही बेटे का पालन-पोषण किया, उसे अच्छी शिक्षा दी| सन् 1931 में वह माता-पिता के साथ मास्को आ गए यहां सिनेमा-स्टूडियो में काम करने लगे| कुछ समय बाद

साहित्यिक संस्थान में शिक्षा पाने लगे| यहीं उन्होंने कविताएँ लिखनी शुरू कीं और जल्दी ही नाम कमा लिया|

एक नामी साहित्यकार बनकर उन्होंने थियेटर की ओर ध्यान दिया| खास तौर पर वलेंतीना के लिए उन्होंने “एक प्रेम कथा” नाम से नाटक लिखा, जिसमें सेरोवा ने मुख्य भूमिका अदा की| थियेटर में अगली सफलता सीमोनोव को “हमारे शहर का छोरा” नाटक से मिली| यह वलेंतीना सेरोवा और उनके पति अनातोली की जीवनी पर आधारित था| सेरोवा ने इस नाटक में कोई भूमिका अदा करने से इनकार कर दिया – पति की मृत्यु का शूल अभी तक हृदय को असह्य पीड़ा दे रहा था|

वलेंतीना के लिए सीमोनोव एक सहृदय मित्र ही थे| वह भी बहुत समझदार थे, जानते थे नारी-मन को जीतने के लिए बड़ा धीरज चाहिए| धीरे-धीरे वलेंतीना का बेटा अनातोली उनकी ओर आकर्षित होने लगा| सो, मां का दिल भी पिघलने लगा| सीमोनोव सच्चे मन से वलेंतीना से प्रेम करते थे| अच्छी तरह समझते थे कि प्रिया का हृदय वह पूरी तरह नहीं जीत पाए हैं| वलेंतीना के “रोमांसों” की चर्चाएं सारे शहर में क्या, सारे देश में होती थीं| थियेटर में उनके साथी पीठ पीछे उन्हें “तितली” कहते थे| किंतु सीमोनोव को इन सब चर्चाओं-अफवाहों की कोई परवाह नहीं थी| वलेंतीना जैसी थी वैसी ही उन्हें दिलो-जान से प्यारी थी| युवा कवि और अभिनेत्री के प्रेम की खबर भी तुरंत ही चारों ओर फ़ैल गई| वे इकट्ठे रहने लगे थे, विवाह की औपचारिकता को दरकिनार कर के| मन की निरंतर टीस से थकी-मांदी वलेंतीना के लिए तो शुरू में सीमोनोव उन लोगों में से ही एक थे जिनकी बदौलत वह अपने पति के न रहने के दर्द को कुछ समय के लिए भुला पाती थीं| समय बीतने पर उन्हें यह अहसास होने लगा कि सीमोनोव ही वह अकेले व्यक्ति हैं जिनकी बदौलत वह अपने असह्य दर्द को झेल पाईं और आगे जीने की शक्ति जुटा पाईं| सीमोनोव कहा करते थे: “वलेंतीना पुरुषों के आग्रह और हठ का प्रतिरोध नहीं कर पाती थी, लेकिन जिससे वह प्रेम करती थी उससे वफ़ा निभाती थी, उसे कभी नहीं भुलाती थी”| जीवन ने इन शब्दों की पुष्टि की| अपने पहले पति, अपने प्यारे अनातोली को वलेंतीना आखिरी दिन तक नहीं भुला पाईं|
सन् 1941 में नाज़ी जर्मनी ने सोवियत संघ पर हमला किया| युद्ध आरंभ हो गया| सीमोनोव को देश के प्रमुख सैनिक अखबार का संवाददाता नियुक्त किया गया| वलेंतीना से विदाई लेकर वह मोर्चे पर चले गए| कुछ ही समय बाद उन्होंने अपनी मशहूर कविता “तुम
करना इंतज़ार” लिखी जो वलेंतीना को समर्पित थी| इस कविता में सीमोनोव ने हर देशवासी के मन की बात कह डाली – मोर्चे पर गया हर सैनिक चाहता था कि उसका अथक इंतज़ार हो और उसका हर सगा यही चाहता था कि वह हर हालत में लौट आए| इन्हीं भावनाओं को शब्दों में उतारकर कवि ने देश की अमूल्य सेवा की|
सेरोवा जिस थियेटर में काम करती थीं उसे युद्ध के दिनों में मास्को से बाहर दूसरे शहर भेज दिया गया था| रोज़ाना ही उन्हें सीमोनोव के पत्र मिलते थे| उनकी सहेलियां उनसे कहती थीं कि “सीमोनोव जैसे व्यक्ति का प्रेम पाने का सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता” कि वलेंतीना को “उसकी परवाह करनी चाहिए”, कि “सदा अपने मन की ही सुनते रहना भी ठीक नहीं होता”| अंततः सेरोवा ने सीमोनोव की बात मान ली और उनकी विवाहिता पत्नी बन गईं| क्या कारण रहे होंगे उनके इस फैसले के पीछे? नारी-सुलभ सुख पाने की कामना तो रही ही होगी, और फिर उन कविताओं ने भी अपनी भूमिका अदा की होगी जो प्रेम-दीवाने कवि ने लिखीं और जिन्हें अब सारा देश जानता था| एक संवाददाता के नाते सीमोनोव अक्सर मोर्चे पर जाते थे और प्रायः हर रोज ही अपनी प्यारी पत्नी को लिखते थे: “तुम्हारे बिना जीवन जीवन नहीं| मैं जीता नहीं हूं, बस दिन गिनता हूं...सदा यही सोचता रहता हूं कि हम दोनों जब साथ होंगे तो कितना सुख पाएंगे, कितने खुश होंगे| तुम्हारे बिना मन इतना उदास रहता है कि इस उदासी को कोई भी और कुछ भी नहीं दूर कर पाता...”

सन् 1943 में “तुम करना इंतज़ार” फिल्म रिलीज़ हुई| इसकी पटकथा सीमोनोव ने लिखी थी और मुख्य भूमिका अदा की थी वलेंतीना सेरोवा ने| इस रोल ने उन्हें अमर अभिनेत्री बना दिया| 1945 में युद्ध समाप्त हो गया| सीमोनोव देश की सबसे लोकप्रिय साहित्यिक पत्रिका “नोवी मीर” (नई दुनिया) के प्रधान संपादक नियुक्त हुए| पति मशहूर कवि और लेखक, पत्नी नामी अभिनेत्री – और क्या चाहिए जीवन में, खुशियां पाओ, सुख भोगो|

परंतु भाग्य में कुछ और ही लिखा था| जीवन का नया दौर पति-पत्नी के संबंधों के लिए नई परीक्षा बनकर आया| युद्ध समाप्त होने के साथ देश का सारा जीवन तेज़ी से बदल रहा था| अब दर्शकों को नए हीरो और हीरोइनें की दरकार थी| “दुस्साहसी अबला” चरित्र वाली नायिकाओं का ज़माना बीत गया था| वलेंतीना के लिए थियेटर में कोई रोल प्रायः बचा ही नहीं था| एक अभिनेत्री के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि दर्शकों को उसे देखने की इच्छा नहीं रही|

वलेंतीना चाह कर भी अपने जीवन में कुछ नहीं बदल पा रही थीं| अपनी लाचारी को वह मदिरा में ही डुबोने लगीं – सपनों और भ्रमों की दुनिया में अपने को भुलाने लगीं| कुछ साल बीतते न बीतते पहले लत पड़ गई और फिर इसने बीमारी का रूप ले लिया| सीमोनोव ने अपने एक पत्र में उन्हें लिखा: “क्या हो गया है तुम्हें? ये घबराहट के दौरे, ये दिल के दौरे तुम्हें तभी क्यों पड़ते हैं जब मैं घर से बाहर होता हूं? कहीं यह तुम्हारी दिनचर्या से तो नहीं जुड़ा हुआ? जानता हूं तुम भी उस भयानक रूसी आदत की शिकार हो –मन ज़रा उचाट हुआ, थोड़ी उदासी छाई, कोई झुंझलाहट हुई, किसी से जुदाई हुई, बस उठा लो बोतल...”

सन् 1950 में सेरोवा और सीमोनोव के बेटी हुई| लेकिन इससे भी पति-पत्नी के बीच की दरार कम नहीं हो पाई| ऊपर से भाग्य की विडम्बना देखिए – बेटी मरिया का जन्म हुआ 11 मई को, उसी दिन जब वलेंतीना के प्रिय पति अनातोली का त्रासद देहांत हुआ था|

जल्दी ही सेरोवा के सिर पर एक और पहाड़ टूट पड़ा| उनका बेटा बरसों से आयाओं के भरोसे ही पल रहा था| 14 वर्ष की अल्पायु में ही वह शराब पीने लग गया| फिर अपने जैसे ही किछ बिगड़े किशोरों के साथ मिलकर नशे के जोश में आकर एक पड़ोसी का ग्रीष्म-घर लूट लिया और उसमें आग भी लगा दी| अनातोली सेरोव को जेल हो गई| जेल में सुधरना तो क्या था, ऊपर से और भी अधिक खुंदकी और अड़ियल होकर लौटा| पीना-पिलाना और गुंडागर्दी करना – यही उसकी ज़िंदगी थी| मां का उस पर कोई बस नहीं चलता था|
सीमोनोव ने पत्नी की मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी| नशे की लत से छुटकारा दिलाने के लिए इलाज भी करवाया| किंतु सारे प्रयास विफल रहे| सेरोवा के जिस रूप ने उन्हें कभी चकाचौंध कर दिया था, उसकी आभा उनकी नज़रों के सामने ही धूमिल पड़ती जा रही थी| दिन पर दिन पति-पत्नी एक-दूसरे से दूर होते जा रहे थे| उधर स्टालिन की मृत्यु हो गई, जो सीमोनोव के लिए बहुत बड़ा सदमा थी| अब उन्हें खुद किसी के आसरे की ज़रूरत थी, लेकिन उनके साथ एक करीबी, मददगार संगिनी नहीं, बुझे दिल वाली बीमार औरत थी|
सन् 1957 में, जिस साल उनकी बेटी मरिया पहली कक्षा में गई, पति-पत्नी का औपचारिक संबंध–विच्छेद हो गया| “तुम्हारे संग, तुम्हारे बिना” कविता संग्रह से कवि ने समर्पण के शब्द हटा दिए| पर “तुम करना इंतज़ार” कविता के शीर्षक तले “व.से.” अंत तक छपता रहा| सन् 1975 में सेरोवा का बेटा अनातोली मर गया| वह तब 36 वर्ष का भी नहीं हुआ था| मां यह दुख नहीं झेल पाई और जल्दी ही बेटे के पीछे चली गई| सीमोनोव अपनी पूर्व-पत्नी के अंतिम संस्कार में नहीं आए| बस 58 गुलाबी गुलाबों का गुलदस्ता भेज दिया|
मात्र चार साल बाद अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले सीमोनोव ने अनुपम अभिनेत्री से अपने दर्दमय प्रेम के साक्षी सारे पत्र, फोटो और दूसरे कागज, नोट – सभी कुछ जला दिया| अपनी बेटी मरिया से उन्होंने कहा: “मैं नहीं चाहता कि मेरे बाद कोई बेगाना यह सब देखे-पढ़े... माफ करना, बेटी, तुम्हारी मां और मेरा जो नाता था वह मेरे जीवन का सबसे बड़ा सुख था... और सबसे बड़ा दुख भी...” (hindi.ruvr.ru से साभार)

प्रकाशक एक अनोखा


योगेन्द्र नागपाल

इवान सीतिन का नाम रूसी संस्कृति के इतिहास में एक पूरे युग का प्रतीक है| उन्नीसवीं-बीसवीं सदियों के संधिकाल में रूस में बच्चा-बच्चा उनका नाम जानता था| आप पूछेंगे क्यों? इसलिए कि कोई घर ऐसा नहीं था जहाँ वह मौजूद न रहे हों! कैसे? पुस्तकों, पत्रिकाओं, पंचांग-कैलंडरों के रूप में! आज भी अनेक रूसी घरों में इवान सीतिन की छापी पुस्तकें आपको देखने को मिल सकती हैं| आखिर 19वीं सदी के हर रूसी कालजयी लेखक की रचनाएँ उन्होंने प्रकाशित की थीं| यों प्रकाशक तो एक से एक बढ़कर हुए हैं लेकिन इवान सीतिन के सर पर तो ज्ञान-प्रसार की धुन सवार थी| उनकी सबसे बड़ी मनोकामना यह थी कि उनके देश का बच्चा-बच्चा साक्षर हो और अपनी इसी इच्छा की पूर्ति को उन्होंने अपना सारा जीवन समर्पित किया|
बीसवीं सदी के आरम्भ में मक्सीम गोर्की नेइवान सीतिन को लिखा था: “एक अच्छा रूसी इंसान, एक ऐसा रूसी जिसे अपनी जन्मभूमि से सच्चा लगाव हो, एक ऐसा मनुष्य जो अपने विशाल देश को जानता और समझता हो, एक ऐसा व्यक्ति जो अपनी मातृभूमि की यथाशक्ति सेवा करने को तत्पर हो – ऐसे लोग बहुत कम ही मिलते हैं| और जब मिलते हैं तो मन गदगद हो उठता है, आदर भाव से भर उठता है| मैं आपसे बस इतना कहना चाहता हूँ: आप अद्वितीय हैं!”
गोर्की जब साहित्य-जगत में पहले कदम ही भर रहे थे, उन्हीं दिनों इवान सीतिन ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया - सेंट पीटर्सबर्ग के उस होटल में, जहां वह तब रहा करते थे| गोर्की ने देखा - बड़ा मामूली-सा होटल है, सादा-सा कमरा, जिस आदमी ने उनका स्वागत किया वह भी देखने में मामूली-सा ही लग रहा है, न चेहरे में कोई दबदबा, न पहनावा रौबीला; खाना-पीना भी एकदम साधारण-सा ही| क्या यही है वह मशहूर लखपति प्रकाशक जिसका चारों ओर बोलबाला है?! हां, एक बात बरबस ध्यान खींचती है – इस आदमी की आँखें! उनकी चमक में छिपी है उसकी तीक्ष्ण बुद्धि!
पिछले बार हमने आपको पावेल त्रेत्याकोव के बारे में बताया था जो चित्रकला के पारखी थे| इवान सीतिन भी एक बेजोड़ पारखी थे, बेशक न हीरे-जवाहरातों के, न चित्रकला के| वह तो पारखी थे पांडुलिपियों के, पुस्तकों के| अक्सर ऐसा होता: उन्हें कोई पांडुलिपि मिलती, वह बड़े ध्यान से पन्ने पलटते, और अपना फैसला सुना देते: “भेज दो छापने| इतने हज़ार का ऑर्डर!” “जी, बहुत ज्यादा तो नहीं?” “कहा न, छपवाओ| किताब चलेगी नहीं, दौड़ेगी!” कभी उनका कोई फैसला गलत नहीं निकला| कमाल की बात यह है कि खुद वह मुश्किल से तीन साल स्कूल में पढ़े थे|
वाकई, उन्हें पढ़ने-लिखने का मौका नहीं मिला| सन् 1851 में एक छोटे से कस्बे में उनका जन्म हुआ| उनके पिता तहसील में लिपिकार थे| मानसिक रोग से ग्रस्त होने के कारण वह अक्सर घरबार और नौकरी छोड़ कर न जाने कहाँ निकल जाते थे, इधर-उधर भटकते रहते, फिर आखिर लौट आते| एक दिन नौकरी से भी हाथ धोना ही पड़ा| वैसे जब नौकरी करते थे तब भी उनकी कमाई बच्चों को दो जून की रोटी दिलाने के लिए काफी नहीं पड़ती थी| इवान को कस्बे के स्कूल में पढ़ने डाला गया था| पढ़ाई में उसका मन ज़रा भी नहीं लगता था| कालांतर में इवान सीतिन ने अपने संस्मरणों में लिखा: “स्कूल से निकला तो पढ़ाई के नाम से ही नफरत होती थी, तीन साल तक रट्टेबाज़ी के अलावा और कुछ सीखा ही नहीं, इतना तंग आ गया था इससे कि कुछ भी करना नहीं चाहता था| स्कूल ने मुझे निरा आलसी बना दिया था|”
यों स्वभाव से वह बड़े जिज्ञासु थे और एकदम व्यवहार-कुशल भी| छोटी उम्र में ही शरीर में खूब ताकत थी और सहनशक्ति भी| मास्को में एक दुकान में बालक को लगवा दिया गया| यह किताबों-तस्वीरों की थोक की दुकान थी| यह नौकरी पाकर इवान सीतिन की जिंदगी एक नए ढर्रे पर चल निकली| अब किस्मत ने उनका साथ देना शुरू किया और सारी उम्र देती रही| 18 साल का होने तक वह दुकान में छुटपुट काम ही करते रहे| फिर माल बेचने का काम भी उन्हें सौंपा जाने लगा, हालांकि इस काम में भी शारीरिक मेहनत ही अधिक थी, बेशक, कुछ काम सीखने का मौका भी मिल रहा था|
थोक की दुकान दूसरे फुटकर दुकानदारों को मुख्यतः धार्मिक तस्वीरें, कहानियां, गीतों-भजनों की किताबें, पत्र-लेखन पुस्तकें आदि बेचती थी| यह सब धड़ाधड़ बिकने वाला माल था| इसे बेचते हुए इवान सीतिन यह महसूस कर रहे थे कि रूस में प्रकाशन के धंधे में आगे बढ़ने के कितने बेशुमार मौके हैं| उन्होंने अपना धंधा शुरू करने का फैसला किया, लेकिन इसके लिए छपाई मशीन चाहिए थी| तब उन्होंने पैसे उधार लेकर फ़्रांस से लिथोग्राफ छापाखाना खरीद लिया और उसमें काम करने के लिए कुछेक अनुभवी छपाई कर्मी नौकरी पर रख लिए| पच्चीस साल की उम्र में इवान सीतिन ने अपना छापाखाना चालू कर दिया| आम जनता में जिन चीज़ों की मांग थी – पंचांग-कैलंडर, जादुई और जोखिमभरी कहानियां, प्यार-मोहब्बत के किस्से - ये सब उन्होंने लोक-शैली के चित्रों से सजाकर, लिथोग्राफ पर उम्दा छपाई के साथ पेश कीं| जन-साधारण क्या चाहता है इसे वह सबसे पहले पहचान और समझ जाते थे| उदाहरण के लिए 1877-1878 में जब रूस और तुर्की की लड़ाई चल रही थी तो उन्होंने “लड़ाई के नक्शों” और “रणभूमि के नज़ारों” की पूरी मालाएं छापीं जो हाथोंहाथ बिक जाती थीं|
वैसे इसका यह अर्थ निकालना सही नहीं होगा कि इवान सीतिन ने अपने हुनर का फायदा आम लोगों की पसंद पूरी करते हुए पैसे कमाने के लिए किया| धीरे-धीरे वह रूसी लेखकों की रचनाएं, इतिहास और भूगोल के ग्रंथ, ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न शाखाओं की पुस्तकें, सन्दर्भ-ग्रंथ, कैटलॉग, शिक्षकों और लाइब्रेरियनों के लिए आवश्यक पुस्तकें, पत्रिकाएँ, पोस्टर और प्रसिद्ध कलाकारों के चित्रों की अनुकृतियाँ छापने लगे| एक बार इवान सीतिन से कृषि विश्वकोश के कुछ खंड पाकर गोर्की उल्लसित हो उठे: “वाह! अनुपम है यह ग्रंथ! कमाल का काम किया है आपने| बस, सदा ऐसा ही होता रहे!” सो, इवान सीतिन ने अपना काम जारी रखा| उनकी प्रतिभा पूरी तरह निखरकर सामने आई| उनका नीति-वाक्य था: “मनुष्य में अथाह शक्ति निहित है, किंतु ज्ञान, विज्ञान और अनुभव से ही वह कल्याण पा सकता है! इस ज्ञान-विज्ञान के प्रसार की खातिर वह प्रकाशन-कार्य में लगे रहे| यूरोप के सभी नामी लेखकों – जोनाथन स्विफ्ट(गुलिवर की यात्राएं) और डेनियल डेफो (रोबिंसन क्रूज़ो), डीक्कंस, वाल्टर स्कॉट, जूल वेर्न, कोनन डॉयल, वेल्स – की पुस्तकों के रूसी अनुवाद उन्होंने प्रकाशित किए| बच्चों के लिए ग्रीम बंधुओं की बाल-कथाएँ, शार्ल पेरो और एंडरसन की कहानियाँ छपवाईं| उनके प्रयासों से ही “दुनिया के गिर्द” पत्रिका रूस की एक सबसे लोकप्रिय पत्रिका बन गई| “बालसुलभ विश्वकोश” उन्होंने निकाला| महान तोल्स्तोय के देहांत के बाद उनकी रचनाओं का 90 खण्डों में पूर्ण संग्रह इवान सीतिन ने ही सबसे पहले प्रकाशित किया| ‘रूस्स्कोये स्लोवो’ (रूसी शब्द) समाचारपत्र के प्रकाशन का कार्यभार उन्होंने संभाला| सन् 1917 के आरम्भ में वार्षिक चंदा देकर इसे मंगवाने वालों की ही संख्या दस लाख से अधिक हो गई थी|
इतना कुछ करते हुए इससे भी कहीं अधिक कामों की योजनाएं उन्होंने बना रखी थीं| उदाहरण के लिए वह “स्कूल और ज्ञान” नाम से एक समाज बनाना चाहते थे, जो सारे रूस में स्कूलों का जाल बिछा दे, हर स्कूल में अपना पुस्तकालय हो| वह देश को निरक्षरता से निजात दिलाना चाहते थे, चाहते थे कि पुस्तकें और पाठ्य-पुस्तकें हर बच्चे को उपलब्ध हों| किंतु ज़ारशाही रूस में सरकार ने इस योजना को कोई समर्थन नहीं दिया| परन्तु वह अपने सपनों से पीछे नहीं हटे| उनका एक लक्ष्य यह था कि बच्चों को ठीक से पढ़ना-लिखना सिखाया जाए, कि स्कूल में बच्चों का चहुंमुखी विकास हो| न केवल बच्चों, बल्कि बड़ों के लिए भी ऐसी सुविधाएं हों, क्योंकि देश की वयस्क आबादी में भी निरक्षर लोगों की संख्या कम नहीं थी| वह मात्र स्वप्नदृष्टा नहीं थे| जहाँ तक उनसे बन पड़ता था अपने सपनों को व्यावहारिक रूप देने के लिए ठोस प्रयास करते थे| उदाहरण के लिए, उनकी मुद्रण, प्रकाशन और पुस्तक-विक्रय कंपनी में (इसका नाम ही उन्होंने “भाईचारा” रखा था) काम के आधुनिकतम तरीके अपनाए गए थे| अपने कर्मचारियों के लिए उन्होंने ड्राइंग का स्कूल खोला था, उत्तम पुस्तकालय बनवाया था, उनके लिए सस्ता किंतु अच्छा खाना देने वाली कैंटीन खुलवाई थी, यही नहीं खाने-पीने के सामान की सहकारी दुकान भी उनकी कंपनी वालों के लिए थी|
अपने सभी कर्मियों का सीतिन बहुत ख्याल रखते थे| काम वह कस कर लेते थे, लेकिन साथ ही कभी कोई यह नहीं कह सकता था कि उन्होंने किसी भी छोटे या बड़े कर्मी से कोई बेइंसाफी की है या ज़रूरत होने पर उसकी मदद नहीं की| वह यह मानते थे कि छपाई के काम में उनके कर्मचारी यूरोप के किसी भी देश के कर्मचारियों से कम नहीं हैं| अक्सर कहते थे: “इनके तो हाथों में जादू है!” साथ ही सपना देखते थे: “काश, ये पढ़े-लिखे होते!” कुछ हद तक वह अपना यह सपना साकार कर पाए थे| समय के साथ रूस के सबसे अच्छे शिक्षक उनसे सहयोग करने लगे थे| इस तरह उन्होंने वह “अक्षरमाला” निकाली जिसके तीस से अधिक वर्षों में 118 संस्करण छपे| यह इतनी सस्ती थी कि गरीब से गरीब लोग भी इसे खरीद सकते थे|
इवान सीतिन के प्रकाशनगृह की स्वर्ण जयंती के अवसर पर समाचारपत्रों ने उनके बारे में लिखा था: “व्यापर उनके लिए लक्ष्य नहीं एक साधन मात्र था”| वह सदा अपनी पुस्तकें न्यूनतम दामों पर बेचते थे ताकि अधिक से अधिक लोग उन्हें खरीद सकें| साथ ही उन्हें इस बात का भी ख्याल रखना होता था कि उनका धंधा चलता रहे| इसलिए वह विदेशों में आधुनिक छपाई मशीनें खरीदते थे जिनकी बदौलत वह अपनी पुस्तकों की कहीं अधिक प्रतियाँ छाप सकते थे| “मेरी किताबें दूसरों से सस्ती क्यों होती थीं? क्योंकि मैं खुद कागज़ खरीदता था और उसे अपने ढंग से सबसे सस्ते तरीके से बनवाता था| रूस की सारी कागज़ मिलें कहीं ऊंचे दामों पर कागज़ देती थीं| मैं फिनलैंड में कागज खरीदता था| इसके अलावा जिन मिलों से मैं कागज़ लेता थे उनमें मेरा एक तिहाई हिस्सा था| सो मेरे हिस्से का कागज़ वे उन शर्तों पर बनाती थीं जो सिर्फ मेरे लिए थीं|”
सन् 1917 की समाजवादी क्रांति के बाद सीतिन ने अपना सारा कारोबार सोवियत सत्ता को सौंप दिया| उसका राष्ट्रीयकरण कर लिया गया| अनुभवी प्रकाशक इवान सीतिन ने नई सत्ता को स्वीकार कर लिया और उससे सहयोग करने लगे| सोवियत सत्ता के वर्षों में जो पहली पुस्तकें और पर्चे उन्होंने प्रकाशित किये वे उनके पुराने मित्र मक्सीम गोर्की ने ही लिखे थे| खेदवश इवान सीतिन के सभी विचारों, सभी योजनाओं को सोवियत सरकार का समर्थन नहीं मिला, तो भी अनेक वर्षों तक देश के नेता जहां उन्हें भेजते रहे वहां-वहां जाकर वह काम करते रहे| यह काम करते हुए वह देख रहे थे कि हज़ारों छपाई मशीनें चल रही हैं, और हज़ारों लोग ज्ञान-प्रसार का काम कर रहे हैं| यह देखकर उनके मन को बड़ा संतोष होता था – हां, आखिर उनका जीवन व्यर्थ ही नहीं गया| उन्होंने जो सपना देखा था कि सभी बच्चे स्कूल जाएँ, सभी स्कूलों में पाठ्य-पुस्तकें हों और सभी आम पाठकों के लिए पुस्तकें उनकी पहुँच से बाहर न हों – यह सपना अब साकार हो रहा था|
वह यह देखकर सुखी थे कि निरक्षरता का ज़माना गुज़र रहा है| वह अपने को सौभाग्यशाली मानते थे| अंतिम समय पर उन्होंने अपने स्वजनों से कहा: “मेरा तो सारा जीवन ही एक उत्सव रहा है| मेरे जीवन का हर दिन मेरे मन को खुशियों से भरता था|” सन् 1934 में 83 वर्ष की आयु में मास्को में उनका देहांत हुआ| उनके प्रकाशनगृह से निकली पुस्तकों का आज भी भारी संख्या में पुनर्मुद्रण होता है| उनके छापेखाने आज भी काम कर रहे हैं औ उन्होंने जो दुकानें और इमारतें बनवाई थीं वे अब मास्को के केंद्र में स्थापत्य कला के दर्शनीय स्थल बन गई हैं|(hindi.ruvr.ru से साभार)

तेओदोर शुमोव्स्की की किताब 'पूरब की रोशनी'


पूर्वी देशों संबंधी प्रसिद्ध रूसी विद्वान, 95 वर्षीय प्रसिद्ध अरब विशेषज्ञ तेओदोर शुमोव्स्की की हाल ही में जो नई पुस्तक प्रकाशित हुई है, उस पुस्तक का नाम है "पूरब की रोशनी"। रूस में तेओदोर शुमोव्स्की को लोग अरबी भाषा से रूसी में कुरान के पहले काव्य-अनुवाद के लिये जानते और मानते हैं। तेओदोर शुमोव्स्की द्वारा किया गया कुरान का यह काव्यानुवाद सन 1995 में प्रकाशित हुआ था। तब तक रूसी भाषा में कुरान के सिर्फ़ दो ही अनुवाद प्रकाशित हुए थे। जिनमें से पहला अनुवाद अट्ठारहवीं शताब्दी के अन्त में रूसी राजदरबारी कवि मिख़ायल विर्योफ़किन ने किया था और रूसी भाषा में कुरान का अनुवाद करने के लिये उन्होंने अरबी भाषा की कुरान का नहीं, बल्कि फ़्रांसिसी भाषा में छपी कुरान का उपयोग किया था।
रूसी भाषा में 1995 तक कुरान का जो दूसरा अनुवाद उपलब्ध था, वह तेओदोर शुमोव्स्की के गुरू, प्रसिद्ध रूसी अरब-विशेषज्ञ ईग्नात क्राच्कोव्स्की ने किया था। रेडियो रूस से बात करते हुए तेओदोर शुमोव्स्की ने कहा: "कुरान सिर्फ़ यूँ ही आयतों में नहीं लिखी गयी थी। मौहम्मद साहब ने जो कुछ भी कहा, वह आयत के रूप में इसलिये कहा क्योंकि आयत सीधे-सीधे उस आदमी के दिल में उतर जाती है, जो उसको सुनता है। मैंने पूरी दुनिया में लोकप्रिय इस पवित्र पुस्तक के स्वरूप को प्रायः बचाए रखने की कोशिश की है। सिर्फ़ अरबी आयतों को रूसी काव्य-छन्दों में पिरो दिया है ताकि रूसी पाठक के लिये उनको समझना और महसूस करना आसान हो। कुरान के अनुवाद के बाद अब मैं कह सकता हूँ कि मैं अरबी लोगों के मनोविज्ञान को अब अधिक गहराई से समझने लगा हूँ जो दया करने तथा मानव की सहायता करने की बात कहते हैं, यहाँ तक कि जानवर पर भी दया करने की बात करते हैं।" बड़ी उम्र होने पर भी यह बात वह व्यक्ति कह रहा है जो बचपन से ही इस्लामी दुनिया की परम्पराओं और इस्लामी जीवन का अध्येता रहा है।
तेओदोर शुमोव्स्की ने अपने जीवन को याद करते हुए कहा: "मैं दक्षिणी कोहकाफ़ के उस पार अज़ेरबैजान के प्राचीन नगर शेमाखा में पला-बढ़ा हूँ। इस नगर के चार कोनों पर चार बड़े मुस्लिम कब्रिस्तान बने हुए हैं, जिनमें ढेरों कब्रें हैं और उन सभी कब्रों पर मकबरे भी बने हुए हैं। अपने बचपन में जब मैं इनके पास से गुज़रता था तो मैं इन मकबरों पर मोहित हो जाता था और रूक कर उन पर अरबी भाषा में लिखी हुई इबारतों को पढ़ने की कोशिश करता था । उस अरबी लिपि से मैं इतना प्रभावित हो गया था कि वहाँ से हट कर घर जाना तक मेरे लिये मुश्किल हो जाता था। इस तरह मेरे भीतर अरबी भाषा और अरब इतिहास के प्रति एक प्रेम, एक लगाव पैदा गया"।
बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में अकादमीशियन और पूर्वी देशों के विशेषज्ञ निकोलाय मारर की सलाह पर तेओदोर शुमोव्स्की ने सांक्त पीतेरबुर्ग के इतिहास और भाषा संस्थान में प्रवेश लिया था। वहीं उन्होंने अरबी भाषा सीखी, अरब देशों और संस्कृति का इतिहास पढ़ा और प्राचीन अरब-ग्रंथों का परिचय पाया। तभी उनके हाथ पन्द्रहवीं शताब्दी के एक ऐसी पाण्डुलिपि लग गई, जिसका शीर्षक था — "अरबी वास्कोडिगामा अहमद इब्न माज़िद की तीन अज्ञात यात्राएँ।" इस पाण्डुलिपि ने, इस ग्रंथ ने तेओदोर शुमोव्स्की को एक ऐसा वैज्ञानिक विषय दे दिया, जिस पर वे सारी ज़िन्दगी काम करते रहे। इसके बाद उन्होंने 15 किताबें लिखीं और यह सिद्ध किया कि अरबी लोग न केवल बड़ी-बड़ी ज़मीनी यात्राएँ करते रहे हैं, बल्कि उन्होंने अनेक महान, जलयात्राएँ भी की हैं। तेओदोर शुमोव्स्की ने कहा: "एक समय ऐसा था जब अरब लोगों ने भूमध्य सागर पर अपना झंडा लहराने के लिये वाइज़ेंटाईन के साथ युद्ध किया था। इस युद्ध के फलस्वरूप स्पेन पर उनका कब्ज़ा हो गया और फिर 300 साल तक स्पेन पर अरबों का राज रहा। इसलिये स्पेन में आज भी मारसेल और गेनुया जैसे अरबी नाम सुनाई देते हैं। अरबियों ने हिन्द महासागर में भी जलयात्राएँ कीं। वे चीन तक गए। हिन्द महासागर के इलाके में उन्होंने दस स्थानों पर अपनी व्यवसायिक कालोनियाँ बना ली थीं"।
और आज भी ईसाई सभ्यता और इस्लामी सभ्यता के बीच या कहना चाहिये कि पूरब और पश्चिम के बीच आपसी फलप्रद बातचीत सिर्फ़ इतिहास के गहरे ज्ञान के बाद ही संभव है। यह मानना है तेओदोर शुमोव्स्की का। वे कहते हैं: "यूरोपियनों को यह नहीं भूलना चाहिये कि विश्व के सभी धर्मों, अंकों, अक्षरों आदि का जन्म पूर्व में ही हुआ। इन देशों में चिकित्सा और खगोल-विद्या का ज्ञान यूरोप से कई शताब्दी आगे था"। तेओदोर शुमोव्स्की के अनुसार अपने इतिहास को न जानना ही खतरनाक है। इसकी वज़ह से हम दूसरी संस्कृति का भी सम्मान नहीं करते। (hindi.ruvr.ru से साभार)


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Google अर्थ के लिए Google पुस्तक KML परत - FAQ
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मैं यह कैसे ढूँढूं?
यदि आपके पास पहले से Google अर्थ नहीं है, तो इसे डाउनलोड करें. एक बार प्रोग्राम में, बाईं ओर के पैनल पर जाएँ और 'फ़ीचर की गई सामग्री' शीर्षक वाले बॉक्स को चेक करें और 'Google पुस्तक खोज' का चयन करें. जैसे ही आप मैप पर ज़ूम करेंगे, पुस्तक चिह्न दिखाई देंगे. प्रत्येक चिह्न एक कॉपीराइट-से-बाहर का प्रतिनिधित्व करता है जो Google अर्थ में दिखाए गए स्थान का संदर्भ देता है. पुस्तक चिह्न पर क्लिक करने पर आपको पुस्तक के बारे में मूलभूत जानकारी तथा स्थान का नाम प्रदर्शित होने वाले पाठ का एक स्निपेट दिखाई देता है. फिर आप Google पुस्तक खोज में वास्तविक पुस्तक पेज पर ले जाए जाने के लिए क्लिक थ्रू कर सकते हैं या उस स्थान के नाम के लिए सभी Google पुस्तक खोज परिणाम देखने के लिए "[स्थान] का संदर्भ देती सभी पुस्तकें खोजें" लिंक का चयन कर सकते हैं.
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उदाहरण के लिए, संभवतः आप ऐडविन ऐबॉट द्वारा लिखी गई पुस्तक फ्लैटलैंडः ए रोमांस ऑफ मैनी डाइमेन्शंससे लिंक करना चाहें. यह पुस्तक मूल रूप से 1984 में प्रकाशित की गई थी, लेकिन आप जिस संस्करण के लिए लिंक करना चाहते हैं वह 1984 में मुद्रित किया गया था और उसका ISBN 0451522907 है. पुस्तकों से, या पुस्तकों के विशिष्ट भागों से लिंक करने हेतु विकल्पों की पूरी सूची के लिए, नीचे दी गई तालिका देखें.
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हमने हाल ही में अपने उपयोगकर्ताओं को उनकी साइट्स के साथ Google पुस्तक खोज की शक्ति शामिल करने की क्षमता प्रदान की है. अपनी वेबसाइट से एक छोटा-सा कोड स्निपेट शामिल करके, आप अपने उपयोगकर्ताओं को अपनी वेबसाइट से सीधे हर तरह की पुस्तकें खोजने की अनुमति दे सकते हैं. सबसे बढ़कर, यह सभी के लिए आसान, सही और नि:शुल्क है. अपनी साइट में Google पुस्तक खोज बॉक्स को शामिल करने के लिए यह पेज देखें और वहाँ सूचीबद्ध कदमों का पालन करें. खोज बॉक्स अभी केवल अंग्रेज़ी में उपलब्ध है. हमें निकट भविष्य में इसे अतिरिक्त भाषाओं में भी प्रस्तुत करने की उम्मीद है.
मैं किस प्रकार पुस्तक खोज पर किसी विशेष लेखक अथवा शीर्षक के लिए खोज हेतु से लिंक कर सकता हूँ?
Google पुस्तक खोज में किसी विशेष शीर्षक अथवा लेखक से लिंक करने का सबस आसान तरीका "उन्नत खोज" पेज पर जाना और उपयुक्त फील्ड में उन चीज़ों (शीर्षक, लेखक, ISBN, दिनांक आदि) दर्ज़ करना है. "Google खोज" पर क्लिक करने के बाद, आपको एक परिणाम पेज पर ले जाया जाएगा. अपने ब्राउज़र से केवल URL को कॉपी और पेस्ट करें -- लिंक आपको वही परिणाम दिखाएगा.
आप निम्नलिखित तरीकों से भी अपनी साइट के लिए लिंक बना सकते हैं:
यदि आप किसी पुस्तक का जानते हैं, तो आप 'http://books.google.com/books?isbn=0060930314 इस तरह का URL बना सकते हैं.
विषय अथवा शब्द खोजों के लिए, http://books.google.com/books?q=[query] उपयोग करें (ब्रैकेट शामिल न करें).
एक सामान्य खोज के लिए, पूछताछ में केवल ये शब्द जोड़ें: http://books.google.com/books?q=scarlet+letter (खाली स्थानों को जमा चिह्नों से बदलें)
शीर्षक खोज लिए लिंक बनाने के लिए, "प्रारंभकि" ऑपरेटर का उपयोग कों: http://books.google.com/books?q=intitle:scarlet+intitle:letter
आगामी खोजों के लिए, "इनऑथर" का उपयोग करें http://books.google.com/books?q=inauthor:nathaniel+inauthor:hawthorne
आप "दिनांक" के साथ किसी विशिष्ट दिनांक रेंज में पुस्तकों के लिए एक लिंक बना सकते हैं. http://books.google.com/books?q=inauthor:nathaniel+inauthor
अन्य भाषाओं की पुस्तकों का क्या होगा?
हम चाहते हैं कि Google पुस्तक खोज दुनिया की सभी भाषाओं और संस्कृतियों की पुस्तकें शामिल करे. हम जिन सभी प्रतिष्ठित पुस्तकालयों के साथ काम कर रहे हैं, उनके पास अनेक विविध भाषाओं में पुस्तकें हैं, और हम अपने स्कैनिंग के दायरे को अंग्रेज़ी-भाषा की पुस्तकों तक ही सीमित नहीं कर रहे हैं. इस समय हम दुनिया भर के अनेक देशों के प्रकाशकों के साथ, सहभागी प्रोग्राम में उनकी पुस्तकों को शामिल करने के लिए काम कर रहे हैं, और Google पुस्तक खोज के पहले ही अनेक विदेशी-भाषा संस्करण हैं. उदाहरण के लिए, देखें http://livres.google.fr.
मैं "The Closet Organizer's Guide to the Universe" क्यों नहीं ढूंढ सकता?
Google पुस्तक खोज अभी तक एक बीटा उत्पाद है, और हम प्रतिदिन पुस्तकें जोड़ रहे हैं. यदि आप कोई विशेष पुस्तक नहीं खोज पाते, तो आप उसके स्थान पर उससे मिलती-जुलती अन्य पुस्तक पा सकते हैं जिसकी मौजूदगी का आपको पता नहीं था. यदि अन्य पुस्तकों में वह सामग्री है जिसे आप खोज रहे हैं तो उस सामान्य जानकारी (शीर्षक अथवा लेखक के विपरीत) को खोजने की कोशिश करें जो आप चाहते हैं उदाहरण के लिए, "organizing closets" की खोज अनेक भिन्न पुस्तकें सामने लाएगी, मनोवैज्ञानिक अभिगमों से लेकर जीवन प्रबंधन से लेकर कैबिनेट-निर्माण पर वॉल्यूम्स तक.
मुझे कुछ पेज देखने के लिए लॉग इन क्यों करना पड़ेगा?
क्योंकि Google पुस्तक खोज में अनेक पुस्तकें अभी-भी कॉपीराइट के अंतर्गत हैं, इसलिए हमने उन पुस्तकों जिन्हें आप देख सकते हैं, की संख्या सीमित कर दी है. इन सीमाओं को लागू करने के लिए, हम आपके द्वारा Google खाते (Gmail खाते जैसा) में लॉग इन करने के बाद ही कुछ पेज उपलब्ध कराते हैं. यदि आपका पहले से कोई Google खाता नहीं है, तो आप अभी एक खाता बनाएँ पर इसे बना सकते हैं. Google पुस्तक खोज का उद्देश्य पुस्तकें खोजने और यह जानने में आपकी सहायता करना है कि उन्हें कहाँ से खरीदा अथवा उधार लिया जाए, न कि उन्हें शुरू से आखिर तक ऑनलाइन पढ़ा जाए. यह किसी बुकस्टोर पर जाने और Google ट्विस्ट के साथ ब्राउज़िंग करने जैसा है.
मैं पूरी पुस्तक क्यों नहीं पढ़ सकता?
Google पुस्तक खोज की अनेक पुस्तकें उन लेखकों और प्रकाशकों से आती हैं जो हमारे सहभागी प्रोग्राम में सहभागिता करते हैं. इन पुस्तकों के लिए, हमारे सहभागी फैसला करते हैं कि पुस्तक का कितना भाग ब्राउज़ करने योग्य हो -- कुछ नमूना पेजों से लेकर संपूर्ण पुस्तक तक कहीं भी. लाइब्रेरी प्रोजेक्ट के जरिए पुस्तक खोज में दर्ज़ पुस्तकों के लिए, आप जो देखते हैं वह पुस्तक की कॉपीराइट स्थिति पर निर्भर करता है. हम कॉपीराइट कानून और लेखकों द्वारा अपने काम में किए गए उत्कृष्ट सृजनात्मक प्रयासों का सम्मान करते हैं. यदि पुस्तक सार्वजनिक डोमेन में है और इस तरह कॉपीराइट से बाहर है, तो आप संपूर्ण पुस्तक को देख सकते हैं और इसे डाउनलोड करके ऑफलाइन भी पढ़ सकते हैं. परंतु यदि पुस्तक कॉपीराइट के दायरे में है, और प्रकाशक या लेखक भागीदार प्रोग्राम का हिस्सा नहीं है तो, हम पुस्तक के बारे में केवल मूल जानकारी ही दिखाते है, कार्ड कैटलॉग के समान, और कुछ मामलों में थोड़े स्निपैट -- प्रासंगिकता के आधार पर आपके खोज मदों के कुछ वाक्य. Google पुस्तक खोज का उद्देश्य पुस्तकें खोजने और यह जानने में आपकी सहायता करना है कि उन्हें कहाँ से खरीदा अथवा उधार लिया जाए, न कि उन्हें शुरू से आखिर तक ऑनलाइन पढ़ा जाए. यह किसी बुकस्टोर पर जाने और Google ट्विस्ट के साथ ब्राउज़िंग करने जैसा है.
मैं किस प्रकार सार्वजनिक डोमेन रचनाओं को पुन: उपयोग कर सकता हूँ?
आपकी कल्पना ही आपकी सीमा है. हमें आशा है कि सभी आयु वर्ग के लोग इन पुस्तकों को पढ़ते हैं और इनके अन्य रचनात्मक उपयोग ढूंढते हैं. हमारे इंडेक्स में प्रत्येक पुस्तक हमारे लाइब्रेरी सहभागियों और हमारे अपने विशेषज्ञों द्वारा संरक्षण की सावधानीपूर्ण प्रक्रिया के बाद पहुंचती है. हम यह जरूर कहते हैं कि आप उन लोगों की सहायता करने के लिए Google को श्रेय दें जो किसी पुस्तक का स्रोत जानना अथवा उसे किसी लाइब्रेरी में ढूंढना चाहते हैं. कृपया अपनी कार्रवाइयों की वैधता की पुष्टि भी करें. सार्वजनिक डोमेन के नियम एक देश से दूसरे देश में भिन्न हैं, और हम इस बात के लिए कोई मार्गदर्शन नहीं दे सकते कि क्या किसी विशिष्ट उपयोग की अनुमति है. कृपया यह न मानें कि Google पुस्तक खोज में किसी पुस्तक को प्रदर्शित करने का अर्थ यह है कि उसे दुनिया में कहीं भी किसी भी रूप में उपयोग किया जा सकता है.
आप किस तरह तय करते हैं कि कोई पुस्तक सार्वजनिक डोमेन में है और इसलिए कॉपीराइट से बाहर है?
क्या कोई पुस्तक सार्वजनिक डोमेन में है, यह एक जटिल कानूनी निर्धारण हो सकता है. यू.एस. के उपयोगकर्ताओं के लिए, 1923 के बाद प्रकाशित सभी पुस्तकों को Google पुस्तक खोज वर्तमान में कॉपीराइट द्वारा सुरक्षित के रूप में मानता है, सिवाए उन पुस्तकों के जिनके साथ कभी कोई कॉपीराइट संलग्न नहीं किया गया था, जैसे यू.एस. सरकार द्वारा लिखित पुस्तकें. यू.एस. से बाहर के उपयोगकर्ताओं के लिए, हम उपयुक्त स्थानीय कानूनों के आधार पर निर्धारण करते हैं. Google पुस्तक खोज सामग्री से संबंधित हमारे सभी निर्णयों के साथ, हम कॉपीराइट कानून और किसी विशेष पुस्तक से जुड़े ज्ञात तथ्यों दोनों के हमारे विश्लेषण में परंपरावादी हैं. यदि हमें यह पक्की जानकारी नहीं है कि कोई पुस्तक सार्वजनिक डोमेन में है, तो आप संदर्भ में पुस्तक के बारे में सर्वाधिक ग्रंथ-सूची संबंधी जानकारी और अपनी खोज के कुछ छोटे स्निपेट्स-वाक्य देखेंगे.
सार्वजनिक डोमेन रचना क्या है?
एक सार्वजनिक डोमेन पुस्तक वह है जो या तो कभी-भी कॉपीराइट के अधीन नहीं थी अथवा जिसकी कानूनी कॉपीराइट अवधि समाप्त हो चुकी है. यह कदाचित Herman Melville के उपन्यास Moby-Dick (सर्वप्रथम 1851 में प्रकाशित) जैसा, मधुमक्खियों पर अरस्तू के अध्ययन जैसी कोई प्राचीन रचना, अथवा लाखों बौद्धिक रचनाओं जिन्हें मिट्टी की गोलियों और पैपारस के पत्तों पर लिखने के दिनों में लिखा गया हो, जैसा कुछ हो सकता है. ये पुस्तकें ज्ञान के उस खज़ाने का प्रतिनिधित्व करती हैं जिसे अक्सर आसानी से नहीं खोजा जा पाता है, इसलिए हम दुनिया भर से इन रचनाओं की साझेदारी के लिए अपने लाइब्रेरी सहभागियों की सहायता करके बेहद खुश हैं. जिन पुस्तकों को हमने सार्वजनिक डोमेन में निर्धारित किया है, वे Google पुस्तक खोज में पूरी तरह उपलब्ध हैं - और आप पुस्तक को शुरू से आखिर तक पढ़ सकते हैं.
यदि आप इन रचनाओं का उपयोग करना चाहते हैं, तो कृपया हमारी पुन: उपयोग के लिए अनुशंसाएँ पढ़ना सुनिश्चित करें.
जब मैं Google पुस्तकें पृष्ठ से कोई पुस्तक खरीदता/खरीदती हूं तो किसे लाभ मिलता है?
Google पुस्तकें उन पुस्तक-विक्रेताओं के लिंक प्रस्तुत करता है जिनसे आप उन पुस्तकों को खरीद सकते हैं जिन्हें आपने खोजा है. आउट-ऑफ-प्रिंट पुस्तकों के मामले में, ये लिंक उपयोग किए गए बुकस्टोर पर जाते हैं. पुस्तक विक्रेता अपने लिंक शामिल करने के लिए हमें भुगतान नहीं करते और जब आप उनसे पुस्तक खरीदते हैं तब हम पैसे नहीं कमाते (जब तक आपने Google eBook संस्करण न खरीदा हो). कुछ पुस्तकें Google eBooks के रूप में उपलब्ध हैं, जिस स्थिति में हमारे पास उपयुक्त अधिकारधारक के साथ आय विभाजित करने का एक अनुबंध है. अगर आप सीधे Google की बजाए हमारे फ़ुटकर भागीदारों में से एक से पुस्तक खरीदते हैं, तो फ़ुटकर विक्रेता भी आय का एक भाग प्राप्त करेंगे. हम सहभागी प्रोग्राम की कुछ पुस्तकों पर, प्रकाशकों की अनुमति से, प्रदर्शित होने वाले संदर्भात्मक लक्षित विज्ञापनों पर उपयोगकर्ता क्लिक से अवश्य आय अर्जित करते हैं और उस विज्ञापन आय की उन सहभागियों के साथ साझेदारी करते हैं.
मुझे इस पुस्तक को वास्तव में और अधिक देखने की आवश्यकता है. मैं क्या कर सकता/सकती हूं?
Google पुस्तकें आपको पुस्तकें खोजने में सहायता करता है, न कि उन्हें ऑनलाइन पढ़ने में. अगर पुस्तक ऑनलाइन उपलब्ध नहीं हो तो इसे पूरा पढ़ने के लिए, हम आपको इसे खरीदने के लिए यह पुस्तक प्राप्त करें या पुस्तक का प्रिंट प्राप्त करें बटन का उपयोग करने या ऐसी स्थानीय लाइब्रेरी खोजने के लिए प्रोत्साहित करते हैं जिसमें यह हो. अगर शीर्षक Google eBook के रूप में उपलब्ध है, तो आप तुरंत ही eBook या यह पुस्तक प्राप्त करें बटन क्लिक करके इसका डिजिटल संस्करण खरीद सकते हैं.
आप मुझे यह क्यों बता रहे हैं कि पेज अनुपलब्ध है?
कॉपीराइट धारकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए हमारे प्रयासों के भाग के रूप में, उपयोगकर्ताओं द्वारा पढ़ी जा सकने वाली किसी भी दी हुई पुस्तक सामग्री के आकार को प्रतिबंधित करते हैं (जब तक की पुस्तक कॉपीराइट के दायरे से बाहर न हो, जिस मामले में पुस्तक पूरी तरह उपलब्ध होती है), इसलिए कुछ पेज अनुपलब्ध हो सकते हैं.
क्या Google उन पेजों जिन्हें मैं देख रहा हूँ अथवा पुस्तकों जिन्हें मैंने पढ़ा है, का हिसाब रखता है?
कॉपीराइट युक्त पुस्तकों की सुरक्षा के लिए, हम Google पुस्तक खोज के उपयोगकर्ताओं को पुस्तक का सीमित भाग देखने की ही अनुमति देते हैं. इन सीमाओं को लागू करने के लिए हमें अपने उपयोगकर्ताओं के देखे पेजों का हिसाब रखना पड़ता है. हम आपकी खोजों अथवा आपके देखे गए पेजों को आपके बारे में किसी व्यक्तिगत रूप से पहचान योग्य जानकारी, जैसे आपका नाम और पता, से तब तक संबद्ध नहीं करते हैं जब तक कि आप अपने Google खाते पर लॉग इन नहीं करते. हालांकि, उपयोगकर्ता द्वारा देखे गए पेज पर सीमाएँ लागू करने के लिए, हम कुछ गैर-व्यक्तिगत पहचान योग्य जानकारी (IP पतों, कुकीज़) के साथ उन पुस्तकों और पेजों को संबद्ध करते हैं जिन्हें आपने लॉगइन के बावजूद देखा है. हम देखने की सीमाएँ लागू करने के लिए इस डेटा को एक सीमित अवधि के लिए रखते हैं. हमेशा की तरह, पूर्णत: यह समझने के लिए कि आपकी गोपनीयता की किस तरह सुरक्षा की जाती है, हम आपको अपनी गोपनीयता नीति पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं.
क्या स्कैनिंग कॉपीराइट कानून का पालन करती है?
हाँ. Google जो उपयोग करता है, वह कॉपीराइट कानून के अंतर्गत उचित उपयोग के इतिहास के साथ-साथ स्वयं मूल कॉपीराइट कानून के सिद्धांतों दोनों से पूरी संगतता रखता है. कॉपीराइट कानून हमेशा यह सुनिश्चित करने के बारे में होता है कि लेखक पुस्तकें लिखना और प्रकाशक उन्हें बेचना जारी रखेंगे. पुस्तकों को खोजना और खरीदना अथवा पुस्तकालयों से उधार लेना आसान बनाकर, Google पुस्तक खोज लेखकों के लिए पुस्तकें लिखने और प्रकाशकों के लिए उन्हें बेचने के लिए प्रोत्साहनों को बढ़ाने में सहायता करता है. खोज क्षमता के उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, हमें उन पुस्तकों की डिजिटल प्रतियां बनाने की जरूरत है जो कॉपीराइट कानून के अंतर्गत अनुमति प्राप्त हैं. यह प्रोजेक्ट वास्तव में वेब खोज के समान है. किसी वेबपेज को इलैक्ट्रॉनिक रूप में इंडेक्स करने के लिए, आपको इसकी एक प्रति बनाने की जरूरत है. किसी वेबपेज को इलैक्ट्रॉनिक रूप में इंडेक्स करने के लिए, आपको इसकी एक प्रति बनाने की जरूरत है. जैसाकि वेब खोज के साथ होता है, हमारे द्वारा बनाई गई प्रतियां लोगों को स्वयं मूल दस्तावेज़ पर ले जाने के लिए उपयोग की जाती हैं.
Google पुस्तकें और Google eBooks के बीच क्या अंतर है?
जब आप books.google.co.in पर जाते हैं, तो आपको Google पुस्तकें खोजने या Google eBookstore के द्वारा ब्राउज़ करने का विकल्प दिया जाता है. Google पुस्तकें पुस्तकों को प्रिंट करने के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए इस ढंग से प्रयास करता है ताकि यह डिजिटल उपयोगकर्ताओं द्वारा निःशुल्क पहुंच योग्य हो. इसमें पुस्तक सूची की जानकारी, कुछ सीमित पूर्वावलोकन, और सार्वजनिक डोमेन कार्यों का पूर्ण दृश्य शामिल होता है. Google eBooks को उनके प्रकाशकों द्वारा विक्रय के लिए उपलब्ध कराया गया है. केवल Google पुस्तकें की तरह आप सीमित पृष्ठों का पूर्वावलोकन कर सकते हैं. हालांकि, जो आप देखते हैं अगर उसे पसंद करते हैं, तो आपके पास कार्य की एक डिजिटल प्रतिलिपि खरीदने का विकल्प होता है, जिसे फिर आप अधिकांश इंटरनेट-सक्षम उपकरणों में पूरी तरह से देख सकते हैं या डाउनलोड भी कर सकते हैं. जब आप Google पुस्तक को देख रहे होते हैं, तो अगर यह Google eBook के रूप में खरीदने के लिए उपलब्ध है तो आप उसे आसानी से देखेंगे.