Friday 19 September 2014

कुछ जली-कटी-सी / जयप्रकाश त्रिपाठी

बस यूं ही, एक ओर विचारधारा की बातें, दूसरी ओर बिकवाली का गुणा-भाग, 'हंसब ठठाइ फुलाइब गालू' या सात चूहे खाकर बिल्ली वृंदावन चली...

साहित्यकार हो, पत्रकार या टिप्पणीकार, शब्दजाल ओढ़कर वह सबसे पहले खुद को धोखा देता है, सच्चे लोग वो छुरियां नहीं चलाते, जो आदमी की पीठ में घोंपी जाती हैं, वे ठगी के व्यापारी नहीं, न ही बेचते हैं धोखे बिना दाम के, वे लोगों के आशियाने नहीं फूंकते, शब्दों को आदमी की हिफाजत के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं, यह मानते हुए कि 'सच को हथियार की तरह इस्तेमाल करना अपराध है तो हां हम अपराधी हैं, मृत्यु का भय किसी और को दिखाना, हम अपनी मौत से नहीं डरते क्योंकि भाषण, वोटों की डकैती, वतन को विदेशी हाथों में बंधक रखते हुए सबसे खूबसूरत देशभक्ति का प्रदर्शन और दान-पेटियां हमारा पेशा नहीं है।
हम उन जाहिलों की जमात से नहीं आते, जो मुर्दों के झांसें में बेशर्मी से चादर तान कर सो जाएं ये जानते हुए कि चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाले किसी और नस्ल के होते हैं, मृगछौने की खाल पर पालथी मारकर जो मानुसखोर-अहिंसा का पाठ पढ़ाते हैं, ईमानदारी कोई फ़िल्मी चीज़ नहीं कि गांधी के नारे लगाते हुए भगत सिंह को बेच खायें और दस करोड़ मासूमो के भविष्य से सौदा करते हुए कैमरों के सामने देश के विकास के निर्लज्ज दावे करें।
सिरहाने तकिया के नीचे छुरा-गड़ासा रखकर लोकतंत्र के गलीचे पर खर्राटे भरें, प्रतिदिन सुबह से ही स्क्रिन या पन्नों पर झूठ की उल्टियां करते डोलें, खसोटे हुए कफन ओढ़ कर महामृत्युंजय का अभिनय करें, टीवी वाले विचार-विमर्शों के कारोबारी नहीं, जो सोने के हनुमान और चांदी की तांत्रिक अंगूठियां बिक जाने के बाद खलनायकों के लिए शब्दवेधी मुखौटे सिलें, रावणों के लिए राष्ट्रभक्त ब्यूटी पॉर्लर चलायें, पैसे के लिए इतना मीठा बोलें कि वारांगनाएं भी शर्म से गड़ जायें।
गीदड़ों के पिछलग्गू चीखना क्या जानें, हमे ट्रेडमार्क विलाप करना नहीं आता, न तहखानों में चोरबत्तियां जलाकर प्रतिघाती हस्ताक्षर करते हैं, एकेडमिक बैठकों से विश्वपुस्तक मेलों तक हमे कभी किसी ने अवसरवादी डुबकियां लगाते नहीं देखा होगा, इसीलिए हमारे हाथ कभी आदमी के खून से नहीं सने, एक तरफ विचारधारा की बातें, दूसरी ओर बिकवाली का गुणा-भाग, 'हंसब ठठाइ फुलाइब गालू' या सात चूहे खाकर बिल्ली वृंदावन चली...

.....तो चल गुरू, आज से होज्जा शुरू, पांच साल की रोजी-रोटी जुटाने का समय आ गया, वोट्टर-वोट्टर खेलते हैं


विधानसभा चुनावों के लिए अधिसूचना आज