Thursday 6 February 2014

काकी की कहावतें........


अपना हाथ, जगन्नाथः
सौ सुनार की, एक लोहार कीः
नाच न जाने आंगन टेढ़ः
छछनी छछन्न करे, टाटी-बेड़ा बन्न करेः
आंख एक नहीं, कजरौटा बारहः
मरे नहीं तो भर घरे होवैः
घर की मुर्गी साग बराबरः
थोथा चना बाजे घनाः
नाच न जाने आंगन टेढ़ाः
जिसकी लाठी उसकी भैंसः
नाती स‌िखावैं नानी के चलोगी नानी गौनेः
अंधा बांटे रेवड़ी फिर आपनु को देयः
बूढ़ी घोड़ी, लाल लगाम


अंधी पीसे कुत्ता खायः
अंधा के आगे रोवै, आपन दीदा खोवैः
जोरू टटोले गठरी, मां टटोले अंतड़ीः
अकल बिन पूत लठेंगुर सो, लछन बिन बिटिया डेंगुरसीः
ओछो मन्‍त्री राजै नासै
प्रीत न जानइ जात कुजात। नींद न जानइ टूटी खाट। भूख न जानइ बासी भात। पियास न जानइ धोबी घाट॥
लरिका ठाकुर बूढ़ दिवान। ममिला विगरै सांझ विहान।
सघुवै दासी, चोखै खॉसी, प्रीति विनासै हॉसी

खड़वा चंदन मधुरी बानी। दगाबाज कइ इहै निसानी

मूरख मूढ़ गॅवार नै, सीख न दीज्‍यो कोय। कुत्‍तै बरगी पूछड़ी, कदै न सीधी होय॥
कोयला क दलाली में हाथ भवा करिया।
सास घर जमाई कुत्‍ता, ब्राह्मण के घर भाई कुत्‍ता
बैरी मारे दाबतै, ये मारैं हंस-खेल
सौकण बुरी हो चून की और साझै का काम
रॉड़, सॉड़, सीढ़ी, सन्‍यासी;। इनसे बचै तो सेवै कासी
‘जिसनै देख्‍यी ना दिल्‍ली वो कुत्‍ता न बिल्‍ली
दिल्‍ली की लड़की मथुरा की गाय, करम जो फूटे बाहर जाय
कोकटी धोती पटुआ साग, तिरहुत गीत बड़े अनुराग
देस्‍सां म्‍हें देस हरियाणा, जडै़ दूध दही का खाणा
धोती आला कमावै, टोपी आला खावै
पढ़ै फारसी बेचै तेल, देखो ये कुदरत का खेल
‘बिन बैलन खेती करै, बिन भैयन के रार। बिन मेहरारू घर करै , चौदह साख लबार
गधे का खाया न पाप में, न पुन्‍न में
तीन फंकिया टीका, मधुरी बानी। दगाबाज के इहे निसानी
वांभन, कुकुर, नाऊ। आपन जाति देखि गुर्राऊ।
वामण, कुत्‍ता हाथी, ये नहीं तीन जात्‍य के साथी
नाई, धोबी, दर्जी, तीन जात अलगर्जी
वारहा वामण बारह बाट, बारह खाली एक्‍कै घाट
आन का आटा, आन का घी, शंख बजावैं बाबाजी...चाबस चाबस बाबा जीव।
करवा कोहार के, घीव जजमान के, बाबा जी कहेले, स्‍वाहा स्‍वाहा
बीर, वाणिया, पुलिस, डलेवर नहीं, किसी के यारी, भीतरले मैं कपट राखल, मीठी बोली प्‍यारी
आमी नींबू बानिया, चापे तें रस देय
बावन बुद्धि बाणिया, तरेपन बुद्धि सुनार
कायस्‍त मीत ना कीजिए, सुणकंथा नादान। राजी हो तो धनहड़ैं, बैरी हो तो ज्‍यान
पीताम्‍बर ओच्‍छा भला, साबत भला न टाट। और जात्‍य शत्रु भली, मित्र भला न जाट
अहिर मिताई तब करै, जब कुल जाति मरि जाइं
ऊंच जाति बतिअउले, नीच जाति लतिअउले
गूजर तै ऊजड़ भला, ऊजड़ तै भली उजाड़
हीर बे पीर खावे, राबडी बतावै खीर

भगवान जब देता है, छप्पर फाड़कर देता है
ग्राहक और मौत का ठिकाना नहीं
आग लगाए जमालो दूर खड़ीं
सूप तो सूप, चलनी क्या बोले जिसमें बहत्तर छेद
चुल्लू भर पानी में डूब मरो
अब पछताए होत का जब चिड़ियां चुग गईं खेत
उलटा चोर कोतवाल को डांटे
दूधों नहाओ, पूतों फलो
अंधों में काना राजा
अंधे के हाथ बटेर
एड़ी चोटी का जोर
आस्तीन के सांप
अंधेर नगरी चैपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा
दिया तले अंधेरा
हाथ आरसी को कंगन क्या
नेकी कर दरिया में डाल
नौ दो ग्यारह
मन जीते जग जीत
सत्यमेव जयते
पल्ले होवे सच्च, तां नंगा होके नच्च
सांच को आंच क्या
सच्चे का बोलबाला, झूठे का मुंह काला
एक हवा, न सौ दवा
मन चंगा तो कठौती में गंगा
कर भला हो भला, अंत भले का भला
धीरा सो गंभीरा, उतावला सो बावला
हड़बड़ का काम गड़बड़
हिम्मते मरदा, मददे खुदा
चोरी का माल मोरी में
चोर की दाढ़ी में तिनका
चोर की नार जनम भर दुखिया
क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात
अधजल गगरी छलकत जाय
अपना पैसा खोटा तो परखैया को क्या दोष
आपन आंख न देखै, दूसरे क ढेड़र निहारे


अ़ँडु़आ बैल बंहेड़ु़आ पूत, खा ले बेटा कहीं सुत। (बंहेड़ु़आँउअवारा, कहा न मानने वाला)
अंजोरिया धरम के रात ह।
अंधरा कू लंगड़ा कूटे, हमरा चाउर से काम।
अइली ना गइली फलां ब कहइली।
अउरी जात के भुखाइल ना गोड के लवलइ। (गोंड़उभंड़सार, जो दिन भर कु न कु खाते रहता है, पेट भरा रहने पर भी वह उतना खा जाता है, जो एक भूखा व्यक्ति खाता है, यही लवलई है)
अकरावन पिया मर गइले, सेजिया देख भयावन भइले। (अकरावनउअकर्मण्य, कर्महीन)
अकेले मियाँ रोवस कि कबर खानस।
अगरो अगरइली त खँडतर ले परइली। (खँड़तरउचिथड़ा, पराइलउभागना)
अगल-बगल घर गोलक में। (परस्पर सहयोग के आभाव में विपत्ति को निमंत्रण)
अगली भइली पिछ्ली, पिछ्ली पुरधाइन। (पुरधाइनउप्रधान, मुख्य)
अगुताइल कोंहार लगले मूड़ी से माटी कोड़े।
अगुताइल बिट्यिा के लइका भइल, गोड़ा तर धइल,सियार ले गइल।
अघाइलो भइंस पाँच काठा। (अघाइलोउभर पे भोजन किया हुआ)
अण् सिखावे बच्चा के चेंव-चेंव मत कर।
अनका धन पर तीन ट्किला!
अनका धन पर तेल बुकवा।
अनका धन पर विक्रम राजा!
अनका धन पे रोवे अँखिया!
पूत जनम लैं लोलक लैया, फेकैं धान, बटोरैं पैया
अन्न बिनु लुगरी पुरुँख बिनु पइया, लुगवा के फट्ले धनि भइली बउरइया। (पुरुँष अन्न के आभाव में लुगरी, अर्थात् चिथड़ा, फटा-पुराना कपड़ा, कमजोर वस्त्र की तरह खस्ताहाल हो जाता है, और स्री पति के बिना पइया (बिना दाना की छ्मिी, पट्टा!) की तरह जर्जर, खोखला, निरस या बेदम हो जाती है। यहाँ "लुगा का फट्ना' एक मुहावरा है, तात्पर्य यह कि फटेहाल जिंदगी पाकर मनुष्य पागल की दशा को प्राप्त करता है।)
अन्हरा सियार के पकुआ मेवा दर्लभ ? (पकुआउबरगद का फल)
अन्हरा सियार के महुआ मिठाई।
आन्हर क गइया के राम रखवइया।
अपना घर में कुकुर के सेना।
अपना दही के अहीर खट्टा ना कहे।
अपना दुआर कुतवा बरिआर।
अपना बिनु सपना, गोतिया के धन कलपना। (गोतिया का धन रहने से क्या लाभ जब वह अपने लिए सपना ही हो, या किसी काम ना आवे)
अपना मने सजनी, के गाँव के लोग क पदनी। (सजनीउसज्जनी, सभ्य, अच्छा)

अपना ला लालबिल जगतर ला दानी। (लालबिलउलु-लु, छु-छु, दरिद्रता की दशा)
अपना हारल मेहरी के मारल के ना कहे।
अपने उरुँआ सुगा के पढ़ावऽ तारे। (उरुँआउउल्लू,व्यंगार्थ-मूर्ख)
अपने दिल से समझो पराये दिल की बात।
अब दिनन भइल भारी, अब का लदबऽ हो बेपारी।
अबर कुट्निहार दउर-दउर फट्के।
काम के न धाम के, नौ सेर अनाज के
अबर के मेहरा गाँव भर के भउजाई।
अबर सवार घोड़ी फोद काढ़े ले।
अभागा गइले ससुरार, तहँवो मांड़े-भात।
अरधी मेहरा बटैया खेत। (कोई भरोसा नहीं )
अरवा चाउर बसिया माँड़, ओ में डाले समझी के डा़ँड।
अ खाइल प पादल। (अ उ यहाँ, प उ वहाँ)
अल्लाह के एक लड़का!
अहीर के लाठी कपार पर।
अहीर गड़ेरिया पासी, तीनो सत्यानासी।
अहीर बहीर बन बइर के लासा, अहीर पदलेस भइल तमासा।
अहीर बुझावे से मरद।
अहिरे के बिटिया के लुरबुर जीव, कब जइहें सास कब चटिहूं घीव
अहीर साठ बरिस ले नाबालिग रहेले।
अहीर साधु, मूसर धनुही ना होले। (मूसर उ ओखली का मूसर, धनुहीउधनुष)
साठा पर पाठा
अहीर से इयारी भादो में उजारी।
अहीर, राजपुत, डोंम, तीनो जात हड़बोंग। (हड़बोंगउ हल्ला-हुड़दंग मचाने वाला)
अहीरिन के माँग में सोने का मंगटीका।
आँख आन्हर देह मरखाह।
आँख के अंधा नाम नयनसुख।
आँख के आन्हर गांठ के पुरा।
आँख चले भौं चले, अउर चले पपनी। सोरहो घर लट्टा लगावे, इ घर कुट्नी। (परस्पर झगड़ा लगाने वाली औरत आँख, भौं और पुतली से इशारा करती है। "लट्टा'- महुआ और भुना चावल ओखल में कूट्कर हलवा बनाया जाता है, इसे लट्टा कहते हैं। यहाँ व्यंजना में प्रयुक्त)
आँख त हइये ना कजरौटा चाहीं।
आँख ना दीदा मांगे मलीदा।
आँख बिलबिल बग्गा में चरवाही। (बिलबिल मोतियाबिन्द कीचड़-पानी युक्त, बग्गाउई का खेत)
आँख में न कान में, एगो लकरी। सउसे समुंदर में एगो मछ्री।
आँवा के आँवा झाँवा।
आइ-माइ के ट्कि ना, बिलाई के भरमंगा।
आइल थोर दिन गइल ढेर दिन।
आइल बानी गवने, सकोचऽ तानी बात, ना तऽ अउर लेती भात।
अन्हरी गइल दाना भुजावै, फूट गइल खपड़ी, लगल गावै
दाल-भात में मूसरचंद
आंख के अंधे, नाम नयनसुख
आइल मघवा, फूलल गाल, फिर उहे हाल।
आई आम चा जाई लबेदा।
आखिर मुरुँख पछ्तइहें, ट्ट्का भात बसिया क के खइहें।
आखिर संख बाजल, बाकिर बावाजी के पदा के।
आगी के तपला से जाड़ ना जइहें, पिया के कमाई से ऱ्हदया ना जुड़इहें।
आगे अन्हार, पा सूझेना; जियरा चंडाल बूझे ना।
आगे नाथ ना पा पगहा।
आगे बैजू, पी नाथ। (पहले बैजू, अर्थात् बदमाश को प्रणाम् करो, तब नाथ (सज्जन) को)
आतुर वश कुकर्मा।
आदमी के दिन घोड़ा के दिन लागले ना रहे।
आदमी चलते चिन्हाला।
आदमी बन ट्ले, जल ना ट्ले।
आधा बात समधिया जाने ले। (समधियाउसंदेशवाहक)
आधा रोटी बस, कायथ हईं कि पस (पशु)!
आनकर मूड़ी बेल बराबर।
आनी से बानी भाखा से पहचानी।
आन्हर आँख बबुर पर झट्हा। (झट्हाउछोटा लबेदा)
आन्हर कुकुर बतासे भोंके । (बतासे उ हवा की आह पाकर। अर्थात् अनायास, बिना तुक के भोंकना, व्यंजना में

आशंका, संदहमात्र पर हो-हल्ला करना)
आन्हर गु बहिर चेला, मंगले गुड़ लेअइले ढेला।
आन्ही के आगे बेना के बतास! (बेनाउपंखा, बतासउहवा)
आप र्रूप भोजन परर्रूप सिंगार।
आपन अपने ह, विरान विराना। (विरानउ पराया, अनजान)
आपन करनी पार उतरनी।
आपन कानी र उतानी।
आपन काम मो आवे दे।
आपन दिया बार के मस्जिद के दिया बारीं।
आपन निकाल मोर नावे दे। (अपना काम रोक कर मेरा करो, व्यंजना में स्वार्थभक्ति)
आपन फूली केउ ना निहारे, दोसर के ढेढ़ निहा ला। (फूलीउआँख का मा़डा, ढेढ़उ कनडेरपन)
आमा गिहथिन रहली, त भर्रूके-भर्रूके पिसान भइल। (गिहथिन ऊँगृहस्थिन, गृहस्थ की औरत, गृहणी, प्रचलित अर्थ कुशल, प्रवीण, होशियार। भर्रूका उ भांड़ा ; ज्यादा होशियारी घर की बरबादी)
आवते बहुरिया जनमते लइकवा। (नई दुल्हन और नवजात शिशु को विशेष आदर मिलता है)
इ कढ़ावे ली, त उ घोंटावे ली। (हँ में हा मिलाना)
इ गुर खइले कान छेदवले। (गुरउ गुड़)
इ बिलाइ बने गइली, उ महोखा बन गइलन।
इ रास्ता केने जाई ?, त कोड़ऽ तानी।
इजत बरोह जोगवले से।
इजती इजते पे म ला।
इडिल-मिडिल के छ्ोड़ऽ आस, धरऽ खुरपी गढ़ऽ घास।
इयर फूट्ल बीयर फूट्ल, बाबा हो कुँआ बानी।
इसर निकलस दरिदर पइसस।
इसर से भें ना दरिदर से बैर।
लरिका न मेहरी, चले दुअरिका
उ डाढ़ी-डाढ़ी त इ पाते-पाते। (एक से बढ़ कर एक, छ्काने की कोशिश व्यर्थ)
उखड़े बाल ना बरिआर खाँ नाम।
उजरा गँव में ऊँ आइल, लोग कहे बलबले हऽ।
उजारी टोल मुरारी महतो।
उठ लिहली मुँह धो लिहली, पान के बीरा चबा लिहली।
उठऽ बहुरिया सॅस ल ऽ ढेकी छोड़ऽ जाँत ल ऽ। (इसी पर एक अन्य कहावत है - खड़ा होखऽ त कोड़ऽ, बइठऽ त चेखुरऽ ! अर्थात् चैन नहीं)
उधरिया बइठले अगिला मंगा। (मांगाउनाव का अगला भाग, जिसपर बैठा जा सकता है)
उधिआइल सतुआ पितर के दान। (बिना मन का सम्मान)
उपास भला कि मेहरी के जूठ भला !
उरदी के भाव पूछे, त कुल्थी/बनउर क सेर! (कुल्थी-एक प्रकार की जड़ी, जो पशु रोग में दी जाती है)
ऊँ चुराये निहुरल जाय।
ए कुकुर दूबर का ? त गोड़ के आवाजाही।
ए गाय! खा, तहार बाछा बिकाई।
ए बबुआ! तोर भाई केइसन! घर-घर ढ्ँूढ़े बिलरिया एहिसन।
ए बुरी गोह! ध के गोड़ त धइले बाड़े सोर!
ए भइंस, आपन पोंकल नेवारऽ, तहरा दूध से बाज आवतानी।
ए भेंड़िया भेंड़ चरइबे!, त हमार कमवे कवन !
ए हाथ करऽबऽ, त ओ हाथ पइबऽ।
एक आन्हर एक कोढ़ी, भले राम मिलवले जोड़ी।
एक घर इनो बक्से ले। (बक्सनाउछ्ोड़ना)
एक ट्का के मुर्गी नव ट्का के मसाला।
एक त गउरा अपने गोर, दूसर लहली कमरी ओढ़।
एक त गिलहरी पेड़ से गिरल, दूसरे मरलख मुअड़ी। (मुअड़ीउमोटा लबेदा)
एक त छ्उँड़ी नचनी, गोड़ में परल बजनी, अउरी हो गइल नचनी।
एक त मोरा रुँचे ना, तीन सेर में छूट्े ना।
एक बूँ के दाल। (एकता में बिखराव)
एक बोलावे चौदह धावे।
एक भेंड बिना पों के, त रक्षा करिहें भगवान। आ लेहँड़ बिना पों के, त का करि भगवान !
एक मन के बंसी, चौरासी मन के छ्ीप।
एक लकड़ी, नब्बे खर्च।
एक हाथ के ककरी, नौ हाथ के बिआ।
एके माघ ले जाड़ ना होला।
एड़ी के मा भेड़ी के खौरा। (गर्ज दूसरे को, खुद बेचैन)

ए ले ललगंड़िया के सोने के बनुक। रात चलावे, दिन खरची के दु:ख।
ओएड़े-गोयड़े खेत चरइहऽ मेहरी के ट्किुला देख-देख जइहऽ।
ओछ्री के भोज में छुछुनरी गइल नेवता।
ओढ़ले पहिरले वर, छ्पले-छुपले घर।
केंगाल ठीक, जंजाल ना ठीक।
केंठी, चंदन, मधुरी बानी, दगाबाज के तीन निसानी।
कउआ खइले अमर!
कतनो अहिर होई सयाना, लोरिक छाड़ि न गाव आना।
कथनी कथे अगाध के चले गिध के चाल। (अगाधउकठिन, गंभीर, सुसंस्कृत)
कनिओ के मौसी, दुलहो के मौसी।
कनिया के आख में लो ना, लोकनी हकन करे। (लोकनीउमंथरा, हकनउ गला फाड़-फाड़ कर रोना)
कपड़ा के दागी धोबी कीहाँ, अउर दिल के दागी भगवान कीहाँ मिट्ेला।
कपार पर के लिखल के मेटाई !
कभी नाव पर गाड़ी, कभी गाड़ी पर नाव।
कम कूबत, मार खाये के निसानी।
कम पूंजी पट््टा, त करऽ पसरहट््टा। (पसरहट््टा उ क्रंद्धदृsseद्ध फेरी लगाना, अनाज की खरीद-बिक्री)
कमाय धोती वाला खाय टोपी वाला।
करकसा बेट्ी करकसा चाल। (करकसाउकर्कस, कठोर वचन बोलने वाली)
करत में डाँड़ टू खात में नीक लागे।
करनी ना धरनी, धिया होइ ओठ बिदरनी।
करम फूट्ल गेहूँ के, गेहूँ गइले घोनसारी। (घोनसारीउ भंड़सारी)
करवाँ कोंहार के धी जजमान के।
करिअवा भेली ढ्ेर मीठ।
करिआ अछ्र भइंस बराबर।
करिआ कमरी में लाल के तोई। (तोईउरजाई या झु?ला में लगने वाला एदृद्धड्डीeद्ध)
करिया बाभन गोर चमार। (तेज होते हैं)
करिया भइंस अन्हारी रात, ब प अहिर के जात।
करिया में कुच-कुच करिया में काई। करिया भतार देख आवेला ओकाई। (ओकाईउउल्ट्ी)
करिया वाभन गोर शुद्र, ओह के देख काँपे रुँद्र।
कर्जा लेके साख बनी!
कलकत्ता के कमाई जूता छाता में लगाई।
कलवार के लइका भूखे मरे, लोग क ताड़िए पी के मातल बा।
कहला बिनु कथनी ट्ेढ़! (बार-बार कहने पर भी कोई प्रभाव नहीं और एक बार कड़े ढ्ंग से कह देने पर चिढ़)
कहला से धोबी गदहा पर ना चढ़े।
कहाँ राजा भोज कहाँ भोजवा तेली!
कहावे के अनेरिआ, चलावे के लधार। (अनेरिया उबिलाला, किसी काम का नहीं, लधारउ लात)
कहिया राजा अइहें, त कब हँडिया धोअब !
कहीं के ईं कहीं का रोड़ा, भानमती के कुनबा जोड़ा।
क के रहनी कहल ना जाव, कहला बिना रहल ना जाव।
का खुरपी के बान् धइले, का खुरपी के बेंचले!
का पर कर्रूँ सिंगार पिया मोर आन्हर। (का पर उ किस पर)
काँस-पितर कवनो गहना ना, करिया भतार गोड़ जातऽ ना।
काठ के हँडिया एके बेर।
कातिक गइले, बैल पदवले। (कुसमय प्राप्ति)
कान कुइस कोत गर्दनिया, ए तीनों से हा दुनिया। (कोतउभूरा आँख वाला)
कानी गाय के अलगे बथान।
कानी बिलाई के घर में शिकार।
काम क नथ वाली, लागे चिरकुट्ही।
काम के ना काज के दुस्मन अनाज के।
काम के ना काज के कटावऽ घोड़ी घास के।
काम धाम में आलसी भोजन में होसियार।
काम न धन्धा अढ़ाई रोट्ी बन्धा।
काम प्यारा चाम नहीं।
काल्ह के बनिया आज के सेठ।
का रजवा के घ अइले, का रे विदेसे गइले।
का भीम गए अगुताई, तातल दूध ओठ ज जाई। (तातलउगर्म)

कि पे भा अनवतवा भाय, कि पेट् भा नमिया माय। (अनन्त त, नवमी)
कुकुर बिलाई के जमघट्।
कुटुम कुटुम जइसन रहले कुटुम ओहिसन पवले कुटुम।
कुत्ता का अनजान के बनिया काट्े पहचान के।
कुत्ता के पों में केतनो धी लगाईं, ट्ेढ़ के ट्ेढ़े रही।
सिधवा क मुंह कूकुर चाटै
कु के बैल, त कुदेला तंगी। (तंगीउ लादी, जीन)
कुबंस ले निरबंस अच्छा।
कुल कपड़ा रखले से।
के मनावल! त बकरी।(काफी मान-मनौव्वल के बावजूद चुप न हुआ, कु देर में स्वयं चुप हो गया)
के हऊँ! त बर के मउसी; नून देबू! त अगतिआ नइखे। (अगतियार उ अधिकार)
केंकरवा के बिहान केंकरवे खाला। (केंकरवाउ केकड़ा, बिहानउबिआड़, नवजात)
केंकरा पैर पसारे, त पोखरा के थाह पावे।
केतनो अहिर पिंगल पढ़े, बाकिर बात जंगल के बोले।
केतनो करि चतुराई विधि के लिखल बाँव ना जाई।
केतनो खेती बना के जोतीं, एक दिन दखिना लग जाई।(दखिनाउएक प्रकार का फसली रोग)
केतनो चिरई उड़ि आकास, लेकिन करि धरती के आस।
कहीं ईंट, कहीं क रोड़ा, भानुमती का कुनबा जोड़ा
केतनो बरई पान जोगइहें, पाला परिए जाई।
के के बैगन पंथ के के बैर।
के खाते-खाते मुये, के खइला बिनु मुये।
के ना पू हा बानी।
कोइरी के पहुना! (आलसी, बेकाम का)
कोई गंगा नहाइल कोई गुड़ही। (फिर भी बराबरी)
कोई जनम के संघाती होला, करम के ना होला।
कोई लेत कोई देत कोई ट्क देले बा। (ट्क देनाउन लगाना)
कोढ़िया डरावे थूक के भरोसे।
कोदो साँवा अन्न ना, बेट्ी दामाद धन ना।
कोल्ह एहिसन मरदा, कोतार एहिसन जोय, सेकर लइकवा चीलर एहिसन होय। (हट््ठा-कट््ठा पुरुँष-स्री, लेकिन लड़का दुबला-पतला)
कौआ के आँड़ उड़ते में चिन्हा जाला।
आरी-आरी कउआ, बीच में गुहखउआ
कौआ ले कबलवे चतुर। (कबलवेउकौआ का बच्चा)
खइले पियले साथ।
खग ही जाने खग के भाखा।
खा ले पी ले, चुल्हा के ढ्हा दे।
खा ले बेट्ी दूध-भात आखिर परबे विराना हाथ।
खाऽ त धी से, जाऽ त जी से।
खाँड़ छ्ोड़ सउँसी पर धावे, सउँसी मिले ना खांड़ा पावे। (खाँड़उटुकड़ा, सउँसीउसंपूर्ण)
खाए के ना खिआवे के दउर-दउर कोआ बिछावे के।
खाए के नाना के, कहाए के दादा के।
खाए के बेट्ी, लु के दमाद, हाथ-गोड़ तजले बा गोतिया-देआद। (हाथ-गोड़ तेजल (मुहावरा) उ कोई काम न करना, अकर्मण्यता)
खाए के मन ना नौ गो बहाना।
खाए के मांड़ ना नहाये के तड़के।
खाना कुखाना उपासे भला, संगत-कुसंगत अकेले भला।
खास भीम हगस सकुनी।
खिआवे के ना पिआवे के, मांग-ट्ीका धोवे के। (खर्च न करना, किन्तु सुख चाहना)
खिचड़ी खात नीक लागे, बटुली मलत पे बथे।
खेत खाय पड़िया, भइंस के मुँह झकझोरल जाय।
खेत च गदहा मार खाए धोबी।
सगरो गांव बहल जाय, बुढ़िया लचारी गावै
खेत ना जोतीं राड़ी भइस ना बेसाहीं पाड़ी।
खेत-खेत पाटा, देह-देह नाता।
खोंसी के छाल पर कुत्ता के मांस बिकाय।
खोंसी के जान जाय, खवैया के सवा ना।
खोलले बकरी, बन्हले लकड़ी।
गइल घर बुरबकवे बिना।
गइल जवानी फिर ना लौट्ी, चा धी मलीदा खाय।
गइल जवानी माझा ढ्ील। (माझा उ शरीर)
गइल बहुरिया तीनों से- र्तृया, गोर्तृया, रसोइया से।
गइल भइंस पानी में।
गइल माध दिन उनतिस बाकी।
गत के ना पत के सुते अइले स के।

गदहा के इयारी लात के सनसनहट्।
गदही दिहलऽ दँतकट्ही ए बैठा, गइया दिहलऽ मरखाह। छ्ँउड़ी दिहलऽ घर घूमनी ए बैठा, उठि-सुति मुअड़ी खाय।
गया मरद जो खाय खटाई, गई नारि जो खाय मिठाई।
गया राज चुंगला पैठा, गया पेड़ बगुला बैठा।
गया आसन बनारस पीठा। (सिद्धान्त और व्यवहार में कोई तालमेल नहीं; बात का कोई ठिकाना नहीं)
गरदन में ढ्ोल परल, रो के बजावऽ चा गा के।
गरह से निकल गरहन में।
गलगर होइहऽ धिया, बड़ होके रहिहऽ। (मुँहगर, बातूनी की हर जगह इज्जत)
धोबिया से ना परै त गदहिया क कान उखाड़ै
गवना के घूँघ अउर लइकाई के कुई ना मिले।
गाँव भर ओझा, चलीं केकरा सोझा !
गा कट्हर, ओ तेल।
गाय ओसर भइंस दोसर। (ओसरउपहिल बिआन)
गाय गुन बछ्ड़ा पिता गुन घोड़, ना कु त थोड़े-थोड़।
गाय ना बाछा, नींद प अच्छा।
गाय बाभन घुमले फिरले।
गाया में गाय दान, रास्ता में बाछ्ी, घर अइला पर बावा जी खोसी लेबऽ कि पाठी !
गाल देब बजाय, सासु जइ लजाय।
गुदर-मुदर सब सोये, बिसनिया लोगवा रोवे। (होशियार होकर भी लड़कपन करना)
गु गुरुँये रह गइले, चेला चीनी भइले।
गु से गुरुँआई ?
गृद्ध दृष्टि अपार।
गेंठी खुले ना बहुरिया दुबरास।
गेहँू के साथ घून पिसाला।
गो के एगो गोड़ टूट्यिे जाई, त ओकर का बिगड़ी!
गोड़ गरीबनी मगज बिल़ंड। (शरीर में जान नहीं, किन्तु घमण्ड अधिक)
गोदी के दहाइल जा, ढ्ीढ़ के ओझाई।
गोबर जरे, गोइठा हँसे।
गोबर सूँघला से मुसरी जीओ। (मुसरीउचूहा)
गोर चमइन गरबे आन्हर।
गोसेया भुइंया कुकुर पंुजौली। (पुंजौलीउपुआल का ढ्ेर)
घंट्ी क घनर-घनर अउर नकजपना। ठाकुर जी के अंगुठा दिखा के खा ले मन अपना।
घट्ले नाती भतार।
घर के मारल बन में गइली, बन में लागल आग। बन बेचारा का क कि करमें लागल आग ?
घर छाय देखनी घर छुप देखनी, घर में तनी आग लगा के देखनी।
घर ना दुआर बर तर ठाढ़। (बहसपना)
घर पर छ्पर ना बाहर फुटानी।
घर फु गंवार लूट्े। (गँवार ऊँ गँवइ, ग्रामीण, व्यंजना में असभ्य, लुहेड़ा, लूचा)
घर भर देवर भतार से ठट््ठा।
घर में खरची ना, बाहर ढ़कार।
घर मेह ना, बेटा बाहर क्रिया खास।
घर-घर देखा एके लेखा।
घर लौका बन लौका लौका के तरकारी, एहिसन घा उतरले लौका गइले ससुरारी।
घीव के कूंड़े, नाहीं त जव के ठूढ़े।
घीव देत घोर नरिया।
घीव संवा काम बड़ी ब के नाम।
जइसन सास, उइसन धीया...........?
घीवो खाइब, त खेंसारी के दाल में।
घूघ मोर चुवेला ठेहुनवा, पाद मोर सुनेला पहुनवा।
घेंाघा के मुँह खुलल।
हर दे हरवाह दे, गाड़ खोदै के पैना दे
घोंघा में बनावेलीन सितुहा में खालीन। (खालीन उ खाती है)
घोड़ी पड़ी अहिर के पाले, ले दौड़ायल आले-खाले।
घोड़े की नालबाजी में गदहा पैर बढ़ावे।
च मड़वा प बिआह।
च लिट्ी प भंटा।
चढ़े के हाथी पर चले के भुइंया-भुइंया।
चमड़ा के ढ्ेर पर कुत्ता के रखवारी।
चमार के सरपला से गाय मरी!
चमार सियार सदा होसियार।
चरभर के अंत मिले, मुरघुइंस के ना मिले। (चरभरउ अधिक बोलने वाला, मुरघुइंसउ चुप्पा अन्तर्मुखी)
चल बगेरी आपन झुण्ड।
चलनी धूसली सूप के, जिनका अपने सहसर गो छ्ेद।
चार बेद चार ओर, ता बीच चतुरी। चार्रू वेद करऽ ता चतुरी की चाकरी। (बिना बुद्धि जरो विद्या)
चाल चले सिधरी, रो के सिर पर बिसरी।
चालाक पदनिहार पहिलहीं नाक दाबे।
चा र्तृया घर रहे, चा र बिदेस।
चिउरा के गवाह दही।
चिउरा दही बारह कोस, लिचुई अठारह कोस। (लिचुईउपूड़ी)
चित प त हमार, प प त तहार।

चिरइआ उ बिआ, पंखिया रंगा गइल बा।
चिरई के जान जाय लइका के खेलवना।
चींट्ी अपना पावें भारी, हाथी अपना पावें भारी।
चीना के सपूत भइले मार्हा। (चीना उ एक प्रकार का अन्न, इसके चावल को भूनने पर "मार्हा' बनता है। "मार्हा' दूध दही के साथ खाने पर बहुत अच्छा लगता है)
चेत करऽ बाबा बिलार मा मट्की।
चेरिया बिअइली मर के, रानी कहली "बेट्ए' ?
चोर के मुँह चाँद निअर। (निअरउजैसा)
चोर के हजार बुद्धि।
चोरवा के मन बसे केंकरी के खेत में।
चोरी क निहाय के, क सूई के दान। उ चा बैकुण्ठ के त बुरबक बाड़े राम। (निहायउसोनारी का एक समान जिसपर सोना, चांदी पीटा जाता है)
छाव क छौंड़ी छाव करे, अंगुरी का के घाव करे। दवा देहला पर छ्पबे ना करे, बिना भतार के रहबे ना करे।
छ्ीन छ्ोर के खाईं, बापू कहाईं।
छुछुन्दर के माथ पर चमेली के तेल। (छुछुन्दरउ चू की एक प्रजाति)
छ्ो मुँह बड़ कवर।
छ्ोलक खट्यिा ढुलकत घोर नारी करकसा विपत के ओर। (घोरउघोड़ा, विपत के ओरउअतिशय विपत्तिदायक)
छ्ोलक जात बदरक घाम, मउगा से पत राखऽ राम। (छ्ोलकट्उ छुद्र,इ शूद्र, पतउइज्जत)
छ्ो छाती फा लोर के ठेकाने ना।
छौंड़ी तोर आँगन कतेक !
जग जगदीश के।
जजमाने के घी, जजमाने के लकड़ी स्वाहा।
जथा के ठेकाने ना कुटुम्ब करस धावा। (जथाउपंूजी, थाती)
जनम के दुखिया करम के हीन, हाथ में खुरपी मोथा बीन। (मोथाउएक प्रकार का जड़ीयुक्त घास)
जनमत खइले माता-पिता के, घुसकत आजा-आजी। ममहर में ननिअउरा खइले, कुल में दागा-बाजी।
जनाना के खाइल मरद के नहाइल केहू ना देखे।
जब कवर भीतर, तब देवता पीतर।
जब चिन्हबे ना करब त आपन केहिसन !
जब जेहिसन तब तेहिसन, इ ना बूझे से पंडित केहिसन!
जब राम तकि सब दु:ख भगिहें।
जब ले करेब पूता-पूता, तब ले लगाइब आपन बूता। (बूताउकाबू, ताकत, शक्ति)
जब साग से ना जुड़इनी, तब साग के पानी से जुड़ाएब!
जब हाँड़ी पर ढ्कना ना होखे, त बिलाइयो के लाज क के चाहीं।
जबर मउगी के अबर बोतू। (मउगीउऔरत, बोतूउपति)
जबरा क जबरई, अबरा क नियाब। (नियाबउन्याय)
जबरा मारे, रोवे ना दे।
जबाब से के जीभ काट्ी?
जरी जलुहार त पुलंगी भूमिहार। (जलुहारउजोलहा, मुसलमानों के बीच एक छ्ो जाति)
जव के दिन जइहऽ, सतुआरी के अइहऽ।
जव के रोट्ी गबर-गबर, सास ले पतोह जबर।
जवन जानल जाला, तवन बात के सीअल जाला।
जवना डार पर बइ के ओही के का के।
जवना पतल में खाए ओही में छ्ेद करे।
जवान मउगी के कोख भारी।
जस दुलहा तस बनी बराती।
जस बबुआ तस बबुनी नाहीं, जस ढ्ेबुआ तस कुई नाहीं। (ढ्ेबुआउअंग्रेजी शासन में प्रचलित मुद्रा)
जस-जस धीया बाढ़ेली, तस-तस काँढ़ काढ़े ली। (धीयाउबेट्ी, काँढ़ काढ़नाउचिन्ता बढ़ाना)
जहाँ गेहुअन के मूड़ी, तहाँ बाबू के सिरहान।
जहाँ चार कानू, तहाँ बात मानू।
जहाँ चार गगरी, तहाँ लड़बे करी।
जहाँ ढ्ेर मउगी, तहाँ मरद उपास।
जहाँ न पहुँचे रवि, तहाँ पहुँचे कवि।
जहाँ मीठा होई, उहाँ चिंउट्ी लगबे करी।
जहाँ मुर्गा ना होई, तहाँ बिहाने ना होई?
जहाँ लू प तहाँ टू परीं, जहाँ मार प तहाँ भाग परीं।
जाईं नेपाल, संगही कपार।
जाइज पर रहेब त करऽबऽ का?
जागऽ किसान, भइल बिहान, फौड़ा उठावऽ चलऽ खेते।
जागल भाग पड़ले पाले, धइले पोंछ् पट्कले खाले।
जातो गंवइली, भातो ना मिलल।
जा जोगी मठ के उजाड़।
जानीं से सानीं।
दुनिया क छिनरा गोसाईं के मठ पर
जाने ले चीलम, जिनका पर चढ्ेला अंगारी।
जिअला में बोरा ना, मरला पर दोलाई। (दोलाईउरजाई)
जिन पुत जनमले ना होइहें, उ अबट्ले का होइहें। (अबट्ले उ उबट्न लगाने से।)
जिन ब अपने छ्निार, लगवली कुल परिवार।
जीअता पर छूँ भात, मरला पर दूध भात।
जीतला के अगाड़ी, हारला के पछाड़ी।
जुरता पर कुरता।

जु साग ना सोहरत जाय।
जे खाय गाय के गोस, उ कइसे हिनू के दोस! (दोसउदोस्त)
जे जनमते ना उजिआइल, उ आगे का उजिआई?
जे ना पढ़ी फकरा, उ का पढ़ी पतरा! (फकराउझूठ-साँच, पाखण्ड)
जे ना पू से का बाबा। (जे ना पूछ्ेउजिसको कोई न पूछ्े)
जे पंच, सेही चट्नी।
जे पांड़े के पतरा में, से पंडिताइन के अंचरा में।
जे फूल होखे से महादेव जी पर।
जे बनावे जाने, उ खाए भी जाने।
जे बाड़े से गु बाबा।
जे रोगिया के भावे से बैदा फुरमावे।
जेकर धन जाले ओकर धरम जाले।
जेकर पिया माने, से सोहागिन।
जेकर बनरी से ही नचावे, दोसर नचावे त का धावे।
जेकर माई पूड़ी पकावे, सेकर बेटा छ्छ्ने। (छ्छ्नेउतरसे)
जेकर मुँख बदन न पाईं, ओकरा आंगन का क जाईं ?
जेकर रोट्ी उ बन-बन फिरे, फकीरवा ठोक-ठोक खाय।
जेकरा घूरा बइ के ओक आंड़ दागे के?
जेकरा घेघ ओकरा उदबेगे ना, देखवैया का उदबेग? (उदबेगउ उद्विेग्नता, बेचैनी)
जेकरा छाती में बार ना ओकर एतबार ना।
जेकरा पर चूई, से छायी।
जेकरा पास माल बा, ओकर गोट्ी लाल बा।
जेक माई मरे, ओक पतल में भात ना।
जेतना के मुन्ना ना ओतना के झुनझुना।
जेतना घट्वा गरजे ओतना बरसे ना।
जेतना मुअड़ी मारीं ओतना हगाईं।
जेतने घी ओतने चीकन।
जेहिसन कोंहड़ा छान्ही पर, ओहिसन कोंहड़ा भूइयाँ।
जेहिसन जात ओहिसन भात।
जेहिसन दाल-भात, ओहिसन फतेहा।
जेहिसन देव ओहिसन पूजा।
जेहिसन देवर ओहिसन भउजाई।
जेहिसन नेत ओहिसन बरक्कत।
जेहिसन रहर ओहिसन बीआ, जेहिसन माई ओहिसन धीया।
जेहिसन राजा ओहिसन परजा।
जेहिसन हीरा के चोर ओहिसन खीरा के चोर।
जैसी ब बयार पीठ तब तैसी दीजै।
जोलहा के बेगार पैठान। (बेगारउट्हलुआ, आदेशपाल, बेकार)
झोरी में फुट्हा ना सराय में डेरा। (फुट्हाउभूजा, दाना)
ट्का ट्काई नौ ट्का बिदाई।
ट्का पास में जो साथ में।
ट्ʠ??्हरी के छ्पला से बादर छ्पाई?
टूट्लो तेली त नौ अधेली। (अधेलीउपैसा, आधा पैसा या आध आना)
ठाँव गुन का कुठाँव गुन कारिख।
डाँड़ डूबल जाव, ठेहुना के पते ना।
डिबनी कतके दूर, अब निअराइल बा।
ढ्ँू कुकुर गोसेंया के हानि। (गोसेंयाउगोसाईं, घर का मालिक)
ढाल छुरा तर्रूआ गइल कुँअर के साथ, ढ्ोल मजीरा खंजड़ी, रहल उजैनी हाथ। (एक प्रकार का वाद्य यंत्र)
ढुलमुल बें कुदारी के, हँस के बोले नारी से।
ढ्ेलाह खेत, पेटाह बेटा बाद में बुझाला।
तर धइली छ्तिनी ऊँपर धइली साग, पिअवा कहलस पदनी, त लौट्ल भाग। (छ्तिनीउबांस से बना छ्तिनार बर्तन)
तर धरती ना ऊँपर बंजर।
तसलिया तोर कि मोर!
तहरा किहाँ जाएब त का खिअइबऽ, हमरा किहाँ अइबऽ त का लेके अइबऽ?
ताकते बानी, लउकत नाहीं।
ताग पा के जूरा, चिरकु के फुरहुरा। (जूराउजूड़ा, फुरहुराउपहनी ई साड़ी का निचला, पैर के पास झूलने वाला हिस्सा)
ताग पा ढ्ोलना, कु नहीं बोलना।
ताड़ी के चिखना, बाप के कमाई, जोगाऽ के खाईं।
तीन कायथ कहवाँ, बिपत प तहँवा।
तीन जात अलगरजी, बढ़ई, लोहार, दरजी।
तीन जात घचान्हर, ऊँट्, बिद्यार्थी, बानर।
तीन जात हड़बोंग, राजपूत, अहीर, डोंब।
तीन ट्कि महा बिकट्।
तीन दिन रहई, त पियाजी से कहई।
तीन परानी पदमा रानी। (छ्ोटा परिवार सुखी परिवार)
तीन परानी पोखरा रानी।
तीन मन में तिनमनिया, सेर भर में उतनिया।
तीन में कि तेरह में, कि सुतरी के गिरह में!
तीन विप्र कहँवा, ब प तहँवा।
तीस में ट्ीस, चालिस में नखालिस।
तू गंगा पार हम जमुना पार।
तू धनैतिन धने आगर, हम तरवा के धू आगर।
ते गोतिन गगरी, हम ते बरोबरी।
तेतर बेट्ी राज लगावे।
तेलिया हा बार-बार, दइबा हा एक बार।
तोर नउजी बिकाय, मोर घेलुआ दे। (नउजीउचा न, घेलुआउफोक का सामान)
तोरा त पेट्वे ना त लोट्वे।
थान हार जइहें, बाकिर गज ना हरिहें।
दमड़ी की हाड़ी गई, कुत्ते की जात पहचानी गई।
दरबे से सरबे, चहबे से करबे।
दवा भीतर दम बाहर।
दही के गवाह चिनी।
दही के रखवार बिलार।
दही तब सही।
दाँत के ठेकाने ना, रहरी के भसक्का।
दाजे गइल खेती, रिसे गइली बेट्ी। (दाजेउदूस के भरोसे)
दादा काट्ेले घास, मोरा हँसी आवेला।
दादा के भरोसे अदौरी भात।
दादा दी हँसुआ, त घास का जाएब।
दादा मरि त पोता राज करिहें।
दानी दान क भंडरी के पे फूले।
दानी ले सोम्ह भला, जे ठावें देत जवाब।
दा उनकर छाती फाट्े, लोर के ठेकाने ना।
दिआरा के बंस, कभी राजा कभी रंक।
दिन जाला गुन भारी होला।
दिन भर चले अढाई कोस।
दिन भर मांगे त सवे सेर।
दिल लगे दिवार से तो परी क्या करे।
दुधार गाय के गो लातो सहल जाला।
दुनिया दुरंगी मुवल्लिक सराय, कहीं खूब-खूबी, कहीं हाय-हाय।
घर भोज भइल, कुतवा के मन हुलबुलिये में।
मने दूमनिया, तीन मने उतनिया, ना र त पे कुनिया।
दूध-पूत छ्पिवले।
दूनो हाथ से ताली बाजे ला।
देख पड़ोसी झल्ल मारे।
देखत माया परखते छ्ोह, जब देखीं त लागे मोह।
देखनी में से चिखनी में।
देखनीहार के धरनीहार लागे।
देखल कनिया देखल वर, कोठी तर बिछ्ौना कर।

देखले छ्उँड़ी समधी।
देखहीं के बाड़े पिया, चिखहीं के नाहीं, सूरत बा कवनो लजत नाहीं।
देखा-देखी पाप, देखा-देखी धरम।
देवकुरी गइले दूना दुख।
देह घुसके ना गेहँू बन चाहीं (बनउ बनिहारी, मजदूरी)
देह डोरा, पे बोरा।
देह में दम ना बजार में धक्का।
देहात में गाही, बाजार में नौ गाही।
धन के बढ़ल अच्छा, मन के बढ़ल ना अच्छा।
धन मधे कठवत, सिंगार मधे लहँगा।
धनिके के पहुना के दाल भात बारा, गरीबे के पहुना के मकई के दारा।
धान के देस पुअ से बुझाला।
धीया ना पूता, मुँह चा कुत्ता।
"न' से " '।
नइहर जो, ससुरा जो, जांगर चला बेट्ी कतहूँ खो।
नइहर रहले ना जाय, ससुरा सहले ना जाय।
नइहर से आइल लुगरी, चढ़ गइल गुलरी। (गुलरीउगुलर के पेड़)
नकली नारी बिपत के ओर।
ननद के भी ननद होले।
नया धोबिनिया लुगरी में साबुन।
नया मियाँ, जिया पिआज खाले।
नया लूगा तीन दिन, लुगरी बरीस दिन। (लूगाउसाड़ी, लूगरीउपुरान साड़ी, पहना हुआ)
नया-नया राज भइल, गगरी अनाज भइल।
नरको में ठेला-ठेली।
नव जानेली छ्व ना जानेली।
ना अकरब मुये, ना छुतिहर फूट्े। (अकरबउअभक्ष्य भोजन करने और गंदा रहने वाला, छुतिहरउ मिट््ट्ी का वह पात्र, जिसमें जूठा अन्न रखा जाता है, अथवा जिससे पशु के खाने वाले नाद का पानी साफ किया जाता है।)
ना उ देवी बाड़ी, ना उ कराह बा।
ना के में दोष बा, ना के नीमन बा।
ना चलनी के पानी आई, ना परउस के बरहा बराई। (परउसउएक प्रकार की डाभी घास)
ना धोबिया के दोसर खाहिन, ना गदहवा के दोसर मउआर।
ना हिनुए में ना तुरुके में।
नाग मरलन डोंड़ ट्ीका भइल। (मालिक के स्थाान पर गदहा)
नाचे कू तू तान सेकर दुनिया राखे मान।
नाचे से कब ले बांचे!
नाधा त आधा, आधा त साधा।
नानी के आगे ननिऔरा के बात।
नानी, पानी, बेइमानी के धन ना रसे।
नान्ह बिट्यिा, पुरान जबड़ा, भतार के मरली चार तबड़ा।
नाम गंगादास, कमंडल में जले ना, नाम अन्हारी बारी, होम क के पल्लवे ना।
नाम धनपति, घर पर करायने ना। (करायेनउफूस के घर का पुराना खर, डाभी)
नाम रामायन, करीखही अक्षर से भें ना।
नाम लवंगिया, बसाय अंडरबोय।
नामी बनिया के नाम बिकाला।
नामे नाम, ना त अकरवले नाम। (अकरवलेउनिन्दाजनक कार्य से)
निझारल जिएला, विस्वासे मुयेला। (निझारलउस्पष्ट जबाब देने वाला)
निपले पोतले डेहरी, पेन्हले ओढ़ले मेहरी।
निरबंस अच्छा बहुबंस ना अच्छा।
निरबल के दइबो सतावे ले। (दइबोउदेव)
निरबल के बल राम।
नीम हकीम खत जान, भीतर गोली बाहर प्रान।
नीमन गीत गाएब, ना दरबार देखे जाएब।
नेकी बदी साथ जाला।
नेत धरम के मारी मुँह, पे भ तवन करीं काम।
नोहरनी देखले नोह बढ़ल।
नौकर ऐसा चाहिए घर कभी ना जाय, काम क ताव से भीख माँग कर खाय।
नौकर के चाकर मड़ई के ओसारा।
पंडित सोइ जो गाल बजावा।
पइंचा में पानी ना परे।
पइसवा तीन, चिजुइया कीनी बीन।
पइसा ना कौड़ी, बीच बाजार में दौड़ा-दौड़ी।
पकड़े के गोड़ त पकड़ले बाड़े सोर।
पड़ोसिन सिहैली उपास।
पड़ोसिया के सिहइला से इनार के पानी झुरा जाला। (सिहाइलउकरुँण क्रन्दन)
पढ़लऽ त बड़ा गुन कइलऽ, हँसलऽ त दूनों कुल नसइलऽ।
पढ़े फारसी बेचे तेल, देख भाई कुदरत के खेल।
पत कवर बिसमिल्ला।
पतरी तिरिअवा कुलवा के हानि, सरबस खा के निरबस बानि।
पतिबरता कहाँ नइखी, कुट्नी से बचें तब त!

परले राम कुकुर के पाले, धइले पों पट्कलस खाले।
पर्रूआ बैल हेव के आशा।
पहिला दिन पहुना, दूसरा दिन ठेहुना, तीसरा दिन केहुना।
पहिले खइली घोर-घार, तब खइली पिठुरा, थाली धो के पी लेहली, पेट् हो गइल सुसुरा। (पिठुराउसत्तु कड़ा सान कर बनायी गई पिंडी)
पहिले लिखीं, पी दीहीं, घ त कागज के बाप से लिहीं।
पांक से पांक ना धोआई।
पाकल आम के कवन ठीक, कब चू जाई!
पातर डेहरी अन्न के खैकार। (खैकारउनुकसान, व्यंजना में दुबला-पतला व्यक्ति अधिक अन्न खाता है, किन्तु काम कु नहीं करता)
पातर डेहरी फोंफड़ बाँस, मउगा बेटा कुल के नाश।
पानी में मछ्री, नौ-नौ कुट्यिा बखरा।
पाव भर धनिया सहादलपुर कोठी।
पिआ सरा त गाछ्ी पर, पंच सरा त भुइंया।
पुरबिल्ला के चूक रहे। (पुरबिल्लाउपूर्वजन्म)
पुरवइया के बहल राँड़ के रोवल, कब बाँव ना जाला। (बाँव न जानाउव्यर्थ नहीं जाना)
पुराना चाउर पंथ परेले।
पु भाई नाक वाला।
पू ना पाछ्े, हम दुलहिनिया के मौसी।
पूत परजा बराबर।
पूस के दिन फूस, माघ के दिन बाघ।
पे क कुरकुर, जूड़ा क मँहमँह।
पे में रही त गुन करी, बाहर जाई त खून करी।
पेन्हेला सब कोई, चमकावेला कोई-कोई।
पैसा त बेसवा भी कमाले।
फट्क के लीं, फट्क के दीं।
फट्क गिरधारी, जिनका लोटा न थारी।
फाट्ल जामा बाजार में धक्का।
बइठल ले बेगारी भला।
बउरहवा के भंइस, गाँव भर धंूचा ले के दउड़े। (धंूचाउ मिट््ट्ी का पात्र , जिसमें दूध दुहा जाता है)
बकरी कहिया के मरखाह, कोईरी कहिया के सिपाही।
बकरी के महतारी कब ले खैर मनाई। (खैर मनावल (मु.) उ रक्षा कइल, विपत्ति टालना)
बकसऽ ए बिलार मुर्गा जी त बांड़े रहिहें। (बांड़उबण्ड, स्वतंत्र, अविवाहित)
बगुला मरले पर हाथ।
बछ्वा बैल बहुरिया जोय, ना हर बहे ना खेती होय। (जोयउजनाना, स्री)
बड़ आदमी के चेर बनी, केंगाल के दोस्त ना।
बड़ से पायीं छ्ो से ना पायीं।
बड़-बड़ के टोपी ना, कुत्ता के पैजामा।
बड़-बड़ घोड़ी दहाइल जा गदहा पू कतेक पानी।
बड़-बड़ ढ्ोल तहाँ ट्मिकी के मोल? (ट्मिकीउछ्ोटा बाद्य यंत्र, तबले का छ्ोटा र्रूप)
बड़का खेत में तीन पाव बीआ।
बढ़े बंस डफालिन होय।
बढ़े बंस पिता के धरमा, खेती उपजे अपना करमा।
बतिया मानेब बाकिर खूंट्वा ओहि जा रही।
बन में अहीर, नैहर में जोय, जल में केवट्, केउ के ना होय।
बन में बेल पाकल कौआ के कवन काम के ?
बनल काम में बाधा डालो, कु तो पंच दिलायेगा।
बनला के संघाती सब केउ, बिगड़ला के के ना।
बनले मरद बिगड़ले भक्कू।
बनिया तउले ना, गंहकी क पू द।
बपवा लबरा पुतवा चोर, दूनो परइले देस के ओर।
बबुआ जनमले खुरपी के बेंट्, हाथ गा़ेड डोरा, नादी लेखा पेट्।
बर अच्छा त बरच्छा।
बर के बंू ना बरिअतिया के मिठाई। (बंूट्उदालमोट्)
बरऽ छानऽ सोखा भइंस दीहें। (छानउगाय, भैंस को दुहने के समय उसके पिछ्ले पैर को बान्हने वाली रस्सी, सोखाउओझा, अहीर लोगों के देवता, जिनके आशीर्वाद से भैंस बच्चा देती है)
बरिया हा त तूरे, जीते त थूरे।
बरिया हा त मुँह में मारे।
बरियार चोर सेन्ह पर गाजे।
बलिदान के बकरी के कवन ठीक!
बवना बवना, जो के खेलवना। (बवनाउबौना/ठिंगना)
बहनी ना बाटा, अइले गेठर काटा। (गेठरकट््टा (मु.) उ उधरिया)
बहरा लम्बी-लम्बी धोती, घ अंठुली के रोट्ी।
बहिर कुत्ता बतासे धावे, न एहर पावे ना ओहर पावे। (बतासे उ हवा की आहट् पर)
बहिला गाय दुआर के सोभा। (बहिलाउ बिना ब्याई)
बहुत गया, थोड़ा है बाकी, अब मत हाथ बिगाड़ो साथी।
ब हर ना ब कुदारी, अमृत भोजन दे मुरारी।
बांझ का जाने परसौती के पीड़ा। (परसौतीउप्रसव)
बांस आ सुअर कट्ला पर बुझाले।
बांस के जरी बांसे होई।
बाग में जाईं ना, पाँच आम रोज खाईं।
बाजऽ बाजन बाजऽ, दुस्मन के घर बाजऽ।
बाणी गवरैया बांझ से नजारा।
बात करीं केवल, भतार लागस चाहे देवर।
बात बिगाड़े तीन, अगर, मगर, लेकिन।
बानर के हाथ में नरियर।
बानर जनि आदी के सवाद!
बाप कूली बेटा साहेब।
बाप के गर में मुँअड़ी, बेटा के गर में रुँदराछ्।
बाप के तीकी ना बेटा के जुलफी। (तीकीउ चिरकी)
बाप के नाम साग-पात बेटा के नाम परौर।
बाप दादा न खइले पान, दाँत बिदोरले गइल परान।
बाप न झुलले मातारी ना झुालली, हमहीं झुाललीं सरधा बुतवलीं।
बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुँपैया।
बाप बेटा बरतिया, माई-बेट्ी गीतहारिन।
बाबा के बेर्ही तर बेट्ी उपास, करऽ बेट्ी करम के आस।
बाबा जी के दाना हक लगाके खाना।
बाबा जी जिअलो पर खाले, मरलो पर खाले।
बाभन कुत्ता हाथी, तीनो जात के घाती।
बाभन खिअवले, बाबू कहवले, कायथ थम्हवले। (इससे ये प्रसन्न होते )
बाभन चले कइसे, कट्हर फ जइसे।
बाभन जात अन्हरिया रात एक मूठी चिउरा भर धउरल जास।
बाभन नाचे कोइरी देखे।
बाभन, बरखा, बाढ़, बेयार, दखिना पइले, भइले फरार। (दखिना उ दक्षिणा, दखिनी हवा)
बार उखड़े ना बरियार खाँ नाम।
बारह बरिस तप कइली, जोलहा भतार मिलल।
बारी के बारी कोलवांसी।

बारी समइया पिया खोर-खोर खइले, म के बेरा बउखा गर्हवले। (बउखाउएक प्रकार का आभूषण)
बावन बीरवा हार गइले, बाकी बाड़े चमसुर।
बावाजी के मुखे दुआर।
बिअवा के धनवा कूट्-कू खइली, बोये के बेरा नइहर गइली।
बिगड़ला के बहनोई केहूना, बनला के सार सब कोई।
बिट्यिा गिहथिन कि केंट्यिा गिहथिन।
बिन जोल ईद।
बिना मन के बिआह कनपट्ी पर सेनुर।
बिना मेंह के दौनी।
बिनु घरनी घर भूत के डेरा।
बिलाई के पे में घी पची ?
बिलाई के भागे सिकहर टूट्ल।
बिलार भइली मुखिया, गीदड़ करमचारी।
बीन के हाल गोबिन्द जानेले।
बुढ़वा भतार पर पाँच ट्किुली।
बुरबक सरहले।
बूझ गइले, बूझ गइले, "का' ? त, मतंगवा भइंसा।
बूढ़ बकरी बगैचा चरे।
बूढ़ भइली दूर गइली।
बूढ़ सूगा पोस मानी ?
बे बोलावे के बोले! त बर के मउसी।
बेट्ओ मीठ भतरो मीठ, किरिया केकर लगाके खाई ?
बेटा भइल जवान, त कोठी में लागल पेहान। (पेहानउढ्क्कन)
बेटा मरल अच्छा साख मरल ना अच्छा।
बेटा मांगे गइली भतार गंवा के अइली।
बेट्ी के मैया रानी, बूढ़ी समैया भरेली पानी।
बेट्ी चमार के नाम राजारनिया।
बेट्ी बिअहली कुइयां उड़हली।
बेल तर के मारल बबूर तर।
बेसवा र्रू धरम बचे।
बैद-बैद-बैद, दूनो आँख के भड़कौना बैद।
भंसार घर दबिला मजा करी। (भंसारउभंड़सार, दबिलाउगंड़ासी की तरह का एक हथियार)
भइल बिआह मोर करबे का?
भउजाई के बढ़निये में लछ्न। (बढ़नी - कूंची, झाडू)
भक्ति नाहीं भाव नाहीं, नेह नाहीं माया में, अढाई सेर ठूँस के सुत गइले धरमसाला में।
भतार के कमाई बाजार में गवइली, बेटा के कमाई बंक में।
भर गाँव से बतिआ आवस, मालिक से मँुह लुकावस।
भर मत करिहऽ भूमिहार के, पों जनि धरिहऽ सियार के। (भरउ विश्वास)
भर, भुईंहार, अहीर ये माना, पोस न माने तीनो जाना।
भरा भूत ओखेले।
भरी हाथ चूरी ना त प से रांड़।
भागते भूत की लंगोटी भली
भल भुइंहार के कहल मत करिहऽ, चिरकी उखाड़ के जेंवर बरिहऽ।
भल र्तृया रहले त लुगरिये पर लुभास।
भला कुल के बेट्ी बाड़ू, भला कुल के नारि। अगिला चार उजरले बाड़ी, पिछ्ला में लगवली हाथ। (चारउफूस के घर का छ्प्पर)
भला संग बसिहऽ खइहऽ बीड़ा पान, बुरा संग बसिहऽ कइह दूनो कान। (कान कटाना उइज्जत गंवाना)
भाई के भात ना हजाम के पक्की।
भाई-बहिनी आन के, जोहिया परान के। (जोहियाउजोड़ू, मरद)
भाग बुरी बौना, बिआह में खिअवले, अब बाकी बा गवना!
भाजा खाये के मन, तेल का कम।
भादो भंइसा चइत चमार। (मस्त रहते हैं)
भारी र भार से पतुकी भड़ाक से।
भुइंहार के अंतरी उनचास हाथ।
भुइंहार भगत ना बेसवा सती, सोनार सांच ना एको रती।
भुखले लइका गूलर खाले।
भूख त छ्ंू का, नींद त सेज का!
भूखा के दीं अघाइल के ना।
भूल गइल भाव-भजन, भूल गइल फकरी, तीन चीज जायज रहे, नून तेल लकरी।
भूसा के उधिआइल, बड़का के खिसिआइल ना बुझाला।
भेखे भीख मिलेला।
भोग माई आपन कमाई।
अधजल गगरी छलकत जाय
भोज त ओज का, ओज त भोज का?
भोथर चट्यिा के बस्ता मोट्। (चट्यिाउविधार्थी)
भोथरो हंसुआ अपने ओर खींचेला।
भो भाव ना जाने, पे भ से काम।
मइल लूगा, दूबर देह कुकुर का कवन सनेह।
मउगा मरद कलट्र से इयारी।
मउगी भतार के झगरा, बीच में बोले से लबरा।
मकई सूखल, राजपूत भूखल।
मछ्री खा के बकुलवा ध्यान।
मड़हा मरद चउरई जोय, सेकरा घरे बरक्कत ना होय। (मंड़हाउमांड पीने वाला, चउरहीउचावल खाने वाली)
मन क पहिनीं चउतार, विधना लिखले भेड़ी के बार। (चउतारउबारीक ऊँन का कम्बल)
मन चंगा त कठौती में गंगा।
मन माने त चेला, ना त सबसे भला अकेला।
मन में रहल से ना भइल, पंच मिल भकोसीं। (भकोसींउभक्षण करीं)

मन मोर चंचल जिअरा उदास, मन मोर बसेला इयार जी के पास।
मन हुलसे त गाईं गीत, भादो में उठाईं भीत। (हुलास उल्लास)
मर गइल त का हऽ, बिदा करऽ।
मर जाई जीव, त के खाई घीव।
मरजी गोबिन्द के केराव फ भेली। (केरावउमट्र)
मरद के घोड़ा के घास काट्ीं, निमरद के घोड़ा पर मत चढ़ीं।
मरद मुये नाम के, निमरद मुये पेट् के।
मरना है काशी तो खुशामद किसका?
मल बटुली खो भात सो दूनी आठ।
महतारी के कोख, कोंहार के आँवा।
महराज जी हउअऽ त कोख में मरबऽ?
मांगे के भीख पा के बीख। (बीख पादना (मु.) उ क्रोध में बात करना, ऐंठ कर बोलना)
मांगे के भीख पू के गांव के जामा! (जामाउपूंजी, सम्पदा)
मांड़ घोटाव ना पीठा ढ्केल। (पीठाउदाल-पीठा, आ की लोई दाल में पकाया हुआ)
मांड़ जू ना, ताड़ी पर आसा।
माई क कुट्वन-पिसवन, बेटा दुर्गादत्त।
माई बेट्ी एके मती हमही उलदिया, हमरा के देखी के लुकइले उलदिया। (उलदिया उअधिक, उलद उल्था उ विपरीत)
माघ बरखल चाहे, भाई जुदा भइल चाहे।
माछ्ी मारा पों उखाड़ा, चींउटा से रणजीता, मैं तो बहुत वीर मजबूता।
माट्ी के देवता तिलके में ओरा गइले। (ओरा जानाउ समाप्त होना)
माथ ना बन्हवली, पिअवा के मन रखली।
माथ पर मोट्री बहोर भइया, घर-घर पू मट्कोर कहिया। (बहोरना उ निकलना, घर से बाहर होना)
माथ में लगावे के तेल ना पुआ पकावे के साध।
मामा हित मामी मुँह मरावन।
माय गुन बछ्री पिता गुन घोर, ना अधिक त थोरे-थोर।
मायभा-मातारी खुश भइली, त कहली-"ए बाबू !लिट्यिा में तनी छ्ेद करऽ, तहरा के माठा दीं।
मार के ट्र जाईं, खा के पड़ जाईं।
मा गइले मेहरी, ठेठावे लगले डेहरी।
मा मेहर पा पड़ोसन।
मारेला भतार, हँसेला संसार, कहीं छू ना भतार।
मालिक कइलऽ सुख सोवे के, कि पट्यिा ध के रोवे के। (मालिक करना (मु.) उ आश्रित होना, अभिभावक बनाना)
मालिक मालिक एके।
मीठो चाहीं, भर कठौती चाहीं।
मँुह एहिसन मँुह ना, मँुह तिनकोना।
मँुह के बाफ ना रोकाला, हाँड़ी के बाफ रोका जाला। (बाफउ वाष्प)
मँुह बाछ्ी के पे हाथी के।
मँुह में दाँत ना चाउर-चिउरा से मस्का।
मुँह ना धोवे से ओझा कहावे।
मुँह र्तृया की ओर, गोड़ गोर्तृया की ओर।
मुँह हइये ना बेल लील लिहले।
मुठियक दाल में घुठियक पानी। (घुट्ने भर, व्यंजना में बहुत अधिक पानी)
मुरदा पर जइसे पाँच मन माट्ी, ओहिसे एक मन अउर।
मुर्गी बोललस भइल बिहान, उठऽ हे जजिमान। (मुर्गा बोलना (मु.) उ सुबह का संकेत)
मूलधन, आनधन, आधाधन गहना, कपड़ा लाता ट्ीम-टाम झां धन लहना। (लहनाउबकाया किस्त)
मूस गइल बिअल में धसन ठेठा के का होई! (धसनउबिल का ऊँपरी भाग)
मूस मोइले लोढ़ा भइले। (लोढ़ाउमोटाकर लोढ़ा हो जाना)
मेंह के बल पर घा के बैल फेंउकेला। (घारेउ किनारे, फेंउकनाउ घमण्ड में चूर, ऐंठ)
मैं मर जइबो ट्का ना बिकइबो, ट्कवा देखि-देखि जीअरा बुझइबो। (जीअरा बुझावल (मु.) उ मन को तसल्ली देना, संतोष करना, प्रसन्न होना)
मैं रानी, तें रानी, के भरी डोला के पानी?
मैं लरकोरिया, तू अलवात, दूनो जगतिया एके में बान्ह।
मैं सुनरी, पिया सुनरी, गाँव के लोग बनरा-बनरी।
मों पर ताव झगरुँवा नाव। (मों पर ताव (मु.) उ शान)
मोर पिया बात ना पूछ्े, मोर सोहागिन नाव।
मोर भूख मोर माई जानेले, कठौती भर पिसान साने ले।
रुप रोवे भाग हँसे। (रुँपवान होकर भी भिखमंगई)
रकट्ला के सइंया, बिहान जनि होखे दीहऽ ए गोर्तृया। (रकट्नाउमिलने पर भी लालायित, दरिद्र स्वभाव का)
रसोइया एक जानी, गाजिर-बिजिर दू जानी, ब प त तीन जानी।
रहल त मनही ना भावल, चल गइल त मन पछ्ताइल।
रहल बुढ़िया भइल काल, मरल बुढ़िया भइल अकाल। (काल होना (मु.) उ विपत्ति का घर, जिसको हटाने-हटाने का मन करे)
रहला पर के दानी, भादो में कहाँ ना पानी?
रहली इनिया बिनिया भइली गाँव के महतिनिया। (महतिनियाउमुख्तार, प्रधान)
रहली कोइरी के घरे, परली राजा के घरे, पूछ्ली-"बैगन के केइसन ह' ?
रहली तीन जानी, पदली कवन जानी ?
रही जीव त खाई घीव।
राजा के ओढ़ना रानी के बइठना।
राजा के बेटा, हुमेले के नाती, नौ सेर कपड़ा के बान् ले गांती।
राजा दुखिया, परजा दुखिया, जोगी के दु:ख दूना दु:ख।
राजा म इन्द्र घर पावे।
राजावा के घर मोतिये के दु:ख !
राजावा के राज भइल बनरा के तिलक चढ़ल।
रात अंधरिया पंथ ना सूझे, खाल ऊँच बराबर बूझे।
रात भर बहुरिया चाँचर खेलस, दिन में कौआ देख डेरास।
राम के नाम परात के बेरा। (परातउप्रात ऊँप्रातः)
राम जी के चिरई राम जी के खेत, खाले चिरई भर-भर पेट्।
राम जी के माया कहीं धूप कहीं छाया।
राम भरोसे राम लीला पाठी।
राम से गु ना त गुलाम से?
राम-राम कहत रहऽ मड़ई में परल रहऽ।
राह बतावे से आगे चले।
रेंग-रेंग-रेंग, तोरा खपरी में बेंग।
लंका में सब उनचासे हाथ।
लंगा से खुदा हारे।
लंगा से दूर भला।
लंगा से लंगा लागे, तब फरिआला।
लइका के रोग भइल दूध बढ़िया गइल।
लइका भइल हल्ला भइल, सबेरे देखीं त बाबू के जूँजिये ना।
लइका मालिक, बूढ़ देवान, मामला बिगड़े साँझ-बिहान।
लउका पर सितुहा चोख।
लउट्ल भाग भइली लरकोरी, नित उठ दूध भर-भर खोरी।
लकड़ी छ्लिले चिकन, बात छ्लिले र्रूखड़। (बात छ्लिनाउबतकूचन करना, विवाद करना)
लछ्मी आवेली त छ्प्पर फार के।
लछ्मी के आइल कहीं, ना गइल कहीं।
लड् लड़ी त झिल्ली झरी।
लड़ पड़ोसिन दीदा रात।
लबरो के लइका भइल, उधापति नाम पड़ल।
ललका चिउरवा, करिअवा गूड़, पे के जरले लिहले हूर।
लागी से दिआई, बाकिर बाजी रोशन चउकी। (रोशन चाउकीउएक प्रकार का बाजा)

लागे के बले, भागे के डरे।
लाजू मरस लाज ला, पे मरस पेट् ला।
लाजू मरस, ढ्ी जीअस।
लाजे बहुरिया कोवा ना खइली, कमरी ले पिछुआरा गइली। (कमरीउपके कट्हल का खोल)
लाजे भवे बोलस ना, सवा भसुर छ्ोड़स ना।
लाठी के हाथे राउत बेवात। (बेवातउबिना बात के झगड़े के लिए तैयार)
लात के आदमी बात से ना माने।
लादल बैला लादल जाय, छुँछ्का बैला कोंहरत जाय।
लाल मरिचइया तितइया बा ओतने, बूढ़ बानी तबो कुइया करेब ओतने।
लाल-लाल पइसा त रुँदना कैसा ?
लालची गइले खुशामद करे, परलोको के हानि भइल।
लालू के धन जगधर बेवहरिया।
लाह करीं पिया तोरा पर, पोंटा पोंछ्ी तोरा गोंछा पर। (लाहउ स्नेह)
लिहीं तेकर दिहीं ना, खाईं सेकर गाईं ना।
लुसुर-फुसुर क जसिया के जीव, कब जायब ससुरा चाट्ेब घीव।
लूगा आ झूला सलूका चाहीं, जोसन ना बाजू भभूटा चाहीं। (सलूकाउचोली; जोसन, बाजू, भभूटाउ स्रियों के आभूषण)
लू में चरखा नफा।
लू ला कू खाव।
ले दही, दही।
ले लुगरिया चल डुंमरिया।
लोकनी पू ना, कनिया हकन करे।
लोट्वे ना त पेट्वे।
लोभी के घर ठग उपास ना करे।
लोहा के कल में रेंड़ के पचरी। (कलउमशीन, रेंडउरेंड़ी, इस बीज से ड़ठ्ठेsद्यeद्ध दृत्थ् बनता है, इसके पौधे की लकड़ी कमजोर होती है)
वजन में बड़हर से कट्हर बड़ा।
संगही पिया परिचय नाहीं।
संदेसे देही ना जामे।
संवसे गांव में एगो ओझा।
सइंया से साँस ना देवर मारस मट्की। (साँसउफुरसत, मट्की मारनाउन मारना, आँख मारना)
सकता बाभन ना भला, बैष्णो भला चमार। (सकताउअसभ्य)
सकल चुड़इल के, मजमून परी के।
सजनी के धन भइल, तर ऊँपर मन भइल।
सती के रोवले देव रोवे।
सब कुकुर कासी जइ त पतलवा के चाट्ी ?
सब कोई दढ़िवाले बा, चूल्हा के फूंको!
सब गुन के आगर धिया नाक के बहेंगवा।
सब चिरैया झूमर पा लंगड़ा हुचुक।
सब जगह नीच गोतिया से बरोबरी।
सब दिन सेवले कासी, म के बेरा उसर-बासी। (उसर-बासीउबेचैनी, व्यग्रता, परेशानी)
सब धन सुकुल के, सुकुल के मोल कुकुर के।
सब रमायन बीत गइल, सियाजी के बिआह कब भइल, पते ना।
सबके दुलार महतारी के हँकार।
सर गल जइहें, गोतिया ना खइहें, गोतिया के खाए से, अकारथ जइहें। (अकारथउव्यर्थ)
सरल गाय बाभन के दान।
सरसो गिरहस्थ के निहाल भइले तेली।
सरसो तरहथी पर, पेरऽ तेल, तब देखऽ जवानी के खेल।
सराहल बहुरिया डोम घ जाली।
सहर में गाली, गली में माँफी।
सहर सिखावे कोतवाल।
साँच के सोर पाताल में ।
साँच में आँच का?
साँझे गइली पराते अइली।
साँप ना खोने बिअल, कोइरी ना बसे दीअर।
साठा त पाठा।
सात बेर सतुअन, भतार के आगे दतुअन।
सात भतार सतबरता एक कइली गंड़गहता। (भतारउभर्तार, पति, सतबरताउसत्यती सती, जिसने सात भर्तार किया वह स्वयं को सती बताती है और एक भर्तार करने वाली को कुलच्छ्नी कहती है, गुड़गहताउकुलच्छ्नी)
सात मूस खा के बिलाई भइली भगतिन।
सात सेर के सात पकवली, चौदह सेर के एके, तू दहिज सातो खइलऽ, हम कुलवंती एके। (दहिज देह अ ज उ भूखा)
सातू के पे सोहारी से भरी? (सोहारीउहल्का जलपान)
सादी करीं जान के, पानी पीहीं छान के।
साधु-सजन के फुट्हा दुलम बेसवा फा सारी। (दुलमउदुर्लभ)
साल के दूसाल बांस कटाले।
साव सधे दूना लाभ।
सावन भादो से दूबर?
सावाँ सोहले मूर्ख सरहले। (साँवाउएक प्रकार का अन्न, फसल)
सास कि बोलि त घींच मारेब मूसर।
सास के ड जुदा भइली, ननद परली बखरा।
सास ना ननद, घर आनंदे-आनन्द।
सास बाड़ी कूट्त, पतोह बाड़ी सूतल।
सास भइली परसन्न त कोनाई के लगवली लिट््ट्ी। (कोनाईउभूसी)
सास मांगस पानी, ढ्केल द रुँखानी। (रुँखानी उ कटुबचन, बढ़ई का एक औजार, जिससे लकड़ी पर महीन सफाई का काम अथवा पौवा में छ्ेद किया जाता है)
सास रुँठि त करि का? लुगरी छ्ोड़ पहिरहि का?
सासु से ट्ेढ़ी पगहिया से मेरी। (पगहिया उ पग चलने वाला, राही, मेरी उ मेल)
सियरा के मन बसे केंकरी के खेत में।
सीता के दिन वियोग में ही बीत गइल।

सील के लोर्हा क बड़ाई हमहँु शंभुनाथ के भाई।
सुअर के बिस्टा, निपे के ना पोते के।
सुकुवार बहुरिया के माझा ढ्ील। (माझाउजांघ )
सुखला सावन भरला भादो।
सुघा के मँुह कुत्ता चाट्े।
सुधा बहुरिया के घंूघ तर साँप बिआले। (साँप बिआनाउजहर पिनाक होना)
सुन ए माट्ी के लोला, कायथ, सोनार कहीं भगत होला?
सुनते साख ना पूछ्ल जाला।
सुरहा ताल के मछ्री, तिनफेड़िया के आम, पकड़ी तर के बइठल, छ्ोड़ देहले राम।
सूई ना समाय तहाँ फार घुसिआय।
सूद के पैसा दोबर ना त गोबर।
सूप के पिट्ला से ऊँ भागी?
सेमर के फूल देखि सुगना लपइले, मरले ठोर भुआ उड़ि गइले, सुगना हो! इ मन पछ्तइले।
सेर जागे, सवैया जागे छ्ट्ंकी के छ्ट्पट्ी बरे। (छ्ट्ंकीउछ्ोटा लड़का)
सेर मरद पसेरी बरद।
सेराइल बा सथाइल बा, बखरवो कहीं जाई!
सोना सोनार के सोभा संसार के।
सोम्ह आ दानी के खरचा बराबर।
सोम्ह के धन सैतान के नेवान। (नेवानउउपभोग)
सोरहो सिंगार घेघवे बिगाड़।
सौ घर कसाई, ऊँहाँ एगो बाबाजी के का बसाई।
सौ चो सोनार के एक चो लोहार के।
सौ दवा एक संयम।
सौ में सूर हजार में काना, सवा लाख में ऐंचां ताना, ऐंचा ताना क पुकार, कोइंसा से रहियो होंसियार। (तानाउकनडेर, कोइंसाउभूरा आँख वाला)
सौती के ट्ीस कठौती पर।
हँस के बोले नारी, सारा काम बिगाड़ी।
हँस के मांगे दाम, तीनो काम नकाम।
हँसल घर ही बसेला।
हँसुआ के बिआह में खुरपी के गीत।
हंस के मंत्री कउआ।
हजाम के बरिआत ठाकुरे-ठाकुर।
हट्यिा के चाउर, बट्यिा के पानी, बइठल रिन्हेली मदोदर रानी।
हट्यिा के चाउर, बट्यिा के दाल।
हड़बड़ी के बिआह कनपट्ी पर सेनुर।
हत्या के भरोसे बाछ्ी फोद काढ़ेले।
हम अइनी तो आपन जान, तें सुतले कमरी तान।
हम खेलीं आन से सइंया विरान से, कुकुर लौंड़ू खेले गइले जव के पिसान से।
हमरा भरोसे रहिह ना, अपना घ खइह ना।
हमार एक आँख, गोतिया के दूनो आँख चल जाव मंजूर।
हमार नकिया छ्ँू जाला ए विसंभर भइया, तोहार लोलवा ए तेजनो। (लोलवा उ मँुहफट््ट्, तेजनो(नाम), व्यंजना - तेजी दिखाने वाली)
हर कुदार नेग चार, अमृत बसे खुरपी के धार।
हर के मारल हेंगा विश्राम।
हर टू घर भरे, पालो टू ब परे।
हर द हरवाह द आंड़ खो के पैना दऽ।
हर ना फार लबर-लबर हेंगा। (लबर-लबरउबार-बार)
हर ब से खर खाय, बकरी अंचार खाय।
हर हेंगा में कोढ़िया पगुरी में रंग। (हर हेंगा में कोढ़ियाउ आलसी, पगुरीउपागुर, खाने में बहादुर)
हरवाह चरवाह के इनार के पानी।
हरवाही में हरिनाम।
हरही के पे में सोरही।(हरही उ दूबली-पतली, सोरही उ सोलह रोट्ी)
हरिजन चा बरन में ऊँचा।
हरी घास बकरी से इयारी।
हाँके भीम भए चौगूना।
हाकिम के हुकुम, नौकर के चाकर।
हाथ अगरबत्ती, गा़ेड मोमबत्ती।
हाथ के मुसरी बिअल में गइल, बिअल कोड़न लागल।
हाथ गोड़ समतूला, आनकर रोट्ी बीख के मूला। (आनकरउदूस का)
हाथ पर पवली, पात पर चट्ली। (भुक्कड़, अधीरजी, जिसको धैर्य न हो)
हाथ में ना गा़ेड में ट्कहा लिलार में। (ट्कहाउट्किुला)
हाथी अइलस हाथी, हाथी पदलख ट्ीं।
हाथी के लिंग पर ई के फाहा।
हाथी के हउदा ना, बकरी के ओहार। (ओहारउपदा)
हाथी चोरावल, खाला-खाला गइल। (खाला-खालाउनीचे-नीचे,गड़हा के रास्ते)
हाथी से हथखेल?
हित कुटुम अइले-गइले।
धिया! दमदो नसलू!

रमजानी, सतुआ सानीं, पे चली त हम ना जानीं। (पे चलनाउपेट्झरी)
होत परात किरिया लेब, कारी भइंस अहीर के देब।
होसियार के सउदा मन ही मन।
होसियार लइका हगते चिन्हाला।
बेटी चमार के नाम राजरनिया|
रोए के रहनी त अन्खिये खोदा गइल

जहां जाये डाढ़ा रानी, उहाँ पड़े पाथर-पानी........यह कहावत ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयोग की जाती है जिसके जाते ही कोई कार्य बिगड़ने लगता है.
उठा बूढ़ा साँस ला, चरखा छोड़ा जांत ला........यह कहावत तब कही जाती है जब इतनी व्यस्तता हो कि साँस लेने कि फुर्सत भी ना हो
बाप के पादना न आवै, पूत शंख बजावै........जब पुत्र किसी कार्य को पिता से अच्छा करने लगे तब इसका प्रयोग करते है
खावा भात, उड़वा पांत.......फक्कड़ी किस्म का आदमी हो/जो अपनी किसी चीज की चिंता ना करता हो
तौवा की तेरी, खापडिया की मेरी........इसका अर्थ है की सब ख़राब वस्तुएं तुम्हारी और सारी अच्छी मेरी
सोना दहाइल जाये, आ कोईला पर छापा......अपेक्षाकृत महँगी वस्तु का नुकसान होते देना और कम महत्व / सस्ते वस्तु को बचाना,
आधा घर दिया-देवारी, आधा घर अन्हरिया
बीत भर के लइका, गज़ भर के ज़ुबान......कम उम्र के बच्चे को ज़्यादा बोलना ,
बाप मरे अँधियारे, बेटा क नाम पावर हाउस.....अपने औकात से ज़्यादा बढ़ चढ़ कर अपनी बड़ाई करना,
लौकेय के ठेकान ना, चश्मे चाही......जो वस्तु की आवश्यकता न हो उसे भी माँग करना,
कमजोर के मेहरारू, भर गाँव के भौजाई......आसक्त, सीधा साधा,लाचार या ग़रीब व्यक्ति का समान को किसी के द्वारा प्रयोग कर लेना ,
भल मरल, भल पीलूवा पड़ल.......कोई कार्य करने के बाद तुरन्त उसका परिणाम भी आ जाना,
लोहा के सस्तई से सियार गढ़वले टांगा
सास मोर अन्हरी, ससुर मोर अन्हरा, जेहसे बियाही उहो चक्चोन्हरा, केकरे पे देई धेपारदार कजरा
जइसन लाल चाउर, ओइसन दांत चियार भात
जानेले चीलम, जिनका चढ़ेला अंगारी
मैं सुनरी, मोर पिया सुनरा, गऊवां के लोग कहे बनरी-बनरा
मोर भुखिया मोर माई जाने
जैसे उदई वैसे भान, ना इनके चुनई न उनके कान
पैसा ना कौड़ी, बीच बजार में दौड़ा-दौड़ी
जेकरे पाँव ना फटी बेवाई, ऊ का जाने पीर पराई
गुरु गुड रह गये, चेला चीनी हो गये
सूप बोलै त बोलै, चलनी का बोलै जे मा बहत्तर छेद
झोली में दम नहीं, चले जगन्नाथजी