Wednesday 12 November 2014

मन भर आया / जयप्रकाश त्रिपाठी

प्रायः याद किया करता हूं, किसको-किसको सुख पहुंचाया ।
किसे-किसे, क्यों भूल गया, किसको पल भर भी भूल न पाया ।

पूरा घर खंडहर हो गया, गांव रह गया पूर्व जन्म-सा,
छिन्न-भिन्न रिश्ते-नातों में वक्त बह गया पूर्व जन्म-सा,
डूब गये सीवान, जिन्हें हर दम थी दुलराती पगडंडी
सुनता हूं कि नहीं रही वो खेत-खेत जाती पगडंडी,
पोखर, कुआं, घाट, पिछवारे,
जिनके संग था नाचा-गाया,
किसे-किसे, क्यों भूल गया,
किसको पल भर भी भूल न पाया ।

शेष रह गयी राम-कहानी इनकी-उनकी, यहां-वहां की,
मित्र-मित्र दिन गुजर गये, दुश्मन-दुश्मन दिन जैसे बाकी,
जिसके बिना न जी सकता था, कैसी-कैसी बात कह गया,
उतना अपनापन देकर भी खाली-खाली हाथ रह गया,
फूल और अक्षत की गठरी वाला
गीत नहीं फिर गाया,
किसे-किसे, क्यों भूल गया,
किसको पल भर भी भूल न पाया ।

सफर कहां थम गया, कहां से भरीं उड़ानें जीवन ने,
कहां सुबह से शाम हो गयी, कहां बुने सपने मन ने,
लोरी-लोरी रातों वाले वे सारे दिन कहां गये,
बार-बार वे चेहरे आंखों की गंगा में नहा गये,
कितने कोस, गये युग कितने,
गिनते-गिनते याद न आया,
किसे-किसे, क्यों भूल गया,
किसको पल भर भी भूल न पाया ।

हर दिन, एक-एक दिन लगती थीं जो सौ-सौ सदी किताबें,
जब वर्षों ढोया करता था माथ-पीठ पर लदी किताबें,
पत्ती-पत्ती, फूल-फूल से हर पल बोझिल ऊपर-नीचे,
अक्षर-अक्षर, शब्द-शब्द से हरे-भरे अनगिनत बगीचे,
गिरते-पड़ते, गिरते-पड़ते
सबको साथ नहीं रख पाया,
किसे-किसे, क्यों भूल गया,
किसको पल भर भी भूल न पाया ।

ऐसे ही सबके दिन होंगे, रही-सही स्मृतियां होंगी,
सौ-सौ बातों वाली बातें मन में तन्हा-तन्हा होंगी
जिनके अपने साथ न होंगे, जो खुद नैया खेते होंगे
चोरी से हंस लेते होंगे, चोरी से रो लेते होंगे,
जब भी कुछ कहने-सुनने को
चाहा तो क्यों मन भर आया,
किसे-किसे, क्यों भूल गया,
किसको पल भर भी भूल न पाया ।

खुशियां / जयप्रकाश त्रिपाठी

मां की आंखों रोयी गुड़िया 
हिचक-हिचक कर,
रोते-रोते ....
और एक दिन  सुबह उठी, 
मां-सी अपने नन्हे ईश्वर की आंखों में 
खुशियां बरसाती ।

जग के सब दुखियारे रस्ते मेरे हैं

मैं समस्त सुबहों-शामों में शामिल हूं, 
मैं जन-मन के संग्रामों में शामिल हूं
मैं तरु की पत्ती-पत्ती पर चहक रहा, 
मैं रोटी की लौ में निश-दिन लहक रहा
मैं जन के रंग में, मन की रंगोली में, 
मैं बच्चे-बच्चे की मीठी बोली में 
आंखों के ये तारे रस्ते मेरे हैं, 
खुशियों के ये सारे रस्ते मेरे हैं, 
जग के सब दुखियारे रस्ते मेरे हैं......

खुशियों के ये सारे रस्ते मेरे हैं,
जग के सब दुखियारे रस्ते मेरे हैं।

(नये संकलन से)