Friday 29 November 2013

अखबारों से ज्यादा लोग फेसबुक पर-कीर्थिगा

फेसबुक इंडिया की हेड कीर्थिगा रेड्डी  का कहना है कि अखबारों से ज्यादा लोग फेसबुक के प्लेटफार्म पर हैं।
आपने 2010 में पहली एंप्लॉयी के तौर पर फेसबुक इंडिया जॉइन किया। वो क्या चीज थी जिसके चलते आपने अमेरिका से भारत आने और इस पद पर काबिज होने का फैसला किया ?
 तीन बातों ने मुझे इस कंपनी की तरफ आकर्षित किया। पहली – लोगों को एक-दूसरे के साथ बातें साझा करने की ताकत देने का मिशन और  दुनिया को ज्यादा खुला और कनेक्टेड बनाना, जो काफी प्रेरणादायी और बोल्ड बात है। और यही वो बाते हैं जो मुझे और हर फेसबुकर को इस सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट की तरफ खींचती हैं और वे हर दिन यहां अपना बेस्ट काम करते हैं।
 दूसरी – भारत वो जगह है जहां यह सब कुछ हो रहा है। यहां फेसबुक की शुरुआत करना, उसका बिजनेस और ऑर्गनइजेशन खड़ा करना बड़ी बात है। तीसरी – इंटरव्यू के दौरान मेरी जिनसे मुलाकात हुई वे सभी अपने काम में माहिर हैं। वे प्ररेणादायक लोगों के आसपास रहना चाहते हैं। मुझे विश्वास नहीं हुआ कि मेरे पास ऐसे लोगों के साथ काम करने का मौका है। मेरे पास एक फेसबुक ऐल्बम है जो कहती है ‘हर हफ्ता अभी तक का सबसे अच्छा हफ्ता है’ और मैं इस पर यकीन करती हूं।
 फेसबुक जॉइन करने के बाद वो कौन-सी सबसे महत्वपूर्ण चीजें हैं जो आपने सीखी हैं ?
अगर मैं पिछले साढ़े तीन सालों को देखूं तो एक वक्त था जब लोग कहते थे कि ‘वाकई, फेसबुक पर विज्ञापन होते हैं ? कहां हैं वो ?’ आज मैं ईमानदारी से ये कह सकती हूं कि फेसबुक सोशल मीडिया नहीं है, असल में वो मास मीडिया है। उन लोगों का आंकड़ा देखिए जो हमारी वेबसाइट से जुड़ते हैं और फिर प्रमुख अंग्रेजी अखबारों से इसकी तुलना कीजिए। हर दिन लाखों लोग फेसबुक पर होते हैं। यही वे मूलभूत परिवर्तन है जो हम मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग के क्षेत्र में लाने की प्रकिया में हैं। साथ ही अभी यह भाव है कि यह बस अभी शुरू ही हुआ है। हम फेसबुक पर बहुत समय जिन पांच बातों पर खर्च करते हैं, व हैं इससे पड़ने वाला प्रभाव, तीवत्रा लाना, बोल्ड बनाना, खुलापन लाना और सोशल वैल्यू का निर्माण करना। हम सही संस्कृति के निर्माण की अहमियत पर जोर देते हैं। हम ग्लोबल कल्चर के साथ तालमेल बैठा सकने वाली टीमों और ऑर्गनाइजेशंस के निर्माण पर समय खर्च करते हैं।
 भारी मात्रा में डेटा इकट्ठा करने के मामले में फेसबुक को मॉडल कहा जा सकता है। आप इसके बारे में क्या सोचती हैं और यह एडवरटाइजर्स के लिए कैसे फायदेमंद हो सकता है ?
 मैं इस बारे में इस तरह सोचती हूं, ‘इनोवेशन फ्रॉम इन्फर्मेशन।’ मैं आपको दो उदाहरण दे सकती हूं। 2003 में फेसबुक का प्रोफाइल पेज रिज्यूमे की तरह दिखता था। यूजर्स बर्थडे जैसे मौकों पर ही पर कभी कभार फोटो अपलोड करते थे। फिर हमने देखा कि वो कैसे एक ही दिन में कई बार फोटो बदलने लगे। हमें एहसास हुआ कि यूजर्स फेसबुक का इस्तेमाल फोटो शेयर करने के लिए करना चाहते हैं और यह उनके खुद को अभिव्यक्त करने का अहम हिस्सा है। इसके बाद ही हमने अपना फोटो इनेबल्ड प्रोडक्ट लॉन्च किया। दूसरा उदाहरणSocialBlood.org नाम का भारतीय संगठन है। ये फेसबुक की मदद से अलग-अलग ब्लड ग्रुप वाले लोगों के समूह बनाता है। कई ऐसे उदाहरण हैं जिनसे यह पता चलता है कि किस तरह ऐसे डेटा बेस का इस्तेमाल अपने कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता है।
 विज्ञापनदाताओं और एजेंसियों के साथ बेहतर तरीके से जुड़ने के लिए क्या अतिरिक्त प्रयास किए जा रहे हैं?
हम देश में सबसे बड़े विज्ञापनदाताओं और एजेंसियों के साथ मिलने-जुलने पर काफी समय खर्च करते हैं। वे अक्सर ये सवाल करते हैं कि फेसबुक का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने में हम उनकी कैसे मदद कर सकते हैं ? एजेंसियों के लिए हमारे पास बहुस सारे ऑनलाइन टूल्स हैं, जैसे - स्टूडियोएज सर्टिफिकेशन प्रोग्राम। जहां इस बारे में जाना जा सकता है कि वे कैसे इस प्लेटफॉर्म का बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं।
 ब्रैंड्स के लाइक्स खरीदने पर आपकी राय क्या है ? उन्हें अपनी सीमा कहां तय करनी चाहिए ?
हम फैंस के बारे में काफी बातचीत सुनते हैं। हम ब्रैंड्स से यही कहते हैं कि किसी और चीज के बजाय पहुंच के बारे में सोचना चाहिए। अक्सर ब्रैंड्स हमारे पास आते हैं और पूछते हैं, ‘हमारे प्रतिद्वंदी के पास 10 लाख फैंस हैं। मैं उनसे आगे कैसे निकल सकता हूं ?’ तब हम उनसे पूछते हैं कि आपका बिजनेस ऑब्जेक्टिव क्या है? इसके बाद हम उन्हें फेसबुक के सही इस्तेमाल के बारे में बताते हैं।
 फेसबुक की क्षमताओं के बारे में आपसे पूछा गया सबसे हास्यास्पद सवाल ?
कुछ लोग हमसे पूछते हैं कि क्या हम किसी खास दिन अपने पेज का रंग बदलकर उनके ब्रैंड का रंग लगा सकते हैं। हम ब्रैंड्स को बताते हैं कि ऐसा करना उनके हित में नहीं है क्योंकि हमें यूजर्स से नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है। आखिरकार हम उन्हें खुद से दूर तो नहीं कर सकते।
 (कीर्थिगा रेड्डी  से स्नेह उलाल की बातचीत एक्स्चंज4मीडिया से साभार)