Saturday 23 August 2014

लूट इंडिया लूट / शशिकांत सिंह शशि

दोस्तों! 'लूट इंडिया लूट', रियलिटी शो के इतिहास में मील का पत्थर साबित होने जा रहा है। आज तक हम टीवी पर केवल मनोरंजन प्रधान कार्यक्रम ही देखते थे। ज्ञान प्रधान प्रोग्राम नहीं। प्रश्नोत्तरी पर आधारित एक दो टुच्चे प्रोग्रामों को ज्ञान प्रधान नहीं कहा जा सकता। ज्ञान वह जो व्यावहारिक जीवन में हमारी सहायता करे। 'लूट इंडिया लूट' में आपको जानकारी मिलेगी कि देश को कितने सुंदर तरीकों से लूटा जा सकता है? कितने प्रकार से लूटा जा सकता है? कौन-कौन मिलकर लूट सकते हैं? जनता को मूर्ख बनाने विभिन्न तरीकों पर भी हम प्रकाश डालेंगे। तो आइए शुरू करते है... लूट इंडिया लूट।
सबसे पहले हम स्वागत करते है, अपने जजों का। अपने दर्शकों को बता दें कि हमारे इस प्रोग्राम के तीन जज हैं। हमारे पहले जज हैं, श्रीमान घपलानंद गोस्वामी। आप बुद्धिजीवी वर्ग के प्रतिनिधि हैं। उनके पास देश को लूटने के इतने तरीके हैं कि श्रोता दंग रह जाएँगे। घपला-कला पर आपकी किताबें पूरी दुनिया में इज्जत प्राप्त कर चुकी हैं। बेस्ट सेलर रह चुके हैं। आजकल इन्होंने अपना विद्यालय खोल रखा है जिसमें घपले के विभिन्न तरीकों से अपने विद्यार्थियों को अवगत कराते हैं। दूसरे जज हैं श्रीमान घपलेश्वर 'नौनिहाल'। घपले के क्षेत्र में आपका नाम बड़ी इज्जत से लिया जाता है। 'घपलेश्वर' की उपाधि मिलने के बाद भी आप इस क्षेत्र में अपने आपको नौनिहाल ही मानते हैं। राजनीति की बड़ी-बड़ी हस्तियाँ भी, किसी घोटाले के पहले इनका नाम लेना नहीं भूलतीं। जुए के क्षेत्र में जो प्रतिष्ठा युद्धिष्ठिर को हासिल है वही इज्जत नौनिहाल जी को घपले के क्षेत्र में है। तीसरे जज हैं श्रीमान घपलेंदु भूषण। इन्होंने प्रशासन के बड़े-बड़े पदों पर रहते हुए इतने घपले किए कि इनका नाम गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में आना चाहिए था। मगर बुक वालों के आलस्य के कारण देश इससे वंचित रह रहा है। बुद्धिजीवी, राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी तीन अलग-अलग क्षेत्रों के कोहेनूर हमारे पास हैं।
आइए, आपको 'लूट इंडिया लूट' के नियमों से परिचित करा दें। हमारे पास अलग-अलग क्षेत्रों के प्रतिभागी हैं। सब अपने-अपने अनुभव बताएँगे और हमारे जज इस बात का निर्णय लेंगे कि सबसे सुंदर तरीके से देश को कौन लूट रहा है। एक प्रतिभागी के लिए एक जज की टिप्पणी ली जाएगी। बाकी दो केवल अंक देंगे। अंतिम तीन प्रतिभागियों का निर्णय जनता के वोटों से होगा। तो आइए शुरू करते हैं। आज तक का सबसे बड़ा शो - 'लूट इंडिया लूट'। हम सबसे पहले मंच पर आमंत्रित करते हैं शिक्षा से जुड़े एक ऐसे व्यक्ति को जो पेशे से शिक्षक हैं। हम देखते हैं कि उनके पास इंडिया को लूटने के कौन-कौन से तरीके हैं। आप अपना अनुभव बताएँ।
- 'मैं सबसे पहले इस बात का खंडन करना चाहता हूँ कि मैं शिक्षा से जुड़ा हुआ हूँ। नौकरी मिलने के बाद से आज तक मैने कोई किताब नहीं खोली और न ही किसी प्रकार से अपने मस्तिष्क को नई सोच से जोड़ने का प्रयत्न किया। हाँ, मैं यह स्वीकार करता हूँ कि मैं शिक्षक हूँ। यह नौकरी मैने अपनी मर्जी से नहीं की। बेरोजगारी में यही मिली तो मैं क्या कर सकता हूँ? मैं हर संभव कोशिश करता हूँ कि इंडिया की लूट में मेरा भी एक छोटा सा हिस्सा हो जिस प्रकार सागर सेतु बनाने में गिलहरी का था। मैं कभी समय पर कक्षा में नहीं जाता। चालीस मिनट की कक्षा में, मैं पाँच मिनट विलंब से जाता हूँ और पाँच मिनट पहले निकल आता हूँ। इस प्रकार प्रतिदिन दस मिनट का समय लूट कर मैं अपने मन को संतुष्ट करता हूँ। बालक मेरी कक्षा में ऐसे बैठता हैं मानो वह सोया हुआ हो। चाहे तो सो भी सकता है। हाँ मेरी अपनी संस्था है जो संकटापन्न बालकों की हर संभव सहायता करती है। नोट्स से लेकर गाइड तक हमारी संस्था मुहैया कराती है। इससे भी आगे बढ़कर हम बालकों को परीक्षा में चिट तक मुहैया कराते हैं ताकि उनकी नाव न डूबे। इसके बाद भी यदि कोई कुलनाशक बच्चा नौका डुबोने पर आतुर हो ही जाता है तो हम उसकी सिफारिश परीक्षक तक भी पहुँचाते हैं। सार संक्षेप यह कि हमारी संस्था में आया हुआ बालक किसी भी 'कीमत' पर सफल हो ही जाता है। कीमत तो ऊँची होती है मगर बालक देश की सेवा के लिए तैयार हो जाता है। बस एक मास्टर इससे ज्यादा क्या कर सकता है। हमारे पास कौन-सा देश का खजाना है कि हम लूटेंगे। एक टुच्ची सी कोशिश है।'
एक जोरदार तालियाँ हो जाए हमारे गुरु जी के लिए। सचमुच, आपकी कोशिश लाजवाब है। मानना पड़ेगा कि आप अपने अत्यल्प संसाधनों से ही देश को लूटने का हर संभव प्रयत्न करते हैं। कहते हैं 'कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती' देखते हैं आप की हार होती है या जीत। हमारे जज क्या कहते हैं? मैं पूछना चाहता हूँ श्रीमान घपलानंद गोस्वामी जी से -
- 'माट साब की कोशिश को हम सलाम करते हैं। हम वाकिफ हैं इन तरीकों से आखिर हम पढ़-लिखकर ही यहाँ तक पहुँचे हैं। हम आज जो भी हैं अपने गुरुजनों के कारण ही हैं। हमारा उन सबको प्रणाम जो इन सभी तरीकों को आजमाते रहे हैं। विद्यालयों में आज भी ऐसे बोरिंग शिक्षक मौजूद हैं जो बालकों पर अनावश्यक रूप से पढ़ने-लिखने के लिए दबाव डालते हैं। शिक्षण को एक आंदोलन के रूप में लेते हैं। उनसे देश का नुकसान हो रहा है। बालक यदि सारी ऊर्जा महज दो चार क्लास पास करने में ही लगा देगा तो आगे चलकर देश के लिए क्या करेगा? उन्हें तो केवल परीक्षा में एपीयर होने के आधार पर ही पासिंग सर्टीफिकेट दे देना चाहिए। इस पर बुद्धिजीवियों का एक सम्मेलन हम बुलाने वाले हैं। मास्टरों की नाक में और नकेल लगनी चाहिए ताकि वे बच्चों को परेशान करना छोड़ें। इस मास्टर साहब के लिए मैं स्टैंड हो जाता हूँ। मेरी ओर से दस में दस।'
हमारे अगले प्रतिभागी हैं व्यापार जगत से जुड़े बड़े भाई बकरीवाला। आप हर चीज बेचते हैं। आटा-दाल से लेकर नकली ड्राइविंग लाइसेंस तक। हमारा मंच आपका जोरदार स्वागत करता है। आप अपने अनुभव बताएँ।
- 'मैं क्या बताऊँ। मेरी दुकान का नाम है 'सुविधा'। हर प्रकार की सुविधा हम अपने ग्राहकों को देते हैं और जीवन को असान बनाते हैं। हम 'जीओ और जीने दो' के सिद्धांत पर चलते हैं। चावल में कंकड़ और दाल में भूसी मिलाकर हम देख चुके हैं। इसमें अब पहले की तरह कमाई नहीं रही। रिटेलर के पास आढ़तिए ही मिलाकर भेजते हैं। मिलावट भी एक सीमा से आगे नहीं बढ़ सकती। हमने दामों के ऊपर नकली दाम की पर्ची चिपका कर भी देखा है। ग्राहक इतने जाग गए हैं कि परेशानी होने लगी है। हमने कम तौलने के कई तरीके अपनाए। तराजू में ही इतनी वैज्ञानिक विधियाँ हम फिट कर देते हैं कि सामने वाला देख नहीं पाता। हम इनाम और लॉटरी का तरीका भी अपनाते हैं। भाँति-भाँति के ऑफर देते हैं। फटी और पुरानी साड़ियों को इन्हीं ऑफर में निकाल देते हैं। नाना प्रकार के विज्ञापनों के माध्यम से हम ग्राहकों के दिमाग का दरवाजा बंद करते हैं। यदि एक विज्ञापन में हमने एक लाख खर्च भी कर दिए तो क्या? उससे पाँच लाख लोग बेवकूफ बन जाते हैं। चार लाख का फायदा, यदि एक रुपये का ही लाभ लें। मेरा दावा है कि कोई बेवकूफ होता नहीं बनाया जाता है, यदि संचार माध्यमों का उचित उपयोग किया जाए तो। एक ही ब्रांड हम छह महीने बाद आउट डेटेड घोषित कर देते हैं। ताकि फिर से एक बार उसी आदमी को मूर्ख बनाया जा सके जिसे पिछली बार बनाया गया था। हम मूली से लेकर मोबाइल तक बेचते हैं। चाहें तो ताड़ी से लेकर ताजमहल तक बेच दें। इन सब बातों का यह अर्थ यह नहीं कि हमारी देश भक्ति किसी से कमजोर है। हम स्थानीय थाने से लेकर केंद्र के नेताओं तक को उचित लाभ देते हैं। पार्टियों को चंदा देते हैं। नेता से लेकर अभिनेता तक की सेवा करते हैं। बस इतना ही और क्या कर सकते हैं? हम गरीब आदमी हैं। सौ दो सौ करोड़ का घोटाला करने की हमारी हैसियत नहीं है। धन्यवाद।'
एक जोरदार तालियाँ हो जाएँ हमारे महान बड़े भाई बकरीवाला के लिए। अब हम मंच पर आमंत्रित करते हैं मीडिया से जुड़े प्रतिभागी को जो सदैव जनता के लिए लड़ते हैं लेकिन 'लूट इंडिया लूट' में उनका भी एक मजबूत हिस्सा है। आइए, सुनते हैं उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी। स्वागत है आइए। हमारे अगले प्रतिभागी मंच पर आएँ इसके पूर्व नियमों के मुताबिक हम अपने जज श्री घपलेंदु जी से कॉमेंट चाहेंगे।
- 'पूँजीपति वर्ग के तो हम सदा से ही कायल हैं। हम उनके हैं और वे हमारे हैं। हम चंदन हैं, वे पानी हैं। उनके द्वारा प्रदत्त राशि ही रिटायरमेंट के बाद हमारे काम आती है नहीं तो सरकार हमारे पास छोड़ती ही क्या है। आयकर के नाम पर जो आए रहते हैं उसे ले जाती है। उन्होंने अपने ज्ञान का जो एक छोटा सा हिस्सा जनहित में जारी किया है। वह सराहनीय है। अब हम अगले प्रतिभागी को सुनें।'
- 'मैं 'सनसनी' चैनल का संवाददाता हूँ। हमारा काम है जनता को सदैव सनसनाए रखना और खुद को टीआरपी की खजूर पर चढ़ाना। जनता को सनसनाने के लिए कई बार तो हमें घटनाओं को जन्म तक देना पड़ता है। एक बार एक आदमी ने आत्मदाह की घोशणा की हम समय से पहले जाकर कैमरा वगैरह लगाकर लैस हो गए। सही समय पर वह आदमी आया। उसने हमारी आँखों के सामने अपने बदन पर घासलेट डाली। हाथ में माचिस ली और जलाई। हम एक-एक घटना को कैमरे में कैद कर रहे थे। उसने आग लगा ली और चिल्लाने लगा। हम लाइव टेलिकास्ट करने लगे। हम चाहते तो उसे आत्मदाह करने से रोक सकते थे। उसके हाथ से घासलेट लेकर उसे पुलिस के हवाले कर सकते थे लेकिन उससे न्यूज तो नहीं बनता न। हमारा भुगतान तो टीआरपी के आधार पर ही होता है। उस संवाददाता की बड़ी इज्जत होती है जो सबसे ज्यादा उत्तेजना पैदा करता है। यह तो परदे की बात हो गई। कई बार तो लक्ष्मी पर्दे के पीछे भी खूब मिलती है। कभी-कभी, किसी-किसी, भाग्यशाली संवाददाता को किसी नेता या उद्योगपति या दूसरे किसी बड़े आदमी का कोई राज मालूम हो जाता है। सबूत भी हाथ लग जाते हैं। हम आसानी से ब्लैकमेल करके माल बनाते हैं। ऐसा अक्सर नहीं होता। अक्सर हमें भूतनी, साँपनी, सूअरी, से लेकर बाबा भूतनाथ तक के समाचार प्रस्तुत करने होते हैं। जनता जब तक मुँह बाए हमारे समाचार को नहीं देखती तब तक हमें मजा ही नहीं आता। आपने सुना ही होगा कि सरेआम एक औरत के कपड़े उतारने का समाचार दिया गया था। बाद में पता नहीं कैसे यह बात सामने आ गई कि वह औरत और कपड़े उतारने वाले दोनों ही हमारे ही लोग थे। क्या करें करना पड़ता है। इतनी कड़ी प्रतियोगिता है कि आदमी को टीआरपी बढ़ाने के लिए सारे हथकंडे अपनाने पड़ते हैं। चैनल को उसी के मुताबिक विज्ञापन मिलते हैं। अब इससे ज्यादा हम क्या योगदान दे सकते हैं? हम राष्ट्रीय स्तर का घोटाला तो कर नहीं सकते। आशा है जजेज हमारी मजबूरी समझेंगे। धन्यवाद, जयहिंद।'
दर्शकों, जोरदार तालियाँ हो जाएँ हमारे संवाददाता प्रतिभागी के लिए। आखिर जनता के लिए ही इतनी जोखिम उठाते हैं। अब एक कमेंट हो जाए श्री घपलेश्वर जी का आखिर मीडिया और राजनीति का चोली दामन का साथ है।
- 'हाँ चोली दामन वाली बात आपने ठीक कही। मीडिया हमारी ताकत है। जनता की आँख है। इनकी एक खासियत और है जो शायद संकोचवश इन्होंने नहीं कहा। ये लोग सरकार सापेक्ष होते हैं। जिस दल की सरकार होती है उसी के अनुरूप ढल जाते हैं। नहीं तो केवल सनसनी पैदा करने के लिए तिल को खींच कर ताड़ बना देंगे। रस्सी को साँप सिद्ध करने में जितनी महारत इन्हें हासिल है उतनी किसी भी वर्ग को नहीं। सोने में सुगंध यह कि इनकी दुनिया में सभी पढ़े-लिखे ही होते है मगर लूटने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। हम इन्हें सलाम करते हैं।'
आइए, हम जोरदार तालियों से स्वागत करें अपने अगले प्रतिभागी का जो एक 'बाबा' हैं। प्रवचन वगैरह करके समाज को उत्थान के मार्ग पर लिए जा रहे हैं। मैं तो समझता हूँ कि आजतक यदि प्रलय नहीं हुआ तो इन बाबाओं के कारण ही। कौन भगवान चाहेगा कि इतनी संपत्ति एक बार में बरबाद हो जाए। आइए, बाबा आपका स्वागत हैं। 'लूट इंडिया लूट' में अपने योगदान का बखान करें।
- 'बच्चो!'
बाबा, यहाँ बच्चा कोई नहीं है।
- 'हमारे लिए तो सभी बच्चे हैं। केवल हमीं सयाने हैं। तो बच्चो! यह संसार पाप का घर है। इसे स्वच्छ करने में हमारी भूमिका तो ईश्वर ने उसी दिन तय कर दी जिस दिन हमने संन्यास ग्रहण किया। क्यों किया? यह कहने का यह मंच नहीं है। नाना प्रकार के पापों और पपियों से समाज को बचाने के लिए हम प्रवचन करते हैं। उसे सुनकर लोग खूब लाभ उठाते हैं। थोड़ा सा लाभ हम भी उठा लेते हैं। आप देख ही रहे हैं, हमारे बदन पर यह रेशमी कुर्ता और हजार रुपये की धोती। यह अंगरखा हमने खास तौर पर दुबई से मंगाया है। मनुष्य के शरीर में आत्मा रूपी भगवान रहते हैं इसलिए इसे सजाना पड़ता है। हम छप्पन भोग जरूर खाते हैं लेकिन अपने लिए नहीं, उसी भगवान के लिए जो शरीर में निवास कर रहे हैं। हम मखमली गद्दे पर जरूर सोते हैं लेकिन उसी गॉड के लिए। आदरणीय न्यायधीश मंडली से आग्रह है कि हमारी तकनीक पर ध्यान दें। हम ऐश करते हैं तो सिर्फ इसलिए कि आत्मा रूपी परमात्मा खुश रहें। हमारे दर्शनों के लिए पाँच हजार रुपये दानपेटी में डालने पड़ते हैं। मंदिर जो हमेशा निर्माणाधीन ही रहते हैं, के लिए दान स्वरूप एक दो हजार रुपये डालना तो आम बात है। हमारे प्रभु सोने के सिंहासन पर विराजते हैं। सोने के मुकुट पहनते हैं। चाँदी का चँवर डोलाना पड़ता है। यही कारण है कि हमारे भक्त हमें सोने, चाँदी की भेंट दिया करते हैं। हम अपने भक्तों को निराश नहीं करते। उन्हें हर वह खुशी देते हैं जो इस भौतिक शरीर को चाहिए। हम उन्हें परमशांति और आनंद देते हैं। हम दो भक्तों का संगम भी करा देते हैं ताकि वे परम आनंद को प्राप्त कर सकें। हमारा तो एक ही उद्येश्य है - सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया। हरिओम तत्सत् हरिओम तत्सत्। जय हो समाज और संसार की।'
जय हो बाबा जय हो। आप महान ही नहीं अद्भुत भी हैं। मैं प्रार्थना करता हूँ, अपने जज श्री घपलेश्वर नौनिहाल से कि बाबा के परफार्मेंस पर दो शब्द कहें -
- 'हम तो बाबा के चेले हैं। इसी बाबा के नहीं जितने भी बाबा और बापू हो रहे हैं, हम सबके चेले हैं। ज्ञान की जो गंगा इन लोगों ने बहाई है। उसमें पता नहीं कितने गाँव और शहर बह गए। इनकी तकनीक अनोखी है। एक हजार लोगों को एक ही टोटका बताते हैं। उसमें से दस पर भी यदि लग गया तो अगली बार उसे मीडिया के सामने कर देंगे। कभी-कभी तो इनके भक्त प्रायोजित भी होते हैं। वे मीडिया के सामने कहते हैं कि कैंसर ठीक हो गया। डायबिटिज ठीक हो गया। सुनने वाले अगली बार मिलने आ जाएँगे। यह जो मैनेजमेंट का कमाल है वह अनुकरणीय है। इनको आयकर नहीं देना पड़ता। जितने प्रकार के सुख भगवान ने बनाए हैं सब इन लोगों के लिए ही हैं। जनता भी जान देती है। मजे तो हम भी करते हैं लेकिन हमारी छवि खराब हो जाती है। इनकी सदा जय हो। अब तो बाबा लोग राजनीति में भी आ रहे हैं। खुद के पास करोड़ों की संपत्ति है लेकिन कालाधन के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। जय हो प्रभु। जय हो।'
हमारे आखिरी प्रतिभागी हैं एक एनजीओ के डायरेक्टर जो आज लाखों से खेल रहे हैं जबकि कल तक उनके पास मात्र एक साइकिल थी और वह भी पुरानी। आखिर उन्होंने समाज की सेवा करके कैसे इतना माल बना लिया। उन्हीं से सुनते हैं। 'लूट इंडिया लूट' के इस आखिरी प्रतिभागी के लिए जोरदार तालियाँ।
- 'मैं एनजीओ चलाता हूँ। दस साल पहले हमने एक एनजीओ बनाई - 'सेवक'। समाज सेवा के लिए नहीं दरअसल मेरा नाम ही सेवक है। सेवक राम। तो साहब, सेवा का भी एक भी मौका हम छोड़ते नहीं है। चाहे वह बाढ़ के समय हो या सूखे के समय। आग लगे या भूकंप आए। हम तत्पर रहते हैं सेवा के लिए। हमारे साँठ-गाँठ काफी ऊपर तक हैं। राहत बाँटने का ठेका हमें ही मिलता है। राहत हम बाँटते भी हैं। नीचे से लेकर ऊपर तक सभी को राहत पहुँचाते हैं। लगे हाथ आम आदमी को भी राहत मिल जाती है। फटे-पुराने कंबल और रजाइयाँ हम नियमित रूप से राहत शिविरों में देते है। यह बात अलग है कि जितनी एंपोर्टेड सामग्री है वह बड़े लोगों की सेवा में जाती है। आखिर उन्हीं की कृपा से हमें चेक मिलते हैं। यह एक सिस्टम हैं, सबको सबका ख्याल रखना पड़ता है। तो जनाब भारत में न तो बाढ़ की कमी है न सूखे की। सरकार तो जनहित के लिए सदैव तत्पर रहती ही है। हमने इन हालातों में यदि दो पैसे जोड़ लिए तो कौन सी बड़ी कला हो गई? हम जितना दस साल में जोड़ पाए उतना तो जज साहब एक साल में जोड़ लेते हैं। उन्हें मौका अधिक मिलता है। वरना, कला और कौशल में हम उनसे कम नहीं है।'
खैर, आप जजों पर कॉमेंट नहीं कर सकते। यह नियमों के विपरीत है। हम जानते है कि हमारे माननीय जज आपके बारे में क्या राय रखते हैं। हम टिप्पणी लेते हैं श्रीमान घपलेश्वर जी से। आप राजनीति से जुड़े हैं। नाना प्रकार के घोटालों के जनक भी हैं और निर्णायक भी। तो घपलेश्वर जी...।
- 'यह गर्व की बात है कि आपके इस कार्यक्रम में समाज के सभी क्षेत्रों से जुड़े लोग आए सबने अपनी कला और कौशल का बखान किया। जहाँ तक बात है डायरेक्टर साहब का तो हम इनकी कला और समर्पण के कायल हैं। एनजीओ खोलते ही घपलों के चांस नहीं मिलने लगते। उसके लिए निरंतर प्रयास करना पड़ता है। अर्जुन की तरह केवल जो अपने लक्ष्य अर्थात धन पर ही निगाह लगाकर रखेगा उसे ही कालांतर में इस प्रकार के चांस मिलते हैं। हो सकता है कि एकलव्य की तरह कोई आपको गुरु न मिले और यदि मिले भी तो आपका ही अँगूठा काटने के लिए तैयार मिले। आपको अपने प्रयासों से ही घोटालों के स्वर्ग तक सदेह पहुँचना पड़ता है। हम डायरेक्टर साहब की इज्जत करते हैं और आग्रह करते हैं कि हमसे एकांत में मिलें।'
दर्शकों, शो का समय समाप्त हो रहा है। आपको हम अगले सप्ताह के एपीसोड में बताएँगे कि कौन है 'लूट इंडिया लूट' का विजेता। आखिर हमें भी तो ये रियल्टिी शो चलानी है जिनमें रियल्टिी नाम की चीज कुछ होती नहीं है। लिखे हुए स्क्रीप्ट पर सारे नाटक होते है। चाहे वह दो जजों के बीच की लड़ाई हो या अचानक किसी हस्ती का पहुँचना। किसी प्रतिभागी के माँ-बाप को लाना या उनके पसंदीदा कलाकार को सेट तक लाना। यह पहले से ही तय होता है ताकि अधिक से अधिक विज्ञापन मिल सकें। सारा खेल विज्ञापनों का ही है। सारा देश विज्ञापनों पर ही चल रहा है। सरकार अपने पक्ष में विज्ञापन दे रही है। विपक्ष उसके खिलाफ विज्ञापन दे रहा है। समाज सेवा का डंका पीटने वाले अपने पक्ष में विज्ञापन दे रहे हैं। जो जितना बड़ा प्रबंधक होगा, वह उतना अधिक चमकेगा। आप चाहें तो हमारे इस प्रोग्राम में हिस्सा ले सकते है। ले सकते क्या हैं? लेते ही हैं। हर आदमी इस प्रोग्राम का प्रतिभागी है। चाहे वह थोड़ा लूटता हो या ज्यादा। बेशक आपकी प्रसिद्धि नहीं हुई। खैर, आप चाहें तो हमारे प्रतिभागियों के लिए मैसेज कर सकते हैं। हमारी लाइन हमेशा खुली ही रहती है।