Thursday 27 November 2014

मेरे पास, उनके पास / जयप्रकाश त्रिपाठी

('जग के सब दुखियारे रस्ते मेरे हैं' संकलन से)

जो है, क्या-क्या है,
जो नहीं है, क्या नहीं है,
मेरे पास, उनके पास...।

सब चेहरे, सब खुशियां, सब सुबहें उनके वश में,
उजियारे, रंग सारे, उनके मन में, उनके रस में,
जो वहां है, सब नया है,
जो भी है, सब वहीं है,
उनके पास, उनके पास...।

सब कर्ज-कर्ज किस्से, सब दर्द-दर्द लम्हे,
जले सर्द-सर्द चेहरे, जो बुझे-से, मेरे हिस्से,
मेरे नाम सब उधारी,
कई खाते हैं, बही है,
मेरे पास, मेरे पास...।

सुख कितना, और कितना, जो लूटे नहीं जाते,
दुख कितना, और कितना, हमको बहुत सताते,
जो है, बड़ा-बड़ा है,
जो गलत है, जो सही है,
मेरे पास, उनके पास...।
जो है, क्या-क्या है, जो नहीं है, क्या नहीं है,
मेरे पास, उनके पास...।

कमेटी ऑफ कंसर्डं जर्नलिस्ट’ के 9 कमेंट्स

अमेरिका के हावर्ड फैकल्टी क्लब में 1977 में गठित लेखकों और पत्रकारों की ‘कमेटी ऑफ कंसर्डं जर्नलिस्ट’ के पत्रकारिता पर 9 कमेंट्स....... 
1. सत्य को सामने लाना पत्रकार का दायित्व है। 
2. पत्रकार को सबसे पहले जनता के प्रति निष्ठावान होना चाहिए। 
3. खबर तैयार करने के लिए मिलने वाली सूचनाओं की पुष्टि में अनुशासन को बनाए रखना पत्रकारिता का एक अहम तत्व है। 
4. पत्रकारिता करने वालों को वैसे लोगों के प्रभाव से खुद को स्वतंत्र रखना चाहिए, जिन्हें वे कवर करते हों। 
5. पत्रकारिता को सत्ता की स्वतंत्र निगरानी करने वाली व्यवस्था के तौर पर काम करना चाहिए।
6. पत्रकारिता को जन आलोचना के लिए एक मंच मुहैया कराना चाहिए। इसकी व्याख्या इस तरह से की जा सकती है कि जिस मसले पर जनता के बीच प्रतिक्रया स्वभाविक तौर पर उत्पन्न हो, उसके अभिव्यक्ति का जरिया पत्रकारिता को बनना चाहिए।
7. पत्रकार को इस दिशा में प्रयत्नशील रहना चाहिए कि खबर को सार्थक, रोचक और प्रासंगिक बनाया जा सके।
8. समाचार को विस्तृत और आनुपातिक होना चाहिए।
9. पत्रकारों को अपना विवेक इस्तेमाल करने की आजादी हर हाल में होनी ही चाहिए।

स्त्री : पांच / चन्द्रकान्त देवताले

जिनने तस्वीरें खींचीं, घायल हुए
तस्वीरों में देखो कैसे मुस्करा रहे हैं प्रमुदित
कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं
भरोसा करना मुश्किल है इन तस्वीरों पर
द्रौपदी के चीर-हरण की तस्वीर फिर भी बरदाश्त कर सका था मैं
क्योंकि दूसरी दिशा से लगातार बरस रही थी हया
पर ये तस्वीरें, सब कुछ ही तो नंगा हो रहा है इनमें
छिपाओ इस बहशीपन को
बच्चों और गर्भवती स्त्रियों की नज़रों से
रोको इनका निर्यात, ढक दो इन तस्वीरों को बची खुची हया से ।

स्त्री : चार / बोधिसत्व

दीदी बनारस में रहती है, पहले किसी पिंजरे में रहती थी,
उसके पहले किसी घोंसले में, रहती थी
उड़ती थी ख़ूब ऊपर और दूर-दूर ।
उसके भी पहले छिपी थी धरती में ।
उसे किस बात का दुख है
एक बेटी है, एक बेटा, पति कितना चहकता हुआ
घर कितना भरा हुआ, खिला हुआ, उसे कमी क्या है ?
घर में रहकर ही पढ़ लिया
पहले बी.ए., फिर एम. ए. फिर पी.एच.डी. । और क्या चाहिए ।
एक स्त्री को दुनिया में और क्या चाहिए ।
जो चाहती है, खाती है, मनचाहा पहनती है,
किसी को देती है क़िताबें, किसी को पैसे, किसी को कपड़े
किसी को शाप, किसी को आशीष
इतना सब होते हुए उसे किस बात का है दुख
क्यों हरदम मगन रहने वाली दीदी का
उतरा रहता है मुँह ।

स्त्री : तीन / विचिस्लाव कुप्रियानफ़


पुरूष का हाथ स्त्री और बच्चे की हथेलियाँ थाम
उठता है पक्ष में या विरोध में और विरोध में ठहरकर
निर्माण करता है, क़िताबों के पन्ने पलटता है
सहारा देता है स्वप्नरहित सिर को
फिर ढूंढता है दूसरी हथेली, सम्बन्ध के लिए ।

स्त्री : दो / मनमोहन



किसी और शहर में एक रोज़ रात ढाई बजे
माँ ने एक अजनबी स्त्री के वेश में आकर
गंजे होते अपने अधेड़ बेटे को सपने में जगाया
’भूखी हूँ’, यह पूरे तीस बरस बाद बताया।

स्त्री : एक / मंगलेश डबराल

एक स्त्री के कारण तुम्हें मिल गया एक कोना
तुम्हारा भी हुआ इंतज़ार
एक स्त्री के कारण तुम्हें दिखा आकाश
और उसमें उड़ता चिड़ियों का संसार
एक स्त्री के कारण तुम बार-बार चकित हुए
तुम्हारी देह नहीं गई बेकार
एक स्त्री के कारण तुम्हारा रास्ता अंधेरे में नहीं कटा
रोशनी दिखी इधर-उधर
एक स्त्री के कारण एक स्त्री
बची रही तुम्हारे भीतर ।