Monday 24 October 2016

सत्ता संघर्ष और मुलायम सिंह की प्रेम कहानी : एक मीडिया रिपोर्ट

इस घरेलू जंग की जड़ें कहीं और हैं, जिससे मुलायम और अखिलेश के बीच दरार पड़ी है। अमर सिंह और शिवपाल गुप्त परिवार के रास्ते गुप्त सुरंग अर्से से बिछा रहे थे। मुलायम अपनी इच्छा से यह सब नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनसे यह सब करवाया जा रहा है। मुलायम जैसी शख़्सियत से यह सब कराने की क्षमता किसके पास है। यह भी समझने की बात है। एक जमाने में जब जब मुलायम उत्तर प्रदेश की शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे थे तो उनके जीवन में अचानक उनकी दूसरी पत्नी साधना गुप्ता की एंट्री हुई। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक मुलायम सिंह और साधना गुप्ता की प्रेम कहानी कब शुरू हुई इस बारे में अधिकृत ब्यौरा किसी के पास नहीं है। कहा जाता है कि 1982 में जब मुलायम लोकदल के अध्यक्ष बने तब एक दिन उनकी नज़र अचानक पार्टी की गई युवा पदाधिकारी साधना पर पड़ी। तरुणी साधना बला की ख़ूबसूरत थीं, इतनी ख़ूबसूरत कि जो भी उन्हें देखता, सुध-बुध खोकर बस उन्हें देखता ही रह जाता था। मुलायम भी अपवाद नहीं थे। पहली मुलाक़ात में वह उम्र में 20 साल छोटी अद्भुत फिज़िकल फीचर वाली साधना गुप्ता को दिल दे बैठे। खास बात यह थी कि मुलायम की तरह खुद साधना भी शादीशुदा थी और उनकी शादी फर्रुखाबाद जिले के छोटे से व्‍यापारी चुंद्रप्रकाश गुप्‍ता से हुई थी। बाद में वह उनसे अलग हो गई और उसके बाद यहीं से मुलायम-साधना की अनोखी प्रेम कहानी शुरू हुई, जो तीस-बत्तीस साल बाद अंततः देश के सबसे ताक़तवर राजनीतिक परिवार में विभाजन की वजह बन रही है। अस्सी के दशक में साधना गुप्ता और मुलायम सिंह के बीच क्या चल रहा है, इसकी भनक लंबे समय तक किसी को नहीं लगी। इसी दौरान 1988 में साधना ने एक पुत्र प्रतीक गुप्ता (अब प्रतीक यादव) को जन्म दिया। कहते हैं कि साधना गुप्ता के साथ प्रेम संबंध की भनक मुलायम की पहली पत्नी और अखिलेश की मां मालती देवी को लग गई। वह बहुत ही आकर्षक और दान-धर्म में यक़ीन करने वाली महिला थीं। यहां यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मुलायम का पूरा परिवार अगर एकजुट बना रहा है, तो इसका सारा श्रेय मालती देवी को ही जाता है। मुलायम राजनीति में सक्रिय थे। उस दौरान वे एक दूसरे को शायद ही कभी-भार देख पाते थे, लेकिन मालती देवी अपने परिवार और 1973 में जन्मे बेटे अखिलेश यादव का पूरा ख़्याल रख रही थीं। नब्बे के दशक (दिसंबर 1989) में जब मुलायम मुख्यमंत्री बने तो धीरे-धीरे बात फैलने लगी कि उनकी दो पत्नियां हैं, लेकिन वह इतने ताक़तवर नेता थे कि किसी की मुंह खोलने की हिम्मत ही नहीं पड़ती थी। बहरहाल, नब्बे के दशक के अंतिम दौर में अखिलेश को साधना गुप्ता और प्रतीक गुप्ता के बारे में पता चला। उन्हें यकीन नहीं हुआ, लेकिन बात सच थी। उस समय मुलायम साधना गुप्ता की कमोबेश हर बात मानने लगे थे, इसीलिए मुलायम के शासन (1993-2007) में साधना गुप्ता ने अकूत संपत्ति बनाई। आय से अधिक संपत्ति का उनका केस आयकर विभाग के पास लंबित है।

बहरहाल, 2003 में अखिलेश की मां मालती देवी की बीमारी से निधन हो गया और मुलायम का सारा ध्यान साधना गुप्ता पर आ गया। हालांकि वह इस रिश्ते को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं थे।
मुलायम और साधना के संबंध की जानकारी मुलायम परिवार के अलावा अमर सिंह को थी। मालती देवी के निधन के बाद साधना चाहने लगी कि मुलायम उन्हें अपना आधिकारिक पत्नी मान लें, लेकिन पारिवारिक दबाव, ख़ासकर अखिलेश यादव के चलते मुलायम इस रिश्ते को कोई नाम नहीं देना चहते थे।
इस बीच साधना 2006 में गुप्ता अमर सिंह से मिलने लगीं और उनसे आग्रह करने लगीं कि वह नेताजी को मनाए। लिहाज़ा, अमर सिंह नेताजी को साधना गुप्ता और प्रतीक गुप्ता को अपनाने के लिए मनाने लगे। 2007 में अमर सिंह ने सार्वजनिक मंच से मुलायम से साधना को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने का आग्रह किया और इस बार मुलायम उनकी बात मानने के लिए तैयार हो गए। जो भी हो, अमर सिंह के बयान से मुलायम परिवार में फिर खलबली मच गई। लोग साधना को अपनाने के लिए तैयार ही नहीं थे। इधर, अखिलेश के विरोध को नज़रअंदाज़ करते हुए मुलायम ने अपने ख़िलाफ़ चल रहे आय से अधिक संपत्ति से संबंधित मुक़दमे में सुप्रीम कोर्ट में एक शपथपत्र दिया, जिसमें उन्होंने साधना गुप्ता को पत्नी और प्रतीक के रूप में स्वीकार कर लिया। उसके बाद साधना गुप्ता, साधना यादव और प्रतीक गुप्ता प्रतीक यादव हो गए। अखिलेश ने साधना गुप्ता के अपने परिवार में एंट्री के लिए अमर सिंह को ज़िम्मेदार माना। तब से वह अमर सिंह से चिढ़ने लगे थे। वह मानते हैं कि साधना गुप्ता और अमर सिंह के चलते उनके पिताजी उनकी मां के साथ न्याय नहीं किया।
बहरहाल, मार्च सन् 2012 में मुख्यमंत्री बनने पर अखिलेश यादव शुरू में साधना गुप्ता को कतई घास नहीं डालते थे। इससे मुलायम नाराज़ हो गए और अखिलेश को झुकना पड़ा। इस तरह साधना गुप्ता ने मुलायम के ज़रिए मुख्यमंत्री पर शिकंजा कस दिया और अपने चहेते अफ़सरों को मन पसंद पोस्टिंग दिलाने लगीं। ‘द संडे गार्डियन’ ने सितंबर 2012 में साधना गुप्ता की सिफारिश पर मलाईदार पोस्टिंग पाने वाले अधिकारियों की पूरी फेहरिस्त छाप दी, तब साधना गुप्ता पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आईं। अब यह साफ़ हो गया है कि मुलायम की विरासत को लेकर चल रहे मौजूदा संघर्ष में अखिलेश की लड़ाई सीधे लीड्स यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाले अपने सौतेले भाई प्रतीक यादव से है। लखनऊ में रियल इस्टेट के बेताज बादशाह बन चुके प्रतीक को अपनी माता साधना गुप्ता का समर्थन मिल रहा है। चूंकि साधना नेताजी के साथ रहती हैं और उनकी बात मुलायम टाल ही नहीं सकते। यानी कह सकते हैं कि बाहरवाली से घरवाली बनी साधना गुप्ता की बात टालना फ़िलहाल मुलायम सिंह के वश में नहीं है।
लखनऊ के गलियारे में साधना गुप्ता को कैकेयी कहा जा रहा है। आमतौर पर परदे के पीछे रहने वाली साधना अखिलेश से तब से बहुत ज़्यादा नाराज़ चल रही हैं, जब अखिलेश ने उनके आदमी गायत्री प्रजापति को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। दरअसल, प्रतीक के बहुत ख़ासमख़ास गायत्री प्रजापति को मुलायम के कहने पर खनन जैसा मलाईदार महकमा दिया गया था। यह विभाग हुक्मरानों को हर महीने दो सौ करोड़ की अवैध उगाही करवाता है।
इधर, जब इसकी भनक अखिलेश को लगी तो वह प्रतीक के रसूख और कमाई के स्रोतों पर हथौड़ा चलाने लगे। यह बात साधना को बहुत बुरी लगी। नाराज़ साधना गुप्ता को मनाने के लिए ही मुलायम ने पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी अखिलेश से छीनकर साधना खेमे के शिवपाल यादव को दे दी। अब उसी के चलते अब बाप-बेटे यानी अखिलेश और मुलायम आमने-सामने आ गए हैं। इटावा जिले के सैफई में 22 नवंबर, 1939 को स्व. सुधर सिंह यादव और स्व. मूर्ति देवी के यहां जन्मे और पांच भाइयों में तीसरे नंबर के मुलायम सिंह यादव तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उत्तर प्रदेश के लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने कुछ किया तो केवल और केवल अपने परिवार के लिए किया। परिवार को उन्होंने राजनीतिक और आर्थिक रूप से इतना ताक़तवर बना दिया है कि आने वाले साल में उनके कुटुंब के सैकड़ों लोग सांसद या विधायक होंगे।
फ़िलहाल मुलायम समेत उनके परिवार में छह सांसद और तीन विधायक समेत 21 लोग महत्वपूर्ण पदों पर क़ाबिज़ हैं। भारतीय राजनीति में वंशवाद की तोहमत कांग्रेस पर लगती है, लेकिन यूपी में मुलायम परिवार ने कांग्रेस को मीलों पीछे छोड़ दिया है।
बहरहाल, इस मुद्दे पर मुलायम सिंह को समर्थन नहीं मिलने वाला, क्योंकि उन्होंने मुलसमानों को ख़ुश करने और अपने परिवार के ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को राजनीति में प्रमोट करने के अलावा कुछ नहीं किया। समाजवादी पार्टी के संस्थापक भी वह भले हों, लेकिन इस पार्टी का भविष्य अखिलेश यादव ही हैं।
यकीनन, 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को जो जनादेश मिला था, वह मायावती की स्टैट्यू पॉलिटिक्स के नाराज़गी और अखिलेश की ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं में जान फूंकने से हुई। राजनीतिक टीकाकार मानते हैं कि मुलायम सिंह के लिए बेतहर होगा कि वह अखिलेश खेमे में रहे, क्योंकि शिवपाल-साधना की इमैज राज्य में अच्छे नेता की नहीं है। आम धारणा भी यही है, कि लूट-खसोट करने के आदी हो चुके शिवपाल-साधना के नैक्सस ने अखिलेश को स्वतंत्र रूप से काम ही नहीं करने दिया।

यश भारती सम्मान के लिए नाम घोषित

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से यश भारती सम्मान के लिए नाम घोषित कर दिए गए हैं। साहित्यिक क्षेत्र में बशीर बद्र, महेश्वर तिवारी, सर्वेश अस्थाना, ओमा दिपक, मणेंद्र कुमार मिश्र, राजकृष्ण मिश्र, गीतकार मनोज मुंतसिर, स्वरुप कुमार बख्शी, संतोष आनंद को 11 लाख रुपए पुरस्कार एवं आजीवन 50 हजार रुपए पेंशन से नवाजा जाएगा। पत्रकारिता के लिए योगेश मिश्रा और अशोक निगम को यश भारती से सम्मानित किया जाएगा।