Tuesday 23 September 2014

मंगल की कक्षा में बैठा मंगलयान

ऐतिहासिक सफलता.. भारत ने रचा इतिहास..इंसान की जय, विज्ञान की जय, मंगल यान की जय...पूरे विश्व में सनसनी.. इसरो ने आज सुबह 7 बजकर 17 मिनट पर भारत के मंगलयान का तरल इंजन शुरू कर दिया था...यान के इंजन का स्टार्ट सफल ..लिक्विड इंजन बंद, पहला सिग्नल मिला,,,पीएम नरेंद्र मोदी भी वैज्ञानिकों के बीच...समूचा राष्ट्र गैरवान्वित....इंजन चौबीस मिनट तक ठीक से चला, एक मिनट का सिग्नल मिला...

अपसंस्कृति फैला रहीं नंग-धड़ंग नायिकाएं / निर्मलेंदु

बॉलिवुड ऐक्ट्रेस दीपिका पादुकोण और टाइम्स ऑफ इंडिया वेबसाइट के ‘क्लीवेज शो’मामले में अखबार ने जिस तरह दीपिका का पाखंड को उजागर किया, उसमें गलत क्या है?  भारत जैसे संस्कृति प्रधान देश में बॉलिवुड ऐक्ट्रेसेज जिस तरह अपसंस्कृति फैला रही हैं, क्या वह जायज है? वह महिलाओं के सम्मान की बात करती हैं! महिलाओं पर जुर्म होता है, तो क्या आप विरोध करती हैं? पहले आपको खुद उन भूमिकाओं से बचना चाहिए, जिनमें देह प्रदर्शन होता है। अगर आप खुद अपने शरीर का प्रदर्शन करेंगी, तो लोग तो ऊंगली उठाएंगे ही। बचपन से ही भारतीय परिवारों की लड़कियों को यह हिदायत दी जाती है कि वे कोई ऐसा गलत काम न करें, जिससे कोई ऊंगली उठाए। सच तो यह है कि फिल्म इंडस्ट्री में ग्लैमर के नाम पर और ग्लैमर की दुहाई देकर, जिस तरह से देह प्रदर्शन किया जाता है, क्या दीपिका जी, वह सब जायज है?
इन सभी बातों को गहराई से समझने के लिए पूर्व में दीपिका की ही ओर से फेसबुक पर लिखे उनके एक संदेश पर गौर करें, जिसमें खुद उन्होंने कहा था, ‘मुझे अच्छी तरह से अपने काम के बारे में पता है। मेरा काम बहुत डिमांडिंग है, जो मुझसे बहुत कुछ करवाना चाहता है। किसी रोल की मांग हो सकती है कि मैं सिर से पैर तक ढकी रहूं या पूरी तरह नग्न हो जाऊं। तब एक ऐक्टर के तौर पर यह मेरा निर्णय होगा कि मैं यह करना चाहती हूं या नहीं। यह फर्क समझना होगा कि रोल और रियल में अंतर होता है और मेरा काम मुझे दिए गए रोल को जोरदार तरीके से निभाना है।’
दीपिका जी, अगर आपकी बात को सही मान भी लिया जाए, तो जब आप इसे बेबाकी से स्वीकार करती हैं कि फिल्म के डिमांड पर आप ऐसा कोई भी उल-जुलूल निर्णय ले सकती हैं, तो फिर टाइम्स ऑफ इंडिया वेबसाइट की इस मामूली से वीडियो पर आप आखिर इतना बतंगड़ क्यों बना रही हैं? वैसे, देखा जाए, तो वेबसाइट का तर्क भी काफी हद तक जायज है कि तमाम मैग्जीन और अन्य मौके पर जब दीपिका अपने शरीर का प्रदर्शन करते नहीं हिचकतीं, स्टेज पर डांस करते हुए, किसी मैगजीन के लिए पोज देते वक्त और फिल्मों के प्रोमोशनल फंक्शन में ग्लैमर के नाम पर तस्वीर खिंचवाते वक्त जब‘क्लीवेज शो’ होता है, तो फिर उन्हें गुस्सा क्यों नहीं आता? मैं पूछना चाहता हूं दीपिका जी से, तब आप कौन सा रोल प्ले कर रही होती हैं?
हालांकि दीपिका और वेबसाइट के इस घमासान के बीच हकीकत को सोनम कपूर ने काफी बारीकी से समझा। तभी तो उन्होंने लगे हाथ दीपिका को नसीहत देते हुए कहा कि ‘जिस दिन महिलाएं खुद को एक कमोडिटी (वस्तु) की तरह पेश करना बंद कर देंगी, उसी दिन से लोग भी महिलाओं के प्रति अपना नजरिया बदल लेंगे।’सोनम कपूर की यह बात कहीं न कहीं, भारतीय संस्कृति, भारतीय सभ्यता और यहां के रहन-सहन को इंगित करती है, जिसे दीपिका को समझना होगा।
दरअसल, जब संस्कार की बात आती है, तो हमें खुद अपने आप पर नियंत्रण रखना पड़ेगा। हम जब खुद सही रास्ते पर चलेंगे, तो हम दूसरों की कमियों पर प्रहार कर पाएंगे। लेकिन यदि हम खुद गलत होंगे, तो फिर हमें दूसरों पर उंगली उठाने का कोई अधिकार ही नहीं है। हमें याद रखना होगा कि ईमानदारी से किया गया कार्य, हमें प्रगति की ओर ले जाता है। एक बात हमें याद रखनी होगी कि यदि दुनिया में ईमानदारी छा जाए, तो अनेकों अनेक समस्याओं को जन्मने का मौका ही नहीं मिलेगा। याद रहे कि अर्थ का अर्जन शुद्ध साधन से किया जाय व उसका सदुपयोग किया जाए, तो वह अर्थ सार्थक है, वरना वह अनर्थ है। अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि आप दूसरों की बुराइयों को देखते हो, जरा आंख मूंद यह भी खोजो आपमें कितनी बुराइयां हैं?

अंग्रेजी के पत्रकारों को भरपूर सहुलियतों के साथ काम करने की आदत

‘साहित्य के साथ-साथ पत्रकारिता के माध्यम से भी हिंदी का प्रचार प्रसार हुआ है। हिंदी साहित्य हिंदी भाषा के विकास की जड़ है। भूमंडलीकरण का जितना लाभ हिंदी को हुआ है, उतना शायद भारतीय उपमहाद्वीप की किसी अन्य भाषा को नहीं हुआ है। हिंदी के अखबार, हिंदी फिल्मों की सफलता और हिंदी के टीवी सीरियल की लोकप्रियता इसके उदाहरण हैं।’ ये बात वरिष्ठ पत्रकार अभय कुमार दुबे ने 'हिंदी का प्राइम टाइम' विषय नामक एक परिचर्चा में कही।
'हिंदी का प्राइम टाइम' नाम की इस परिचर्चा का आयोजन वाणी प्रकाशन, ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर और इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल ने साथ मिलकर 19 सितंबर को किया था। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में पत्रकारिता के महारथी प्रो. सुधीश पचौरी, अभय कुमार दुबे और प्रियंका दुबे शामिल हुईं।
कार्यक्रम के दौरान रामनाथ गोयनका सम्मान से सम्मानित युवा पत्रकार प्रियंका दुबे ने कहा कि हिंदी का पत्रकार हर परिस्थिति में कार्य करने की क्षमता रखता है, लेकिन
अंग्रेजी के पत्रकार को भरपूर सहुलियतों के साथ काम करने की आदत होती है। हिंदी का पत्रकार मल्टी टास्किंग कर सकता है। अंग्रेजी के पत्रकार के लिए अ्पने कार्य को ही पूरा करना बड़ी बात होती है। उन्होंने आगे कहा कि हिंदी के संपादक जल्दी ही वरिष्ठ हो जाते हैं, जबकि अंग्रेजी के संपादक लंबे समय तक कार्य करते हैं और टीम को प्रोत्साहित करते हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी पत्रकारिता से ज्यादा अंग्रेजी पत्रकारिता में आमदनी है।
कार्यक्रम के दौरान प्रियंका दुबे की इस बात पर प्रो. सुधीर पचौरी व अभय कुमार दुबे ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हम से कई लोग अंग्रेजी के क्षेत्र में अपना करियर आसानी से बना लेते हैं, लेकिन जिस तेज गति से हिंदी भाषा का विस्तार हो रहा है उसे देखकर यही लगता है आने वाले वर्षों में हिंदी अपने चरम पर होगी।
कार्यक्रम का संचालन युवा लेखक प्रभात रंजन ने किया। कार्यक्रम में हिंदी साहित्य, पत्रकारिता के पहलुओं और इनके माध्यम से विश्व को जोड़ने की कोशिश पर बातचीत हुई। कार्यक्रम के दौरान वाणी प्रकाशन की निदेशक (कॉपीराइट एवं अनुवाद विभाग) अदिति माहेश्वरी भी मौजूद थी।
यह कार्यक्रम वाणी प्रकाशन और ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर के नए गठबंधन के तहत हुआ। इसके तहत ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर ने पहली बार हिंदी पुस्तकों को पूरे देश में अपने बुक स्टोर में स्थान देने का निर्णय लिया है।

कवि ही नहीं, पत्रकार भी थे रामधारी सिंह दिनकर

बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया गांव में 23 सितंबर 1908 को जनमे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की वीर रस की कविता, कहानी और उपन्यास से तो सभी लोग वाकिफ हैं लेकिन बहुत कम ही लोग जानते हैं कि दिनकर जी अपनी लेखनी से एक पत्रकार का भी धर्म निभाया है। अपनी कविता और लेखनी से दूसरों में साहस जगाने वाले दिनकर जी खुद भी साहसी पत्रकार रहे हैं। वे खुद इतने साहसी थे कि पत्रकारिता धर्म निभाने के लिए अपनी नौकरी को भी दांव पर लगाने से नहीं हिचकते थे। आज उनकी 106वीं जयंती है, इस मौके पर हम सब उनको नमन करते हैं।
दिनकर जी के बारे में एक और बात कम लोग जानते हैं वह ये कि शुरू में रामधारी सिंह दिनकर अमिताभ के नाम से लिखना शुरू किया था, लेकिन बाद में उन्होंने अपने मूल नाम रामधारी सिंह ‘दिनकर’ को ही अपना लिया। पत्रकारिता से लगाव और लगातार कई पत्र-पत्रकाओं में लिखने के कारण ही स्वतंत्रता मिलने के बाद रामधारी सिंह ‘दिनकर’ को प्रचार विभाग का डिप्टी डायरेक्टर बनाया गया। निर्भीक पत्रकारिता धर्म को नहीं छोड़ने की वजह से ही एक बार उनकी नौकरी पर बन आई थी। देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के इंटरव्यू लेने से कुछ विवाद हो जाने के कारण उनकी नौकरी पर बन आई थी, लेकिन उन्होंने उसकी भी कोई परवाह नहीं की।    
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ उस दौर के कवि हैं जब कविता की दुनिया से छायावाद का दौर खत्म हो रहा था। पटना विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद दिनकर जी जिविकोपार्जन के लिए एक हाईस्कूल में अध्यापन कार्य किया। उसके बाद अनेक महत्वपूर्ण प्राशासनिक पदों पर भी रहे। मुज़फ्फ़रपुर कॉलेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष बने और बाद में भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी बने। कई सम्मानों और अलंकरण से सम्मानित होने के साथ ही दिनकर जी को भारत सरकार के पद्म विभूषण अलंकरण से भी सम्मानित किया गया। और अंत में 24 अप्रैल सन 1974 को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का देहावसान हो गया।
अपने जीवनकाल में दिनकर जी ने कई कालजयी रचना की हैं जिनमें ‘मिट्टी की ओर’,  ‘अर्ध्दनारीश्वर’, ‘रेती के फूल’, ‘वेणुवन’ के अलावा ‘संस्कृति के चार अध्याय’ जैसे ग्रंथ शामिल हैं। उनके नाम ‘रेणुका’, ‘हुंकार’, ‘रसवंती’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’, ‘परशुराम की प्रतिज्ञा’, ‘हारे को हरिनाम’ और ‘उर्वशी’ जैसे काव्य संकलन हैं। उनके लेखन में विविधता के साथ विधा के भी कई रूप समाहित हैं।
वैसे तो उन्होंने कई कालजयी कृति की रचना की लेकिन रश्मिरथी हर दृष्टि से अद्वितीय है। वैसे तो उनकी रचना रश्मिरथी काव्यखंड है लेकिन वह सामाजिक न्याय और वर्ण विभेद पर जिस प्रकार करारा प्रहार किया गया है उस दृष्टि से आधुनिक गीता है।
रामधारी सिंह को दैहिक संसार छोड़े हुए 40 साल गुजर चुके हैं लेकिन आज भी उनकी रचनाएं देश की जनता के जुबां पर बनी हुई है। उन्होंने जिस प्रकार की देशभक्ति और वीर रस की कविता लिखी है उनके छंदों को कौन भूल सकता है।
‘रोको युद्धिष्ठिर को न यहां, जाने दो उनको स्वर्ग धीर
पर फिरा हमें गांडिव गदा, लौटा दे अर्जुन भीम वीर’
उनकी कविता की ये लाइन जब भी सुनाई पड़ेगी क्यों नहीं सबके जुबां पर एक साथ निकलकर हमेशा के लिए गूंजती रहेंगी। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की जयंती पर उन्हे हार्दिक नमन।  

विरोध प्रदर्शनों के बीच जलवायु परिवर्तन सम्मेलन

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन से पहले बड़ी संख्या में लोगों ने संयुक्त राष्ट्र के दफ्तर के सामने विरोध प्रदर्शन किए हैं. लोगों की मांग है कि जलवायु परिवर्तन के लिए राजनीतिक कार्रवाई की जाए जो नहीं हो रही है.संयुक्त राष्ट्र महा सचिव बान की मून भी इस मुद्दे पर विशेष दिलचस्पी दिखा रहे हैं.

मर्लिन मुनरो का दुर्लभ निगेटिव नीलाम

अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर रही हॉलीवुड अदाकारा मर्लिन मुनरो के पहले फोटो शूट के एक दुर्लभ निगेटिव की नीलामी हुई है. मुनरो की यह तस्वीर उस वक़्त की है जब वह महज 20 साल की थीं.तब उनका नाम नॉर्मा जीन बेकर हुआ करता था, वह एक फ़ैक्ट्री में काम करती थीं और मॉडल बनने का सपना देख रहीं थी. निगेटिव के साथ तस्वीर और इसके कॉपीराइट 4,250 पाउंड में नीलाम हुए हैं.