Sunday 23 November 2014

और लाइनें सूझ नहीं रही, चार कदम और चलना चाहता था..... जयप्रकाश त्रिपाठी

भूल जाएं आप भी, मजबूरियां इतनी न हों ।
याद आएं, मिल न पाएं, दूरियां इतनी न हों ।
एक चेहरे पर कई चेहरे भले हों आप के
आंख शरमा जाए, रुख पर झुर्रियां इतनी न हों ।
चाक हो जाए कलेजा, मुंह को आ जाए मगर
जिबह हो इंसानियत भी, छूरियां इतनी न हों ।

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