Tuesday 16 July 2013

जब फूट-फूट कर रोये थे हरिवंश राय बच्चन


जयप्रकाश त्रिपाठी

मैंने एक बार महाकवि हरिवंश राय बच्चन को सिसकियां भरते हुए देखा-सुना है तो उनकी एक मधुर आपबीती आंसुओं से सराबोर सुनी है हल्दीघाटी के रचनाकार श्यामनारायण पांडेय से।

उन दिनो मंचों पर पांडेय और बच्चन बड़े लोकप्रिय हुआ करते थे। साथ-साथ जाते थे। कालांतर में यह सिलसिला तब टूट गया था जब दोनो महाकवियों ने उम्र के दबाव में अपने-अपने जीवन के रास्ते मंचों से दूर कर लिये थे। पांडेय फिर भी उम्र के अंतिम पड़ाव  तक मंचों के निकट रहे लेकिन बच्चन अपने अभिनेता पुत्र के साथ हो लिये थे।

पांडेय जी के साथ मैं भी अक्सर कविमंचों पर जाया करता था। उनसे घरेलू परस्परता का भी अवसर मिला था, इसलिए वह मुझे अक्सर राह चलते, अपने घर में बैठे हुए, खेतों की मेड़ों पर टहलते हुए या सुदूर के सफर में अपने अतीत के रोचक-रोमांचक प्रसंग सुनाया करते थे।

एक दिन उन्होंने बच्चनजी के साथ की वह रोचक आपबीती कुछ इस तरह साझा की थी...

देवरिया में कविसम्मेलन हो रहा था। दोनो (बच्चन और पांडेय) मंचासीन थे। पहले बच्चनजी को काव्यपाठ करने अवसर मिला। उन्होंने कविता पढ़ी- ' महुआ के नीचे फूल झरे, महुआ....'।

उऩके बाद पांडेयजी ने काव्यपाठ के लिए जैसे ही माइक संभाला, बच्चनजी के लिए अत्यंत अप्रिय टिप्पणी बोल गये- 'अभी तक आप लोग गौनहरियों के गीत सुन रहे थे, अब कविता सुनिए...'

इतना सुनते ही बच्चनजी अत्यंत रुआंसे मन से मंच से उठकर अतिथिगृह चले गये। अपनी कविता समाप्त करने के बाद जब पांडेयजी माइक से हटे तो सबसे पहले उनकी निगाहें बच्चनजी को खोजन लगीं। वह मंच पर थे नहीं। अन्य कवि से उन्हें जानकारी मिली कि बच्चन जी तो आपकी टिप्पणी से दुखी होकर उसी समय मंच छोड़ गये। उसी क्षण पांडेय जी भी मंच से चले गये बच्चनजी के पास अतिथिगृह। जाड़े का मौसम था। बच्चनजी रजाई ओढ़ कर जोर-जोर से रोते हुए मिले। पांडेय जी समझ गये कि यह व्यथा उन्हीं की दी हुई है। बमुश्किल उन्होंने बच्चन जी को सहज किया। खुद पानी लाकर उनकर मुंह धोये। रो-रोकर आंखें सूज-सी गयी थीं।
 
बच्चनजी बोले- पांडेय मेरे इतने अच्छे गीत पर कवियों और श्रोताओं के सामने इतनी घटिया टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थे।

पांडेयजी के मन से वह टीस जीवन भर नहीं गयी। लगभग तीन दशक बाद उस दिन संस्मरण सुनाते हुए वह भी गमछे से अपनी भरी-भरी आंखें पोछने लगे थे।


पांडेय-बच्चन का दूसरा संस्मरण उस समय का जब अमिताभ बच्चन कुली फिल्म की शूटिंग के दौरान घायल हो गये थे। दो दिन पहले अस्पताल से अपने मुंबई स्थित आवास पर स्वास्थ्य लाभ के लिए लौटे थे।

मुंबई में जुहू-चौपाटी पर अखिल भारतीय कविसम्मेलन आयोजित किया गया था। पांडेयजी के साथ मैं भी गया था। कविसम्मेलन के अगले दिन होटल में कवियत्री माया गोविंद पांडेय जिसे मिलने पहुंचीं। उनका आग्रह था कि वह अपने मंचों के साथी बच्चनजी से अवश्य मिल लें। इस समय उनका बेटा घायल है। पांडेयजी अपने बूढ़े शरीर से लाचार थे। किसी तरह तो बंबई पहुंच पाये थे। वह जाने के कत्तई मूड में  नहीं थे। उन्होंने निर्विकार भाव से जाने से इनकार कर दिया। जिस समय माया गोविंद आग्रह कर रही थीं, अंदर-ही-अंदर मेरा भी मन बच्चनजी को देखने के लिए मचल उठा था। सो, इसलिए भी कि पांडयेजी से उनके संबंध में मैंने अनेकशः कथाएं सुन रखी थीं। पांडेय जी से आग्रह के बाद माया गोविंद एक-दो मिनट के लिए वहां से कहीं इधर-उधर हो गयीं। उसी बीच मैंने उनसे बच्चनजी से मिल लेने का यह कहते हुए आग्रह किया कि दोबारा आप का बंबई आना नहीं हो सकेगा। मायाजी ने कार का भी इंतजाम कर दिया है। पांडेय जी पता नहीं क्या सोचकर तुरंत चलने के लिए तैयार हो गये। इस बीच माया गोविंद भी आ गयीं।

दरअसल, माया गोविंद का मुख्य उद्देश्य कृष्ण-सुदामा में मुलाकात करना नहीं, अपने प्रवासी दामाद (जैसाकि उन्होंने बाद में विचलित होकर भेद खोल दिया था) को अमिताभ बच्चन के दर्शन कराना चाहती थीं।

बच्चनजी से तुरंत फोन पर उन्होंने संपर्क किया। तुरंत के लिए मुलाकात तय हो गयी। चटपट कार से पांडेयजी के साथ मैं, माया गोविंद और उनके दामाद अमिताभ बच्चन के घर पहुंचे। बच्चनजी खाना खा रहे थे। गेट के अंदर कार से उतरते ही बच्चनजी दायी हथेली पर जूठन लपटे पांडेय जी से लिपट गये। जूठन की भरपूर छाप पांडेयजी के जैकेट पर। उन्हें क्या पता! सब लोग बच्चनजी के पीछे-पीछे उनके ड्राइंग रूम में पहुंचे।

उस दौरान भी माया गोविंद की आंखें अचकचा-अचकचा कर अमिताभ के दर्शन के लिए बेचैन हो रही थीं। मैने उनके दामाद की विकलता का एहसास नहीं किया था। तब तक मुझे पता भी नहीं था कि साथ आये सज्जन उनके दामाद हैं। खैर, उस समय अमिताभ बच्चन अपने लान में स्थित छोटे से मंदिर में टंगा घंटा बजा कर पूजा कर रहे थे। मैंने बड़े गौर से देख लिया था कि वह हम लोगो के ड्राइंग रूम की ओर बढ़ते समय आहिस्ते से अपने शीशे की दीवारों के पार सीढ़ियों तक पहुंच कर अंदर जा चुके थे।

चाय-नाश्ते के दौरान माया गोविंद ने कई बार स्वयं उतावलेपन में बच्चनजी से अमिताभ तक पहुंचने की इच्छा जतायी लेकिन दोनो बुजुर्ग कविमित्र उन्हें अंत तक अनसुना करते रहे और बात इतने पर खत्म हो गयी कि 'अमिताभ अब ठीक है..'। मायाजी मन मसोस कर रह गयीं। शायद मैं भी। अमिताभ को देखने की ललक तो थी ही, लेकिन मेरे लिए बच्चनजी और पांडेयजी की मुलाकात ज्यादा सुखद और अकल्पनीय सी लग रही थी।

बाहर निकलते समय कार में बैठने से पहले बच्चनजी एक बार फिर एक अविस्मरणीय बात कहते हुए लिपट गये कि 'अच्छा तो पांडेय, चलो अब ऊपर ही मुलाकात होगी।' दोनो फिर आंखें भर कर खूब उदास हो गये थे। उस समय अमिताभ शीशे की दीवार के पीछे दुबके हुए से ये देखने की कोशिश कर रहे थे कि बाबूजी इतनी आत्मीयता से जिससे लिपट रहे हैं, वह आखिर है कौन!

उस दिन बच्चनजी ने पांडेयजी से अमिताभ बच्चन और अपने परिवार के संबंध में कई बातें साझा की थीं।

उनके और भी संस्मरण फिर कभी.......

बच्चों के लिए किस्से-कहानियां


ब्यूटी ऐंड द बीस्ट : एलेन टाइटलबॉम : एक दयालु और खूबसूरत नौकरानी कैसे एक राजकुमार को उसके डरावने रूप से आजाद कराती है, इस सीधी-सी कहानी को बेहद खूबसूरती से बुना गया है। यह एक साधारण परिवार की असाधारण कहानी है, जिसके जरिए बताया गया है कि बाहरी नहीं, मन की खूबसूरती ज्यादा मायने रखती है।

सिंड्रेला : मर्सिया ब्राउन : परियों की कहानियां हमेशा से बच्चों को कल्पना की एक खूबसूरत दुनिया की सैर कराती रही हैं। एक गरीब लड़की सिंड्रेला को सौतेली मां और बहन तंग करती रहती हैं। बाद में उसे एक राजकुमार मिलता है, जो उसे हमेशा खुश रखता है। यह कहानी बताती है कि सहनशीलता किस तरह बुरे वक्त को भी अच्छे वक्त में तब्दील कर देती है।

रॉबिनहुड : जे. वॉल्कर मैक स्पैडन - अमीरों को लूटकर गरीबों की मदद करनेवाले रॉबिन हुड के बारे में हम बचपन से सुनते आए हैं कि किस तरह नियम तोड़ने के बावजूद उसे एक हीरो के रूप में जाना जाता है। यह कहानी हमें सीख देती है कि अच्छे काम के लिए नियमों से परे भी जाना पड़े तो हिचकना नहीं चाहिए।

हंसेल ऐंड ग्रेटेल : ब्रदर्स ग्रिम : हंसेल और ग्रेटेल नाम के भाई-बहन को उनकी सौतेली मां गरीबी के हालात में जंगल में छोड़ आती है। वहां वे एक सुंदर-से कैसल में चले जाते हैं, जो एक चुड़ैल का होता है। इसके बाद दोनों बच्चे किस तरह तमाम मुश्किलों का सामना करते हैं, इससे मुसीबतों में हार न मानने का सबक मिलता है।

द स्लीपिंग ब्यूटी  : जूडी बेअर : सोती हुई लड़की यानी स्लीपिंग ब्यूटी, इसी कहानी से यह मुहावरा बना है। यह कहानी है कि एक राजकुमारी की, जो शाप की वजह से सोती ही रहती है। एक राजकुमार उसे आकर जगाता है और वह अपनी खुशहाल जिंदगी जीने लगती है।

अली बाबा ऐंड फोर्टी थीव्स : मैथ्यू के. मानिंग, रिकार्डो ओस्नाया : एक जवान पर्शियन लड़का खुद को खजाने से भरी गुफा में पाता है। यह खजाना 40 खूंखार चोरों का है। चोर अली बाबा के पीछे पड़ जाते हैं। कैसे तमाम मुसीबतें झेलता हुआ अली बाबा चोरों को छकाता जाता है, यह पढ़ना काफी दिलचस्प है। किताब में भरपूर रोमांच है।

लिटिल रेड राइडिंग हुड : एली ओ. रियान : रेड राइडिंग हुड की कहानी हमारे बचपन की पहली कहानी होती है। एक छोटी-सी बच्ची अपनी नानी से मिलने जाती है, जहां उसका इंतजार एक चालाक भेडि़या कर रहा होता है। एक लकड़हारा बच्ची को आकर बचाता है। कहानी में अनोखापन न होने के बावजूद बच्चों को इसमें एक तरह का अपनापन महसूस होता है।

द स्लीव्स ऐंड द शूमेकर : जेन स्मॉलफील्ड, ग्रैम स्मॉलफील्ड : एक गरीब और ईमानदार मोची रात में अपने घर के बाहर जूते बनाने का सामान रखता है। सुबह वहां कई जोड़े जूते तैयार रखे मिलते हैं। वह रात को छुपकर देखता है तो पता चलता है कि कुछ चमत्कारी बौने इस काम को अंजाम देते हैं। एक दिन उसकी पत्नी बौनों के लिए नए कपड़े और जूते बनाती है। वे नए कपड़े पहनकर चले जाते हैं और कभी नहीं लौटते।

अलादीन ऐंड द वंडरफुल लैंप : एस. लेन पूल : जादू से भरपूर कारनामों की कहानी है यह। इसमें मैजिक, मस्ती और मजा है। कहानी में अलादीन अपना जादुई चिराग घिसकर जिन्न को बुलाता है और उसकी मदद से तमाम अनोखे कारनामों को अंजाम देता है। यह जानने के लिए कि आगे क्या होगा, बच्चे इसे फटाफट पढ़ डालते हैं।

द फ्रॉग प्रिंसेस : बच्चों की कहानियों में शायद कोई लॉजिक नहीं होता। होता है तो बस ऐसा कुछ, जो बच्चे को पसंद आए और उसे अपने साथ बांध ले। ऐसा सब कुछ है इस कहानी में, जिसमें एक मेढक राजकुमारी के छूने से राजकुमार बन जाता है।

द वॉयेजिस ऑफ सिंदबाद : एन. जे. दाऊद - अरेबियन लोककथा है यह। ज्यादातर सभी लोगों ने सिंदबाद के किस्से कभी-न-कभी पढ़े या सुने होते हैं। समुदी रहस्य और रोमांच से भरपूर तमाम कथाओं को कई हिस्सों में निकाला गया है। समुदी यात्रा के दौरान सिंदबाद को होनेवाले अनुभवों को पढ़ते-पढ़ते बच्चों को महसूस होता है कि मानो वे खुद सैर पर निकल पड़े हैं।

द थ्री बेयर्स : पॉल गैल्टन : तीन भालुओं की कहानी है यह - मम्मी भालू, पापा भालू और बच्चा भालू। एक दिन उनके घर में एक अनजान लड़की आ जाती है, जिसे वे अपनी सेवा से काफी अहम महसूस कराते हैं। इसे पढ़ने में बच्चों को मजा तो आता ही है, साथ ही घर आए मेहमानों का वेलकम करने की सीख भी मिलती है।

हैरी पॉटर सीरीज : जे. के. राउलिंग : ब्रिटिश लेखिका राउलिंग ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि अपने बेटे के लिए जो कहानियां उन्होंने रचीं, वे एक दिन उन्हें दुनिया की सबसे रईस लेखिका बना देंगी। हैरी पॉटर सीरीा की कुल सात किताबें आ चुकी हैं। हर किताब बच्चों को जादू की दुनिया में ले जाती है। हैरी पॉटर नामक इस प्यारे-से बच्चे की हर कहानी में आखिर में बुरे पर अच्छाई की जीत होती है।

द क्रॉनिकल्स ऑफ नार्निया : सी. एस. लेविस : यह चार बच्चों की कहानी है, जो एक वॉर्डरॉब के जरिए 'लैंड ऑफ नार्निया' में पहुंच जाते हैं। यह एक बिल्कुल अलग दुनिया है। यहां एक चुड़ैल होती है, जो सबके दुख का कारण होती है। फैंटेसी से भरपूर यह किताब आखिर तक दिलचस्पी जगाए रखती है।

बच्चों का अद्भुत विश्व साहित्य



एलिस इन वंडरलैंड : लेविस कैरोल - बच्चों की सबसे अद्भुत और अजब-गजब कृतियों में से है - 'एलिस इन वंडरलैंड'। एक जादूनगरी की कहानी, जो सचमुच बच्चों पर जादू-सा कर देती है। जादुई दुनिया में पहुंची एलिस को एक-से एक बड़े अजूबे देखने को मिलते हैं।

बहादुर टॉम : मार्क ट्वेन - यह अत्यंत लोकप्रिय उपन्यास है, जिसे बच्चे बहुत उत्सुकता से पढ़ते हैं। कारण शायद यह है कि इस उपन्यास का नायक टॉम एक ऐसा नटखट और शरारती बच्चा है, जिसमें बच्चों को बहुत बार अपना अक्स नजर आता है। बच्चे और किशोर पाठक टॉम की अजीबोगरीब शरारतों का आनंद लेने के लिए इसे बार-बार पढ़ना चाहते हैं।

काला घोड़ा : अन्ना सेवेल - एक घोड़े पर लिखा यह बड़ा ही खूबसूरत और मर्मस्पशीर् उपन्यास, जिसमें उस घोड़े के दिल का दर्द और उसके अंतहीन दुखों और संघर्षों की कहानी छिपी है। ब्लैक ब्यूटी एक काला घोड़ा है, जो मां की ममता और लाड़-दुलार के साथ बड़ा हुआ, लेकिन फिर उसके इम्तिहानों की घडि़यां शुरू हो गईं।

कठपुतला : कार्लो कॉलोदी - कार्लो कॉलोदी का 'कठपुतला' यानी पिनोकियो इतना चुस्त-चपल और शरारती है कि उसकी जिंदगी में हर पल एक-से-एक नई घटनाएं घटती हैं। लिहाजा बच्चे इस उपन्यास को पढ़ते हुए, मानो जादू से बंधे हुए एक निराली ही यात्रा पर निकल पड़ते हैं। लेकिन यह पिनोकियो है क्या? लकड़ी का एक मामूली-सा टुकड़ा ही न, पर यह बढ़ते-बढ़ते तमाम करिश्मे करता जाता है।

रॉबिन्सन क्रूसो : डेनियल डेफो - यह एक ऐसे साहसी नायक रॉबिन्सन क्रूसो की कथा है, जिसे बचपन से ही समुदी यात्राएं करने का शौक था। फिर उसे एक मौका मिलता है और वह एक लंबी समुदी यात्रा पर निकल जाता है। मगर इस यात्रा में कभी वह डाकुओं के कब्जे में आ जाता है, तो कभी समुदी तूफान के कारण खुद उसकी जिंदगी के लाले पड़ जाते हैं। इसे पढ़ते हुए मन में कुछ नया कर गुजरने का जज्बा पैदा होता है।

80 दिन में दुनिया की सैर : जुले वर्न - यह ऐसा रोमांचक उपन्यास है, जिसे पढ़ने का मतलब एक निराले अंदाज में सारी दुनिया की सैर कर लेना है। इस उपन्यास की कहानी बड़ी दिलचस्प है। लंदन के एक अमीर आदमी मि. फाग 80 दिन में पूरी दुनिया की सैर करने का फैसला करते हैं। उनकी इस रोमांचक यात्रा में अजब-गजब घटनाएं होती हैं। यह उपन्यास उम्मीद, रोमांच और कभी खत्म न होने वाले साहस से भरपूर है।

मनमानी के मजे : सर्गेई मिखाइलोव - यह अपनी तरह का एकदम अनूठा उपन्यास है। इसमें उन शरारती बच्चों का किस्सा है, जिन्हें हर मनमानी करने का हक चाहिए। एक दिन उन्हें ऐसी दुनिया मिल जाती है, जहां कोई उन्हें टोकता नहीं है। लेकिन इस बेरोक-टोक जिंदगी में परेशानियों, झगड़ों और उदासियों का दौर शुरू हो जाता है।

कोहकाफ का बंदी : लेव टॉलस्टॉय : उपन्यास का नायक एक रूसी अफसर झीलिन है। रूसियों और तातारों के बीच लड़ाई में झीलिन को तातारों ने पकड़ लिया। जिस तातार ने उसे कैद किया था, उसी की छोटी बच्ची दीना झीलिन की सरलता, प्यार और अपनेपन से प्रभावित होकर उसे कैद से आजाद कर देती है। उपन्यास में लेव टॉलस्टॉय की उस्तादाना कलम का जादुई स्पर्श जगह-जगह महसूस होता है।

पहला अध्यापक : चिंगिज ऐटमाटोव- दूइशेन की कहानी है, जो कुछ ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं है, पर उसके मन में अपने गांव के अनपढ़ लोगों को शिक्षा देकर उन्हें जीवन में आगे बढ़ाने और नई रोशनी की ओर ले जाने की गहरी तड़प है। 'पहला अध्यापक' का दूइशेन रोशनी का ऐसा ही फरिश्ता है, जो इस दुनिया को और सुंदर बनाने के लिए शायद धरती पर आया था।

स्वामी और उसके दोस्त : आर. के. नारायण - ' स्वामी और उसके दोस्त' बच्चों के लिए लिखा गया कालजयी उपन्यास है, जो एक नटखट शरारती बच्चे स्वामी और उसके दोस्तों को लेकर लिखा गया है। उपन्यास का आखिरी हिस्सा बड़ा मामिर्क है। स्वामी को क्रिकेट मैच की तैयारी करनी है लेकिन हेडमास्टर साहब के डर से वह भाग निकलता है।

बिल्ली हाउसबोट पर : अनिता देसाई : यह असल में एक बहुत ही चंचल और नटखट किस्म की बिल्ली की कथा है, जिसका बहुत अजीब-सा नाम बच्चों ने रखा है : पपाया यानी पपीता। नरेन और नीरा को जब यह पपाया बिल्ली मिली तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। गमीर् की छुट्टियों में कश्मीर में हाउसबोट पर पपाया ने क्या कुछ कारनामे किए, इसका ब्यौरा अनीता देसाई ने बहुत नटखटपन से भरी चंचल भाषा में दिया है।

द जंगल बुक : रुडयार्ड किपलिंग : ' द जंगल बुक' जंगल और वहां के जानवरों को लेकर बड़ी तन्मयता के साथ लिखा गया ऐसा जानदार उपन्यास है, जिसकी गूंजें-अनुगूंजें आज हर ओर सुनाई देती हैं। सिवनी के जंगल में शेर खान, बलू जैसे चरित्रों के बीच मोगली के रोमांचक कारनामे हर बच्चे को आकषिर्त करते हैं और जंगल के जीवन को एक नई उत्सुकता के साथ जानने के लिए प्रेरित करते हैं।

द एडवेंचर ऑफ रस्टी : रस्किन बॉन्ड : ' रस्टी के कारनामे' उपन्यास के शुरू में दादी और केन काका के व्यक्तित्वों का ऐसा अद्भुत ब्यौरा है कि लगता है बस, उन्हें पढ़ते ही जाएं। उपन्यास के दूसरे भाग 'स्कूल से भागना' में रस्टी के अपने दोस्तों के साथ स्कूल से भागकर नई-नई जगहों पर जा पहुंचने की कथा है, जहां उन्हें एक से बढ़कर एक खतरे झेलने पड़े।

सरला, बिल्लू और जाला : ई.बी. वाइट : ई. बी. वाइट का 'सरला, बिल्लू और जाला' (2006) भी निराला फंतासी उपन्यास है। इसमें सरला एक चतुर और सयानी मकड़ी है और बिल्लू भोला-भाला सूअर का बच्चा। बिल्लू जब विपदा में पड़ा तो उसे मकड़ी अपनी चतुराइयों से न सिर्फ बचा लेती है, बल्कि उसे एक ऐसा हीरो और वीर नायक बनाकर पेश करती है कि चारों ओर बिल्लू की जय-जयकार होने लगती है।

बचपन को रिझातीं पुस्तकें


कुत्ते की कहानी - प्रेमचंद - यह हिंदी का पहला बाल उपन्यास है। मामूली कुत्ता कल्लू अपनी हिम्मत और बहादुरी की वजह से एक अंग्रेज साहब का प्यारा बन जाता है। अब उसकी सेवा करने के लिए नौकर-चाकर मौजूद हैं, पर कल्लू सुखी नहीं है। वह महसूस करता है कि अब उसके गले में गुलामी का पट्टा बंधा हुआ है।
बजरंगी नौरंगी : अमृतलाल नागर - हिंदी के दिग्गज उपन्यासकार अमृतलाल नागर का 'बजरंगी-नौरंगी' एक लाजवाब और जिंदादिली से भरपूर उपन्यास है। बजरंगी और नौरंगी के रूप में उन्होंने जिन पात्रों को लिया है, वे हैं भी बड़े गजब के। उपन्यास इतनी जानदार भाषाशैली में लिखा गया है कि हिंदी के बाल उपन्यासों में 'बजरंगी-नौरंगी' की धमक कुछ अलग ही है।
पहाड़ चढ़े गजनंदन लाल : विष्णु प्रभाकर - बच्चों के लिए लिखी गईं 12 चुस्त-चपल कहानियां हैं। इनमें 'पहाड़ चढ़े गजनंदनलाल' और 'दक्खन गए गजनंदनलाल' एकदम निराली हैं। इन्हें पढ़ते हुए कभी हंसी की फुरफुरी छूट निकलती है तो कभी भीतर कोई गहरा अहसास बस जाता है, जो हमें जिंदादिली से जीने की ताकत देता है।
गीत भारती : सोहनलाल द्विवेदी - इस पुस्तक में सुंदर और अनूठी 20 बाल कविताएं हैं। खासकर 'अगर कहीं मैं पैसा होता', 'सपने में', 'नीम का पेड़', 'घर की याद' ऐसी कविताएं हैं, जिनमें बहुत थोड़े शब्दों में जीवन की गहरी बातें उड़ेल दी गई हैं।
आटे बाटे सैर सपाटे : कन्हैयालाल मत्त - कन्हैयालाल मत्त की निराले अंदाज की बाल कविताओं की लंबे अरसे तक धूम रही है, जिनमें अजब-सी मस्ती और फक्कड़पन है। 'आटे बाटे सैर सपाटे' मत्त की बाल कविताओं का प्रतिनिधि संकलन है, जिसमें उनकी 51 चुनिंदा कविताएं हैं। इन कविताओं में गजब की लयात्मकता के साथ-साथ हास्य-विनोद की फुहारें बच्चों को खूब रिझाती हैं।
बतूता का जूता : सवेर्श्वरदयाल सक्सेना - ' बतूता का जूता' बच्चों के लिए लिखी गई ऐसी कविताओं का संग्रह है, जिन्होंने बाल कविता को नया मोड़ दिया। इसमें 18 बाल कविताएं हैं, जो अपने समय में खूब चर्चित हुई थीं और आज भी उनका वही जादू बरकरार है। इनमें कई कविताएं तो ऐसी हैं, जिन्हें दुनिया की किसी भी समर्थ भाषा की अच्छी-से-अच्छी बाल कविता के बराबर रखा जा सकता है।
तीनों बंदर महाधुरंधर : शेरजंग गर्ग - ' तीनों बंदर महाधुरंधर' 51 कविताओं का संग्रह है। ये ऐसी कविताएं हैं, जिन्हें पढ़कर एक समूची पीढ़ी अब युवा हो गई है, पर इन कविताओं का जादू अब भी उतरा नहीं है। एक ओर इस किताब में भोलेपन की मस्ती से भरे सुंदर और छबीले शिशुगीत हैं, तो दूसरी ओर ऐसी कविताएं, जिनमें खेल-खेल में बड़ी बातें सिखाई गई हैं।
मेरे प्रिय शिशुगीत : डॉ. श्रीप्रसाद - अपने नटखट शिशुगीतों के लिए चर्चित रहे डॉ. श्रीप्रसाद के चुने हुए सुंदर शिशुगीतों का संकलन 'मेरे प्रिय शिशुगीत' एक सुखद आश्चर्य की तरह है। किताब में ज्यादातर शिशुगीत ऐसे हैं, जिनके साथ बच्चे खिलखिलाते हैं और कुछ सीखते भी हैं।
सूरज का रथ : बालस्वरूप राही - एक दौर था जब बालस्वरूप राही की कविताएं हर बच्चे के होंठों पर नाचती थीं। आज भी उनका वही जादू बरकरार है। यहां तक कि बड़े भी उनके रस से भीगते और रीझते हैं। 'सूरज का रथ' में लीक से हटकर लिखी गई 21 बाल कविताएं हैं, जिनमें नई सूझ, नए रंग और कुछ नया ही जादू है। संग्रह की हर कविता ऐसी है, जिसे पढ़कर बच्चे झूम उठते हैं।
कमलेश्वर के बाल नाटक : कमलेश्वर - कमलेश्वर के बाल नाटकों का अपना अलग रंग है, जो बच्चों को ही नहीं, बड़ों को भी लुभाते हैं। 'पैसों का पेड़', 'पिटारा', 'जेबखर्च', 'झूठी दीवारें', 'डॉक्टर की बीमारी' नाटक एकदम नए ढंग के हैं और कथ्य, भाषा और अंदाज में लीक से हटकर हैं। हिंदी में बच्चों के लिए लिखे गए इतने सहज, सफल नाटक कम ही हैं।
गणित देश और अन्य नाटक : रेखा जैन - रेखा जैन की गिनती हिंदी के उन सिरमौर नाटककारों में की जाती है, जिन्होंने बच्चों के साथ खेल-खेल में नाटक लिखे और उन्हें उतने ही अनूठे अंदाज में पेश किया। 'गणित देश और अन्य नाटक' में रेखा के अलग-अलग रंग और शेड्स के छह बहुचचिर्त नाटक हैं। गणित से डरनेवाले बच्चों के लिए ऐसा खिलंदड़ नाटक भी बुना जा सकता है, इसकी कल्पना करना मुश्किल है।
दूसरे ग्रहों के गुप्तचर : हरिकृष्ण देवसरे - इसमें वैज्ञानिक फंतासी बहुत करीने-से बुनी गई है। कथा यह है कि किसी दूसरे ग्रह के लोग जासूसी करने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। वे यहां एक भव्य होटल स्थापित करते हैं, जिसमें सारा काम रोबॉटों के जरिए होता है। दो किशोर दोस्त राकेश और राजेश इसका रहस्य जानने के लिए निकलते हैं, तो हैरान कर देनेवाली घटनाएं घटने लगती हैं।
घडि़यों की हड़ताल : रमेश थानवी - रमेश थानवी का यह उपन्यास एक प्रयोगधर्मी उपन्यास है, जिसमें हमारा समय और सच्चाइयां खुलकर सामने आती हैं। उपन्यास की शुरुआत में ही घडि़यों की इस अनोखी हड़ताल का जिक्र है, जिससे सब जगह हड़कंप मच जाता है और सारे काम रुक जाते हैं। बमुश्किल घडि़यों की यह हड़ताल खत्म होती है, जिसने जिंदगी की रफ्तार को ही रोक दिया था।
भोलू और गोलू : पुस्तक में सर्कस में काम करनेवाले एक भालू के बच्चे भोलू और महावत के बच्चे गोलू की दोस्ती है। बड़ी ही प्यारी दोस्ती, जिससे दोनों को ही बड़ी खुशी मिलती है। खासकर भोलू तो गोलू से दोस्ती से पहले एकदम उदास और अनमना रहता है, पर आखिर उसने गोलू के दिल के प्यार को पहचाना। फिर तो उसकी जिंदगी में एक नई उमंग भर जाती है।
मैली मुंबई के छोक्रा लोग : हरीश तिवारी - इस उपन्यास का नायक रोज-रोज दुख और अपमान के धक्के खाता झोपड़-पट्टी का एक लड़का है, जिसके भीतर आखिर पढ़ने और कुछ कर दिखाने की लौ पैदा हो जाती है। उपन्यास में मुंबई के शोषित और अभावग्रस्त जीवन की बड़ी मामिर्क शक्लें हैं, जो मन पर गहरा असर डालती हंै।
चिडि़या और चिमनी : देवेंद्र कुमार - एक फैक्ट्री है, जिसकी चिमनी से निकलनेवाले धुएं से चिडि़या का गला खराब हो जाता है और खांसी के कारण उसकी हालत लगातार बिगड़ती जाती है। आखिर जंगल के सारे जानवर मिलकर उस फैक्ट्री को घेर लेते हैं और चिमनी को तोड़ देना चाहते हैं। फिर समझ में आया कि फैक्ट्री के बंद हो जाने पर सैकड़ों मजदूर बेरोजगार हो जाएंगे।
शेर सिंह का चश्मा : अमर गोस्वामी - यह अद्भुत हास्य-कथा है। जंगल के राजा शेर को बुढ़ापे के कारण कुछ कम दिखाई देने लगता है और वह खरगोश को चूहेराम समझ लेते हैं, ढेंचूराम को डंपी कुत्ता और लाली बंदर को गिलहरी। मगर लाली बंदर आखिर उनके लिए चश्मा ढूंढ़ लाया और शेर के लिए चश्मा लाने में क्या-क्या कमाल हुए, यह इस बड़ी ही नाटकीय कहानी 'शेरसिंह का चश्मा' को पढ़कर जाना जा सकता है।
शिब्बू पहलवान : क्षमा शर्मा - यह दिलचस्प उपन्यास है, जिसके नायक हैं शिब्बू पहलवान। शिब्बू पहलवान की बहादुरी के अलावा उनकी दया, सरलता, खुद्दारी और स्वाभिमान की भी एक से बढ़कर एक ऐसी झांकियां हैं, जो मोह लेती हैं।
एक सौ एक बाल कविताएं : दिविक रमेश - उन कवियों में से हैं जिन्होंने बच्चों के लिए बिल्कुल अलग काट की कविताएं लिखी हैं। पिछले कोई तीन दशकों में लिखी गई उनकी कविताओं में से चुनी हुई एक सौ एक कविताएं इस किताब में शामिल हैं, जिनमें दिविक की कविता का हर रंग और अंदाज है। इनके जरिए नई दुनिया की नई हकीकतों से भी परिचित होते हैं।
लड्डू मोतीचूर : रमेश तैलंग के 101 शिशुगीतों का अद्भुत गुलदस्ता है। सभी बालगीत ऐसे कि आप पढ़ते जाएं और मंद-मंद मुसकराते जाएं। सभी में बच्चों की दुनिया की कोई अलग शक्ल, अलग बात है, पर साथ ही एक मीठी गुदगुदी भी है, जिससे ये गीत पढ़ते ही बच्चे की जबान पर नाचने लगते हैं।

तोत्तो-चान

तेत्सुको कुरोयानागी

'तोत्तो चान' दुनिया के सबसे लोकप्रिय बाल उपन्यासों में से है। इसे पढ़कर समझ में आता है कि बच्चे असल में क्या चाहते हैं। यह ऐसा उपन्यास है, जिसे बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी पढ़ना चाहिए, ताकि वे जानें कि बच्चों का मन कैसा अबोध होता है और अगर थोड़ा-सा प्यार और आजादी मिले तो वे क्या कुछ नहीं कर गुजरते।
तोत्तो चान बीस साल बाद फिर पढ़ रहा हूं। यह एक ऐसी जापानी लड़की की कहानी है कि जिसका स्कूल एक रेल के डिब्बे में लगता है। तोत्तो चान को उसकी अजीबोगरीब हरकतों व बाल सुलभ रूचियों की वजह से उसके पहले वाले स्कूल से निकाल दिया गया था। उसके मां-बाप को यह चिंता सताए जा रही थी कि अब कैसे पढेगी?
तभी उन्हें इस नए स्कूल का पता चला। तोत्तो चान अपनी मां के साथ इस स्कूल में दाखिले के लिए तो डरी-सहमी थी लेकिन वहां का माहौल देखते उसका डर धीरे-धीरे खुषी में बदल गया। उसे यह जानकर हैरानी हुर्इ कि उसका स्कूल एक रेल डिब्बे में है, किसी बिलिडंग में नहीं। तोत्तो ने अपनी मां से सवाल पूछा कि हेडमास्टर हैं या स्टेशन मास्टर। तोत्तो ने ही जवाब दिया कि जब वे इतने रेल डिब्बों के मालिक हैं तो स्टेशन मास्टर हुए न। हेडमास्टर जी ने तोत्तो की मां से कहा आप जा सकती है, मैं आपकी बेटी से बात करना चाहता हूं। पहले तोत्तो को लगा कि मैं क्या बात करूंगी। जब हेडमास्टर जी ने कहा कि  अब तुम अपने बारे में मुझे बताओ। कुछ भी, जो तुम बताना चाहो, सब कुछ। तोत्तो ने कहा जो मुझे अच्छा लगे बताउ। उसने जो कुछ कहा वह अनगढ़ था। कभी वह जिस रेलगाड़ी से आर्इ थी उसके बारे में बताती। कभी अपने पुराने स्कूल की सुंदर शिक्षिका के बारे में तो कभी यह कि अबाबील का घोंसला कैसा है?
पापा और मम्मी कैसे हैं? मास्टर जी पूछते जाते, फिर। वह बताती जाती। फिर उसने अपनी सुंदर फ्राक के बारे में बताया। जब खूब सोचने पर भी कुछ नहीं बोली तब मास्टर जी ने कहा तोत्तो चान अब तुम इस स्कूल की छात्रा हो। अब स्कूल वह बड़े मजे से जाने लगी। दोपहर भोजन के बाद सैर करने जाती थी, यह उसे नर्इ चीज लगी। सैर करने जाते समय ही शिक्षक ज्ञान-विज्ञान की छोटी-छोटी चीजें बताते। फूल कैसे बनता है, स्त्रीकेसर व पुंकेसर क्या होता है। यह किताब काल्पनिक नहीं है, बलिक ऐसा स्कूल सचमुच था, जिसे कोबाया ने बड़े जतन से बनाया था। जापान में तोत्तो अब एक मशहूर दूरदर्षन कलाकार के रूप में जानी जाती है, जिन्होंने यह किताब लिखी है। यह किताब बेस्ट सेलर है।

ई-बुक्स का अड्डा सोशल नेटवर्क


जर्मनी में बुक क्लब्स की संख्या बढ़ रही है। बुक पोर्टल के कारण कई हजार लोग ऑनलाइन की ओर खिंच रहे हैं. इन पोर्टल्स पर हमेशा कोई न कोई मौजूद होता है. रोज समाचार, समीक्षा, मौसम जानने के अलावा अकादमिक पेपर भी ऑनलाइन पढ़े जाते हैं. इसी तर्ज पर ऑनलाइन बुक पोर्टल की संख्या लगातार बढ़ रही है. इनमें युवा वर्ग ही नहीं, हर उम्र के लोग आकर्षित हो रहे हैं. ऑनलाइन किताबें पढ़ने वालों की औसत उम्र 40 है. इसकी शुरुआत उन लोगों से हुई जो जर्मन अखबारों में संस्कृति से जुड़े पेजों से नाराज थे. लोगों की आपत्ति थी कि इनमें बहुत कम पेज हैं और ओल्ड फैशन हैं. पारंपरिक अखबारों की तुलना में इंटरनेट में जगह की कोई समस्या ही नहीं है. आप जितनी चाहे समीक्षा कर सकते हैं. ऐसा भी देखा गया कि लोगों को अपने दोस्तों या अपने जैसा सोचने वाले लोगों की सिफारिश पसंद आती है. एक जैसा सोचने वाले लोगों की इंटरनेट पर तो कोई कमी है ही नहीं. पाठक भी आलोचक बन जाते हैं. यह कई बार प्रोफेशनल आलोचना नहीं होती लेकिन बहुत ही भावनात्मक और निजी समीक्षाएं भी पसंद की जा रही हैं.
ई बुक और इन्हें पढ़ने वाले लोग पुराने नहीं हुए हैं लेकिन इलेक्ट्रॉनिक किताबों के बाजार में आने के थोड़े ही समय में इन्हें पढ़ने वालों ने कई तरीके खोज निकाले हैं कि कैसे किताबों के बारे में चर्चा की जाए. वेब डिजाइनर कार्ला पाउल lovely-books.de में काम करती हैं. इस जर्मन बुक पोर्टल पर बहुत पाठक हैं और वे सब सोशल मीडिया यानी फेसबुक, ट्विटर के जरिए, लेखकों, ब्लॉगरों, प्रकाशकों और ऑन लाइन किताब बेचने वाले लोगों से जुड़े हुए हैं. पुस्तकों के कुछ हिस्से और चित्र यहां साझा किए जाते हैं. आप लेखकों के सर्कल में पाठक के तौर पर जुड़ सकते हैं. इस पोर्टल पर सबसे ताजा है बूखफ्रागे याने किताबी सवाल. अगर आप ई रीडर पर कोई किताब पढ़ रहे हैं और कोई पैराग्राफ आपकी समझ में नहीं आता तो उसके बारे में सवाल सीधे लेखक से पूछा जा सकता है. पाउल कहती हैं कि लेखक से सीधे बात करना बहुत ही रोमांचक अनुभव है. कंप्यूटर प्रोग्रामर सारा शाफ्ट ने कई बुक पोर्टल बनाए हैं जिन्हें काउच नाम के शब्द से लिंक कर दिया गया है. इस पर कुकिंग, बच्चों और इतिहास, सबकी किताबें उपलब्ध हैं.
प्रकाशक बुक पोर्टल्स पर गहरी नजर रखे हैं. बर्लिन प्रकाशन में कार्स्टन समरफेल्ड प्रेस ऑफिसर हैं. वह मानते हैं कि पाठकों से सीधे जुड़ना बहुत अच्छा है. और किताबों के बारे में जानने का यह सबसे अच्छा साधन है. कोई विज्ञापन पाठकों की बातचीत से अच्छा नहीं हो सकता और बुक पोर्टल्स से यही समझ में आता है. लेकिन हर व्यक्ति इन पोर्टल्स से खुश नहीं है. literatur-cafe.de बनाने वाले वोल्फगांग टिशर कहते हैं कि पोर्टल्स का सादापन खत्म हो गया है. उन्हें इस बात से नाराजगी है कि कई पोर्टल विशेष अभियान के तहत बनाए जाते हैं और इन्हें इस्तेमाल करने वालों को पता नहीं होता कि ये किसी प्रकाशन ने खरीदा हुआ है. टिशर कहते हैं, "अक्सर लोगों को पता नहीं होता कि कुछ किताबें सिर्फ इसलिए ऑनलाइन हैं क्योंकि प्रकाशकों ने इसके लिए पैसे दिए हैं." लेकिन किताब अगर अच्छी नहीं है तो यह कितनी भी खास और महंगी हो इसे पाठक तुरंत खारिज कर देते हैं. किताब के बारे में अच्छी बुरी बातें तेजी से पाठकों में फैलती हैं. सोशल नेटवर्क के कारण जर्मन पाठक सोच समझ कर किताब चुनने लगे हैं लेकिन उनकी आवाज मजबूत हुई है. (सबीने कोर्सुकेवित्स/आभा मोंढे)