Tuesday 16 July 2013

ई-बुक्स का अड्डा सोशल नेटवर्क


जर्मनी में बुक क्लब्स की संख्या बढ़ रही है। बुक पोर्टल के कारण कई हजार लोग ऑनलाइन की ओर खिंच रहे हैं. इन पोर्टल्स पर हमेशा कोई न कोई मौजूद होता है. रोज समाचार, समीक्षा, मौसम जानने के अलावा अकादमिक पेपर भी ऑनलाइन पढ़े जाते हैं. इसी तर्ज पर ऑनलाइन बुक पोर्टल की संख्या लगातार बढ़ रही है. इनमें युवा वर्ग ही नहीं, हर उम्र के लोग आकर्षित हो रहे हैं. ऑनलाइन किताबें पढ़ने वालों की औसत उम्र 40 है. इसकी शुरुआत उन लोगों से हुई जो जर्मन अखबारों में संस्कृति से जुड़े पेजों से नाराज थे. लोगों की आपत्ति थी कि इनमें बहुत कम पेज हैं और ओल्ड फैशन हैं. पारंपरिक अखबारों की तुलना में इंटरनेट में जगह की कोई समस्या ही नहीं है. आप जितनी चाहे समीक्षा कर सकते हैं. ऐसा भी देखा गया कि लोगों को अपने दोस्तों या अपने जैसा सोचने वाले लोगों की सिफारिश पसंद आती है. एक जैसा सोचने वाले लोगों की इंटरनेट पर तो कोई कमी है ही नहीं. पाठक भी आलोचक बन जाते हैं. यह कई बार प्रोफेशनल आलोचना नहीं होती लेकिन बहुत ही भावनात्मक और निजी समीक्षाएं भी पसंद की जा रही हैं.
ई बुक और इन्हें पढ़ने वाले लोग पुराने नहीं हुए हैं लेकिन इलेक्ट्रॉनिक किताबों के बाजार में आने के थोड़े ही समय में इन्हें पढ़ने वालों ने कई तरीके खोज निकाले हैं कि कैसे किताबों के बारे में चर्चा की जाए. वेब डिजाइनर कार्ला पाउल lovely-books.de में काम करती हैं. इस जर्मन बुक पोर्टल पर बहुत पाठक हैं और वे सब सोशल मीडिया यानी फेसबुक, ट्विटर के जरिए, लेखकों, ब्लॉगरों, प्रकाशकों और ऑन लाइन किताब बेचने वाले लोगों से जुड़े हुए हैं. पुस्तकों के कुछ हिस्से और चित्र यहां साझा किए जाते हैं. आप लेखकों के सर्कल में पाठक के तौर पर जुड़ सकते हैं. इस पोर्टल पर सबसे ताजा है बूखफ्रागे याने किताबी सवाल. अगर आप ई रीडर पर कोई किताब पढ़ रहे हैं और कोई पैराग्राफ आपकी समझ में नहीं आता तो उसके बारे में सवाल सीधे लेखक से पूछा जा सकता है. पाउल कहती हैं कि लेखक से सीधे बात करना बहुत ही रोमांचक अनुभव है. कंप्यूटर प्रोग्रामर सारा शाफ्ट ने कई बुक पोर्टल बनाए हैं जिन्हें काउच नाम के शब्द से लिंक कर दिया गया है. इस पर कुकिंग, बच्चों और इतिहास, सबकी किताबें उपलब्ध हैं.
प्रकाशक बुक पोर्टल्स पर गहरी नजर रखे हैं. बर्लिन प्रकाशन में कार्स्टन समरफेल्ड प्रेस ऑफिसर हैं. वह मानते हैं कि पाठकों से सीधे जुड़ना बहुत अच्छा है. और किताबों के बारे में जानने का यह सबसे अच्छा साधन है. कोई विज्ञापन पाठकों की बातचीत से अच्छा नहीं हो सकता और बुक पोर्टल्स से यही समझ में आता है. लेकिन हर व्यक्ति इन पोर्टल्स से खुश नहीं है. literatur-cafe.de बनाने वाले वोल्फगांग टिशर कहते हैं कि पोर्टल्स का सादापन खत्म हो गया है. उन्हें इस बात से नाराजगी है कि कई पोर्टल विशेष अभियान के तहत बनाए जाते हैं और इन्हें इस्तेमाल करने वालों को पता नहीं होता कि ये किसी प्रकाशन ने खरीदा हुआ है. टिशर कहते हैं, "अक्सर लोगों को पता नहीं होता कि कुछ किताबें सिर्फ इसलिए ऑनलाइन हैं क्योंकि प्रकाशकों ने इसके लिए पैसे दिए हैं." लेकिन किताब अगर अच्छी नहीं है तो यह कितनी भी खास और महंगी हो इसे पाठक तुरंत खारिज कर देते हैं. किताब के बारे में अच्छी बुरी बातें तेजी से पाठकों में फैलती हैं. सोशल नेटवर्क के कारण जर्मन पाठक सोच समझ कर किताब चुनने लगे हैं लेकिन उनकी आवाज मजबूत हुई है. (सबीने कोर्सुकेवित्स/आभा मोंढे)

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