Monday 1 December 2014

खोजी पत्रकारिता की मिसाल / आनंद जोशी

आई.सी.आई.जे. की रिपोर्ट के अनुसार विदेशों में कंपनियों और ट्रस्टों के जरिए निवेश तथा गोपनीय वित्तीय लेन-देन करने वाले 170 देशों की सूची उसके पास हैं। आंकड़ा सुनकर चौंकिएगा नहीं, 1 लाख 20 हजार कंपनियां उन देशों में खुली हुई हैं, जिन्हें 'टैक्स हैवन' देश कहा जाता है। काला धन छिपाने या उसे सफेद करने के लिए दुनिया भर के अमीरों में यह चलन किस कदर आम है, यह खोजी पत्रकारों के इस समूह की रिपोर्ट में बताया गया है। ब्रिटिश वर्जिन आइलैण्ड्स में अमरीका, कनाडा, चीन, भारत, पाकिस्तान, ईरान, थाईलैण्ड, मंगोलिया, इंडोनेशिया आदि दुनिया भर के अनेक देशों की कंपनियों और लोगों ने निवेश कर रखे हैं। आई.सी.आई.जे. का दावा है कि उसके पास लाखों दस्तावेज हैं, जिनसे मालूम चलता है कि ऐसी कंपनियों और लोगों के बीच क्या गठजोड़ है तथा कब कितना नकद धन कहां, किसे हस्तान्तरित किया गया। 

आई.सी.आई.जे. 160 खोजी पत्रकारों का अन्तरराष्ट्रीय संगठन है। ये पत्रकार 60  से अधिक देशों के बाशिन्दे हैं। वर्ष 1997 में स्थापित किए गए इस संगठन का मुख्यालय वाशिंगटन यानी उसी अमरीका में है, जो जूलियन असांजे को किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहता है। फर्क इतना है कि असांजे अकेले थे और उनकी कार्य-प्रणाली का केन्द्र-बिन्दु अमरीका था। आपको याद होगा, अमरीका जैसा शक्तिशाली देश एक खोजी पत्रकार जूलियन असांजे का जानी-दुश्मन बन गया था। विकीलीक्स के संस्थापक इस पत्रकार ने कई गोपनीय दस्तावेज उजागर किए थे। पूरी दुनिया में अमरीकी सरकार की कथनी व करनी की पोल खुल गई थी। पोल इतनी प्रामाणिक थी कि अमरीका से कोई जवाब देते नहीं बना। अमरीका ही नहीं, कई देशों की सरकारों, राजनेताओं, नौकरशाहों और अमीरों की पोल खोलने में जूलियन असांजे अग्रणी रहे। वे आज भी कई देशों की सरकारों की आंख की किरकिरी बने हुए हैं। विकीलीक्स का ताजा रहस्योद्घाटन राजीव गांधी और जॉर्ज फर्नांडीज को लेकर किया गया है। हालांकि कई लोग जूलियन असांजे को परम्परागत पत्रकार नहीं मानते, लेकिन असांजे ने जो काम किया, वह खोजी पत्रकारिता-जगत में मील का पत्थर बन गया।
पत्रकारिता-जगत में ऐसा ही कार्य फिर हुआ है। इस बार यह कार्य एक अकेले पत्रकार की बजाय खोजी पत्रकारों के एक अन्तरराष्ट्रीय समूह ने किया है। अगर आप आई.सी.आई.जे. (इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टीगेटिव जर्नलिस्ट्स) के दावे को माने तो यह सचमुच पत्रकारिता-जगत की अद्भुत घटना है। इस समूह ने काला धन विदेश में छिपाने वाले देशों और लोगों के बारे में जो दस्तावेजी सबूत एकत्र किए हैं, वे आंख खोल देने वाले हैं। हजारों स्वयंसेवी संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आन्दोलनकारियों के प्रयासों के बावजूद सरकारों के कानों में जूं तक नहीं रेंगती। ज्यादातर देशों की सरकारें और अमीरों की मिलीभगत के चलते काले धन की समस्या का आज तक कोई समाधान नहीं हो पाया। माना जाता है कि अगर काला धन नहीं छिपाया जाए और टैक्स चोरी नहीं की जाए, तो दुनिया में गरीबी और भुखमरी खत्म हो सकती है। लेकिन इस मामले में क्या पूंजीवादी और क्या कम्युनिस्ट, सभी देशों में एक-सा हाल है। आई.सी.आई.जे. की रिपोर्ट के अनुसार विदेशों में कंपनियों और ट्रस्टों के जरिए निवेश तथा गोपनीय वित्तीय लेन-देन करने वाले 170 देशों की सूची उसके पास हैं। आंकड़ा सुनकर चौंकिएगा नहीं, 1 लाख 20 हजार कंपनियां उन देशों में खुली हुई हैं, जिन्हें 'टैक्स हैवन' देश कहा जाता है। काला धन छिपाने या उसे सफेद करने के लिए दुनिया भर के अमीरों में यह चलन किस कदर आम है, यह खोजी पत्रकारों के इस समूह की रिपोर्ट में बताया गया है। ब्रिटिश वर्जिन आइलैण्ड्स में अमरीका, कनाडा, चीन, भारत, पाकिस्तान, ईरान, थाईलैण्ड, मंगोलिया, इंडोनेशिया आदि दुनिया भर के अनेक देशों की कंपनियों और लोगों ने निवेश कर रखे हैं।
आई.सी.आई.जे. का दावा है कि उसके पास लाखों दस्तावेज हैं, जिनसे मालूम चलता है कि ऐसी कंपनियों और लोगों के बीच क्या गठजोड़ है तथा कब कितना नकद धन कहां, किसे हस्तान्तरित किया गया। समूह ने दुनिया भर के लोगों सहित ६१२ भारतीयों के नाम भी उजागर किए हैं, जिनमें ज्यादातर उद्योग-जगत के लोग हैं। इनमें सीबीआई और आयकर विभाग की जांच के दायरे में आए कई उद्यमी हैं। विदेशों में भारतीय नागरिकों के काले धन को लेकर बहुत कुछ लिखा-कहा जा चुका है। केन्द्र सरकार को सब मालूम है। वह काले धन के खिलाफ कुछ भी क्यों नहीं करना चाहती, यह भी सब जानते हैं। कमोबेश यही हालात बाकी देशों के हैं। हालांकि कुछ देशों की सरकारों ने पहल की है, लेकिन ठोस परिणाम सामने नहीं आए। कारण साफ है, काले धन का कारोबार करने वालों की ऊंची पहुंच, सत्ता में दखल, कानूनी पेचीदगियां और सरकारों के संरक्षण के चलते उनकी चोरी पकडऩा मुश्किल और चुनौती भरा काम रहा है, लेकिन सबूतों के साथ जिस व्यापक स्तर पर (25 लाख फाइलें) आई.सी.आई.जे. ने दस्तावेज एकत्र किए हैं, उन्हें झाुठलाना किसी के लिए भी आसान नहीं है। आई.सी.आई.जे.160 खोजी पत्रकारों का अन्तरराष्ट्रीय संगठन है। ये पत्रकार 60 से अधिक देशों के बाशिन्दे हैं। वर्ष 1997 में स्थापित किए गए इस संगठन का मुख्यालय वाशिंगटन यानी उसी अमरीका में है, जो जूलियन असांजे को किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहता है। फर्क इतना है कि असांजे अकेले थे और उनकी कार्य-प्रणाली का केन्द्र-बिन्दु अमरीका था। इसके उलट आई.सी.आई.जे. एक अन्तरराष्ट्रीय समूह है, जिसमें दुनिया के कई जाने-माने खोजी पत्रकार शामिल हैं। साथ ही इस समूह की कार्यप्रणाली का केन्द्र कोई एक राष्ट्र न होकर समूची दुनिया है। यही वजह है कि इस समूह का दायरा तेजी से बढ़ रहा है। वैश्विक स्तर पर भी इसने अपनी साख कायम की है। आई.सी.आई.जे. के सलाहकार मंडल में  बिल कोवाश, रोजनल कैमन एल्वीस, फिलिप नाइटले, ग्वेन लिस्टर, ब्रांट हस्टन जैसे पत्रकार हैं। आस्ट्रेलियन पत्रकार गेराल्ड रील समूह के डायरेक्टर तथा अर्जेन्टाइना की मरिना वाकर ग्वारा डिप्टी डायरेक्टर हैं। रील को खोजी पत्रकारिता करते हुए रिपोर्टर और सम्पादक के तौर पर २६ वर्षों का अनुभव है। उन्होंने 'सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड' तथा 'द एज' जैसे अखबारों में काम किया। आई.सी.आई.जे. का उद्देश्य खोजी पत्रकारिता के जरिए बेहतर दुनिया के निर्माण में योगदान करना है। समूह राष्ट्रीय सीमाओं में बंधकर कार्य करने की बजाय वैश्विक दृष्टिकोण अपनाता है। उसका कार्य क्षेत्र सीमा पार की आपराधिक गतिविधियों, भ्रष्टाचार और सत्ता-शक्ति को उत्तरदायित्वपूर्ण बनाने पर केन्द्रित है। समूह का मानना है कि विकास और अंतरराष्ट्रीयकरण से मानव समाज पर कई तरह के दबाव बढ़ गए हैं। शक्ति-सम्पन्न लोग सत्ता और बाजार पर काबिज होकर जन हित की अनदेखी कर रहे हैं। ऐसे हालात में जब पत्रकारिता को अपनी आंख और कान खुले रखने हैं और खोजी पत्रकारिता की दुनिया को सबसे अधिक जरूरत है, तब आई.सी.आई.जे. जैसे समूह संगठन की भूमिका और अधिक बढ़ जाती है। इस समूह में पत्रकारों के अलावा अनेक देशों के मीडिया संस्थान भी सम्बद्ध हैं। इनमें प्रमुख हैं— बीबीसी वल्र्ड सर्विस, द इंटरनेशनल हेराल्ड ट्रिब्यून, ला मोन्डे (फ्रांस), अल मुन्डो (स्पैन), 'त्राऊ' (नीदरलैण्ड्स), फोहा दे साओ पालो (ब्राजील), ला सोइन (बैल्जियम), नोवाया गजेटा (रूस), द साउथ चाइना मोर्निंग पोस्ट (हांगकांग), द गार्जियन (ब्रिटेन), द संडे टाइम्स (ब्रिटेन), द हफिंग्टन पोस्ट (अमरीका), द एज (आस्ट्रेलिया), द इंडियन एक्सप्रेस (भारत)। आई.सी.आई.जे. हर दो साल बाद खोजी पत्रकारिता के लिए एक अन्तरराष्ट्रीय स्पर्धा प्रायोजित करता है, जिसके तहत चयनित पत्रकार को डेनियल पर्ल अवार्ड से नवाजा जाता है। बहरहाल, इस पत्रकार समूह ने गोपनीय निवेश और काले धन को लेकर जो तथ्य उजागर किए हैं, वह अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर खोजी पत्रकारिता का बेहतरीन उदाहरण है।
(readerseditor.blogspot.in से साभार)