Friday 17 October 2014

शताब्दी का गीत - 'स्ट्रेंज फ्रूट' / अबेल मीरोपाल

बलात्कार और हत्या कर लड़कियों, स्त्रियों की लाशें सार्वजनिक तौर पर चुनौती देती जैसे पेड़ों पर लटकायी जा रही हैं और इनकी रोकथाम के महकमे संभाले राजनेताओं के बीच मृतकों के कपड़े-लत्ते और शील-आचरण को लेकर जैसे शब्दों का आदान-प्रदान हो रहा है, उसके लिए 'शर्मनाक' शब्द छोटा पड़ गया है।
इन्हीं संदर्भों को लेते हुए यहां स्मरण करना प्रासंगिक और उचित होगा। 'स्ट्रेंज फ्रूट' पिछली सदी के तीस के दशक में न्यूयार्क स्टेट के एक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने वाले रूस से भागकर अमेरिका में बस गये गोरे यहूदी अबेल मीरोपाल का गीत है। वह यातना देकर मार डालने की संस्कृति के खिलाफ थे। अन्याय और उसको प्रश्रय देने वालों के प्रति अपनी घनघोर नफरत का इजहार करने के लिए ही उन्होंने यह गीत लिखा। शुरू में उन्होंने इस गीत शीर्षक 'कसैला फल' रखा था।
पहली बार यह गीत 1937 में अमेरिकी स्कूल शिक्षकों की पत्रिका में छपा था। सन 1939 में मशहूर अश्वेत गायिका बिली होलीडे ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर गाकर इस गीत को अमर कर दिया था। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में घायल अपने अश्वेत पिता को अस्पताल में (अश्वेत होने के कारण) इलाज न करने पर तिल तिल कर मरते देखा था। गीत गाने पर मां की नाराजगी के विरोध में उन्होंने कहा था- अपनी कब्र में भी मैं इस गीत को अपने साथ रखूंगी। उसके बाद लगभग चालीस अन्य गायकों ने भी इस गीत गाया।
आज अमेरिकी समाज में अश्वेत समुदाय पर होने वाले अत्याचारों के विरोध का यह दस्तावेजी गीत बन गया है। 1999 में टाइम मैग्जीन ने इसको 'शताब्दी का गीत' घोषित किया था। वर्ष 2010 में न्यू स्टेट्स मैन ने इसको दुनिया के बीस सर्वश्रेष्ठ गीतों में शुमार किया था -

दक्खिन के पेड़ों में लगा हुआ है एक अजीबोगरीब/अनोखा सा फल
पत्तियों पर लहू के धब्बे... जड़ें भी लहूलुहान
दक्खिनी हवाओं से हिल रहे हैं काले कलूटे शरीर
यह अजीबोगरीब / अनोखा फल लटक रहा है पोपलर के पेड़ पर...

लड़के दक्खिनी चरवाहों के इलाके का मंजर ऐसा
कि बाहर निकल आयीं आंखें और वीभत्स हो गए मुंह
घर फूलों की गमक उतनी ही मोहक और तरोताजा
पर बीच बीच में घुस आती हैं जलते हुए मांस की सड़ांध

यहां फूल खिला है जिसे नोच ले जायेंगे कौवे
जिन पर गिरेगा बरसात का पानी, जिसको सूंघेगी बहती हुई बया
जिसे सड़ा डालेगी धूप.... और एक दिन जमीन पर गिरा देगा पेड़
यहां उगी हुई है एक अजीबोगरीब / अनोखीकसैली फसल....
('पहल' से साभार)