Sunday 12 March 2017

'कविकुंभ' के प्रकाशनोत्सव में जुटे साहित्य के महारथी


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दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में मासिक 'कविकुंभ' के प्रकाशनोत्सव मंच पर साहित्य के महारथी माहेश्वर तिवारी, लीलाधर जगूड़ी, असगर वजाहत, अशोक चक्रधर, राजशेखर व्यास, प्रभात प्रकाशन समूह के प्रमुख पवन अग्रवाल, हिमालयन कंपनी के डाइरेक्टर डॉ.एस फारुख, डॉ.इच्छाराम द्विवेदी आदि।
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कविकुंभ के प्रकाशनोत्सव में देश के जाने-माने नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि साहित्यिक आयोजनों में जब से नवधनाड्य वर्ग साझेदार हुआ है, कविता के मंच परफार्मेंस मंच हो गए हैं। ऐसे आयोजकों के महत्वपूर्ण हो जाने से मंच की गरिमा टूट रही है। पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि कविता एक दृष्टि है। छंद के बिना कविता चल रही सकती है। शायर जहीर कुरैशी ने कहा कि कविता उत्पाद नहीं। जो दिल से फूटे, वही कविता है। कवि-साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
ने कहा कि कविता मनुष्यता की आखिरी उम्मीद है। कवि अशोक चक्रधर ने कहा कि 'कविकुंभ' महाकुंभ से बढ़कर है। प्रसिद्ध कथाकार अजगर वजाहत का कहना था कि मंचीय कविता और साधारण कविता में कोई अंतरविरोध नहीं है।
दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 'कविकुंभ' एवं 'बीइंग वूमेन' के साझा संयोजन में आयोजित कार्यक्रम के प्रथम सत्र को संबोधित करते हुए अध्यक्ष माहेश्वर तिवारी ने कहा कि साहित्यिक मंचों का समय अब पहले जैसा नहीं रहा। इस जमाने में नवधनाड्य वर्ग ने कविसम्मेलन के मंचों की श्रेष्ठता के स्वरूप को पैसे की ताकत से बदल दिया है। वहां से कविता विस्थापित की जा रही है। इससे मंच की गरिमा ढह रही है। अच्छे रचनाकारों को इस ओर से सचेत और सक्रिय होना होगा, तभी सीधे संवाद के लिए कवियों को जागरूक श्रोता उपलब्ध हो सकेंगे।
पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि कविता शब्दों के बाहर भी होती है। कविता एक दृष्टि है। इससे व्यक्ति की सोच में परिवर्तन आता है। कविता हजार तरह की होती है। इसे भिन्न-भिन्न होना भी चाहिए। उन्होने कहा कि भाषा मनुष्य ने बनाई है। भाषा नहीं, विचार मुख्य होता है। उनका मानना था कि कवि होना अभिशप्त होना है। कहा जाता है- कविरेक प्रजापति। कविता की रचना ब्रह्म करता है। उसकी रचना मनुष्य है। यही उसकी कविता है। कविता को अन्याय का प्रतिरोध करना चाहिए। कथन विशेष ही कविता होती है। उसका प्रकृति से संवाद होता है।
असगर वजाहत ने कहा कहा कि कविता मानव से मानव को जोड़ती है। कविता के विभिन्न स्तर हैं। और सभी महत्वपूर्ण हैं। मंचीय कविता और साधारण कविता में कोई विशेष अंतरविरोध नहीं है। हमारे यहां अनपढ़ व्यक्ति भी कविता को समझता है। ग्रहण करता है।
अशोक चक्रधर ने कहा कि साहित्य और मंच साथ-साथ नहीं हो सकते। 'कविकुंभ' का महत्व महाकुंभ से अधिक है। स्वस्थ साहित्य की दिशा में 'कविकुंभ' के प्रयास सराहनीय हैं। पत्रिका में नए कवियों को महत्व मिले तो बेहतर होगा।
डॉ. लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने कहा कि कविता में दो सम्प्रदाय हो गए हैं, छंदमुक्त और छंदयुक्त। निराला ने जनसंवाद के लिए छंद तोड़ा था। 'कविकुंभ' की पहल दुखती रग को छूने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि संगीत या कला को अमीरों के ड्राइंग रूम की रौनक न बनाकर आम आदमी तक पहुंचाना होगा। कविता, कला, संगीत मनुष्यता की आखिरी उम्मीद हैं।
जाने-माने गजलकार जहीर कुरैशी ने कहा कि कविता कोई उत्वाद नहीं है। जो दिल को छू जाए, वही कविता है। कविता अगर कहानी या निबंध की तरह होगी तो नीरसता आएगी। तुकबंदी के उत्पाद की बजाए कविता का सरोकार हृदय से होना चाहिए। डॉ.मोहम्मद आजम ने कहा कि बेहतरीन शब्दों का कुशल संयोजन ही कविता है। डॉ.शकील जमाली ने कहा कि कविता हृदय पर जमी बर्फ को तोड़ती है। रहमान मुसव्विर का कहना था कि कविता हृदय का नृत्य है।
राजशेखर व्यास ने कहा कि कविता रेत में तड़पती हुई मछली है, जो सरोवर की आस्था को जन्म देना चाहती है। कविता हृदयग्राही होनी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि तू मुझे छाप, मैं तुझे छापूं। नेहरू चाहते थे कि अपने जीवन को वह एक कविता बना लें। कविता जगाने का नाम है। मुस्कराहट भी एक कविता है।
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चित्र में बांए से सुशीला श्योराण, ममता किरण, लीलाधर जगूड़ी, बालस्वरूप राही, रमा सिंह, मृदुला टंडन और दांए सबसे अंत में बीइंग वूमेन की राष्ट्रीय अध्यक्ष रंजीता सिंह फलक.
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दूसरे सत्र में बीइंग वूमेन की राष्ट्रीय अध्यक्ष रंजीता सिंह की ओर आयोजित 'फलक-20017' के अंतर्गत देश की जानी-मानी शायरा, कवयित्रियों, जागरूक महिलाओं, पत्रकारों को स्वयं सिद्धा सम्मान से समादृत किया गया। समारोह को पद्मश्री पद्मा सचदेव, बालस्वरूप राही, डॉ. इच्छाराम द्विवेदी, प्रभात प्रकाशन के प्रमुख पवन अग्रवाल, कवि नरेश शांडिल्य, कुमार मनोज, राजभाषा विभाग के सहायक निदेशक डॉ.पूरन सिंह, मध्य प्रदेश उर्दू एकेडमी की सचिव डॉ. नुसरत मेंहदी, कवयित्री सुशीला श्योराण, उर्वशी जान्हवी अग्रवाल, डॉ. मुक्ता मदान, दूरदर्शन की प्रोड्यूसर रमा पांडेय, उ.प्र. हिंदी संस्थान की अधिकारी डॉ.अमिता दुबे, जागेश्वरी चक्रधर, जम्मू के शायर प्यासा अंजुम, मध्य प्रदेश के कवि डॉ.रामगरीब विकल, महेश कटारे सुगम आदि ने भी संबोधित किया। इस अवसर 'कविकुंभ' के अलावा कवि जसवीर सिंह हलधर के काव्य-संकलन 'शंखनाद' का भी विमोचन किया गया। कार्यक्रम में देश के चौदह राज्य से बड़ी संख्या में कवि-साहित्यकारों, महिला रचनाकों ने भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में विश्व महिला दिवसर में 11-11 महिलाओं को स्वयं सिद्धा सम्मान से सम्मानित किया गया। दोनो सत्रों का कुशल संचालन प्रसिद्ध शायरा रंजीता सिंह 'फलक' ने किया।

शब्दों के स्वाभिमान की मासिक पत्रिका कविकुंभ

कविकुंभ शब्दों के स्वाभिमान की पत्रिका है, इससे साहित्य के गंगोजमन गहरे सरोकार हैं, इससे देशभर के कवि-शायर, कवयित्री, शायरा, लेखक, आलोचक, समीक्षक जुड़ रहे हैं, इस अभियान में साझा होने की मित्र परिवार से भी उम्मीदें हैं ताकि हमे आपका साथ मिले, स्वर मिले, शब्द मिलें, 'कविकुंभ' आपकी भी आवश्यक आवश्यकता बने। 
'कविकुंभ' किसी साहित्यिक पत्रिका के बहाने निजी महत्वाकांक्षाएं परवान चढ़ाने, बिना किए-धरे प्रसिद्ध हो लेने का छद्म प्रयोजन नहीं, बल्कि इसके पीछे एक सुचिंतित प्रकल्प है, एक ऐसा अंतहीन अभियान, जो शीर्ष साहित्य मनीषियों से वंचित मंच उनके लिए पुनः-पुनः सुलभ होने का मार्ग प्रशस्त करा सके। मानते हैं, सपना आसान नहीं, लेकिन असंभव भी नहीं। यह 'कविकुंभ' के प्रकाशनोत्सव में देश के शीर्ष कवि-साहित्यकारों की एकजुट उपस्थिति से स्पष्ट हो चुका है। यह अभियान उनके इच्छानुकूल मंचीय स्थितियां लौटा लेने की जिद है। यह अलग बात है कि हम इस दिशा में कितना सफल हो पाते हैं। 
इसलिए वाकई जिनके लिए साहित्य और स्वस्थ साहित्यिक मंच प्राथमिक हैं, उनसे 'कविकुंभ' को हर तरह के सहयोग की उम्मीद है। साहित्यिक लोक-मंच सबसे पहले उन्हें चाहिए, जो अपने स्वस्थ रचना-संसार के नाते ज्यादा लोक-स्वीकार्य और हमारे समय के लिए ज्यादा वास्तविक, ज्यादा जरूरी हैं। आप के सरोकार कविकुंभ का, अभद्र मंचों का भी भविष्य तय करेंगे। आपके साझा होने से 'कविकुंभ' को शक्ति मिलेगी और अच्छे साहित्यकारों के मंच पर प्रभावी होने का अवसर भी, क्योंकि पत्रिका के साथ हम अब हर महीने, हर नए अंक के साथ देश-प्रदेश के किसी न किसी हिस्से में लगातार स्वस्थ साहित्यिक आयोजन भी करने जा रहे हैं। कविकुंभ में आपकी रचनाओं का भी हार्दिक स्वागत है।
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** संपादक, 'कविकुंभ'