Sunday 30 June 2013

कैसे बनी गिनीज बुक?


गिनीज़ व‌र्ल्ड रिकार्ड्स (अंग्रेजी: Guinness World Records; हिन्दी अनुवाद: गिनीज़ विश्व कीर्तिमान), प्रतिवर्ष प्रकाशित होने वाली एक सन्दर्भ पुस्तक है जिसमें विश्व कीर्तिमानों (रिकॉर्ड्स) का संकलन होता है। सन् 2000 तक इसे 'गिनीज़ बुक ऑफ रिकॉर्ड्स' (अमेरिका में गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स) के नाम से जाना जाता था। यह पुस्तक 'सर्वाधिक बिकने वाली कॉपीराइट पुस्तक' के रूप में स्वयं एक रिकार्डधारी पुस्तक है। यह पुस्तक अमेरिका के 'सार्वजनिक पुस्तकालयों से सर्वाधिक चोरी जाने वाली पुस्तक' भी है।
सन 1951 की बात है। ह्यूज बीवर उन दिनों गिनीज ब्रेवरीज में काम करते थे। एक दिन वे अपने दोस्तों के साथ चिड़ियों का शिकार करने के लिए निकले। युवा शिकारियों का यह दल कुछ समझ पाता इससे पहले ही उनके सामने से चिड़ियाओं का एक झुंड बहुत तेजी से निकल गया। ह्यूज और उनके दोस्त हैरत में पड़ गए कि आखिर ये कौन सी चिड़ियाएँ है थीं जो इतनी तेजी से उड़ती हैं। कुछ का अंदाजा था कि वह बया जैसा कोई पक्षी था जबकि कुछ कह रहे थे कि वह तीतर से मिलती कोई प्रजाति थी। यह तय नहीं हो पाया कि आखिर वे कौन सी चिड़ियाएँ थीं। ह्यूज ने घर आकर यह पता लगाने के लिए किताबें अलटी-पलटी कि आखिर योरप का सबसे तेज उड़ने वाला पक्षी कौन सा है। कई किताबें उलटने के बाद भी उन्हें अपनी जिज्ञासा का उत्तर नहीं मिला। ह्यूज अपने काम में लगे रहे। 1954 में एक किताब में उन्होंने अपने प्रश्न का उत्तर पाया, यह भी कोई बहुत प्रामाणिक उत्तर नहीं था। इस पूरी घटना से ह्यूज बीवर के मन में यह बात आई कि कई लोगों के मन में इस तरह के प्रश्न उठते होंगे और उनका उत्तर न मिलने पर इन्हें कितनी निराशा होती होगी। ह्यूज ने यह विचार अपने मित्रों को सुनाया। मित्र ने उन्हें नोरिस और रॉस मॅक्विटर नाम के दो युवकों से मिलाया। ये दोनों लंदन में एक तथ्यों का पता लगाने वाली एजेंसी के लिए काम करते थे। ‍तीनों ने मिलकर 1955 में पहली गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्‍स निकाली और फिर धीरे-धीरे यह नई किताब लोगों को इतनी पसंद आने लगी कि इसकी प्रतियाँ हर साल बढ़ती गईं। आज इस रिकॉर्ड बुक में नाम दर्ज करवाने के लिए दुनियाभर के लोग उत्सुक रहते हैं और तरह-तरह के काम करते हैं। ह्यूज एक मुश्किल में पड़े और उससे एक नया रास्ता निकला। याद रहे, हर मुश्किल के पास सिखाने के लिए बहुत कुछ होता है।

वर्तमान का इतिहास है- गिनीज बुक
नरेन्द्र कौशिक
गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकाड्र्स’ एक विश्व विख्यात पुस्तक है और यह नाम अब लोगों के लिए अनजाना नहीं है। विभिन्न क्षेत्रों में सर्वप्रथम बनाए गए ऐसे कारनामे इसमें लिखित हैं जो वर्तमान में प्रेरणादायक तथा भविष्य के लिए पथ प्रदर्शक हैं। विभिन्न क्षेत्रों में पूरे विश्व में कीर्तिमान बनाने वाले लोगों के नाम इसमें अंकित किए जाते हैं। इसमें प्रतिवर्ष कुछ नए रिकाड्र्स बढ़ जाते हैं जो इस पुस्तक को अधिक उपयोगी व सार्थक बनाते हैं। इस तक अपना नाम पहुंचाने वाले लोग विद्रोही, सजग व सचेत व्यक्तित्व वाले होते हैं जो कई बार अपनी जान हथेली पर रखकर कुछ अद्भुत करने की सामथ्र्य व क्षमता रखते हैं जो अब तक किसी ने न किया हो।
किन्तु मुख्य प्रश्न यह है कि इसका आरम्भ कब हुआ तथा इसका प्रणेता कौन है। इस किताब की पृष्ठïभूमि में आयरलैंड के एक धनी व्यक्ति ‘सर ड्यू बीपर’ का चिंतन व प्रयास है। सन् 1951 में एक दिन वह अपने मित्रों के साथ शिकार करने निकला। कुछ देर बाद उनके सामने से ‘बया’ नामक चिडिय़ों का झुण्ड इतनी तेज़ गति से निकला कि वे उनका शिकार न कर सके। ऐसा तीन-चार बार हुआ और वे बिना शिकार किए खाली हाथ लौटने पर बाध्य हो गए। फिर वे इसी विषय पर वार्ता करने लगे कि क्या ये छोटे पक्षी यूरोप के सबसे तेज़ उडऩे वाले पक्षी हैं? उन्होंने अनुभव किया कि ये तो तीतर से भी तेज़ उड़ते हैं क्योंकि तब तक तीतर पक्षी को ही सर्वाधिक तेज़ी से उड़ान भरने वाला पक्षी माना जाता था। बीपर की जिज्ञासा का उत्तर उसे बहुत सी पुस्तकें देखने के पश्चात भी न मिला। उसने यह अच्छी प्रकार समझ लिया कि उसकी तरह असंख्य लोग होंगे जो किसी न किसी समस्या या विवाद के विषय में अपनी जिज्ञासा का उत्तर पाने में असमर्थ होंगे और उसी की भांति बेचैन होते होंगे क्योंकि अभी तक कोई ऐसी किताब नहीं थी जिसमें ऐसे प्रश्नों के उत्तर मिल सकते।उस समय लंदन में एक ऐसी न्यूज़ एजेंसी थी जो केवल समाचार-पत्रों द्वारा पूछे गए प्रश्नों व जिज्ञासाओं का उत्तर देती थी।
इस एजेंसी को नोरस तथा मैक हिवरटर नाम के दो भाई चलाते थे। सर ड्यू बीपर ने उनसे मित्रता का संबंध स्थापित किया तथा उनसे मिलकर विचार-विमर्श किया कि क्या कोई ऐसी किताब लिखी जा सकती है जिसमें सभी प्रकार के प्रश्नों के उत्तर श्रेष्ठï जानकारी के रूप में प्राप्त  हो सके? उन दोनों भाइयों को बीपर का सुझाव बहुत पसंद आया और उन्होंने तभी से इस दिशा में साधन जुटाने आरम्भ कर दिए तथा पुस्तक तैयार करने के लिए प्रयासों को तीव्र करते हुए अन्य कई स्थानों की यात्राएं की।
अंत में अगस्त 1955 में उन्होंने एक पुस्तक ‘गिनीज़ बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉडर्स’ प्रकाशित करने में सफलता प्राप्त की। सन् 1974 तक इसकी 2 करोड़ 39 लाख प्रतियां बिक गई जो अपने आप में एक नया रिकार्ड था। इससे पहले उनकी प्रकाशित की हुई कोई भी पुस्तक इतनी अधिक मात्रा में नहीं बिकी थी। अत: ‘गिनीज़ बुक’ में प्रथम रिकार्ड उसी के विक्रय  के संबंध में लिखा गया। इसकी वर्तमान स्थिति यह है कि अब लगभग तीस भाषाओं में प्रकाशित होती है। इसके संपादक आरम्भ में समाचार पत्रों तथा अन्य पुस्तकों व पत्रिकाओं और संवाददाताओं की सहायता से इसमें रिकार्ड भरते थे। वे अपने परिचितों, संबंधियों तथा मित्रों की भी सहायता लेते थे। कुछ समय बीतने के पश्चात लोगों को जब इसकी विस्तृत जानकारी मिली तो उन्होंने स्वयं संपादकों को विभिन्न जानकारियां भेजनी आरम्भ कर दीं। अब विश्व के सभी देश इसमें अधिक से अधिक ऐसे कार्यों की जानकारियां प्राप्त करने में प्रतियोगी बने हुए हैं, जो अब तक किसी के द्वारा न किए गए हों। आज सभी क्षेत्रों के लोग कुछ अद्भुत करके इस किताब में अपना नाम लिखवाने के लिए लालायित तथा प्रयासरत हैं। वास्तव में जहां यह पुस्तक जानकारियों का कोष है वहीं एक महान प्रेरणा स्रोत भी है।

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