Sunday 30 June 2013

मां की गोद की तरह किताबें


सत्यनारायण

किताबों का मेरे जीवन मेे एक खाास मुकाम रहा है। वो मेरे लिए एक तरह से जीवन है। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मेरे घर में टीवी नहीं है। पचपन साल पार कर लेने के बावजूद भी मुझे कभी टीवी की जरूरत महसूस नहीं हुई। इसका कहीं ना कहीं कारण यही था कि मेरे आसपास किताबें थी। किताबों से मुझे ताकत मिलती है। मेरे प्रिय लेखकों में है, दोस्तोयवस्की, विसेट गॉग और फ्रांज काफ्का।
भारतीय लेखकों की बात करें तो मुझे मुक्तिबोध, निर्मल वर्मा और फणीश्वर नाथ रेणु पसंद है। मुक्तिबोध मेरे सर्वकालिक पसंदीदा लेखक रहें हैं। लोग उन्हें कवि, आलोचक मानते हैं पर मैं उन्हें कहानीकार के तौर पर ज्यादा पसंद करता हूं। उनकी कहानी क्लाड इथरली ऎसी कहानी है जो मैं बार-बार पढ़ता हूं। जितनी भी बार इसे पढ़ता हूं, यह हर बार नई लगती है।
यह कहानी मुझे प्रेरणा देती है। इसी तरह इन्हीं दिनों मैं इरविन स्टोन की लस्ट फोर लाइफ पढ़ रहा हूं। यह प्रसिद्ध चित्रकार वॉन गोग की कहानी है। इसे मुझे बार-बार पढ़ने का मन करता है। एक कलाकार के जीवन की मुसीबतें और उसके द्वारा जिंदगी के लिए लड़ने का हौसला ही मुझे अपने जीवन में भी लड़ने का साहस देता है। यही वो चीजें हैं, जो मुझे जीने की प्रेरणा देती हैं।
किताबों के बिना तो जीवन की कल्पना भी बहुत मुश्किल है। कह सकते हैं कि उनकी लत है मुझे। मैं उन्हे चाहे पढूं ना, पर वो मेरे आस-पास होनी ही चाहिए। उनका स्पर्श या गंध ही मेरे लिए काफी हैं। उनके बिना तो जीवन की कल्पना ही बहुत कठिन है। जब कहीं बाहर होता हूं तो इनकी यादे ज्यादा परेशान करती हैं। एक बार जब मैं नया-नया नौकरी के सिलसिले में जोधपुर गया तो मेरा थैला चोरी हो गया। मैं पूरी रात सो नहीं पाया। तभी मुझे किताबों के लिए मेरे लगाव का अहसास हुआ। आज भी कहीं ना कहीं किताबों के लिए मेरे मन में वैसा ही उन्माद है।
किताबें मेरे लिए एक तरह से प्रति संसार की तरह भी हैं। ऎसा कह लीजिए कि जिस संसार में हम जी रहें है उससे इतर एक अलग संसार। चूंकि वहां भी जीवन है इसलिए वो खास भी है। किताबों को मैंने हमेशा एक मां के रूप में ही पाया है, जिसकी गोद में सिर रखकर सुकून लेता हूं। जब भी लोगों से, परेशानियों से या कठिनाईयों से घिर जाता हूं तो उसी की गोद में दुबक जाता हूं।
मां की ही तरह वो मुझे थपकियां भी देती है। राजस्थानी भाषा में कहूं तो किताबें वो खोह हैं, जहां जाकर मैं इस भीड़ से बचने के लिए छिप जाता हूं। पर साथ ही एक बात और है कि किताबों का संसार इस लौकिक संसार से अलग है इसलिए कभी-कभी तो वो हमारे कोई काम भी नहीं आता। (www.dailynewsnetwork.in से साभार)

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