Sunday 30 June 2013

मोनालिसा: एक अनसुलझा रहस्य


लिओनार्दो दा विंची के द्वारा कृत एक विश्व प्रसिद्ध चित्र है। यह एक विचारमग्न स्त्री का चित्रण है जो अत्यन्त हल्की मुस्कान लिये हुए है। यह संसार की सम्भवत: सबसे प्रसिद्ध पेंटिंग है जो पेंटिंग और दृष्य कला की पर्याय मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इतालवी चित्रकार लियोनार्दो दा विंची ने मोनालिसा की तस्वीर 1503 से 1506 के बीच बनाई थी। समझा जाता है कि ये तस्वीर फ़्लोरेंस के एक गुमनाम से व्यापारी 'फ़्रांसेस्को देल जियोकॉन्डो' की पत्नी 'लिसा गेरार्दिनि' को देखकर आंकी गई है। सम्प्रति यह छबि फ्रांस के लूव्र संग्रहालय में रखी हुई है। म्यूज़ियम के इस क्षेत्र में 16वीं शताब्दी की इतालवी चित्रकला की कृतियाँ रखी गई हैं। मोनालिसा की असल पेंटिंग केवल 21 इंच लंबी और 30 इंच चौड़ी है। तस्वीर को बचाए रखने के लिए एक ख़ास किस्म के शीशे के पीछे रखी गई है जो ना तो चमकता है और ना टूटता है।
मोनालिसा कला जगत का वह जाना पहचाना नाम है जिससे पूरी दुनिया परिचित है, कौन है मोनालिसा? वह क्या है इसकी विशेषता? सदियों से कलाकारों, कलाप्रेमियों के साथ-साथ सामान्य लोगों के लिए भी एक अबूझ पहेली रही है। मोनालिसा विश्‍व प्रसिद्ध ईटली के महान कलाकार लीयनार्दो दि विंची की वह अमर कलाकृति है जिसे विंची ने सन् 1503 से 1507 के मध्य पेंट किया इस चित्र को बनाने में लीयनार्दो को चार वर्ष लगे, यद्यपि इसी दौरान उन्होंने सेन्टपॉल बपतिस्त तथा वर्जिन एण्ड चाईल्ड विद सेंट आंद्रे नामक दो अन्य कलाकृतियाँ भी बनाई। लगभग 500 वर्ष पूर्व 30.5” ऊँचे 20 7/8 चौड़े, 12 मी0 मी0 मोटाई के पोपलर लकड़ी के पैनल पर आयल कलर से बनें महिला के पोटे्ट पर पूरी दुनिया में रिसर्च व बहस चल रही है। यह रिसर्च केवल कलाकारों, कलासमीक्षकों व इतिहासकारों तक ही सीमित नहीं है बल्कि डॉक्टर, कम्प्यूटर विशेषज्ञों सहित अन्य क्षेत्र के धुरंधर भी अपने-अपने तरीके से इस रहस्य को सुलझाने में जुटे हुए हैं। आजतक दुनिया की किसी भी अन्य कलाकृर्ति के बारे में इतना विवाद व कौतूहल नहीं रहा जितना मोनालिसा के बारे में है। इस कलाकृति को बनाने वाले कालजयी कलाकार लिनाददीविंची का जन्म ईटली के फ्लोरेंस शहर के पूर्व दिशा में स्‍थित विंची नामक एक छोटे से कस्बे में सन् 1452 को हुआ था। इनके पिता सर पियरेंदविंची एक नोटरी थे व बचपन से ही कला में लीयनार्दो की गहरी रूची को पिता ने कला की उच्च शिक्षा के लिए पैरिस भेज दिया। जो कि उस समय कला शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र था, यहाँ रह कर वे एक बेराकिया के स्टूडियों में कला की शिक्षा लेने लगे। यहाँ रहकर लीयनार्दो ने अपने गुरू से चित्रकला का व्यापक ज्ञान प्राप्‍त किया व इसकी बारीकियों से परिचित हुए। शीघ्र ही गुरू ने महसूस किया कि उनका शिष्य उनसे भी कहीं गुणी व प्रतिभावान है, अतः गुरू के पास जितना भी ज्ञान था, अपने शिष्य विंची को दे दिया।
चित्रकला के अतिरिक्त इंजीनियरिंग, मानव शरीर संरचना के अध्ययन में भी लियनार्दो को महारत हासिल थी वे सचमुच के जीनियस थे। राईट बंधुओं के जन्म से सैकड़ों वर्ष पहले जब हवाई जहाज की कल्पना भी मुश्किल थी तब लियनार्दो ने हवा में उड़ने वाली मशीन का माडल बनाया था। मानव शरीर की जटिल संरचना को समझने के जूनून के चलते लियनार्दो रात के अंधेरे में कब्रिस्तान से शव खोद कर स्टूडियों में लाकर उसकी चीरफाड़ करते। मानव शरीर के आंतरिक अंगों को काटते व उनकी ड्रांइंग बनाकर विस्तृत नोट्स लिखते। ये ऐतिहासिक ड्रांइंग्स व नोट्स आज भी सुरक्षित हैं, यूँ तो लियनार्दो ने अपने जीवन में सैकड़ों पेंटिंगस् व स्केच बनाये हैं जिनमें से कुछ प्रसिद्ध कला-कृतियों के नाम हैं, दा लास्ट सपर, मेडोना इन इत्यादि पर जितनी अधिक ख्याति मोनालिसा नामक कृति को मिली है, वह वास्तव में हैरतंगेज है।
सन् 1805 तक फ्रांस के शाही कला संग्रह की शोभा रही यह पेंटिंग अब पेरिस के लूव्र म्यूजियम में प्रदर्शित है। इस तस्वीर के बारे में कहा जाता है कि पोर्ट्रेट में चित्रित महिला इटली के एक धनी रेशम व्यापारी की पत्नी थी। पेंटिंग में मोनालिसा के बैकग्राउण्ड में खूबसूरत नदी, वृक्ष व झरनेयुक्त प्राकृतिक दृश्य दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है जैसे स्टूडियों में एक विशाल खुली हुई खिड़की के सामने बैठाकर मॉडल को पेन्ट किया गया है। कहा जाता है कि 16 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में जब यह पेंटिंग बनाई गई उस समय इटली के अभिजात्य वर्ग की महिलाओं में अपनी भौहों को शेव करना फैशन में था तब फ्रांस में धनाढ़य वर्ग की महिलाएं भौहें नहीं रखती थी, सफाचट भौहें सुन्दरता व समृद्धि का प्रतीक मानी जाती थी, यही कारण है कि मोनालीसा की भी भौहें नहीं है।
अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी में शरीर संरचना विभाग के प्रोफेसर शेर्विन न्यूलैंड ने अपनी खोज में दावा किया है कि जब लियनार्दो ने मोनालिसा को बतौर मॉडल चित्रित किया, उस समय वह गर्भवती थी। यही वजह है कि उसने अपने शरीर पर एक भी आभूषण नहीं पहना है, यहाँ तक कि अंगुलियों में अँगूठी तक नहीं है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान शरीर पर आई सूजन के कारण उसने अँगूठियाँ पहले ही उतार कर रख दी होंगी, अन्यथा कोई भी धनवान स्त्री अपना चित्र बनवाते समय अपनी पसन्द के कुछ आभूषण तो अवश्‍य ही पहनती। शेर्विन का कथन है कि गर्भावस्था के कारण ही मोनालिसा के दोनों हाथों व चेहरे पर आई सूजन चित्र में स्पष्ट देखी जा सकती है। वह अपने दोनों हाथों को पेट पर इस प्रकार रखे हुए है जिससे गर्भावस्था में बढ़े हुए पेट का आकार छुप जाए।
फ्लोरेन्स जहाँ पर सन् 1503 में पेंटिंग बननी शुरू हुई वहाँ से प्राप्‍त दस्तावेजों के आधार पर उनका कथन है कि इसी वर्ष के अन्त में मोनालीसा ने एक शीशु को जन्म दिया था। एक इतालवी व अमेरिकी शोधकर्ता द्वारा फ्लोरेन्स से प्राप्‍त चर्च के पादरी बपत्तिस्मा चर्च के पादरी द्वारा शिशु के नामकरण की धार्मिक रस्म दस्तावेजों के हवाले से इस बात की पुष्‍टि की गई है। न्यूलैंड का विश्‍वास है कि मोनालिसा ने अपने पेट में पल रहे बच्चे की स्मृति व अनुसंशा से अपना चित्र बनवाया था। उनका कथन है कि संसार में आने वाले नये जीवन का रोमांच व मातृत्व को पुलकित कर देने वाली प्रसन्नता के कारण ही उसके चेहरे पर यह अलैकिक व अद्भुत मुस्कान है। एक अन्य खोज में फ्लोरेंस निवासी जियूसेवे पल्लाती नामक एक अध्यापक ने 25 वर्षों तक शहर के तमाम प्राचीन दस्तावेजों व अभिलेखों की खाख छानने के बाद रहस्योद्धाटन किया, सन् 1495 में एक धनी रेशम व्यापारी सर फ्रांसिस्को डेल जकाडें के साथ लिसा घेरारदिनी का विवाह हुआ था।
सन् 1550 में पुर्नजागरण कालीन कलाकारों के इटली निवासी प्रसिद्ध जीवनी लेखक जार्जियो वसारी द्वारा रेशम व्यापारी की पत्नी लिसा घेरारदिनी की तस्वीर को मोनालिसा नाम दिया गया। हलाँकि इसके सदियों बाद तक भी इस कलाकृति में चित्रित इस महिला को उसके अन्य प्रचलित नाम लाजिओकान्डे से भी जाना जाता रहा है। उस समय की अधिकतर कला-कृतियों की भांति इस चित्र में भी कलाकार के हस्ताक्षर, तिथि व पोज देने वाली मॉडल का नाम नहीं है।
पल्लानती के अनुसार लीयनार्दो के पिता सर पियरे व फ्रांसिसको के घर परस्पर अधिक दूरी पर नहीं थे, पर दोनों ही परिवारों के बीच परस्पर घनिष्ठ संबंध थे। उस समय मोनालिसा की आयु 24 वर्ष थी।
सदियों से मोनालीसा की रहस्यमय मुस्कुराहट जहाँ रहस्य बनी हुई है वहीं जर्मन के कला इतिहासकार सुश्री माईक बोग्ट-लयरेसन ने दावा किया है कि तस्वीर में दिख रही महिला इटली के अरांगो प्रान्त के डियूक की पत्नी ईशाबेला है। सुश्री माईक के अनुसार ईशाबेला की मुस्कान में दुख है क्योंकि लीयनार्दो के पेंटिंग बनाने से कुछ समय पहले ही उसकी माँ का देहान्त हो गया था। माईक की माने तो ईशाबेला का शराबी पति नशे में धुत् होकर उसे अक्सर मारता-पीटता था। अपनी प्रकाशित पुस्तक ‘हू इज मोनालिसा ’ इंसर्च में अनेकों समानतांएं गिनवायी हैं। पुस्तक में आगे लिखा है कि लियनार्दो जो कि डियूक के दरबार में शाही कलाकार थे, ईसाबेला के काफी निकट थे। करीब 8 वर्ष पूर्व जापान में दाँतों के एक डॉक्टर ने यह कह कर सबको हैरत में डाल दिया था कि मोनालिसा की रहस्यमयी मुस्कान का राज उसके ऊपरी जबड़े में आगे के दो दाँतों का टूटा होना है और इसी कारण उसके ऊपरी होठ एक तरफ कुछ दबा हुआ-सा दिखाई दे रहा है, इसी कारण उसका एक ऊपरी होठ एक तरफ से कुछ दबा हुआ सा दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि अंजाने में मोनालिसा व रहस्यमय मुस्कान दिखाई देती है जब कि वास्तव में यह मुस्कराहट नहीं बल्कि अपने टूट चुके दाँतों से खाली हुए स्थान को जीभ से होठों को ठेलने का प्रयास कर रही है जिससे होठ दबा हुआ न दिखे। यह डाक्टर पिछले कई वर्षों से मोनालिसा पर शोध कर रहे थे।
दिसम्बर 1986 में अमेरिका के बेल लेबोट्री में कम्प्यूटर वैज्ञानिक सुश्री लिलीयन स्वाडज ने अपने अनुसंधान के आधार पर यह कह कर पूरी दुनिया में तहल्‍का मचा दिया कि लीयनार्दो विंची की सुप्रसिद्ध कलाकृति मोनालिसा किसी रहस्यमय युवती का नहीं बल्कि स्वयं चित्रकार का अपना ही आत्म चित्र है। आर्ट एण्ड एनटिक्स नामक पत्रिका में प्रकाशित लेख में सुश्री लिलीयन ने दावा किया कि 1518 में लाल चाक से बनें लिनार्डोविंची का आत्मचित्र व मोनालिसा के चित्र को जब उसने पास-पास रखा तो यह देखकर दंग रह गई कि लीयनार्दो तथा मोनालिसा के चेहरे, ऑंखें, गाल, नाक व बालों में अद्भत समानता है। कम्प्यूटर के मदद से जब मोनालिसा के चेहरे के ऊपर लीयनार्दो के बाल, दाढ़ी व भवहे लगाकर देखा गया तो वह पूरी तरह लीयनार्दो में परिवर्तित हो गई। इसके विपरीत लीयनार्दो के चेहरे से यदि दाढ़ी, बाल, मूँछ, भवे आदि हटा दी जाये तो लीयनार्दो मोनालिसा में बदल जाते है।
स्वार्ड जी का कथन है कि लीयनार्दो ने मोनालिसा के रूप में स्वयं का नारी चित्रण किया है। उन्होंने इसके पीछे एक कलाकार का समलैंगिक होना प्रमुख कारण बताया है। इस बात की प्रबल संभावना है कि विंची समलैंगिक हो और उभय लिंगी विषयों को कलाकृति में ढालने में रूची रखते हो तथा अपनी इसी प्रवित्ती के चलते स्वयं को नारी रूप में चित्रित कर उसे मोनालिसा नाम दिया।

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