Sunday 30 June 2013

प्रयाग शुक्ल की पसंदीदा किताबें


यूं तो मेरी पसंद के दायरे में हर तरह की पुस्तकें शामिल हैं, लेकिन वे किताबें, जो किसी खांचे में बंधकर नहीं लिखी जातीं, मुझे खास तौर से पसंद आती हैं। उनमें से कुछेक का जिक्र यूं करना चाहूंगा:
परती परिकथा
फणीश्वरनाथ 'रेणु' का यह उपन्यास लोक, उसके जीवन, विश्वास, पात्र और प्रकृति से लेखक के लगाव की वजह से मुझे बहुत पसंद है। लोक को देखते और दर्ज करते हुए भी रेणु की आंख आधुनिक है, निरा आंचलिक नहीं, जैसा की अमूमन समझा जाता है। यह उपन्यास एक अंचल में घटित होकर भी अपने प्रभाव में एक देश, उसके सांस्कतिक और सामाजिक अनुभवों को प्रतिबिंबित करने में कामयाब हुआ है। खुद रेणु का कथा-कौशल इसमें ' मैला-आंचल' से कहीं ज्यादा उभर कर सामने आया है।
स्मृतिलेखा
'अज्ञेय' की इस स्मृति-पुस्तक को मैं साल में दो-एक दफा जरूर पढ़ता हूं। कई बार तो महज इसके अच्छे गद्य के आकर्षण में बंधकर पढ़ता हूं और कई बार इस पुस्तक के जरिए अज्ञेय ने हिंदी के एक तरह से जिन निर्माता साहित्यकारों पर लिखा है, उनसे सीखने के लिए भी। संस्मरण की किताब होते हुए भी इसमें उन साहित्यकारों के काम का एक महीन मूल्यांकन भी है। इस वजह से यह किताब मेरी पसंदीदा बनी, और अब भी है।
हंटर्स स्केच
जिसे बेडसाइड बुक कहते हैं, रूसी लेखक ईवान तुर्गनेव की यह किताब मेरे लिए बरसों से वही है। मैं इसे जब-तब पलट लेता हूं। तुर्गनेव गांवों, लोगों, जंगलों आदि में घूमते-रहते जो अनुभव करते रहे थे, उसी का दिलचस्प बखान इसमें है। यह किसी खास विधा की किताब न होकर, बहुत सारी विधाओं की एक कोलाज-पुस्तक कही जा सकती है। इसकी लिखाई से अद्भुत ऊर्जा और प्रेरणा मिलती है।
माई लास्ट साय
स्पैनिश फिल्ममेकर लुई बनुएल की आत्मकथा है, 'माई लास्ट साय'। बुनुएल ने लंबा जीवन जिया और कला-आंदोलन सरिर्यलिज्म के असर में रहे। उनकी मशहूर फिल्मों में इस असर को देखा-समझा जा सकता है। बीसवीं सदी के यूरोप और दुनिया में जो बेहतर हो रहा था, उसकी जानकारी हमें बुनुएल की आत्मकथा के जरिए बहुत अलग अंदाज में मिलती है। इस लिहाज से यह किताब न तो महज किसी आदमी के किए-धरे का लेखा-जोखा मात्र है और न हीं इसमें अकादमिक इतिहास पुस्तकों सरीखा रूखापन ही है।
स्पीति में बारिश
यह हिंदी के विलक्षण लेखक कृष्णनाथ का लिखा यात्रा-वृत्तांत है। कृष्णनाथ ने हिमाचल के स्पीति इलाके का वर्णन जितनी, सरल-सहज शैली में किया है, वह अपने-आप में बेजोड़ है। छोटे-छोटे वाक्यों में दर्ज यह वृत्तांत दरअसल हमें हिंदी गद्य के सार्मथ्य से भी परिचित कराता है। कृष्णनाथ ने यह भी साबित किया है कि वर्णन के लिए एक छोटा भूगोल लेकर भी उसके बहाने बड़ी बातें कहना मुमकिन है। (नवभारत टाइम्स/अनुराग वत्स)

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