Sunday 30 June 2013

चीनी लेखक मो यान का उपन्यास लाल चारा


वर्ष 2012 के नोबेल पुरस्कार विजेता चीनी लेखक मो यान की सभी किताबें इंटरनेट पर ही धड़ाधड़ बिक गई हैं। मो यान को साहित्य का नोबल पुरस्कार देने की घोषणा के आधे घंटे बाद ही चीन में इस लेखक की सभी किताबें बिक चुकी थीं। मो यान ने, जो चीनी लेखक संघ के उपाध्यक्ष भी हैं, कहा है कि नोबेल पुरस्कार मिलने पर वह बहुत हैरान हैं क्योंकि वह अपने आपको इस पुरस्कार के लिए सबसे योग्य लेखक नहीं मानते हैं। इस पुरस्कार के लिए कुल तीन लेखक ही दावेदार थे। "बुक-मेकरों" के अनुमानों के अनुसार यह पुरस्कार जापानी लेखक हरुकी मुराकामी को मिलना चाहिए था। मो यान के उपन्यास "लाल चारा" की कहानी पर आधारित एक फिल्म बनने के बाद उनकी दूसरी रचनाएं भी चीन में और दुनिया के अन्य देशों में बहुत लोकप्रिय हो गईं। लिखने की उनकी अनूठी शैली पाठकों को बहुत आकर्षित करती है।
स्वीडिश अकादमी ने मो के 'विभ्रम के यथार्थ' की सराहना करते हुए कहा था कि यह लोक कथाओं, इतिहास और सम-सामयिकता का सम्मिश्रण करता है। स्वीडिश अकादमी प्रतिष्ठित पुरस्कार के विजेताओं का चयन करती है। अकादमी के स्थायी सचिव पीटर इंग्लंड ने कहा कि घोषणा से पहले अकादमी ने मो से संपर्क किया था। इंग्लंड ने कहा था कि वह काफी खुश और डरे हुए हैं। यद्यपि 57-वर्षीय मो यान साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले चीनी नागरिक हैं, लेकिन यह कारनामा करने वाले वह पहले चीनी नहीं हैं। फ्रांस में प्रवास कर गए गाओ जिंगजियान को साल 2000 में अपने अमूर्त नाटकों और रचनात्मक गल्प के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी कृतियां चीनी कम्युनिस्ट सरकार की आलोचना से भरी हैं और वे चीन में प्रतिबंधित हैं।  जब गाओ को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, तो कम्युनिस्ट नेतृत्व ने पुरस्कार को अस्वीकार कर दिया था। मो के पुरस्कार को बीजिंग में अधिक गर्मजोशी से लिए जाने की संभावना जताई गई थी। पूर्वी शानदोंग प्रांत के एक किसान परिवार में 1955 में मो का जन्म हुआ था। उनका असली नाम गुआन मोये है। मो ने अपने पहले उपन्यास लेखन के दौरान अपना उपनाम चुना। चीन से साहित्य के क्षेत्र में पहला नोबेल पुरस्कार जीतने वाले यान ने घोषणा के पहले कहा था कि साहित्य के क्षेत्र में उनकी रुचि को अकेलेपन ने बढ़ावा दिया।
यान कभी स्कूल नहीं जा सके, क्योंकि उनके क्रूर पिता ने पशुओं को चराने के लिए उनका स्कूल छुड़ा दिया था। यान ने यह बातें सरकारी सीसीटीवी से बात करते हुए कही थीं कि कैसे पूरा दिन गायों के साथ गुजारने वाला अकेला बच्चा मो बन गया। तकलीफ भरे बचपन के बारे में बताने के लिए शब्दों से जूझ रहे यान का कहना था कि मैं सिर्फ नीला आसमान, सफेद घास, ट्टिडे और छोटे जानवर और एक गाय देख सकता था। मैं वाकई अकेला था। कभी-कभी मैं एक ही गाने को विभिन्न सुरों में गाता था। कभी खुद से बात करता, तो कभी गायों से बातें करता था।
मो यान की ज्यादातर किताबों में उनके गृहनगर गाओमी काउंटी की बातें होती हैं। उनका गृहनगर पूर्वी चीन के शांगदोंग प्रांत में है। 20 वर्ष की उम्र से पहले मो यान ने अपने देश की सीमा से बाहर कदम नहीं रखा था। आश्चर्य की बात है कि मो यान के नाम का अर्थ है 'मत बोलो' और वह आलोचना के डर से नोबेल के बारे में बात भी नहीं करते हैं।

वह नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद छिड़ने वाली वैश्विक चर्चा के केंद्र में नहीं आये थे. न ही उनके लेखन को लेकर दुनियाभर बहस शुरू हुई थी. यह साक्षात्कार वैश्विक प्रसिद्धि के किसी किस्म के आभास से दूर एक ऐसे सजह लेखक को जानने का जरिया है, जिसके लेखन में चीन का समाज झांकता है. मो के साक्षात्कार का हिंदी अनुवाद....प्रतिष्ठित पत्रिका ह्यूमैनिटीज के लिए नेशनल इंडावमेंट फार ह्यूमैनिटीज के चेयरमैन जिम लेक ने वर्ष 2010 के अक्तूबर में यह साक्षात्कार लिया था. 

जिम लेक: मो यान आपका पेन नेम- तखल्लुस है. क्या आप चीनी भाषा में इस नाम का अर्थ और आपके लिए इस नाम के मायने के बारे में बता सकते हैं? क्या अपने जीवन और अपने देश की कथा सुनाने में इस पेन नेम के इस्तेमाल से आपको कोई सहूलियत हुई?
मो यान : चीनी भाषा में मो यान का अर्थ है: बोलो मत. मेरा जन्म 1955 में हुआ. उस समय चीन में लोगों का जीवन सामान्य नहीं था. इसलिए मेरे माता-पिता ने मुझे बाहर न बोलने की हिदायत दी. अगर तुम बाहर कुछ कुछ बोलते हो, खासकर वह जो तुम सोचते हो, तो तुम्हारा मुसीबतों में पड़ना तय है. इसलिए मैं लोगों को सुना करता था, लेकिन कुछ बोलता नहीं था. जब मैंने लिखना शुरू किया तब मैंने सोचा कि सभी महान लेखकों का एक उपनामः तखल्लुस होना चाहिए. मुझे याद आया कि मेरे मां-बाप मुझे न बोलने के लिए कहा करते थे. इसलिए मैंने अपना तखल्लुस मो यान रखा. यह एक विसंगति ही है कि मेरा आज यह नाम इसलिए है कि मैं हर जगह बोलता हूं.
लेक: आपके लेखकीय सफर की शुरुआत चीन की सांस्कृतिक क्रांति के ठीक बाद हुई. इस नये समय का चीन की साहित्यिक हस्तियों और आपके लिए क्या मतलब था?
मो यान: अगर चीन में यह दौर नहीं आया होता, तो मैं लिख नहीं रहा होता. 1980 के दशक में हुए सुधार और नये दरवाजों के खुलने(उदारीकरण) से मुझे किताबें लिखने का मौका मिला. 1980 से पहले चीन के लेखकों पर सोवियत लेखकों का जबरदस्त प्रभाव था. 1980 के दशक में हम पर यूरोपीय और अमेरिकी साहित्य का प्रभाव पड़ा. अगर अपने नजरिये से कहूं तो चीन में हुए सुधार और उदारीकरण चीन की बड़ी घटनाएं थीं.
लेक: आपका नाम कई बार जादुई यथार्थवादी के तौर पर लिया जाता है और आपका संबंध फ्रांत्ज काफ्का से जोड़ा जाता है. ठीक उसी समय आपको एक सामाजिक यथार्थवादी के तौर पर भी देखा जाता है. इस लीक पर चलते हुए आप पर विलियम फाकनर और स्टीनबैक का प्रभाव माना जा सकता है. या क्या यह बेहतर न हो कि चर्चा इस बात पर हो कि आपका रिश्ता किस तरह से चीन की क्लासिकल रचनाओं से है?
मो यान: मुझे लगता है कि मेरे लेखन का जो स्टाइल है, वह काफी हद तक अमेरिकी लेखक विलियम फाकनर के करीब पड़ता है. मैंने उनकी किताबों से बहुत कुछ सीखा है. (अगले दिन कल्चरल फोरम में अपने भाषण में मो यान ने इस प्रभाव को विस्तार से बताया,‘ 1984 की सर्दियों की एक बर्फभरी रात में मैं विलियम फाकनर की एक किताब "द साउंड एंड द फ्युरी" मांग कर लाया. यह इस किताब का चीनी संस्करण था, जिसका चीनी में अनुवाद एक प्रसिद्ध अनुवादक ने किया था. उन्होंने जो कहानियां लिखीं वे उनके गृहनगर उनके गांव-देहात की थी. उन्होंने एक ऐसा देश बनाया जिसे आप दुनिया के नक़्शे पर कहीं भी नहीं पा सकते हैं. हालांकि वह देश बहुत छोटा है, लेकिन वह अपने आप में प्रतिनिधि है. इसने मुझे यह सोचने और महसूस करने पर विवश किया कि अगर एक लेखक को खुद को स्थापित करना है, तो उसे अपना गणंतंत्र खुद स्थापित करना होगा.  फाॅकनर ने अपना एक देश बनाया, मैंने चीन के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में अपने एक गांव का निर्माण किया. इसे मैंने अपने अपने गृह नगर की ही तर्ज पर गढ़ा. इसके साथ ही मैंने अपने लिए एक जमीन बनायी. फाकनर को पढ़ने के बाद मेरे मन में यह ख्याल आया कि मेरे अपने अनुभव, छोटे से गांव में मेरी अपनी जिंदगी, ये सब कहानी और साहित्य बन सकते हैं. मेरा परिवार, लोग, जिनसे मैं परिचित हूं, गांव वाले वे सब मेरी कहानियों के पात्र बन सकते हैं.’) लेकिन मेरे स्टाइल में और भी कई तरह के प्रभाव मिले हुए हैं. मेरी परवरिश गांव-देहात में हुई. मेरी जवानी वहीं बीती. लोक साहित्य और किस्सागोओं ने मुझ पर काफी प्रभाव डाला. मेरी दादी, मेरे दादा, बड़े-बुजुर्गों और मेरे माता-पिता ने मुझे जो कहानियां सुनाई वे मेरे लिए कथा लेखन के संसाधनः कच्चा माल बन गये.  ‘जर्नी टू द वेस्ट’ और ड्रीम आॅफ द रेड चैंबर वे क्लासिक चीनी किताबें हैं, जिनका मेरे ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा है.
लेक: मेरा गृह नगर आयोवा सिटी है, वहां आपने भी कुछ समय बिताया है, क्या आपको आयोवा सिटी और उत्तर पूर्व चीन के अपने इलाके में किसी तरह की तुलना का कोई सूत्र दिखाई दिया? आयोवा सिटी में बिताये गये एक बेहद संक्षिप्त समय में आपके कई साहित्यिक दोस्त बन गये. वे आपको संभवतः चीन का सबसे बड़ा जीवित लेखक, बल्कि मुमकिन है कि दुनिया का ही  सबसे बड़ा लेखक मानते हैं. चूंकि इस क्षेत्र विशेष में आपके कई दोस्त हैं, इसलिए मैं आपसे यह जानना चाहता हूं.
मो यान: आयोवा में मैं दो हफ्ते रहा. मैं वहां की सारी गलियां-रास्ते जान गया था. मैं वहां के सारे रेस्टोरैंट्स गया था. मेरी मुलाकात वहां पाॅल एंगले और उसकी पत्नी हाउलिंग नीह एंगले से हुई, जो कि मेरे अच्छे मित्र हैं. आयोवा में खूब मक्के के खेत हैं. जब मैं वहां था, तो मुझे लगता है कि मैंने अमेरिकी स्टैंडर्ड के हिसाब से काफी खराब व्यवहार किया. मै एक मक्के के खेत में गया और वहां से कुछ  मक्के की बालियां (भुट्टे) अपने साथ होटल ले आया. उन्हें उबाल कर उन्हें खाया. आयोवा मुझे काफी गरमाहट और आत्मीयता से भरी जगह लगा, क्योंकि यह काफी हद तक मेरे गांव जैसा है. इसलिए मुझे लगता है कि  यहां मेरे लेखन के काफी मित्र होंगे क्योंकि वे मिलती-जुलती पृष्ठभूमि और वातावरण से तादात्म्य मिला पाएंगे.
लेक: आपके उपन्यासों की पृष्ठभूमि में इतिहास रहा है. इतिहास के साथ आप अपना किस तरह का रिश्ता मानते हैं?
मो यान: मेरा शुरुआती लेखन 1930 के दषक के चीन के जीवन को बयान करता है. हालांकि मैं कहानियां इतिहास से ले रहा था, लेकिन मैंने इन कहानियों को एक आधुनिक लेखक की नजरों, एक आधुनिक व्यक्ति की सोच, और इतिहास को लेकर उसके विचारों के आईने में देखा. मेरे उपन्यासों में आया इतिहास मेरे बनाये पात्रों से भरा हुआ है. इतिहास के तथ्यों को लेकर मेरा हमेषा से मतभेद रहा है और आज भी है.  मेरा मानना है कि मेरे पाठकों को मेरी किताबों से  साहित्य मिलना चाहिए, न कि इतिहास-खासकर शुष्क इतिहास.
लेक: आज ऐसा लगता है कि इंसान की कहानी साहित्य और नाटक के सहारे ज्यादा लिखी जा रही है, बनिस्बत कि इतिहास के कथन के द्वारा. आपको क्या लगता है आज से सदियों बाद आप इतिहासकारों के लिए मूल संदर्भ होंगे, या आपको लगता है कि आने वाले समय के इतिहासकार आज के समाजषास्त्रियों और इतिहासकारों को ज्यादा तवज्जो देंगे.
मो यान: मुझे ऐसा लगता है कि भविष्य में जिन लोगों को इतिहास पढ़ना है, उन्हें वास्तविक इतिहास की पुस्तकों की ओर जाना चाहिए. लेकिन अगर आपको दूर-बहुत दूर स्थिति समय के बारे में जानना है, और यह कि आखिर उस समय में लोग किस तरह सोचा करते थे, उनकी रोजमर्रा की जिंदगी कैसी थी, तब आपको इस तरह के सवालों के जवाब के लिए साहित्य की ओर आना होगा. अगर कुछ सौ वर्षों के बाद लोग सचमुच में मेरी लिखी किताबें पढ़ते हैं, तो उन्हें इनमें आम लोगों की रोज की जिंदगी के बारे में तमाम तरह की जानकारियां मिलेंगी. इतिहास की किताबें घटनाओं और समय को केंद्र में रखती हैं, जबकि साहित्य आदमियों की जिंदगी और उनकी भावनाओं से ज्यादा वास्ता रखता है.
लेक: मुझे किसी ने बताया कि आपने यह बेहतरीन किताब जिसका टाइटल लाइफ एंड डेथ आर वियरिंग मी आउट है, कंप्यूटर पर लिखने की जगह एक ब्रश के सहारे महज 42 दिन में लिखी. क्या अगर आप लिखने के  लिए कंप्यूटर का इस्तेमाल करते तो क्या यह किसी तरह से अलग होता?
मो यान: कंप्यूटर मेरी गति को कम कर देता है. क्योंकि जब मैं कंप्यूटर का इस्तेमाल करता हूं, मैं अपने आपको नियंत्रित नहीं कर सकता. मैं ज्यादा सूचनाएं खोजने के लिए हमेशा इंटरनेट से जुड़ जाता हूं. जब मैं कंप्यूटर का इस्तेमाल करता हूं तब इनपुट के तौर पर पिनयिन का इस्तेमाल करता हूं. ( पिनयिन चीनी  शब्द का रोमनीकरण करने वाला एक साॅफ्टवेयर है. वर्ड प्रोसेसिंग प्रोग्राम में एक लेखक किसी शब्द की पिनयिन स्पेलिंग डालता है, इसके बाद साफ्टवेयर इच्छित अक्षरों का एक सेट प्रस्तावित करता है, जिसमें स लेखक चयन करता है ) यह अक्षरों का प्रयोग करने से काफी अलग है, इससे आपका शब्द भंडार सीमित हो जाता है, जो मेरे दिल को तोड़ देता है. इसलिए मैंने सोचा कि अगरकर मैं सिर्फ अपनी कलम का इस्तेमाल करूं और अपने पात्र तैयार करूं, तब मेरी अच्छी सोच बाहर निकल कर आयेगी. दूसरी वजह जिसके कारण मैंने इस तरह लिखा, यह है कि मैंने सोचा कि लोगों की लिखावट, खासकर प्रसिद्ध लोगों की, आनेवाले वर्षों में काफी कीमती होगी. इसलिए मैं इसे अपनी बेटी के लिए छोड़ कर जाउंगा, हो सकता है कि इससे उसे कुछ पैसे मिल जायें.
लेक: तो  क्या इसका मतलब है कि आपकी यह महत्वपूर्ण रचना हस्तलेख(कैलिग्राफी ) का भी काम है जिसे संग्रहालय की दीवार पर सजाया जा सकता है, साथ ही जिल्द में भी बांधा जा सकता है, इस आषा के साथ कि किसी मोड़ पर इसके बगल में एक नोबेल प्राइज भी टंका होगा?
मो यान: अगर ऐसा होता है तो मैं आपको चीन बुलाउंगा और हम साथ मिलकर इसे देखेंगे.
लेक: अब मैं ग्रैंड ओपनिंग की ओर आना चाहूंगा. बात  अगर ह्यूमर के बारे में की जाये, तो पन्ने पर इसे उतारने से ज्यादा मुश्किल कुछ भी नहीं है. यह खासतौर पर तब और भी जब आप किसी ऐसी घटना के बारे में बोल या लिख रहे हों, जो काफी कठोर और निर्मम हों. लेकिन फिर भी सच्चाई है कि ह्यूमर किसी आत्मा तक किसी बयान या तथ्य से ज्यादा सहजता और मारक तरीके से संप्रेषित हो जाता है. क्या आप ह्यूमर को अपनी सबसे बड़ी शक्ति मानते हैं?
मो यान: अगर आप किस जज्बात को अभिव्यक्त करना चाहें, मसलन दर्द या तकलीफों को, तो या तो आप दर्द भरे शब्दो का इस्तेमाल करेंगे या फिर ह्यूमर से भरे शब्दों का. मेरा यह मानना है कि ज्यादातर पाठक किसी तकलीफ भरी जिंदगी के बारे में ह्यूमरस तरीके से लिखे को पढ़ने को तरजीह देंगे. इस बात की बहुत ज्यादा परवाह किये  बगैर कि हमारी जिंदगी कितनी कठिन और मुश्किल भरी है, मेरे गांव के लोग जीवन की कठोरताओं का सामना करने के लिए सेंस आफ ह्यूमर का इस्तेमाल किया करते थे. ह्यूमर का यह इस्तेमाल मैंने उनसे ही सीखा.
लेक: आपने कहा है कि किसी स्थापित लेखक का मोक्ष तकलीफों की खोज में है. क्या आपका यह मानना ह्यूमर के साथ तकलीफों को सहने के आपके विचार की संगति में है, और क्या इसमें बदलाव आया है? क्या आज के चीन में जो तकलीफ हैं, वह पहले के समय से भिन्न हैं या तकलीफों का एक सातत्य है?
मो यान: मेरा मानना है जब तक इंसान जीवित रहता है, तब तक उसका संबंध दर्द से रहता है. जब मैं युवा था तब मेरे जीवन में काफी तकलीफें थीं, क्योंकि तब मेरे पास पर्याप्त खाना नहीं था. मेरे पास पर्याप्त कपड़े भी नहीं थे. वह सचमुच में काफी मुष्किल समय था. मैं अपनी बेटी से कहता हूं, ‘‘ देखो मेरे बचपन में क्या था; अब तुम्हारे पास सबकुछ  है, फिर भी तुम दर्द में क्यों हो? क्या कारण है कि तुम इसके बावजूद तकलीफ में हो? इस पर उसने कहा, क्या आपको लगता है कि जिसके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन और पहनने के लिए कपड़े हैं, उनको किसी किस्म का कोई दुख नहीं होना चाहिए? हमारे पास इतना होमवर्क होता है, हमें कई कठिन इम्तिहानों को पास करना होता है, हम एक अच्छा दोस्त नहीं खोज पाते. मुझे लगता है कि इन चीजों का तकलीफ खाना न होन की तकलीफ से भी कहीं ज्यादा खराब है.’ इसलिए मुझे लगता है कि जब तक इंसान है, तब तक उसके हृदय और मन में हमेशा दुख और तकलीफ है. साहित्य यह दिखाने का काम करता है कि पीड़ा हमेशा रहेगी.
लेक: इस संदर्भ में क्या आपको लगता है कि यह आपकी जिम्मेदारी है कि आपकी रचनाओं में यह हकीकत झांके? आपकी यह जिम्मेदारी संस्कृति के प्रति, देष के प्रति इस विष्व के प्रति है? या आपकी यह जिम्मेदारी मूल रूप से आपकी अपने प्रति है, आपके अपने मूल्यों के प्रति आपकी अपनी इंटेग्रिटी के प्रति? या यह इन सबका मिलाजुला रूप है, जैसा कि लेखकों के साथ होता है?
मो यान : जब एक लेखक लिखने की शुरुआत करता है, तब शुरू में तब यह हमेशा उसके अपने दिल से होता है, उसके निजी विचारों से. सामान्य रूप से यह उसके अपने या परिवार की पीड़ा से आता है. यह जरूर है कि जीवन में खुशियाँ भी होती है, लेकिन वह दुखों को लेकर ज्यादा चिंतित और केंद्रित रहता है. लेकिन लेखक को लगता है कि  वह जिस चीज के लिए  चिंतित है, वह जो सोचता है, वह दूसरों का भी अनुभव होगा. उसे लगता है कि जो वह लिख रहा है, जिसे वह अभिव्यक्त करेगा,  उसे ज्यादातर लोग महसूस करते हैं. मुझे लगता है कि समाज में जो कुछ भी हो रहा है, वह मेरे लेखन को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से प्रभावित करता है. यहां तक कि ऐसी चीजें भी जो अमेरिका या जापान में हो रही हैं. महान साहित्य राष्ट्रों की सरहदों से नहीं बंटा होता.
लेक: चीन में साहित्य की वर्तमान स्थिति क्या है? आपको क्या लगता है यह किस दिशा में जा रहा है?
मो यान: लोगों का मानना है कि 1980 का दशक चीन के साहित्य के लिए सुनहरा युग था. काफी छोटे उपन्यास पर भी पूरे देष का ध्यान जाता था. 1990 के दशक में सारी बहस वित्त और व्यापार पर आकर सिमट गयी. चीन में इंटरनेट के आने के बाद युवा पीढ़ी अपना ज्यादातर समय आॅनलाइन बिताने लगी. साहित्य पढ़ने वालों की संख्या में गिरावट आने लगी. अब पहले के किसी भी समय से ज्यादा राइटिंग स्टाइल(लेखन शैलियाँ) हैं. यह कहना ज्यादा सुरक्षित होगा कि अब काफी लोग लिख रहे हैं और लिखने के कई तरह के स्टाइल हैं. अब स्थितियां काफी हद तक अमेरिका और यूरोप जैसी हैं. एक चीज जो ध्यान देने लायक है कि अब काफी संख्या में युवा लोग अपने उपन्यासों का प्रकाशन आॅनलाइन कर रहे हैं. चीन में 30 करोड़ लोग अपना ब्लाॅग लिख रहे हैं. उनके लेख काफी अच्छे होते हैं.
लेक: अंत इस सवाल से करना चाहूंगा कि अमेरिका में ज्यादातर लोग चीनी साहित्य को उसके अनूदित रूप में पढ़ रहे हैं. आपने साहित्यिक अनुवादक हावर्ड गोल्ड ब्लैट के साथ काम किया है, जो काफी सजगता और सुंदर तरीके से अनुवाद करते हैं. लेकिन क्या कुछ ऐसा है कि जब हम दो बिल्कुल अलग जबानों- चीनी से अंगरेजी में होने वाले अनुवादों को पढ़ते हैं, तो कुछ छूट जाता है?
मो यान: मेरा पक्का मानना है कि साहित्य में जब एक भाषा का दूसरी भाषा में अनुवाद होता है, तो कुछ न कुछ अनुवाद में जरूर छूट जायेगा या खो जायेगा. मैं बहुत खुषनसीब हूं कि मेरी किताबों का अनुवाद गोल्ड ब्लैट ने किया है, जो  चीनी साहित्य के काफी प्रसिद्ध और प्रभावशाली विशेषज्ञ हैं. वे कई वर्षों से मेरे मित्र हैं. इसलिए वे मेरे स्टाइल को काफी भली-भांति जानते हैं.
लेक: जब हम देशों के बीच संबंध के बारे में सोचते हैं, तब हम अक्सर राजनीतिज्ञों को राजनीतिज्ञों के बरक्स रखते हैं, जनरल को जनरल के बरक्स और कूटनीतिज्ञ को कूटनीतिज्ञ के बरक्स. लेकिन क्या आपको ऐसा लगता है हमारे जैसे दो बिल्कुल दो अलग-अलग देशों के साथ चलने की संभावना तब ज्यादा होगी जब हम दोनों के बीच ज्यादा साहित्यिक आदान-प्रदान हो और लोग एक दूसरे को उपन्यासों के सहारे जानें, बनिस्बत कि राजनीतिक संधियों के द्वारा?
मो यान: अगर लेखक आपस में संवाद करते हैं, बात करते हैं, तो यह  उनके भविष्य के लेखन के लिए काफी अच्छा है. विचारों का आदान-प्रदान सकारात्मक स्थिति है. पिछले साल चीन लेखक संघ ने एक कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें कई अमेरिकी और चीनी लेखकों को साथ लाया गया. उन लोगों ने आपस संवाद किया और विचार बांटे.
लेक: शुक्रिया मो यान. आप चीन के प्रमुख राजदूत और लेखक दोनों हैं.

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