Sunday 30 June 2013

मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर


श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति इन्दौर, हिन्दी के प्रचार, प्रसार और विकास के लिये कार्यरत देश की प्राचीनतम सन्स्थाओ मे से एक है। समिति की स्थापना सन् १९१० में महात्मा गांधी की प्रेरणा से हुई थी। सन १९१८ मे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने समिति के इन्दौर स्थित परिसर से ही सबसे पहले हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का आव्हान किया था. यहा हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलन के दौरान ही पूज्य बापु ने अहिन्दी भाषी प्रदेशो मे हिन्दी के प्रचार के लिये अपने पुत्र देवदत्त गांधी सहित पान्च लोगो को हिन्दी दूत बनाकर तत्कालीन मद्रास प्रान्त मे भेजा था. इसी अधिवेशन मे तत्कालीन मद्रास प्रान्त मे "हिन्दी प्रचार सभा" की स्थापना का संकल्प लेकर इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु धन संग्रह किया गया था. वर्धा स्थित राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना में भी हिन्दी साहित्य समिति की ऐतिहासिक भूमिका निभाई है. इस तरह देश के अहिन्दी भाषी राज्यो मे हिन्दी के प्रचार के पहले प्रयास मे श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति की भूमिका अत्यन्त उल्लेखनीय और प्रभावशाली रही है।
सन १९३५ मे समिति मे पुनः हिन्दी साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया था. इस अधिवेशन की अध्यक्षता भी गांधीजी ने की. समिति द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका "वीणा" देश की एकमात्र पत्रिका है जो सन १९२७ से निरन्तर प्रकाशित हो रही है. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हजारीलाल द्विवेदी, 'निराला','दिनकर' सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा,प्रेमचन्द,जयशन्कर प्रसाद, व्रन्दावन लाल वर्मा, अम्रतलाल नागर तथा माखनलाल चतुर्वेदी सहित देश के लगभग सभी शीर्षस्थ लेखक, कवि, निबन्धकार, कहानीकार और आलोचक नियमित रूप से "वीणा" मे लिखते रहे है. यही कारण है कि विख्यात कवियत्री महादेवी वर्मा अक्सर ये कहा करती थी कि "हिन्दी भाषा और साहित्य का इतिहास समिति और वीणा के जिक्र के बिना सदैव अपूर्ण रहेगा".
समिति की स्थापना एक पुस्तकालय के रूप मे हुई थी. अभी भी समिति का पुस्तकालय मध्यप्रदेश के सबसे सम्रद्ध पुस्तकालयो मे से एक है. इसमे लग्भग २५ हजार किताबे सन्ग्रहित है. इस पुस्तकालय का कम्पुटरीकरण कर इसे ई लायब्रेरी के रूप मे विकसित करने के प्रयास किये जा रहे है. हिन्दी भाषा और साहित्य मे उच्च स्तरीय शोध कार्यो को बढावा देने के उद्देश्य से समिति द्वारा डा. पी.डी.शर्मा शोध केन्द्र की स्थापना की गई है. देवी अहिला वि.वि. से मान्यता प्राप्त इस केन्द्र से अप्रेल २०१० तक 55 शोधार्थी अपना शोध पूरा कर पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त कर चुके है.
संस्कृत के वैज्ञानिक आयामो पर शोध को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से समिति ने संस्कृत शोध संस्थान की स्थापना की है। इस शोध केन्द्र का शुभारम्भ भारत के महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने मध्यप्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिन्ह चौहान, राज्यपाल बलराम जाखड, और इन्दौर की सान्सद श्रीमती सुमित्रा महाजन की उपस्थिति मे किया था. .
समिति के एक विभाग "समसामयिक अध्ययन केन्द्र" द्वारा ज्ञान-विज्ञान, तकनीक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र मे आ रहे नये बदलावो की जानकारी लोगो तक हिन्दी मे पहुचाने का प्रयास किया जाता है. केन्द्र द्वारा आयोजित कार्यक्रमो मे अब तक देश के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. सन्दीप बसु और डा. माशेलकर, न्यायमूर्ति श्री, जे.एस.वर्मा, श्री वी. डी. ज्ञानी, और श्री वी.एस.कोगजे, वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जी, वेद प्रताप वेदिक, श्री बी.जी.वर्गीज और श्री राहुल देव सान्सद श्री नवीन जिन्दल, पूर्व प्रधानमन्त्री, श्री चन्द्रशेखर, पूर्व उपराष्ट्रपति श्री, क्रष्णकान्त, श्री भैरोसिन्ह शेखावत,पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्री सोमनाथ चटर्जी तथा पूर्व उपप्रधानमन्त्री श्री लालक्रष्ण आडवाणी सहित देश के कई गणमान्यजन समिति के कार्यक्रमो मे भाग ले चुके है.
वर्तमान सन्दर्भो मे समिति, हिन्दी के प्रसार के साथ साथ सभी भारतीय भाषाओ के बीच सम्वाद प्रक्रिया आरम्भ कर भाषायी समन्वयन तथा कम्पुटर एवम सूचना तकनीक के क्षेत्र मे हिन्दी के प्रयोग को बढावा देने की दिशा मे काम कर रही है. इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु समिति ने हिन्दी ब्लागिन्ग के प्रशिक्षण हेतु कई कार्यशालाए आयोजित की है. जिनमे श्री रवि रतलामी और श्री प्रतीक श्रीवास्तव ने हिन्दी मे ब्लाग बनाने की विधा का प्रशिक्षण दिया है.


भारत की प्रमुख हिन्दी सेवी संस्थाएँ

नागरी प्रचारिणी सभा । हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग । श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर । अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन । भारतीय भाषा सम्मेलन । दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा । दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई । महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी । राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा । नागरी लिपि परिषद् । सराय । हिन्दी सेवा । महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय । जनभारती । हिंदी कम्प्यूटिंग फाउंडेशन । हिंदी विद्यापीठ, देवघर । महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे । हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद । बम्बई हिंदी विद्यापीठ, मुंबई । गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद । असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, गुवाहाटी । हिंदुस्तानी प्रचार सभा, मुंबई । मैसूर हिंदी प्रचार परिषद, बंगलुरु । केरल हिंदी प्रचार सभा, तिरुवनंतपुरम । मणिपुर हिंदी परिषद, इम्फाल । कर्नाटक महिला हिंदी सेवा समिति, बंगलुरु । मैसूर रियासत हिंदी प्रचार समिति, बंगलुरु । सौराष्ट्र रचनात्मक समिति, राजकोट । केंद्रीय सचिवालय, हिंदी परिषद, नई दिल्ली । राष्ट्रभाषा महासंघ, मुंबई । विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन, नागपुर । भारतीय भाषा प्रतिष्ठापन परिषद, वाशी, नवी मुंबई । हिंदी अकादमी, दिल्ली । हिंदी साहित्य परिषद, अंबावाड़ी, अहमदाबाद । सृजन सम्मान, छत्तीसगढ़ । अखिल भारतीय राष्ट्रभाषा विकास संगठन, गाजियाबाद । अखिल भारतीय हिंदी संस्था संघ, दिल्ली । हिंदी सेवी महासंघ, इंदौर । राष्ट्रभाषा प्रचार नवयुवक समिति, हैदराबाद । उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ । भारतीय भाषा न्यास, मुंबई । आशीर्वाद, मुंबई । कर्नाटक महिला हिंदी सेवा समिति, बंगलुरु । हिंदी साहित्य सरिता मंच, नासिक । राजस्थानी जागृति समिति, हैदराबाद । हिंदी प्रेमी समिति, हैदराबाद । छत्तीसगढ़ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति । अंग्रेजी अनिवार्यता विरोधी समिति । भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता। हिन्दी भवन, नई दिल्ली । हिन्दी प्रचार सभा, मथुरा । साहित्य मण्डल, नाथद्वारा । विज्ञान परिषद् प्रयाग । राष्ट्रभाषा विचार मंच, अम्बाला । मातृभाषा विकास परिषद । अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन । श्री हिन्दी साहित्य समिति, भरतपुर
अमेरिकाः अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, सेलम । हिंदी यूएसए । अखिल विश्व हिन्दी समिति । विश्व हिंदी न्यास समिति ।
कनाडाः हिंदी साहित्य सभा, टोरंटो । अलबर्टा हिंदी परिषद ।
संयुक्त राजशाही
गीतांजलि मल्टीलिंग्वल लिटरेरी सर्किल, ट्रेंट । हिन्दी यूके । कथा यू.के.
नीदरलैंड
हिंदी परिषद, नीदरलैंड्स ।
नेपाल
नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद ।
मॉरीशस
हिन्दी प्रचारिणी सभा, मॉरीशस । विश्व हिन्दी सचिवालय । हिन्दी संगठन । हिन्दी लेखक संघ
सिंगापुर
हिन्दी सोसायटी, सिंगापुर
आस्ट्रेलिया
हिन्दी समाज, सिडनी
दक्षिण अफ्रीका
दक्षिण अफ्रीका हिन्दी शिक्षा संघ

हिंदी शब्दसागर

हिंदी शब्दसागर हिन्दी भाषा के लिए बनाया गया एक वृहत शब्द-संग्रह है। प्रथम मानक कोश 'हि‍न्‍दी शब्‍दसागर' का नि‍मार्ण नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ने कि‍या था। इसका प्रथम प्रकाशन १९२२ - १९२९ के बीच हुआ। यह वैज्ञानिक एवं विधिवत शब्दकोश मूल रूप में चार खण्डों में बना। इसके प्रधान सम्पादक श्यामसुन्दर दास थे तथा बालकृष्ण भट्ठ, लाला भगवानदीन, अमीर सिंह एवं जगन्मोहन थे। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एवं आचार्य रामचंद्र वर्मा ने भी इस महान कार्य में सर्वश्रेष्ठ योगदान किया। इसमें लगभग एक लाख शब्द थे। बाद में सन् १९६५ - १९७६ के बीच इसका का परिवर्धित संस्काण ११ खण्डों में प्रकाशित हुआ।
संक्षिप्त इतिहास
    हिंदी में सर्वागपूर्ण और बृहत् कोश का अभाव नागरीप्रचारिणी सभा के संचालकों को १८९३ ई० में ही खटका था और उन्होंने एक उत्तम कोश बनाने के विचार से आर्थिक सहायता के लिये दरभंगानरेश महाराजा सर लक्ष्मीश्वर सिंह जी से प्रार्थना की थी । महाराजा ने भी शिशु सभा के उद्देश्य की सराहना करते हुए १२५ रूपये उसकी सहायता के लिये भेजे थे और उसके साथ सहानुभूति प्रकट की थी ।
    २३ अगस्त, सन् १९०७ को सभा के परम हितैषी और उत्साही सदस्य श्रीयुक्त रेवरेंड ई० ग्रीव्स ने सभा की प्रबंधकारिणी समिति में यह प्रस्ताव उपस्थित किया कि हिंदी के एक बृहत् और सर्वागपूर्ण कोश बनाने का भार सभा अपने ऊपर ले; और साथ ही यह भी बतलाया कि यह कार्य किस प्रणाली से किया जाय । सभा ने मि० ग्रीव्स के प्रस्ताव पर विचार करके इस विषय में उचित परामर्श देने के लिये निम्नलिखित सज्जनों की एक उपसमिति नियत कर दी - रेवरेंड ई० ग्रीव्स, महामहोपाध्याय पंडित सुधाकर द्विवेदी, पंडित रामनारायण मिश्र बी० ए०, बाबू गोविंददास, बाबू इंद्रनारायण सिंह एम० ए०, छोटेलाला, मुंशी संकटाप्रसाद, पंडित माधवप्रसाद पाठक और श्यामसुन्दर दास ।
    ९ नवंबर, १९०७ को इस उपसमिति ने अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें सभा को परामर्श दिया गया कि सभा हिंदीभाषा के दो बड़े कोश बनवावे जिनमें से एक में तो हिंदी शब्दों के अर्थ हिंदी में ही रहें और दूसरे में हिंदी शब्दों के अर्थ अँगरेजी में हों ।
    सभा ने इस कार्य के लिये अनेक राजा महाराजों से आर्थिक सहायता प्राप्त की।
    सभा ने निश्चित किया कि शब्दसंग्रह का काम वेतन देक कुछ लोगो से कराया जाय । तदनुसार प्रायः १६—१७ आदमी शब्दसंग्रह के काम के लिये नियुक्त कर दिए गए और एक निश्चित प्रणाली पर शब्दसंग्रह का काम होने लगा ।
    आरंभ में कोश के सहायक संपादक पंडित बालकृष्ण भट्ट, पंडित रामचंद्र शुक्ल, लाला भागवानदीन और बाबू अमीर सिंह के अतिरिक्त बाबू जगन्मोहन वर्मा, बाबू रामचंद्र वर्मा, पंडित वासुदेव मिश्र, पंडित रामवचनेश मिश्र, पंडित ब्रजभूषण ओझा, श्रीयुत वेशी कवि आदि अनेक सज्जन भी इस शब्दसंग्रह के काम में संमिलित थे। आरंभ में सभा ने यह निश्चित नहीं किया था कि कोश का संपादक कौन बनाया जाय, पर दूसरे वर्ष सभा ने श्यामसुन्दर दास को कोश का प्रधान संपादक बनाना निश्चित किया ।
    सन् १९१० के आरंभ में शब्दसंग्रह का कार्य समाप्त हो गया । जिन स्लिपों पर शब्द लिखे गए थे, उनकी संख्या अनुमानतः १० लाख थी, जिनमें से आशा की गई थी कि प्रायः १ लाख (बिना दुहराये) शब्द निकलेंगे, और प्रायः यही बात अंत में हुई भी ।
    मई, १९१२ में छपाई का कार्य आरंभ हुआ और एक ही वर्ष के अंदर ९६-९६ पृष्ठों की चार संख्याएँ छपकर प्रकाशित हो गई, जिनमें ८६६६ शब्द थे । सर्वसाधारण में इन प्रकाशित संख्याओं का बहुत अच्छा आदर हुआ ।
    इस प्रकार १९१७ तक बराबर काम चलता रहा और कोश की १५ संख्याएं छपकर प्रकाशित हो गई तथा ग्राहकसंख्या में बहुत कुछ वृद्धि हो गई ।
    सन् १९२४ में कोश के संबंध मे एक हानिकारक दुर्घटना हो गई थी । आरंभ में शब्दसंग्रह की जो स्लिपें तैयार हुई थी, उनके २२ बंडल कोश कार्यालय से चोरी चले गए । उनमें 'विव्वोक' से 'शं' तक की और 'शय' से 'सही' तक की स्लिपें थी ।
    जनवरी, १९२९ को यह कार्य समाप्त हुआ।
    इस प्रकार यह बृहत् आयोजन २० वर्ष के निरंतर उद्योग, परिश्रम और अध्यवसाय के अनंतर समाप्त हुआ। इससें सब मिलाकर ९३,११५ शब्दों के अर्थ तथा विवरण दिए गए थे और आरंभ में हिंदी भाषा और साहित्य के विकास का इतिहास भी दे दिया गया था जिसे आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने तैयार किया था। इस समस्त कार्य में सभा का तबतक १०,२७,३५ रूपये हुए, जिसमें छपाई आदि का भी व्यय संमिलित है।

हिन्दी विश्वकोश

हिन्दी विश्वकोश, नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा हिन्दी में निर्मित एक विश्वकोश है। यह बारह खण्डों में पुस्तक रूप में उपलन्ध है। इसके अलावा यह अन्तरजाल पर पठन के लिये भी नि:शुल्क उपलब्ध है। यह किसी एक विषय पर केन्द्रित नहीं है बल्कि इसमें अनेकानेक विषयों का समावेश है।
इतिहास
भारतीय वाङमय में संदर्भग्रंथों - कोश, अनुक्रमणिका, निबंध, ज्ञानसंकलन आदि की परंपरा बहुत पुरानी है। भारतीय भाषाओं में सबसे पहला आधुनिक विश्वकोश श्री नगेंद्र नाथ बसु द्वारा सन् 1911 में संपादित बाँगला विश्वकोश था। बाद में 1916-32 के दौरान 25 भागों में उसका हिंदी रूपांतर प्रस्तुत किया गया। मराठी विश्वकोश की रचना 23 खंडों में श्रीधर व्यकंटेश केतकर द्वारा की गई।
स्वराज्य प्राप्ति के बाद भारतीय विद्वानों का घ्यान आधुनिक भाषाओं के साहित्यों के सभी अंगों को पूरा करने की ओर गया और आधुनिक भारतीय भाषाओं में विश्वकोश निर्माण का श्रीगणेश हुआ। इसी क्रम में नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी ने सन् 1954 में हिंदी में मौलिक तथा प्रामाणिक विश्वकोश के प्रकाशन का प्रस्ताव भारत सरकार के सम्मुख रखा। इसके लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया और उसकी पहली बैठक 11 फरवरी 1956 में हुई और हिंदी विश्वकोश के निर्माण का कार्य जनवरी 1957 में प्रांरभ हुआ। सन् 1970 तक 12 खंडों में इस विश्वकोश का प्रकाशन कार्य पूरा किया गया। सन् 1970 में विश्वकोश के प्रथम तीन खंड अनुपलब्ध हो गए। इसके नवीन तथा परिवर्धित संस्करण का प्रकाशन किया गया।
राजभाषा हिंदी के स्वर्णजयंती वर्ष में राजभाषा विभाग (गृह मंत्रालय) तथा मानवसंसाधन विकास मंत्रालय ने केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा को यह उत्तरदायित्व सौंपा कि हिंदी विश्वकोश इंटरनेट पर पर प्रस्तुत किया जाए। तदनुसार केन्द्रीय हिंदी संस्थान,आगरा तथा इलेक्ट्रॉनिक अनुसंधान एवं विकास केंद्र, नोएडा के संयुक्त तत्वावधान में तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के संयुक्त वित्तपोषण से हिंदी विश्वकोश को इंटरनेट पर प्रस्तुत करने का कार्य अप्रैल 2000 में प्रारम्भ हुआ। उपलब्ध प्रस्तुत योजना के अंतर्गत हिंदी विश्वकोश के मूलरूप को इंटरनेट पर प्रस्तुत करता है। अगले चरण में हिंदी विश्वकोश को अद्यतन बनाने का कार्य किया जाना प्रस्तावित है। इंटरनेट पर उपलन्ध हिन्दी विश्वकोश का यह अभी शून्य संस्करण है।


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