Saturday 6 July 2013

आकाशवाणी समाचार की दुनिया


कीर्ति सिंह

पुस्तक आकाशवाणी समाचार की दुनिया, आवाज के आरोह-अवरोह से हमारा बखूबी परिचय कराती है। यों तो आकाशवाणी के प्रादेशिक समाचार एकांश, पटना की स्वर्ण जयंती के अवसर पर आई है यह पुस्तक। लेकिन इसका दायरा विस्तृत है। यह न सिर्फ़ आकाशवाणी पटना के समाचार एकांश के विगत पचास वर्षों का इतिहास एक नज़र में बता जाती है, बल्कि समाचारों के संकलन, तैयारी, संपादन से लेकर वाचन तक की तकनीकी जानकारी भी दे जाती है।

आकाशवाणी पटना के समाचार संपादक संजय कुमार द्वारा संपादित इस पुस्तक में इतिहास, संस्मरण, तकनीक को समेटते हुए कुल 22 अध्याय हैं। भूमिका जाने माने साहित्यकार डॉ. कुमार विमल ने लिखा है। डॉ. विमल आकाशवाणी के समाचार को नीति पर तुला हुआ एक संतुलन बताते हैं, जिसमें टी.आर.पी. बढ़ाने के लिए चटुल या चाटु-पटु प्रवृति नहीं रहती हैं।

पुस्तक में पहला एवं अंतिम लेख स्वयं संपादक संजय कुमार का है। पहला आलेख आकाशवाणी पटना के समाचार एकांश का इतिहास बताती है, तो दूसरा रेडियो पत्रकारिता जैसे व्यापक विषय पर केन्द्रित है, जिसमें इस विधा के बारे में गम्भीर व तकनीकी जानकारियाँ है। मणिकांत वाजपेयी व एम जेड अहमद के लेख संस्मरण है, जो लोकनायक जयप्रकाष नारायण की मृत्यु के समय की गई रिपोर्टिंग पर केंद्रित हैं। वहीं रविरंजन सिन्हा का संस्मरण‘कथा- एक नींव के पत्थर की, प्रादेशिक समाचार एकांश पटना के खुलने और ख़ुद के उससे जुड़ने की है। वीरेन्द्र कुमार यादव अपने बचपन की उस याद को ताज़ा करते हैं जब गाँव में शाम का समाचार सुनने के लिए डाकघर में लाउडस्पीकर लगा था। नीतीषचन्द्र का आलेख फेकनी बनाम स्वीटी के तहत और इसी के उदाहरण स्वरूप आज दृष्य चैनलों द्वारा सिर्फ़ आर्कषक चेहरों, टीप टाप लोगों व ग्लैमर के प्रति रूझान दिखाने पर व्यग्य करता गंभीर, पर दिलचस्प आलेख है।

तारिक फ़ातमी और रजनी कांत चौधरी क्रमशः उर्दू व मैथिली में प्रसारित होने वाले समाचारों की जानकारी देते है। तो अषोक प्रियदर्शी, कमल किशोर, सुदन सहाय, देवाशीष बोस का लेख सबसे लोकप्रिय शाम साढ़े सात बजे के समाचार की चर्चा करते हैं। कैसे दषकों से लोग, ख़ासकर गाँवों में, इस बुलेटिन को सुनने को बेताब रहते हैं और क्यों। क्योंकि रेडियो से प्रसारित होने वाले समाचार पुख्ता होते हैं। उसकी ख़बरें सूचनात्मक होने के साथ साथ लोक कल्याणकारी, हितकारी तो हैं ही, उसकी विश्वसनीयता भी संदेह से परे है। सुदन सहाय कहते हैं- यह रेडियो के भरोसे का सवाल है। यही नहीं रेडियो सदा से ख़ुशी व ग़म या फिर आपदा काल तक में भी अपनी ज़ोरदार भूमिका निभाती आ रही है।

डॉ. ध्रुव कुमार बताते है कैसे रेडियो पर ख़बरों की तस्वीर बन जाते हैं समाचार वाचक और उसकी आवाज़। समाचार पढ़ने की कला के तकनीक के बारे में उनका आलेख विस्तृत जानकारी देता है। सुकुमार झा, आईएच.खान, चन्द्रभूषण पाण्डेय का आलेख रेडियो पर प्रसारित समाचारों के विविध पहलुओं पर तकनीकी जानकारी देता है। कैसे जिला स्तर पर ख़बरें जुटाई/भेजी जाती हैं या न्यूजरूम में तैयार की जाती है। वहीं संगीता सिंह व सुनीता त्रिपाठी का लेख ग्रामीणों एवं सामुदायिक रेडियो पर प्रकाष डालती है।

पुस्तक के आलेख संकलन में रमेश नैयर का लेख आवाज़ की ज़ादू का अरोह अवरोह चार चांद लगाता है, जिसमें भारत में 20वीं सदी के दूसरे दशक में रेडियो की विकास यात्रा से लेकर आज अन्य मीडिया की मौजूदगी में रेडियो की चुनौतियों व सकारात्मक भूमिका तक की चर्चा है। पुस्तक में हालाँकि कुछेक लेख स्तरीय भी हैं पर कुल मिला कर विविध जानकारियों से लैस आकाशवाणी समाचार की दुनिया वस्तुतः इस दुनिया से पाठकों का विस्तृत परिचय कराती है।

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