Saturday 6 July 2013

लक्ष्मण राव चाय वाला लेखक


लिखने, पढ़ने और देश-समाज के बारे में चिंतन-मनन करने के लिए वातानुकूलित घर-कमरा होना ज़रूरी नहीं है. कमोबेश यही साबित किया है दिल्ली के एक फुटपाथ पर चाय बेचने वाले लक्ष्मण राव ने, जो अब तक डेढ़ दर्जन से ज़्यादा कृतियों की रचना कर चुके हैं. मराठीभाषी लक्ष्मण राव का जन्म 22 जुलाई, 1954 को महाराष्ट्र के अमरावती ज़िले के एक छोटे से गांव तड़ेगांव दशासर में हुआ था. उन्होंने पहले मराठी भाषा में माध्यमिक एवं दिल्ली के तिमारपुर पत्राचार विद्यालय से उच्चतर माध्यमिक तक शिक्षा ग्रहण की. इसके बाद लक्ष्मण राव ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की. साहित्य के प्रति लक्ष्मण राव का रुझान शुरू से ही था. मराठीभाषी होते हुए भी उन्हें हिंदी भाषा के प्रति विशेष लगाव रहा. उन्होंने सामाजिक उपन्यास लिखने वाले गुलशन नंदा को अपना आदर्श माना. लेखक बनने की प्रेरणा कहां से मिली? यह पूछने पर वह बताते हैं कि एक बार उनके गांव का रामदास नामक एक युवक अपने मामा के घर गया. जब वह लौटने लगा तो रास्ते में एक नदी पड़ी. शीशे की तरह चमकते हुए पानी में अचानक उसने छलांग लगा दी. बाद में गांव वालों ने उसकी लाश नदी से बाहर निकाली. रामदास की मौत ही उनके लिए लेखक बनने की प्रेरणा बन गई. उन्होंने उस घटना पर आधारित एक उपन्यास रच डाला और लेखन का माध्यम बनाया हिंदी को.
इसके बाद लेखन और अध्ययन का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज तक निरंतर जारी है. लक्ष्मण राव ने इलाहाबाद से प्रकाशित चतुर्वेदी एवं प्रसाद शर्मा और व्याकरण वेदांताचार्य पंडित तारिणीश झा के संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ ग्रंथ का अध्ययन किया. यह हिंदी-संस्कृत शब्दकोष था. लक्ष्मण राव उस समय मात्र बीस वर्ष के थे. जब हिंदी भाषा पर उन्हें अपनी पकड़ दिखने लगी, तब उन्होंने पत्राचार माध्यम से मुंबई हिंदी विश्वविद्यापीठ से हिंदी की परीक्षाएं दीं. यह बात 1973 की है. वर्ष 1977 में दिल्ली जैसे महानगर में आईटीओ क्षेत्र के विष्णु दिगंबर मार्ग पर एक पेड़ के नीचे लक्ष्मण राव ने चाय-पान की छोटी सी दुकान लगा ली. उनकी यह दुकान दिल्ली नगर निगम एवं पुलिस द्वारा कई बार उजाड़ी गई, लेकिन परिवार के पालन की ज़िम्मेदारी निभाने और लेखक बनने का अपना सपना पूरा करने के लिए वह सब कुछ सहते-संघर्ष करते रहे.
लक्ष्मण राव बताते हैं कि वह दरियागंज के रविवारीय पुस्तक बाज़ार में जाकर अध्ययन हेतु किताबें ख़रीद लाते थे. उन्होंने इस दौरान शेक्सपियर, यूनानी नाटककार सोफोक्लीज, मुंशी प्रेमचंद एवं शरत चंद्र चट्टोपाध्याय आदि की विभिन्न पुस्तकों का जमकर अध्ययन किया. लक्ष्मण राव का पहला उपन्यास-नई दुनिया की नई कहानी वर्ष 1979 में प्रकाशित हुआ. इसके बाद तो वह लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गए. चाय और पान बेचने वाला कोई शख्स लेखक भी हो सकता है, इस पर किसी को सहज विश्वास नहीं हो पा रहा था. इसी बीच टाइम्स ऑफ इंडिया अख़बार के संडे रिव्यू में उन पर एक आलेख प्रकाशित हुआ. यह बात फरवरी, 1981 की है. फिर अख़बारों, रेडियो और दूरदर्शन पर उनके बारे में अक्सर कुछ न कुछ प्रकाशित-प्रसारित होने लगा. 27 मई, 1984 को तीन मूर्ति भवन में उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने का अवसर मिला. उन्होंने श्रीमती गांधी से उनके जीवन पर पुस्तक लिखने की इच्छा व्यक्त की. इस पर इंदिरा जी ने उन्हें अपने प्रधानमंत्रित्व काल के संबंध में पुस्तक लिखने का सुझाव दिया. तब लक्ष्मण राव ने प्रधानमंत्री नामक एक नाटक लिखा. 1982 में उनका उपन्यास रामदास प्रकाशित हो चुका था. 2001 में नर्मदा (उपन्यास) और 2006 में परंपरा से जुड़ी भारतीय राजनीति नामक पुस्तक का प्रकाशन हुआ. छठी रचना रेणु 2008 में प्रकाशित हुई. लक्ष्मण राव कहते हैं, यदि मुझे पहले से पता होता कि लेखक बनना आसान नहीं है तो मैं कभी ऐसा प्रयास नहीं करता. अपनी पहली रचना प्रकाशित कराने के लिए मुझे अपना सब कुछ दांव पर लगाना पड़ा. रचना प्रकाशित होने के बाद सुबह साइकिल लेकर उसे बाजार में बेचने के लिए निकलता तो लोग मेरा मज़ाक तक उड़ाते, लेकिन ईश्वर की कृपा और चालीस वर्षों के परिश्रम ने मुझे बतौर लेखक पहचान दिला दी. लक्ष्मण राव को अंग्रेजी भाषा का भी अच्छा ज्ञान है और अंग्रेजी समाचारपत्र एवं पुस्तकें वह बहुत चाव से पढ़ते हैं. प्रमुख रचनाएं- नई दुनिया की नई कहानी, प्रधानमंत्री, रामदास, नर्मदा, परंपरा से जुड़ी भारतीय राजनीति, रेणु, पत्तियों की सरसराहट, सर्पदंश, साहिल, प्रात:काल, प्रशासन, राष्ट्रपति (नाटक), संयम, साहित्य व्यासपीठ, दृष्टिकोण, समकालीन संविधान, अहंकार, अभिव्यक्ति, मौलिक पत्रकारिता. पुरस्कार-सम्मान- भारतीय अनुवाद परिषद, कोच लीडरशिप सेंटर, इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती, निष्काम सेवा सोसायटी, अग्निपथ, अखिल भारतीय स्वतंत्र लेखक मंच, शिव रजनी कला कुंज, प्रागैतिक सहजीवन संस्थान, यशपाल जैन स्मृति, चिल्ड्रेन वैली स्कूल, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद. (चौथी दुनिया से साभार)

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