Saturday 6 July 2013

जोनाथन फ्रेन्ज को बेस्ट सेलर ‘फ्रीडम’ को लिखने में लगे नौ साल


अमेरिकी लेखक जोनाथन फ्रेन्ज का उपन्यास फ्रीडम पिछले कई हफ्तों से बेस्ट सेलर की सूची में न केवल शीर्ष पर रहा है, बल्कि पाठकों के साथ-साथ आलोचकों ने भी इसे खुले दिल से सराहा है. इस उपन्यास को लेकर अमेरिका और यूरोप में काफी शोरगुल मचा, हर अख़बार और पत्रिका में इसकी चर्चा हुई. उपन्यास की लोकप्रियता और उसकी शैली को लेकर आलोचक इतने अभिभूत हो गए कि कई लोगों ने इसके लेखक जोनाथन फ्रेन्ज को टॉलस्टॉय और टॉमस मान के सामांतर खड़ा कर दिया. विश्व प्रसिद्ध टाइम पत्रिका ने अपने कवर पर जोनाथन की तस्वीर छापी और उन्हें पिछले दस सालों में प्रकाशन जगत का सबसे ज़्यादा ध्यान खींचने वाला लेखक क़रार दिया. आम तौर पर उपन्यासों को बेदर्दी से कसौटी से पर कसने वाले अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स में जब इसकी समीक्षा छपी तो इसे अमेरिकन फिक्शन का मास्टर पीस क़रार दिया गया. जिस तरह से सांप-सीढ़ी के खेल की तरह इस उपन्यास की कथा चलती है, उससे रोचकता बरक़रार रहती है और वह पाठकों को लगातार बांधे रखती है. इसके अलावा घटनाओं और परिस्थितियों का जो सूक्ष्म चित्रण लेखक ने किया है, उससे उनकी मेहनत सा़फ तौर पर झलकती है.
लेखक का दावा है कि उसे यह उपन्यास लिखने में नौ वर्ष लगे.
अगर इस उपन्यास के कथानक को देखें तो यह पूरा उपन्यास एक फैमिली ड्रामा है, जिसमें वाल्टेयर और पैटी का प्यार परवान चढ़ता है. वे दोनों शादी के बंधन में भी बंधते हैं और फिर सेंट पॉल शहर के प्रतिष्ठित इलाक़े में घर ख़रीद कर अपना वैवाहिक जीवन शुरू करते हैं. पैटी एक आदर्श पड़ोसी की तरह व्यवहार करती है, जो बहुधा अपने अगल-बगल में रहने वालों को बैटरी रिसाइकल करने की युक्ति बताती है तो कभी लोगों को यह समझाती है कि कैसे स्थानीय पुलिसकर्मियों का उपयोग किया जा सकता है. पैटी और वाल्टर का जीवन बेहद रोमांटिक तरीक़े से गुजरता है और वाल्टेयर की नज़र में पैटी एक बेहतरीन माशूका है, जो पत्नी बनने के बाद भी उतनी ही शिद्दत से उसे प्यार करती है. प्यार-मोहब्बत से चल रही ज़िंदगी के बीच एक अहम मोड़ तब आता है, जब कुछ दिनों बाद उन्हें एक पुत्र पैदा होता है. पुत्र पैदा होने के बाद समय का पहिया घूमता है और कहानी थोड़ी तेजी से चलती है और समय के साथ पैटी एवं वाल्टेयर जवान जोड़े से बुढ़ाते जोड़े में तब्दील होने लगते हैं.
इस उपन्यास की कहानी में रोचक मोड़ तब आता है, जब पैटी का बेटा किशोरावस्था में पहुंचता है. टकराहट होती है मां के सपनों और बेटे की आकांक्षाओं में. यहां इस मनोविज्ञान को लेखक ने बेहद सूक्ष्मता से पकड़ा है. किशोरवय बेटे जॉय और मां पैटी के बीच जो मनमुटाव और विचारों का संघर्ष चलता है, उसकी परिणति होती है कि एक दिन उनका इकलौता बेटा घर छोड़कर आक्रामक रिपब्लिकन पड़ोसी के घर में रहने चला जाता है. यह उपन्यास एक फैमिली ड्रामा के अलावा अभिभावकत्व के संघर्षों की दास्तां भी है. बाद में जॉय शादी कर लेता है और अपनी पत्नी कोनी के साथ रहने लगता है. बुढ़ाती मां पैटी अपने बेटे के पास तो जाना चाहती है, लेकिन उसकी पत्नी कोनी को वह पसंद नहीं करती है. यहां आपको टिपिकल इंडियन मानसिकता भी नज़र आ सकती है. जोनाथन के हर उपन्यास में एक भारतीय पात्र तो होता ही है, इसलिए मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि जोनाथन ने भारतीय परिवार की मन:स्थिति को अमेरिकी परिवेश में ढाला है. ग़ौरतलब है कि जोनाथन ने अपने इस उपन्यास में भी एक भारतीय पात्र को रखा है. इस उपन्यास में वाल्टेयर की सेक्रेटरी ललिता एक भारतीय लड़की है. इसके पहले भी जोनाथन ने अपने उपन्यास-द ट्‌वेंटीसेवन्थ सिटी में मुंबई की एक लड़की एस जामू को एक शहर के पुलिस प्रमुख के रूप में चित्रित किया है.
कहानी आगे बढ़ती है तो जॉय अपनी पत्नी के अलावा बेहद ख़ूबसूरत लड़की जेना में सुकून तलाशता है.
उधर पैटी को अपने पति वाल्टेयर की सेक्रेटरी ललिता फूटी आंखों नहीं सुहाती. इस तरह के परिवेश में जहां बेटा अपनी पत्नी के रहते प्रेमिका की ज़ुल्फों में उलझा हो और पति अपनी सेक्रेटरी के साथ इश्क की पींगें बढ़ा रहा हो तो एक महिला के दिमाग़ में क्या चल रहा होगा. पैटी की मानसिकता और खंडित व्यक्तित्व का जो सूक्ष्म चित्रण जोनाथन ने किया है, वह इस उपन्यास को रोचकता की नई ऊंचाई पर ले जाता है. कहानी में ही यह तथ्य भी सामने आता है कि दरअसल पैटी का जो असुरक्षा बोध है, उसके पीछे का मनोविज्ञान यह है कि पैटी जब किशोरी थी तो देश के प्रथम परिवार के बेटे ने उसके साथ डेट रेप किया था. चूंकि अपराधी देश के बड़े परिवार से था, इसलिए पैटी के मां-बाप इस अपराध को भुनाने में लग गए और बेटी का सौदा कर अपने फायदे की सोचने लगे. पैटी को जब अपने मोलभाव का पता चला तो वह बेहद खिन्न हो गई. उसे लगने लगा कि घर-परिवार सब बेकार है, सब अपने फायदे की सोचते हैं. उस व़क्त से ही पैटी के अंदर बेहद असुरक्षा का बोध घर कर गया था, जो उसके मां बनने के बाद बढ़ता चला गया.
जोनाथन के इस उपन्यास के सारे पात्रों ने कहीं न कहीं ज़बरदस्त पाबंदी के बाद स्वतंत्रता के स्वाद को चखा है, लेकिन ज्यों ही वे स्वतंत्रता के जोश में उन्मादी होने लगते हैं, उन्हें ज़बरदस्त ठोकर लगती है और वे ज़मीन पर आ जाते हैं. अगर हम उदाहरण के तौर पर देखें तो बॉस्केट बॉल खिलाड़ी पैटी जब आज़ाद होकर दौड़ते हुए सड़क पर आती है तो अचानक फिसल कर गिरती है और अस्पताल पहुंच जाती है. पैटी के जोश और फिर उसके ठोकर खाकर गिर जाने की घटना से इस उपन्यास का एक पैटर्न दिखाई देता है, जिसका ज़िक्र मैं ऊपर कर चुका हूं. लेकिन जिस तरह से सांप-सीढ़ी के खेल की तरह इस उपन्यास की कथा चलती है, उससे रोचकता बरक़रार रहती है और वह पाठकों को लगातार बांधे रखती है. इसके अलावा घटनाओं और परिस्थितियों का जो सूक्ष्म चित्रण लेखक ने किया है, उससे उनकी मेहनत सा़फ तौर पर झलकती है. लेखक ने इस बहाने अमेरिकी समाज का चित्रण किया है. यह उपन्यास बराक ओबामा के अमेरिका के राजनीतिक पटल पर उदय के साथ ख़त्म होता है, जहां जीत की उम्मीद है और बदलाव की आहट भी. (चौथी दुनिया से साभार)

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