Thursday 18 July 2013

स्वच्छंदतावादी रूसी लेखक अलेक्सांद्र ग्रीन

स्वच्छंदतावादी रुसी लेखक अलेक्सांद्र ग्रीन ने साहित्य की दुनिया में उन्होंने प्रवेश किया ही था कि उनके नाम के साथ अनेक किंवदतियाँ जुड़ गईं| उन में से कुछ तो बहुत मनोरंजक थीं| जैसे यह अफवाह फैल गई कि अलेक्सांद्र ग्रीन धुरंधर तीरंदाज़ हैं, वह बहुत समय तक जंगल में रहते रहे थे और यौवनकाल में जानवरों का शिकार करके अपना पेट भरते थे|और भी बहुत सी कहानियां गढ़ी गईं उनके बारे मे
इस लेखक का अधिकांश जीवन वास्तव में सैर सपाटे और जोखिम से भरा था, पर उसमे कुछ भी रहस्यमय नहीं था| बल्कि यह कहना अधिक उचित होगा कि ग्रीन जनता-जनार्दन में से उभरे लेखक थे और उनका जीवन जनसाधारण की तरह घिसी-पिटी राहों से ही गुज़रा| पर उन्हें दूसरों से अलग करता था उनका रोमांचकता की ओर रुझान|

उनका जन्म उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में रूस की दुर्गम बस्ती में एक छोटी सी फ़ैक्टरी के एक साधारण क्लर्क के परिवार में हुआ| पूत के पांव पलने में ही दिखाई देने लगे और यह स्पष्ट हो गया कि यह एक विचित्र बालक है : तरह तरह के रासायनिक प्रयोग करने और हाथ की लकीरों को देख कर ज्योतिष लगाने और भविष्य बताने का उन्हें बचपन से ही शौक़ था| बहुत छोटी उम्र में ही कविताएं लिखकर समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में भेजने लगे, परन्तु कहीं से भी उन्हें उत्तर नहीं मिला|

बालक के जीवन में सागर का एक विशिष्ट स्थान था| सागर उसे सदैव आकर्षित करता था और वह उत्कंठा और उत्साह से सागर के सपने देखता था, हालाँकि वास्तविक सागर को देखने का अवसर उसे बचपन में कभी नहीं मिला| हर समय बस सागर, समुद्री यात्राओं और नाविकों के बारे में ही सोचता रहता था वह| इसीलिए शहर में स्कूल की पढाई समाप्त करने के बाद वह काले सागर पर बसी बंदरगाह ओडेस्सा की ओर रवाना हो गया, साथ में लिए तो बस एक जोड़ी कपड़े और हाँ कुछ जलरंग की डिब्बियां, यह सोच कर कि “भारत में कहीं पर गंगा किनारे” वह अपने जलचित्र बनाया करेगा| पर ओडेस्सा पहुँच कर पता चला कि गंगा यहाँ से भी उतनी ही दुर्गम है जितनी उसके जन्मस्थान से|

स्टीमर पर काम मिलना इतना आसान नहीं था, चाहे वह ब्वाय की नौकरी ही क्यों न हो| भोजन और प्रशिक्षण के लिए पैसे देना ज़रूरी था| पर सोलह वर्षीय तरुण ने साहस नहीं खोया और अपने सपने साकार करने के लिए डटा रहा| भूखा प्यासा वस्त्रहीन युवक काम की तलाश में पत्तन पर खड़े हर बजरे, स्कूनर और स्टीमर पर जाता था और कभी कभी उसकी किस्मत चमक जाती थी| आखिर उसे समुद्री यात्रा पर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और एक विदेशी पत्तन - मिस्र की बंदरगाह अलेक्सांद्रिया भी देखने को मिली| पर सभी अनुबंध बहुत जल्दी समाप्त हो जाते थे क्योंकि अलेक्सांद्र स्वभाव से बहुत उद्दंड था|

फिर से काम की तलाश में रूस में ही भटकना पड़ा| अनेक प्रकार के पापड़ बेले अलेक्सांद्र ने – कभी मजदूर तो कभी हमाम में परिचर, कभी ज़मीन की खुदाई का काम तो कभी रंग रोगन का काम, कभी मछुआरा तो कभी लकडहारा, कभी सोने की तलाश तो कभी संवादों की नक़ल| यहाँ तक कि अभिनेता भी बने वह … आखिर किस्मत उन्हें रूस की राजधानी पीटर्सबर्ग ले आई| अब तक जीवन ने उन्हें ठोकपीट कर परिपक्व कर दिया था और अलेक्सांद्र ने लोगों को अपनी जीवन भर की भटकनों के बारे में बताने का फ़ैसला किया|

पर यह सब सीधे सादे ढंग से बताने में उनकी कोई रूचि नहीं थी| बीसवीं सदी के आरम्भ में बहुत से लेखकों ने जनता के कठोर जीवन का वर्णन करके सफलता प्राप्त की थी| पर अलेक्सांद्र युवावस्था से ही असामान्य और अजीबोग़रीब परिस्थितियों और घटनाओं की ओर आकर्षित रहे थे, अतः उन्होंने अपने कथानकों के लिए अप्रत्याशित घटनाओं और कल्पित व्यक्तियों को चुना| ग्रीन ने एक काल्पनिक जगत का सृजन किया जो किसी भी मानचित्र पर नहीं मिलता| विदेशी नाम, अजनबी पत्तन, उष्णकटिबंधीय नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण वातावरण – यह सब रच कर लेखक अलेक्सांद्र ग्रीन ने साहित्यजगत में प्रवेश किया| कुछ आलोचकों को तो पूरा विश्वास था कि ग्रीन की कपोल कल्पना अंग्रेजी भाषा से अनूदित साहित्य मात्र ही है| उनपर यह विद्वेषपूर्ण लांछन भी लगाया गया कि समुद्री जहाज़ पर नाविक के रूप में काम करते हुए उन्होंने अंग्रेज़ कप्तान की हत्या कर के उसकी पांडुलिपियों को हथिया लिया था|

वास्तव में ग्रीन तो बस यही मानते थे कि प्रत्येक व्यक्ति के मन की गहराइयों में रोमांचकता की ज्वाला छुपी होती है| जब उनकी कहानी का नायक मछुआरा मछली पकड़ता है तो वह सबसे बड़ी मछली पकड़ने का सपना देखता है - इतनी बड़ी मछली जो कभी किसी दूसरे मछुआरे के जाल में नहीं फँसी| कोयला बटोरने वाला कोयला बटोरते बटोरते देखता है कि उसकी घासफूस से बनी टोकरी अचानक सुन्दर फूलों से भर गयी है| सागरतट पर बसे छोटे से गाँव में रहने वाली ग़रीब लड़की यही सपने देखती है कि एक अद्भुत लाल पालों वाली नौका पर सवार उसके सपनों का राजा उसे ले जाने के लिए आया है| उसके सपनों में इतनी शक्ति है कि वो सचमुच ही साकार हो जाते हैं| ग्रीन की यह एक सब से अधिक लोकप्रिय कहानी है, जिसका नाम है “लाल-लाल लहराते पाल”|

अलेक्सांद्र ग्रीन 52 वर्ष तक जिए और उनका देहांत आज से 70 वर्ष पूर्व हुआ, परन्तु उनकी पुस्तकें रूस में आज भी अत्यंत लोकप्रिय हैं| इसका क्या कारण है? आज भी युवा पीढ़ी को क्यों आकर्षित करती हैं उनकी रचनाएँ? यदि इन कारणों की खोज की जाए तो शायद एक ही उत्तर सामने आता है--- ग्रीन प्रेमकथाओं के रचयिता थे, उनकी कथाओं में रोमांचकारी, सच्चा और पवित्र प्यार झलकता है जिसके सामने युवा आत्मा अपने अंतर्पट खोल देती है| ऐसे ही सच्चे प्यार के बारे में है उनकी कहानी “दण्डस्तम्भ” जो हम आज आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं|

“दण्डस्तम्भ”

आठ महीने पहले बस्ती की नीँव रखी गई थी| दलदल में भटकते लोग काटे गये पेड़ों की जड़ें उखाड़ने में और अपने भावी घरों की नींव के खम्भों का न्यास करने में लगे हुए थे, जैसे तैसे अपना पेट भर रहे थे| इस सारे समय में बस्ती के लोगों ने नियमों के कड़े से कड़े पालनकर्ता को भी उनकी ओर उंगली उठाने का मौका तक नहीं दिया| परन्तु जब घर बन कर तैयार हो गये, जब खेतों में हल चलने लगे, स्कूल, होटल, जेल आदि की इमारतों पर अपने अपने नामपट्ट लगा दिए गये और जीवन अपने नीरस रचनात्मक ढर्रे पर चलने लगा, तभी उथल पथल मचने लगी| आए दिन नए-नए हादसे होने लगे| सबसे पहले तो कस्बे का सबसे कंजूस आदमी ऐशोआराम के शौकीन अपने पडोसी साहूकार को जुए में अपना घर, कपड़े-लत्ते, कृषिउपकरण, सबकुछ हार गया - उसके पास बच गए बस शरीर पर पहने कपड़े|

एक आदमी की पत्नी दूसरे पुरुष के पास भाग गयी जो पहले ही अपनी सुंदर संगिनी और दो शिशुओं के साथ रह रहा था| फिर चोरियों का सिलसिला शुरू हो गया और नकली वसीयतनामे बनाये जाने लगे| पर सबसे अधिक ठेस क़स्बे के सभी पुरुषों और स्त्रियों को पहुंचाई सुन्दर युवती डेज़ी के घिनौने और संभ्रांत व्यक्तियों के लिए अशोभनीय अपहरण ने| डेज़ी बहुत सुशील और शांत लड़की थी| जो कोई उसे देर तक निहारता रहता उसे लगता जैसे वह किसी कंपकंपाते, झिलमिलाते मकड़ी के जाले से घिरता जा रहा है| डेज़ी के प्रशंसक अनेक थे, पर उसका अपहरण किया गोआन नाम के व्यक्ति ने, सांझ के समय - जब धूलभरी अंधियारी गली में इस बात की पहचान करना मुश्किल था कि जोहड़ से पानी पीकर लौटते बैल आपस में लड़ रहे हैं या गाँव की ओर लौटती किसी लड़की का मुंह बंद कर के उसे बंदिनी बना कर घोड़े की पीठ पर लादा जा रहा है|

वैसे तो गोआन बहुत विनम्र और शांत स्वभाव का आदमी था और अकेला रहता था| ऐसे आदमी से इस प्रकार के पागलपन की किसी को उम्मीद नहीं थी| परन्तु एक बात विश्वसनीय रूप से ज्ञात थी कि इस घटना से एक सप्ताह पहले किसी नृत्योत्सव पर गोआन ने डेज़ी के साथ काफ़ी समय तक धीमी आवाज़ में बातचीत की थी| देखने वालों का कहना था कि युवा पुरुष के विवर्ण और मुरझाए चेहरे पर निराशा का आवरण था| डेज़ी ने उसे कहा था “सच तो यह है गोआन कि मैं किसी को प्यार नहीं करती हूँ”|

तीन दिन तक इस उक्ति को सुनने वाली महिला भिन्न भिन्न प्रकार से इसी वाक्य का उच्चारण करती रही तथा अपनी टिप्पणियां सुनाती रही|

और अब अचानक यह अपहरण| हवा के साथ बातें करता हुआ गोआन का घोड़ा अचानक जंगल के छोर पर लड़खड़ा गया और पांव तोड़ बैठा| अपहरण के ठीक एक घंटे बाद अपराधी को धर लिया गया|

ज़मीन पर पड़े हुए घोड़े के चारों ओर इतनी भीड़ इकठ्ठी हो गई कि वहां तक पहुंचना लगभग असंभव था| अंत में यह चक्रव्यूह छंट गया और बेहोश लड़की को उठा कर झाड़ियों के बीच लिटा दिया गया| डेज़ी के भाईयों, पिता और चाचा ने चुपचाप घोड़े के नीचे दबे गोआन की मरम्मत करना शुरू कर दिया| अंत में थके हारे और पसीने से लथपथ आँखों से अंगारे बरसाते हुए ये लोग वहां से चल दिये, और खून थूकता अधमुआ युवक धरती से उठ खड़ा हुआ| गोआन का चेहरा रक्त्गुल्मों और नीलों से पूरी तरह ढक गया था| उसे देख कर दया और दहशत दोनों भावनाएं एक साथ उभरती थीं| लड़खड़ाता हुआ बेचारा फटी आवाज़ में कुछ बड़बड़ा रहा था|

पिछड़े हुए देहाती इलाकों के अपूर्ण कानून गोआन को फाँसी पर तो नहीं चढ़ा पाए, पर डेज़ी और उसेक परिवार के घोर अपमान का अपराधी उसे ज़रूर करार दिया गया| बहुत शोर शराबे और वाद विवाद के पश्चात् अतिथिगृह के सामने एक लकड़ी का खम्भा गाड़ दिया गया और गोआन के हाथ मरोड़ कर उसे खम्भे से बांध दिया गया| इसी हालत में बिना अन्नजल के 24 घंटे तक बंधे रहने के बाद उसे गाँव से धक्के दे कर बाहर निकाल देने का निश्चय किया गया|

इस सारी प्रक्रिया के दौरान गोआन ने एक भी शब्द अपने मुंह से नहीं निकलने दिया और विषकृत मक्खी की तरह लड़खड़ाते हुए चुपचाप यह सारा अपमान सह गया| अंततः सभी लोग अपने किए काम को संतोषजनक दृष्टि से देखते हुए और खुद को सराहते हुए धीरे धीरे घर की ओर चल दिए|

अँधेरा घिर आ रहा था| फटे हुए सूखे होंठों को जीभ से चाटते हुए गुआन अपने मन में बदले की योजनाएं बना रहा था| उसके अंतर की ज्वाला पूरी तरह सब कुछ भस्म कर चुकी थी| उसे किसी प्रकार की शर्म या आक्रोश का कोई एहसास नहीं था| खम्भे पर निःशक्त और निढाल स्थिति में बंधे हुए बस वह यही याद करने का प्रयास कर रहा था कि उसे किसने कैसे पीटा. किसने कौनसे विषाक्त शब्दों से उसकी भर्त्सना की और किसकी आवाज़ में ज़्यादा ज़हर भरा हुआ था| यह बहुत क्लान्तिपूर्ण प्रयास था और गोआन शीघ्र ही परिश्रान्त और निःशक्त हो गया| फिर उसके मन में यह विचार कौंधा कि अब वह डेज़ी से कभी नहीं मिल पाएगा| वह सोचने लगा डेज़ी और उन उल्लास भरे क्षणों के बारे में जब उसकी तेज़ धड़कन को वह अपने सीने पर महसूस कर रहा था, उसके ऊपर की ओर उठे चेहरे और अपने पहले और एकमात्र चुम्बन के बारे में| तीव्र व्यथा के कारण एक कराह सी निकली उसके सीने से और उसने हाथ मरोड़कर उन्हें स्वछन्द करने की कोशिश की, परन्तु रस्सी से घिसती उसकी कलाइयों के घावों से खून रिसने लगा| और अभी तो पूरी रात और पूरा दिन झेलना बाकी था|

खम्भे के साथ बंधा हुआ गोआन लगातार एक पांव से दूसरे पांव पर खड़े होने की कोशिश कर रहा था| कभी कभी उसे ऐसा लगता था जैसे यह सब एक सपना है और वह बारबार खम्भे से अपनी गुद्दी को टकराते हुए इस सपने से जागने की कोशिश कर रहा था| अचानक एक ओर से सहमे-सहमे क़दमों की आवाज़ सुनाई दी, गोआन के सामने चौराहे पर पहुँच कर क़दम रुक गये| आस पास की खिडकियों में अँधेरा छाया हुआ था, और रुका-रुका सा एक धुंधला-सा साया गोआन की ओर बढ़ने लगा | अँधेरे में अभिशस्त का चेहरा अचानक तमतमा उठा, उसकी रगों में खून तेज़ी से दौड़ने लगा| अपनी दयनीय अवस्था पर झेंपता गुआन मानसिक संतुलन खो बैठा, कराहते हुए उसने आँखें बंद कर लीं परन्तु पल भर में फिर से उन्हें खोल कर उसने देखा बिलकुल सामने खडी डेज़ी का उदास चेहरा और उसकी निष्कपट खुली आँखे, पर वह हाथ बढ़ाकर उसके सामने क्षमायाचना भी नहीं कर पाया|

गोआन: आप... आप मुझे इस हालत में देखने के लिए आ गईं| भगवान के लिए यहाँ से चली जाइए| मुझे माफ़ कर दीजिए|

डेज़ी: अभी चली जाऊँगी| परन्तु आप ने बचाव करने की कोई कोशिश नहीं की| क्यों अपने ऊपर यह सब कुछ होने दिया आपने?

गोआन: तो आप सहानुभूति जताने आई हैं? पर अब बहुत देरी हो चुकी है डेज़ी| हाँ मैं दोषी हूँ, पर आप ने मुझे बहुत यंत्रणा दी है, और मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ| आप चली जाइए, नहीं नहीं, रुक जाइए... नहीं, चली जाइए, हां, शायद यही उचित होगा|

डेज़ी: मुझे आप पर बहुत दया आती है|

डेज़ी हाथ बढ़ा कर गोआन के उलझे बालों में उँगलियाँ डालकर उन्हें सहलाने लगी – उसके इस स्पर्श में मां की ममता थी|

डेज़ी: नहीं, नहीं, रोइए नहीं| मुझे यहां से चले जाना चाहिए वर्ना लोग हमें इकठ्ठा देख लेंगे|

वह अँधेरे में लुप्त हो गई और चौराहे पर फिर से सन्नाटा छा गया| गोआन के मुस्कराते कांपते चेहरे पर बहती आंसुओं की मोटी-मोटी बूंदे उसके शरीर और आत्मा दोनों को गहरी शांति प्रदान कर रही थीं|



बहुत से लोग रात भर नहीं सोए और सुबह सवेरे, जब सड़कों पर लोगों का आना जाना शुरू हुआ, तो लोक-शान्ति के भंजक पर एक नज़र डालने के लिए इतनी भीड़ एकत्रित हो गई कि रास्ता रुक गया| तब गोआन के हाथ खोल दिए गए और वह लड़खड़ा कर नीचे गिर गया| फिर ज़मीन पर हाथों का सहारा लेकर वह एक शराबी की तरह डगमगाते पांवों पर खड़ा हो गया और अपने घर की ओर चल दिया| भीड़ आनन-फानन में तितर-बितर हो गई|

एक घंटे बाद गोआन के घर पर ताला लटक रहा था| लकड़ी के तख्तों के पीछे मजबूती से बंद खिड़कियां और अहाते में घोड़े के खुरों के निशान इस बात के गवाह थे कि गाँव वालों के आदेश का पूरी तरह से पालन कर दिया गया है| लोगों ने देखा कि लाल पूंछ वाले अपने दूसरे सफ़ेद घोड़े पर सवार नज़रें झुकाए गोआन पिछवाडों से लांघता हुआ चरागाह की ओर निकल गया| आगे जानवरों और शिकारियों से ग्रस्त जंगल का रास्ता था|

घोड़ा मंथर गति से जंगल की ओर अग्रसर हो रहा था और गोआन की प्रबल इच्छा थी कि वह वापिस जाकर कम से कम एक बार डेज़ी के घर की जानी पहचानी खिड़की को एक नज़र भर देख ले| परन्तु वह आगे बढ़ता गया और बहुत मायूसी से आने वाले समय के बारे में सोचने लगा| बसने के लिए नया ठिकाना ढूँढना कोई मुश्किल बात नहीं थी — इतने बड़े संसार में कहीं न कहीं रहने की जगह तो मिल ही जाएगी, पर डेज़ी तो नहीं होगी वहां|

नदिया के किनारे घोड़ा रोक कर गोआन ने जल की चमकती धारा में अपने फूले हुए और खून के सूखे दाग़ों से काले पड़े चेहरे का प्रतिबिम्ब देखा| पर्वत की तलहटी के पास पहुँच कर, जहाँ से दूर नीले गगन के तले बन्दरगाह की ओर सड़क जाती थी, गोआन ने अचानक कुछ अजीब सी आवाज़ सुनी और वह मुड़ कर पीछे देखने लगा|

जंगल के गुंजन के बीच घोड़े की टाप स्पष्ट रूप से सुनाई देने लगी थी| गोआन अपनी जगह पर रुक गया| हांफती हुई डेज़ी आखिर घोड़े की लगाम खींच कर गोआन तक आ पहुंची|

लज्जित डेज़ी ने चुपचाप गोआन को अपने मन की भड़ास निकालने दी| गोआन को ऐसा आभास हुआ कि वह सारी बात समझ गया है पर उसे इस पर विश्वास करने की हिम्मत नहीं हो रही थी| थोडा और नज़दीक आने के बाद डेज़ी ने कहा:

“गोआन, मुझे अपने साथ ले चलो| वरना मैं जी नहीं पाऊँगी| लोगों ने मेरा जीना दूभर कर दिया है| यह अफवाह उड़ाई जा रही है कि मैंने तुम्हारे साथ मिल कर यह षड्यंत्र रचा था| ऐसा आरोप भी लगाया जा रहा है कि हमारा एक बच्चा भी है जिसे हमने कहीं छुपा रखा है|”

गोआन के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला| उसे ऐसा लग रहा था कि डेज़ी का घोड़ा प्रभात के रंगों में रंगा हुआ है|

डेज़ी: मेरे पिता ने मुझे अपमानित किया है| उनके विचार में यह सब एक नाटक था और वह समझते हैं कि मैं पापिन हूँ| परन्तु तुम जानते हो कि यह सब झूठ है| अब मेरा दुबारा अपहरण करने की कोई ज़रूरत नहीं है| मैंने सारा क्रोध और अपमान स्वयं सह लिया है|

अपने टूटे-फूटे चेहरे पर मुस्कान भरते हुए गोआन ने कहा: प्रियतमा, मैं सब कुछ समझ गया हूँ| बस्ती के सब पुरुष इसलिए तुमसे नाराज़ हैं कि तुम्हें पाने का प्रयास उन्होंने नहीं बल्कि किसी और ने किया| और सभी औरतें इसलिए तुम्हारे पीछे पड़ी हैं कि उन्हें किसी ने नहीं ले जाना चाहा| बहुत से लोग प्रेम से नफरत करते हैं| पर तुम मेरे नजदीक मत आना डेज़ी| वरना क़सम से, रुक नहीं पाउँगा, तुम्हारे चुम्बन लेने लग जाऊंगा| मुझे माफ़ करना|

पर शीघ्र ही उन दोनों के चेहरे एक दूसरे के समीप आ गए और दो प्यार, एक ओर नया और पहला प्यार तथा दूसरी ओर अनुराग की आग में तप कर कुंदन बन कर निकला प्यार, दोनों एक दूसरे में ऐसे समा गए जैसे जंगल में एक छोटा सा झरना नदी में समा जाता है|

वे दोनों बहुत साल तक इकट्ठे जिए और इकट्ठे ही इस संसार को छोड़कर चले गए|

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