Saturday 22 June 2013

एक पुस्तक मेले का आंखों देखा हाल


विष्णु शर्मा

दोस्तो, मैं एक बार फिर पुस्तक मेला गया। जैसा कि मैंने कहा था हाल में घूम आया। मैंने किताबें खरीदीं भी और बिखेरीं भी। कुल मिलाकर अच्छा काम किया। 11 नंबर हाल हिंदी भाषा को समर्पित था। हिंदी के जाने माने प्रकाशक अपनी पुस्तकों के साथ यहां मौजूद थे। यदि भीड़ से सफलता को नापा जाए तो कहना होगा कि हिंदी सफल रही। हिन्दी की किताबों के प्रति लोगों का रुझान काफी अच्छा है और लोग किताबों पर पैसे खर्च कर रहे हैं।
संवाद प्रकाशन पिछले सालों के मुकाबले अधिक फैला है यानी गति पकड़ रहा है। पिछले सालों के मुकाबले उसे मेले में अधिक सम्मानित जगह मिली। वह सहज दिखा और किताबें भी अच्छी-खासी। कह सकते हैं कि आने वाले समय में संवाद मेले का एक आकर्षण बन सकता है। इसी स्टाल में हर बार की तरह एक कोना इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान लाल बहादुर वर्मा का। उनके द्वारा अनुदित बहुत सी किताबों के साथ वे अपनी बहुचर्चित दाढ़ी और लम्बे केसों के साथ वहां मौजूद। उनकी एक किताब वहां नहीं दिखी, इतिहास के बारे में। यह उनकी महत्वपूर्ण रचनाओं में से एक है। उन्होंने जॉन होलोवे की किताब 'चेंज द वर्ल्ड विदाउट टेकिंग पावर' का हिंदी अनुवाद भी किया है। इस किताब को उन्होंने नाम दिया है 'चीख'। यदि वे इस किताब को उसके असली नाम से प्रकाशित करते और नीचे पुछल्ला लगा देते 'हिंदी में' तो यह पुस्तक लोगों को और अधिक आकर्षित करती।
अपनी वामपंथी प्रतिबद्धता के लिए इतिहास के पन्नों में नाम दर्ज करा चुके गार्गी प्रकाशन के स्टॉल पर जाना पुराने दिनों को याद करने का सुनहरा अवसर रहा। गार्गी प्रकाशन ने दो साल बाद अपने गोदाम का ताला खोला था और पुरानी किताबों को बेचने के लिए कमर कस ली थी। इस प्रकाशन में नया कम और पुराना बहुत अधिक है। जैसा कि हम जानते हैं वामपंथ की महान यात्रा में रोज नए लोग जुड़ते-बिछड़ते रहते हैं इसलिए लोग वहां भी आते रहे और किताबें खरीदते रहे।
गार्गी प्रकाशन के स्टाल के ठीक सामने गीता बुक हाउस का भव्य स्टॉल। गेरूए रंग की जैकिट में हिंदू धर्म की असंख्य किताबें और उन्हें पूरी श्रद्धा से खरीदते सैकड़ों श्रद्धालु। खरीददारों का उत्साह ऐसा कि देखकर गुरुजी की आंखों से अश्रु ही टपक पड़ते। इसके साथ ही इस्लामी किताबों का भी एक स्टॉल। स्टॉल की खूबी यह कि गैर-मुसलमानों को कुरान की एक प्रति, पैगंबर मौहम्मद की जीवनी और इस्लाम पर प्रकाश डालती एक किताब मुफ्त और मुसलमान भाइयों से प्रति सेट रुपए 300 की मांग। प्रकाशक इस्लाम के बारे में गैर मजहबियों को जानकारी देना चाहते हैं। शायद उनका मानना है कि मोदी, विनय कटियार या फिर स्वामी जैसे लोग जो कहते-करते हैं वह अज्ञानतावश करते हैं और यदि वे ये किताबें पढ़ लें तो उनका ह्रदय परिवर्तन हो जाएगा।
इसके ठीक सामने ग्रंथशिल्पी का अड्डा। सफेद जैकिट वाली ढेरों किताबों की दुकान। हर बार की तरह राय साहब बहुत सी नई किताबों के साथ गप्पे लड़ाते मौजूद। यहां दर्शक तो थे, पर खरीददार नहीं। कारण कि किताबों का महंगा होना। राय साहब का भी मानना था कि शराब जितनी पुरानी हो, उतनी ही कीमती होती है और किताब पढ़ना भी तो एक नशा है।
राय साहब फैलोशिप देकर किताबें लिखवाते तो नहीं हैं, पर फोन करके अनुवाद जरूर करवा लेते हैं। किताबें भी ऐसी जिन पर रायल्टी का कोई झंझट नहीं। फिदेल कास्त्रो के भाषण, चे ग्वारा की डायरी, रोजा लुग्जंबर की किताब और नेपाल के माओवादी नेता प्रचण्ड के साक्षत्कारों का संग्रह। फिर भी राय साहब को महान हस्तियों का सम्मान करना बहुत अच्छी तरह आता है। कहने का मतलब यह कि जितना बड़ा नाम उतने ऊंचे दाम।
राजकमल प्रकाशन का स्टॉल लोगों से खचाखख। किताबें बेशुमार और लोगों के बजट में। 40-50 रुपए में भी अच्छी किताबें। सआदत हसन मंटो की संस्मरण-कृति 'मीना बाजार' और फणीश्वरनाथ रेणु की 'नेपाल क्रांति-कथा’ संग्रहणीय किताबें। इसके अलावा अन्य किताबें भी। दिलीप मंडल की 'मीडिया का अंडरवर्ल्ड' का पेपरबैक संस्करण भी पाठकों के लिए सस्ते में उपलब्ध। इससे बाहर आते ही सामने नेशनल बुक ट्रस्ट का भारतीय भाषाओं का स्टॉल। तो यह था एक पुस्तक मेले का आंखों देखा हाल।

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