Saturday 22 June 2013

दिलचस्प पुस्तक संसार


जवाहरलाल नेहरू

जवाहरलाल नेहरू से उनकी पुत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी को पठन-पाठन के संस्कार भी मिले थे। नेहरू जी ने उन्हें बचपन से ही बताया था कि दुनिया के बारे में जानना है, तो न सिर्फ किताबें पढ़नी होंगी, बल्कि संसार को ही एक किताब की तरह पढ़ना होगा। नेहरू जी ने पत्रों के माध्यम से उन्हें इतिहास और सभ्यता से परिचित कराया था।
ये पत्र उन्होंने तब हालांकि इंदिरा के बालमन के अनुसार लिखे थे, लेकिन इनमें इतिहास के बारे में गहरी समझ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है, जो सभी के काम आ सकता है। मूल अंग्रेजी में ‘लैटर्स फ्रॉम अ फादर टु हिज डॉटर’ नामक किताब में संकलित इन पत्रों का अनुवाद हिंदी के मशहूर लेखक प्रेमचंद ने उतनी ही सरल-सहज शैली और भाषा में किया है। प्रस्तुत हैं, शुरुआती पत्र के संपादित अंश।
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अगर तुम्हें इस दुनिया का कुछ हाल जानने का शौक है, तो तुम्हें सब देशों का, और उन सब जातियों का जो इसमें बसी हुई हैं, ध्यान रखना पड़ेगा, केवल उस एक छोटे-से देश का नहीं जिसमें तुम पैदा हुई हो। मुझे मालूम है कि इन छोटे-छोटे खतों में बहुत थोड़ी-सी बातें ही बतला सकता हूं। लेकिन मुझे आशा है कि इन थोड़ी-सी बातों को भी तुम शौक से पढ़ोगी और समझोगी कि दुनिया एक है और दूसरे लोग जो इसमें आबाद हैं, हमारे भाई-बहन हैं। जब तुम बड़ी हो जाओगी, तो तुम दुनिया और उसके आदमियों का हाल मोटी-मोटी किताबों में पढ़ोगी। उसमें तुम्हें जितना आनंद मिलेगा, उतना किसी कहानी या उपन्यास में भी न मिला होगा।..
तुम इतिहास किताबों में ही पढ़ सकती हो। लेकिन पुराने जमाने में तो आदमी पैदा ही न हुआ था, किताबें कौन लिखता? तब हमें उस जमाने की बातें कैसे मालूम हों? यह तो नहीं हो सकता कि हम बैठे-बैठे हर एक बात सोच निकालें। यह बड़े मजे की बात होती, क्योंकि हम जो चीज चाहते सोच लेते और सुंदर परियों की कहानियां गढ़ लेते। लेकिन जो कहानी किसी बात को देखे बिना ही गढ़ ली जाए, वह ठीक कैसे हो सकती है? लेकिन खुशी की बात है कि उस पुराने जमाने की लिखी हुई किताबें न होने पर भी कुछ ऐसी चीजें हैं, जिनसे हमें उतनी ही बातें मालूम होती हैं, जितनी किसी किताब से होतीं। ये पहाड़, समुद्र, सितारे, नदियां, जंगल, जानवरों की पुरानी हड्डियां और इसी तरह की और भी कितनी ही चीजें हैं, जिनसे हमें दुनिया का पुराना हाल मालूम हो सकता है। मगर हाल जानने का असली तरीका यह नहीं है कि हम केवल दूसरों की लिखी हुई किताबें पढ़ लें, बल्कि खुद संसार-रूपी पुस्तक को पढ़ें। मुझे आशा है कि पत्थरों और पहाड़ों को पढ़ कर तुम थोड़े ही दिनों में उनका हाल जानना सीख जाओगी। सोचो, कितनी मजे की बात है। एक छोटा-सा रोड़ा जिसे तुम सड़क पर या पहाड़ के नीचे पड़ा हुआ देखती हो, शायद संसार की पुस्तक का छोटा-सा पृष्ठ हो, शायद उससे तुम्हें कोई नई बात मालूम हो जाए। शर्त यही है कि तुम्हें उसे पढ़ना आता हो।.. अगर एक छोटा-सा रोड़ा तुम्हें इतनी बातें बता सकता है, तो पहाड़ों और दूसरी चीजों से, जो हमारे चारों तरफ हैं, हमें और कितनी बातें मालूम हो सकती हैं।

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