Monday 12 September 2016

4 सितंबर हिंदी दिवस : भाषाविद अरविंद कुमार

हिंदी के क्षेत्रीय और भौगोलिक लक्ष्मण रेखाओं का अतिक्रमण करके सार्वदेशिक अखिल भारतीय भाषा बनने का एक सुखद परिणाम यह सामने आया है कि हिंदीतर भाषी कहे जाने वाले क्षेत्रों में स्थित उच्च शिक्षा संस्थानों और विश्वविद्यालयों में बड़ी संख्या में हिंदी भाषा और साहित्य पर केंद्रित शोध को प्रोत्साहन मिला है. डॉ. ऋषभदेव शर्मा और डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा द्वारा संपादित ‘संकल्पना’ (2015) दक्षिण भारत में हो रहे ऐसे ही शोधकार्यों का एक नमूना है. इसमें ऐसे 39 शोधपत्र संकलित हैं जो मुख्य रूप से हैदराबाद स्थित शोधकर्ताओं के द्वारा लिखे गए हैं. इनमें भी बड़ी संख्या ऐसे शोधकर्ताओं की है जो अभी अनुसंधान पथ के अन्वेषी पथिक हैं. इसके बावजूद संतोष का विषय यह है कि इनकी शोध दृष्टि एकदम साफ, तटस्थ, वाद निरपेक्ष और मानव सापेक्ष है. विषय चयन और समीक्षा पद्धति की दृष्टि से इन शोधपत्रों का वैविध्य भी सुखद प्रतीत होता है. इस पुस्तक में अध्येय पाठ के रूप में काव्य, उपन्यास, कहानी, नाटक, बाल साहित्य और साक्षात्कार जैसी विविध विधाओं के साथ-साथ पत्रकारिता, मीडिया और वैज्ञानिक साहित्य तक को भाषिक अनुसंधान के दायरे में लाया गया है. यह कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी कि इससे निश्चय ही हिंदी अनुसंधान के क्षेत्र को व्यापकता प्राप्त हुई है. ये अध्ययन जहाँ एक ओर सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक समीक्षा दृष्टियों का उपयोग करते हैं वहीं दूसरी ओर स्त्री विमर्श, आदिवासी विमर्श, पर्यावरण विमर्श, विस्थापित विमर्श, अल्पसंख्यक विमर्श, दलित विमर्श, वृद्धावस्था विमर्श और मीडिया विमर्श जैसे अद्यतन विमर्शों को भी समृद्ध करते हैं.
‘संकल्पना’ का महत्व इस बात से और भी बढ़ जाता है कि इसमें भाषा विमर्श पर सर्वाधिक बल है. वृद्धों की भाषा, दलितों की भाषा, स्त्रियों की भाषा और विज्ञान की भाषा का विवेचन तो अपनी जगह है ही स्त्री की देह भाषा के प्रकाश में किसी साहित्यकार की रचनाओं का विवेचन तो वास्तव में अनोखा ही है. पाठ विश्लेषण और शैलीविज्ञान तो अपनी जगह है ही. इसी प्रकार स्त्री विमर्श पर केंद्रित सामग्री भी घिसेपिटे ढर्रे से हटकर मानवाधिकारों, स्त्री सशक्तीकरण, स्त्री संघर्ष और शोषण के प्रतिकार जैसे पहलुओं को सामने लाती है. दलित विमर्श के अंतर्गत वर्ण व्यवस्था के क्रूर स्वरूप को उभारने के साथ ही दलित समुदाय द्वारा अपनाए जा रहे प्रतिरोध के चित्रण का मूल्यांकन भी किया गया है. इसी प्रकार जनजाति विमर्श के अंतर्गत एक तरफ बस्तर तो दूसरी तरफ अरुणाचल प्रदेश की जनजातीय संस्कृति को अध्ययन का विषय बनाया गया है. संस्कृति, पर्यावरण और मीडिया विमर्श के अतिरिक्त बाल साहित्य और अनुवाद विमर्श पर केंद्रित सामग्री भी पर्याप्त अभिनव, मौलिक और अनुसंधानपूर्ण है.
आज हर ओर लेखक-पत्रकार-समीक्षक अरविंद कुमार के नवीनतम द्विभाषी कोश अरविंद वर्ड पावर - इंग्लिश-हिंदी की धूम मची है। अशोक वाजपेयी लिखते हैं- हिंदी समाज को अरविंद कुमार का कृतज्ञ होना चाहिए कि उन्होँ ने ऐसा अद्भुत कोश बनाया।
1996 मेँ संसार को मिला समांतर कोश - अरविंद की बीस साल की अनथक अनवरत खोज और अप्रतिम कल्पनाशीलता से - सभी भारतीय भाषाओँ मेँ सब से पहला आधुनिक हिंदी थिसारस। वह कोश जिस ने समसामयिक हिंदी जगत को थिसारस की परिकल्पना से परिचित कराया, जिस ने देश तथा विश्व की कोशकारिता मेँ रातोरात महान क्रांति कर दी, जिस ने संस्कृत भाषा के अपेक्षाकृत छोटे निघंटु और अमरकोश वाली प्राचीन भारतीय कोश परंपरा को आगे बढ़ाया। ऐसे अरविंद कुमार को लोग भारत का पीटर मार्क रोजेट कहेँ तो अचरज नहीँ होता. कुछ लोग उन्हेँ वैदिक शब्दोँ के संकलन निघंटु की रचना करने वाले प्रजापति कश्यप का अभिनव अवतार तक कह डालते हैँ।
 स्वतंत्रता के स्वर्ण जयंती वर्ष मेँ प्रकाशित समांतर कोश - हिंदी थिसारस की पहली प्रति 13 दिसंबर 1996 के पूर्वाह्न में अरविंद कुमार दंपती ने तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकरदयाल को समर्पित की। इस नई तरह के कोश को तत्काल सफलता, अपार प्रशंसा और हार्दिक स्वीकृति मिलीँ। प्रसिद्ध लेखक ख़ुशवंत सिंह ने लिखा - "इस ने हिंदी की एक भारी कमी को पूरा किया है और हिंदी को इंग्लिश भाषा के समकक्ष खड़ा कर दिया है।"
 ग्यारह और साल की मेहनत के बाद, 2007 मेँ, अरविंद ने हमेँ दिया तीन खंडोँ मेँ 3000 पेजोँ वाला द पेंगुइन इंग्लिश-हिंदी/हिंदी-इंग्लिश थिसारस ऐंड डिक्शनरी। संसार का यह विशालतम द्विभाषी थिसारस तमाम विषयोँ के पर्यायवाची और विपर्यायवाची शब्दोँ का महाभंडार है। संदर्भ क्रम से आयोजित इस कोश मेँ पहली बार संबद्ध और विपरीत शब्दकोटियोँ के क्रासरैफ़रैंस भी शामिल किए गए। और फिर छः साल बाद 2013 मेँ अरविंद ने प्रदान किया समांतर कोश का परिवर्धित और परिष्कृत संस्करण - बृहत् समांतर कोश।
अब अरविंद ने देश को दिया है अपना नवीनतम उपहार अरविंद वर्ड पावर: इंग्लिश-हिंदी उपयोक्ताओँ की शब्दशक्ति कई गुना बढ़ाने वाला सशक्त कोश और थिसारस। इस का आयोजन सब के सुपरिचित कोशक्रम से किया गया है। ऊपर नीचे पैराग्राफ़ोँ मेँ शब्दोँ के इंग्लिश और हिंदी पर्याय तो यह परोसता ही है, सदृश और विपरीत धारणाओँ की जानकारी दे कर उन तक जाने की प्रेरणा भी देता है। अरविंद वर्ड पावर: इंग्लिश-हिंदी का संयोजन भारतीय पाठकोँ की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए विशेषतः किया गया है। यह एकमात्र भारत-केंद्रित इंग्लिश-हिंदी कोश है। हमारे रीतिरिवाजोँ, प्रथाओँ, परंपराओँ, विचारधाराओँ, दर्शनोँ, सिद्धांतोँ, मिथकोँ, मान्यताओँ, संस्कृति का दर्पण है।
अरविंद का कहना है कि आज भारत की हर भाषा को संसार की हर भाषा से अपना सीधा संबंध बनाना चाहिए। आखिर हम कब तक संसार को अभारतीय इंग्लिश कोशोँ के ज़रिए देखते रहेंगे? और कब तक संसार हमें इन अभारतीय कोशोँ के ज़रिए देखता रहेगा? क्योँ नहीँ हम स्वय़ं अपने अरबी-हिंदी और हिंदी-अरबी कोश बनाते? या हिंदी-जापानी और जापानी-हिंदी कोश?

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