Monday 12 September 2016

14 सितंबर दिवस : रंजिता प्रकाश

रंजिता प्रकाश लिखती हैं- सम्पूर्ण विश्व में भाषा बोलने में हिन्दी का चौथा स्थान है। हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। राजभाषा सप्ताह या हिन्दी सप्ताह 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस से एक सप्ताह के लिए मनाया जाता है। अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड) के बाड़ेछीना के रहने वाले वरिष्ठ कथाकार स्वर्गीय शैलेश मटियानी ने हिन्दी के प्रति सरकारों और नौकरशाहों के रवैये से बेहद दुखी होकर 'हिंदी दिवस' को भाषा के नाम पर शर्मनाक पाखंड करार दिया था। इस मुद्दे पर वह आजीवन सवालों की झड़ी लगाते रहे। हिन्दी को आज तक संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बनाया जा सका है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि योग को 177 देशों का समर्थन मिला, लेकिन क्या हिन्दी के लिए 129 देशों का समर्थन नहीं जुटाया जा सकता?
सम्पूर्ण विश्व में भाषा बोलने में हिन्दी का चौथा स्थान है। हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। राजभाषा सप्ताह या हिन्दी सप्ताह 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस से एक सप्ताह के लिए मनाया जाता है। इस पूरे सप्ताह अलग अलग प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। 14 सितंबर को ही संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1918 में महात्मा गांधी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने की पहल की थी। गांधीजी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था।
स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर 14 सितंबर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग 17  के अध्याय की धारा 343 (1) में इस प्रकार वर्णित है- संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा। चूंकि यह निर्णय 14 सितंबर को लिया गया था। इस कारण हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था। जब राजभाषा के रूप में इसे चुना गया और लागू किया गया तो गैर-हिन्दी भाषी राज्य के लोग इसका विरोध करने लगे और अंग्रेज़ी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा। इस कारण हिन्दी में भी अंग्रेज़ी भाषा का प्रभाव पड़ने लगा।
हिन्दी को आज तक संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बनाया जा सका है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि योग को 177 देशों का समर्थन मिला, लेकिन क्या हिन्दी के लिए 129 देशों का समर्थन नहीं जुटाया जा सकता? और तो और, हिंदी अपने देश में ही बेगानी होकर रह गई है। उसे आज तक राष्ट्रभाषा दर्जा नहीं मिल सका है। आजादी के बाद से इसके पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव मुख्य कारण रहा है। पाकिस्तान में भी पहली बार एक छात्रा को हिंदी की उच्च डिग्री प्रदान की गई। पर अपने देश में हिंदी के लिए हम क्या कर रहे हैं? असल में हिंदी भाषी ही हिंदी का गला घोंट रहे हैं। हिंदी बोलने वालों को अंग्रेजी बोलने वालों के मुकाबले कमतर आंका जाता है। ‘छाप तिलक सब छीनी रे, मोसे नयना लड़ाई के’- 12वीं सदी में हिंदी के सर्वोच्च शिल्पी अमीर खुसरो का यह सूफियाना कलाम उनके पीर निजामुद्दीन औलिया ही नहीं, बल्कि हिंदी पर भी बलिहारी होने की निशानी है।
देश के बाहर जापान, मिस्र, अरब, रूस, कनाडा, मारिशस आदि में तो हिन्दी को लेकर काफी सक्रियता देखी जाती है, मगर भारत में 14 सितंबर हिंदी दिवस भी रस्मी तौर पर निभाया जाने लगा है। अंग्रेजी बोलने में हमें गर्व होता है। हिन्दी बोलने में हीनता और जब तक इस भाव को हम पूरी तरह से नहीं निकाल देंगे, हिन्दी को सम्मान और सर्वमान्य भाषा के रूप में कैसे देख पाएंगे? डॉ. मारिया नेज्येशी हंगरी में हिन्दी की प्रोफेसर हैं। मुंशी प्रेमचंद पर पीएचडी की है। वह असगर वजाहत के हिन्दी पढ़ाने के लहजे से प्रभावित हुईं और हिन्दी सीख गईं। जर्मनी में हिन्दी शिक्षक प्रो. हाइंस वरनाल वेस्लर हिन्दी को समृद्ध भाषा मानते हैं, जर्मनी की युवा पीढ़ी को भारतीय वेदों, ग्रंथों, चौपाइयों, दोहों इत्यादि के जरिये इसका विस्तृत परिचय देते हैं। उनका मानना है कि हिंदी के एक-एक शब्द का उच्चारण जुबान के लिए योग जैसा है। प्रसिद्ध कथाकार शैलेश मटियानी ने 25 साल पहले लिखी अपनी पुस्तक ‘राष्ट्रभाषा का सवाल’ में सवाल उठाया था कि 14 सितंबर को ही हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है? उन्होंने 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने को शर्मनाक पाखंड करार दिया था।
वैज्ञानिक और सॉफ्टवेयर कंपनियों के कई मुखिया भी इस बात को बेहिचक मानते हैं कि डिजिटल भारत का सपना तभी पूरा हो पाएगा, जब हिंदी को सूचना और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनिवार्य किया जाएगा। एक आंकड़ा बताता है कि केंद्र और राज्य सरकारों की 9 हजार के लगभग वेबसाइट्स हैं जो पहले अंग्रेजी में खुलती हैं। यही हाल हिंदी में कंप्यूटर टाइपिंग का है। चीन, रूस, जापान, फ्रांस सहित दूसरे देश कंप्यूटर पर अपनी भाषा में काम करते हैं, लेकिन भारत में हिंदी मुद्रण के ही कई फॉन्ट्स प्रचलित हैं। इनसे परेशानी यह कि अगर वही फॉन्ट दूसरे कंप्यूटर में नहीं हों तो खुलते नहीं हैं, विवशत: हिंदी मुद्रण के कई फॉन्ट्स कंप्यूटर पर सहेजने पड़ते हैं।

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