Wednesday 8 April 2015

मॉल और शोरूम के जरिये महिलाओं की अस्मिता का कारोबार / डॉ. अनिल पुष्कर


इस समय मेट्रोपोलिटन से लेकर महानगर तक और राज्यों के बड़े शहरों तक मॉल और बड़ी ब्रांड्स के शोरूम देशभर में खुले हैं। इनमें ऐसा क्या ख़ास है? जिसके लिए एयरकंडीशंड सहूलियत के साथ हर आधुनिक साजोसामान की व्यवस्था की गई है। कई चीजों की ब्रांड्स तो ऐसी हैं जिन्हें एक बहुस्तरीय ब्रांड के शोरूम में भी जगह मिली है और शापिंग सेंटर में सेम ब्रांड का अलग से एक शोरूम भी खोला गया है। माल और विदेशी ब्रांड्स के लिए सरकार ने जमीन, बिजली, और सुरक्षा तक मुफ्त में उपलब्ध की हैं। जो शोरूम्स बने हैं इनमें पहनने ओढ़ने वाले लिबास की नामालूम रंगीन डिजाइन, ज्वेलरी, जूते, महंगा सिनेमा, रेस्तरां मनोरंजन के अनेकों साधन दिए गये हैं। और ये सब कुछ फैले हुए जमीन के बड़े भू-भाग याकि विशाल दायरे में वातानुकूलित तरीके से उपलब्ध है। इसके अलावा और क्या है जिसे बेचा जा सकता है?
वैश्विक बाज़ार आज इस ख्याल से हर चीज़, हर गुंजाइश पर अपनी नजरें जमाए हुए है। इंसान के इस्तेमाल में आने वाली कितनी चीजें हैं जिन्हें व्यापार के नजरिये से बिक्री कर बेशुमार मुनाफा कमाया जा सकता है। कम से कम समय में क्या नया लांच किया जाय? हर ब्रांड इसे लेकर चिंतित है, तमाम तरह की प्रयोगात्मक कार्यशालाएं काम कर रही हैं जिन्हें हम प्रचार माध्यमों से उपभोक्ता के बीच ले जाते हैं। जरूरत और नये उपयोगी चीजों पर रिसर्च चल रही है। नये उत्पादों के लिए नए आइडियाज तलाशे जा रहे हैं। सभी ब्रांड्स हर तरह से मुनाफा कमाने के लिए उत्पाद की खोजबीन करने में लगी हुई हैं और बाज़ार में पर्याप्त समय और पैसा झोंका जा रहा है। इसी मुनाफे से जुड़ा है औरतों के सौन्दय का सबसे बेहतरीन जरिया बनाया गया सुडौल और तराशा हुआ जिस्म और अस्मिता का बाज़ार।
औरत को एक उत्पाद के तौर पर बनाए रखने की कोशिशें तेजी से बाज़ार का हिस्सा बन रही हैं और नये-नये साइबर सोशल क्राइम को पनाह देते इन आधुनिक बाज़ारों में हर तरह की अथाह संभावनाएं मौजूद हैं। इसी का एक ताजा उदाहरण है हाल ही में हुआ, फैब इण्डिया, गोवा के चेंजिंग रूम में ख़ुफ़िया कैमरे का पाया जाना। वह भी मंत्रालय की प्रतिष्ठित महिला पदाधिकारी के साथ यह घिनौना प्रयास करने का दुस्साहस किया गया। ऐसा अपराध होने देने की स्थितियाँ न ही केवल शर्मनाक हैं, न ही केवल निंदनीय है बल्कि अपराधियों के मजबूत हौसले की तरफ साफ़ संकेत है। जिससे पता चलता है कि गुनहगारों के इरादे कितने पक्के हैं और मकसद कितना टार्गेटेड।
जाहिर है इन अपराधियों के लिए एक केन्द्रीय मंत्री भी केवल महिला है। एक सुंदर जिस्म जिसे बाज़ार में तौला जा सकता है। एक सशक्त महिला का चरित्र यहाँ गौण है। स्मृति ईरानी जो कि केन्द्रीय शिक्षा मंत्री हैं। गुनहगारों के लिए किसी सामान्य महिला की तरह ही है। जिसकी तस्वीरें ली जा सकती हैं, जिसे बाज़ार में अच्छी कीमत पर बेचा जा सकता है याकि इरादतन उसे ब्लैकमेल करके मानसिक रूप से परेशान किया जा सकता है। स्मृति ईरानि कोई रातों रात मशहूर नहीं हुईं। अपनी कला और कैरियर के लिए काम ने इस महिला को ख़ास पहचान दिलाई। फिर वो राजनीति में किस्मत आजमाने आईं और सफल रहीं। स्मृति ने दुनिया के हर तरह के तजुर्बे और इल्म को हासिल किया। अभिनय के क्षेत्र में कई वर्षों तक लगी रहीं। यह महिला इन तमाम मायनों में किसी सामान्य महिला से किसी तरह तुलना करने के लिए कतई उपयुक्त नहीं है। बावजूद इसके औरतों के जिस्म को सुंदर बेचने का माल समझने वाले अपराधियों ने इस महिला को भी अपने गंदे मकसद को पूरा करने का माध्यम बनाने का प्रयास किया। जिस पर गोवा के मुख्यमंत्री ने भी इस मुद्दे पर केवल कर्मचारियों को ही गुनहगार करार देते हुए मसले की गंभीरता और जिस्म के बड़े कारोबारियों का ही साथ दिया है। इस लिहाज से मुख्यमंत्री का बयान प्रभुत्वशाली और राजनीतिक घुसपैठ रखने वाले अपराधियों को कहीं न कहीं एक स्तर का समर्थन भी देता है।
ऐसा नहीं है कि महिलाओं के खिलाफ यह षड्यंत्र कर्मचारियों की बदमाशी मात्र है। सोचकर देखिये औरत की देह में ऐसी क्या ख़ासियत है? जिसके कारण उसे सरेबाजार बेचा जाना चाहिए। जिसे बेचने के लिए लाइसेंस की भी जरूरत नहीं है। जिसे बेख़ौफ़ और बेहिचक बेचा जा सकता है। जिसे बेचकर अकूत संपत्ति इकट्ठी की जा सकती है। अथाह मुनाफा कमाया जा सकता है। यह ध्येय और धारणा कहाँ से पैदा होती है? ये विचार कहाँ से आया कि किसी भी वुमेन चेंजिंग रूम में किसी महिला के कपड़े बदलने का वीडियो भी बाज़ार में बेचकर अच्छी कीमत वसूल की जा सकती है।
महिलाओं की आज़ादी को मुद्दा बनाकर धन कमाने वाले कारोबारी महंगे स्त्री माडल्स के जरिये ऐश्वर्यभोगी तबके के बीच अधनंगे जिस्मों का प्रदर्शन करते हैं। महंगे से महंगे कैटवाक शो आयोजित करते हैं। आधुनिक वस्त्रों को बाज़ार के बड़े कारोबारियों के बीच इस तरह पेश किया जाता है जिसमें इन कपड़ों के बहाने मॉडल्स अपना जिस्म प्रदर्शित करती हैं। बाद में इन्हें कैलेंडर के लिए भी नंगे जिस्म को बलिक एंड व्हाईट या रंगीन कैमरों में शूट किया जाता है। फिर इन भडकाऊ तस्वीरों को आलिशान बंगलों, महलों, स्वीट, होटलों की शान में दीवारों पर टाँगे जाते हैं। आखिर इस तबके को नंगे जिस्मों को देखने का चस्का कितना अजीब और आपराधिक है। मगर सरकार और कानून इस पर कोई पाबंदी नहीं लगाता। ये लोग औरतों की देह को आज़ादी और मुक्ति के नाम पर मुनाफे के लिए इस्तेमाल करते हैं। अपने कद और प्रतिष्ठा के लिए औरतों के जिस्म को अपने फायदे में उपयोग करते हैं। अधिक रकम अदा करके सुंदर स्त्रियों के जिस्म का एक अन-एथिकल बाज़ार खड़ा किया जा रहा है। साधारण लोगों को बिना किसी बुनियादी सामाजिक इल्म और सरोकार के ऐसे हर मामले में खूब बहकाया भटकाया जा रहा है। एक सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक अनिश्चिता लगातार जारी है।
इन आधुनिक बाज़ारों में क्या ख़ास है जिसे बेचा जाता है? ऐसा क्या है जो कि पुराने बाज़ार में नहीं बिकता? जिसे आधार बनाकर हर बड़े शहर और जिले में मॉल, शॉपिंग सेन्टर खुल रहे हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियों के शोरूम बाज़ार के बीचोबीच रौनक पैदा करने का काम कर रहे हैं। रौशनी से एकदम चकाचौंध और आधुनिक मानदंडों से लैस एक नये कल्चर को बड़े पैमाने पर फैलाया जा रहा है। आधुनिक होने का व्यूह रचने वाली तमाम इबारतें तीसरी दुनिया के देशों में रची जा चुकी हैं।
गोवा मामले में प्रशासन समेत कई जानकारों का मानना है कि यह कर्मचारियों की बेहूदा हरकत हो सकती है। मगर इसका एक पहलू यह भी है आप किसी भी मॉल या शापिंग सेन्टर, शोरूम में जाएँ। वहां के कर्मचारियों को गौर से देखें तो आपको पता लग जाएगा कि वे मुंह में न तो किसी तरह का च्विंग करने वाला खाद्य पदार्थ रख सकते हैं। न ही उन्हें स्वाभाविक तरीके से मिलने वाली सुविधाएं ही दी जा रही हैं। कर्मचारियों को तो ट्वायलेट जाने के लिए अपने समय का ब्यौरा तक देना पड़ता है। खाना खाने के लिए वक्त की पाबन्दी है। ऐसे में फैब इण्डिया के ये तीन कर्मचारी पकड कर जेल में अगर डाल भी दिए गये तो क्या इससे मसले का सही हल निकाला जा सकेगा?
सोचकर देखिये, क्या कोई कर्मचारी बिना मालिक की मर्जी और बगैर आदेश के खुद ऐसे संगीन अपराध को करने का जोखिम लेगा। किसी बड़े जुर्म से सीधे तौर पर जुड़ा होगा। चूंकि यह मामला हाई प्रोफाइल है, और हालात इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि कई चरणों में होने वाले इस आपराधिक धंधे में बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ और उनके रसूखदारों के तार कहीं न कहीं बड़े पैमाने पर जुड़े हुए हैं। वरना आप देखें कि इन्हीं शोरूम्स में कर्मचारियों के आने के समय उन्हें पूरी तरह से खंगालकर चेक किया जाता है, दिन भर कड़ी निगरानी और मुस्तैद कैमरों की नजर में रहना पड़ता है। वापसी के समय पूरी तरह से जांच के बाद ही निकासी होती है। ऐसे में क्या यह घटना कर्मचारियों के मातहत संभव है? भला इन कर्मचारियों को इतने संसाधन और टेक्निकल जानकारी कौन उपलब्ध कराएगा? कि वे अपराध करने की हिम्मत दिखा सकें और खरीददार उपभोक्ता महिलाओं की तस्वीरें ट्रायल रूम से कैद करके उन्हें साइबर दुनिया के खुले बाज़ार में बेच सकें। कतई यह मुमकिन तो नहीं लगता।।
एक और बात, आप मेट्रोपोलिटन, महानगर और आम शहरों के बीच मॉल में काम कर रही महिला कर्मचारियों को देखें। जहां मेट्रो शहर में हर प्रोडक्ट के केबिन पर अधिकांशतः एक ऐसा युवा चेहरा आपको देखने को मिलेगा जो कारोबारी की नजर में इस बात की पूरी संभावना को पूरा करने के लिए बाध्य है कि बाज़ार में बिकने वाले सौन्दर्य प्रसाधनों के बीच वह भी एक सुंदर उत्पाद की तरह है। आप इन खूबसूरत चेहरों को देखकर आकर्षित और आनंदित हो सकते हैं। इन्हें सामान बेचने के लिए खुद को मोम की गुड़िया बनना पड़ता है। अपनी देह की सुन्दरता को बनाये रखने के लिए हर तरह से तैयार रहना होता है।
दूसरी तरफ आप ट्रायल रूम्स में खड़ी महिला सुरक्षा गार्ड को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि वे सिर्फ एक निश्चित भूमिका में हैं। इनके ड्रेस कोड और पहनावे के साइज और डिजाइन से आप इन्हें सामान या प्रोडक्ट की सिक्योरिटी गार्ड के बतौर आसानी से पहचान सकते हैं। इनकी उम्र अमूमन 18 से लेकर 30 के बीच होती है। और काम के दौरान असुविधाओं का सामना करना पड़ता है इनके लिए बैठने की सुविधा ड्यूटी के दौरान नहीं दी जाती है। ये महिलायें 12 घंटे तक खड़े रहकर नौकरी करने को मजबूर हैं। इन स्थितियों के बारे में बात करना इसलिए जरूरी है क्योंकि अपराध करने के लिए जिस तरह की स्थितियां, सुविधाएं और माहोल चाहिए। इन स्थितियों से आपको अंदाजा हो जाएगा कि ये महिला कर्मचारी किसी भी अपराध में शामिल होने के लिए कितने सक्षम और उपयुक्त हैं?
यकीनन ऐसे में जो भी अपराध हो रहे हैं उनके पीछे कर्मचारियों से अपराध करवाने वाले, इन्हें इस्तेमाल करने वाले रईस और ताकतवर लोग हैं। असल में औरतों की देह को हर तरह से बेचने वाले सौदागर सुरक्षा घेरों में हैं। और गुनाह को अंजाम देने वाले ये बड़े कारोबारी है। जिनकी शह पाकर या इनके इशारे पर गुलामों की तरह आदेश का पालन करते हुए चंद प्रलोभनों में फंसे कर्मचारी मजबूरी और दबाव के तहत आपराधिक काम में शरीक होते हैं। बावजूद इसके हर तरह के खतरे इनके हिस्से में हमेशा मौजूद हैं। मगर इनके मालिकों के लिए कोई खतरा न तो गुनाह करवाने में है और न ही औरतों की देह को बाज़ार में बेचने पर है। कानून की लचर दफाओं के कारण और व्यवस्था की खामियों की वजह से ये शातिर और प्रभुत्वशाली लोग हर गुनाह से बचकर साफ़ निकल जाते हैं और भविष्य में बड़े से बड़े अपराध की अनेक संभावनाओं से भरे हैं। सरकार ऐसे तमाम गुनहगारों को खुद इसी व्यवस्था में सुरक्षित जगह देती आई है।

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