Saturday 20 September 2014

सफदर हाशमी

किताबें करती हैं बातें बीते ज़माने की, दुनिया की,इंसानों की! आज की, कल की, एक-एक पल की, खुशियों की, ग़मों की,फूलों की, बमों की, जीत की, हार की, प्यार की, मार की! क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों की बातें? किताबें कुछ कहना चाहती हैं, तुम्हारे पास रहना चाहती हैं! किताबों में चिडियाँ चहचहाती हैं, किताबों में खेतियाँ लहलहाती हैं! किताबों में झरने गुनगुनाते हैं, परियों के किस्से सुनाते हैं! किताबों में रॉकेट का राज है, किताबों में साइंस की आवाज़ है! किताबों का कितना बड़ा संसार है, किताबों में ज्ञान का भंडार है! क्या तुम इस संसार में नहीं जाना चाहोगे? किताबें कुछ कहना चाहती हैं, तुम्हारे पास रहना चाहती हैं! (लखनऊ के राष्ट्रीय पुस्तक मेले में 'मीडिया हूं मैं' भी उपलब्ध)

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