Saturday 20 September 2014

मीडिया हूं मैं / दिनेशराय द्विवेदी

जब मीडिया ने इतनी ताकत हासिल कर ली है कि वह कारपोरेट्स के हाथों खेल कर जनता को भ्रमित कर जनतंत्र को मखौल बना दे, तब मीडिया पर विमर्श जरूरी हो गया है। निश्चित रूप से यह विमर्श उस जनघातक मीडिया में तो मुख्य स्थान नहीं ले सकता। वैसी स्थिति में विमर्श के अन्य साधन पैदा होंगे ही। मीडिया पर विमर्श आरंभ हो गया है। पिछले दिनों जयप्रकाश त्रिपाठी की पुस्तक 'मीडिया हूँ मैं' मिल गयी थी. लेकिन उसे पूरी पढ़े बिना उस पर लिखना मुझे ठीक न लगा। मैं पारिवारिक जिम्मेदारी में व्यस्त हुआ कि उसे अभी तक पूरी नहीं पढ़ सका। पर जितना उसे पढ़ा है लगता है वह भारतीय मीडिया विशेष रूप से हिन्दी मीडिया के बारे में इतना वृहत्कार्य है कि उस में क्या छूटा है यह कह पाना मुश्किल है। इस पुस्तक को प्रत्येक मीडियाकर्मी के पास और पुस्तकालय में होना चाहिए। कल अख्तर खान 'अकेला' ने फोन किया और मेरे पास आए। कोटा के मीडिया आई.ई.सी. फोरम ने स्मारिका प्रकाशित की है। इस स्मारिका में मीडिया विमर्श पर अच्छे आलेख हैं। बाकी तो दोनों को पूरा पढ़ने के बाद ही कहूंगा।

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