Wednesday 26 June 2013

इन किताबों से चीजों को देखने का नजरिया बदला



शिक्षा अकेली ऐसी चीज है, जो किसी की प्रकृति को बदल सकती है। चाहे फिर वो किताबों से मिले या किसी की निजी जिंदगी से। विचारों की उड़ान में इन किताबों ने खासा महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन किताबों से चीजों को देखने का नजरिया बदला है। अब तक कहा जाता था किताबें ही सब कुछ हैं। वे ही हमारी सच्ची मित्र होती हैं। पर हम ही उसे अब झ़ुठला रहे हैं। बदलते जीवन और बदलते मूल्यों के साथ यह किताबें हमसे दूर होती जा रही हैं। आज बड़े से बड़े महाकाव्य एक सीडी में समाने लगे हैं। सीडी की छोड़ो, अब तो उसे हम एक छोटी सी पेनड्राइव में भी कैद कर सकते हैं। फिर चाहे उसे हम पढ़ें या न पढ़ें। वे हमारी कैद में रहेंगी। पहले किताबों को दीमक से डर था, पर इसे अब वाइरस का डर है। पहले किताबों को कहीं ले जाना बहुत कठिन काम था, लेकिन अब तो यह काम बहुत ही आसान हो गया है। पहले किताबें प्राप्त करने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती थी। अपनी मनचाही किताबों के लिए लोग भटकते रहते थे। काफी मुश्किलों से प्राप्त किताबों को पढ़ने में भी आनंद आता था। आज सहजता से दुर्लभ किताबें भी मिल जाती हैं तो भी पढ़ने में आनंद नहीं आता। पहले किताबें जो कहती थीं, हमें आसानी से समझ में आता था, लेकिन अब नहीं आता। आसानी से उपलब्ध होकर, करीब आकर बहुत दूर होने लगी हैं, किताबें हमसे। बहुत ही करीब से वह हमें कुछ कहती हैं, पर हम उसे सुन नहीं पाते। पहले आलमारियों में सजकर गर्व का अनुभव करती थीं किताबें, अब सीडी में कैद होकर छटपटा रही हैं किताबें। खोने लगा है किताबों का अनूठा संसार। वे किताबें अब भी कुछ कहना तो चाहती हैं, पर उसकी भाषा समझने का साम*र्थ्य हममें नहीं है। नई पीढ़ी के लिए तो अजूबा ही हैं किताबें। बस्ते का बोझ अब किताबों से नहीं, बल्कि कॉपियों से बढ़ने लगा है। पहले लोग किताबें पढ़कर गर्वोन्मत्त होते थे, अब किताबें लिखकर गर्व का अनुभव करते हैं। हमारे आसपास बिखरी हैं किताबें। नई किताबें, पुरानी किताबें। अच्छी किताबें, बुरी किताबें। बड़ों की किताबें, बच्चों की किताबें। किताबों का साम्राज्य है और किताबों का शासन है। किताबें ही प्रजा हैं, किताबें ही राजा हैं, किताबों की सड़क है और किताबों की ही इमारत है। ओह कितना सुखद स्वप्न है यह, या फिर महज एक कोरी कल्पना। आज के नेट युग में किताबों का ऐसा संसार कहां? किताबें तो अब किताबों की बातें बन चुकी हैं। हमारे पास इतना समय ही कहां कि इस नेट की दुनिया से बाहर आएं और किताबों के पन्ने पलटें। हम तो रच-बस गए हैं नेट के मायाजाल में। फंस गए हैं जानकारियों के ऐसे चक्रव्यूह में जहां से बाहर निकलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। सबकी खबर है हमें केवल स्वयं को, अपने लोगों की छोड़कर। आओ किताबों की इस खत्म होती दुनिया में मन की किताब खोलें और उस किताब में एक नाम जोड़ें विश्वास का, आत्म अनुशासन का, आत्म सम्मान का और स्वाभिमान का।
आज की पीढ़ी का मानो किताबों से नाता ही टूट गाया। हर बात के लिए उनके पास गूगल बाबा हैं ना! एक यही बाबा हैं जो हमें हर जगह हमेशा ले जाने को तैयार हैं। इसके बिना तो आज किसी भी ज्ञान की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती। यह है तो कमी क्या है! आज युवाओं के हाथों में किताबें तो हैं पर उसे वे ऐसे देखते हैं मानो कोई अजूबा हो। छोटे-छोटे नोट्स से ही उनका काम चल जाता है। अच्छा भी है शायद। अब किसी पोथी से उनका वास्ता ही नहीं पड़ता। पोथी देखकर वे बिदकने लगेंगे। हमारे पास ज्ञान के लिए गूगल बाबा हैं, यह सच है। पर इनके दिए ज्ञान को हम कब तक अपने दिमाग में रखते हैं? गूगल बाबा के ज्ञान से केवल परीक्षा ही दी जा सकती है। पर हमारे पूर्वजों ने जो ज्ञान दिया है, वह तो जीवन की परीक्षा में पास होने के लिए दिया है। जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए दिया है। आज उनके दिए ज्ञान का उपयोग कम से कम हो पा रहा है।
शोध बताते हैं कि गूगल बाबा की शरण में रहने वालों की स्मृति कमजोर होने लगी है। आखिर कहां जाएंगे कमजोर याददाश्त लेकर हम सभी? सब कुछ है गूगल बाबा के पास। पर शायद नहीं हैतो मां का ममत्व, पिता का दुलार, बहन का अपनापा या फिर प्रेमी या प्रेयसी का प्यार। हम जब मुसीबत में होते हैं, तब चाहकर भी गूगल बाबा हमारे सर पर हाथ नहीं फेर सकते। हमारे आंसू नहीं पोंछ सकते। हमें सांत्वना नहीं दे सकते। बाबा हमें ज्ञानी तो बना सकते हैं पर एक प्यारा सा बेटा, समझदार भाई, प्यारे से पापा, अच्छा पति नहीं बना सकते। इसलिए कहता हूं बाबा को घर के आंगन तक तो ले आओ, पर घर के अंदर घुसने न दो। अगर ये घर पर आ गए तो समझो, हम सब अपनों से दूर हो जाएंगे। हम गैरों से घिर जाएंगे। यहां सब कुछ तो होगा, पर कोई अपना न होगा। कैसे रहोगे फिर उस घर में? किताबों से दोस्ती करो, क्योंकि ये हमारी सबसे अच्छी दोस्त हैं। किसी भी तरह के सुख-दु:ख में यही हमारे काम आएंगी। जब ये हमसे बातें करेंगी तो हमें ऐसा लगेगा, जैसे मां हमें दुलार रही है। पिता प्यार से सर पर हाथ फेर रहे हैं। बहना और दीदी हमसे चुहल कर रहीं हैं। इससे अपनापे और प्यार का समुद्र लहराने लगेगा। किताबें हमसे कुछ कहने के लिए आतुर हंै। वह दिन बहुत ही यादगार होगा, जब यही किताबें आपसे ज्ञान प्राप्त करेंगी। हम सब गर्व से कह उठेंगे कि किताबों जैसा कोई नहीं। तो हो जाओ तैयार पढ़ने के लिए एक किताब प्यारी सी। (myhindiforum.com से साभार)

No comments:

Post a Comment