Monday 22 December 2014

फिल्मकारों और मीडिया की सोच पर सवाल / विष्णुगुप्त

‘हैदर’ फिल्म पर भारतीय सेना आगबबुला है। भारतीय सेना ने केन्द्रीय सरकार को एक प्रस्ताव भेज कर फिल्मों व मीडिया में सेना व कश्मीर को लेकर अतिरंजित व तथ्याहीन फिल्मांकन-रिपोर्ट को निगरानी करने की मांग कर चुकी है। फिल्म ने एक गंभीर सवाल उठाया है कि कश्मीर के लोग भारत के विरोधी क्यों हैं? सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि भारतीय सेना बर्बर है, भारतीय सेना बलात्कारी है, भारतीय सेना हिंसक है, कश्मीर में आतंकवादी संगठन नहीं बल्कि भारतीय सेना हिंसा की प्रतीक है, हिंसा का खलनायक है, दर्जनों नहीं बल्कि हजारों कश्मीरी युवकों को भारतीय सेना मार चुकी है, हजारों माताएं और रिश्तेदार अपने लापाता बच्चों की खोज में दर-दर की ठोंकरे खा रहे हैं, भारत सरकार कश्मीरियों के लिए उपनिवेषिक सरकार है।
भारतीय मीडिया ने फिल्म ‘ हैदर ‘ द्वारा उठाये गए सवालों को अतिरंजित स्वरूप दिया है। फिल्म ‘हैदर ‘ के पहले भी कई लघु फिल्मों और तथाकथित बुद्धिजीवियों की किताबों में कश्मीर की स्थिति के लिए भारतीय सैनिकों और भारत सरकार को खलनायक ठहराया जा चुका है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि फिल्म ‘हैदर‘ में जो भारत सरकार और भारतीय सेना को खलनायक के तौर पर प्रस्तुत किया है वह कोई नई बात नहीं है।
भारतीय फिल्मकार, तथाकथित बुद्धिजीवी पहले से ही भारत की राष्ट्रीय एकता व अखंडता की कब्र खेादने और भारत को एक आतंकवादी व बर्बद देश घोषित कराने का खेल-खेलते रहे हैं।
बटला कांड को भी याद कर लिया जाना चाहिए। मीडिया और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने कैसी पुलिस विरोधी मानसिकता पसारी थी। पाकिस्तान और इस्लाम प्रायोजित आतंकवाद को कभी खलनायक घोषित करने के लिए तथाकथित धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी आगे आते नहीं, हुर्रियत के आतंकवादियों को देश भर में बुला-बुला कर देश की एकता और अखंडता के खिलाफ आग धधकायी जाती है, पाकिस्तान और इस्लामिक दुनिया की इच्छाओं की पूर्ति कराई जाती है।
भारत दुनिया में अकेला देश है जो अपनी सेना को ही आतंकवादी, बर्बर और हिंसक ठहराता है और अपनी सेना की वीरता, त्याग व बलिदान की उपेक्षा करता है, तिरस्कार करता है, अपमानित करता है। क्या आप सोच सकते हैं कि किसी पाकिस्तानी फिल्मकार अपनी खूनी और हिंसक व आतंकवादी गुप्तचार एजेंसी आईएसआई पर आधारित कोई फिल्म बना सकता है जिसमें कश्मीर की भयानक स्थिति के लिए आईएसआई और पाकिस्तानी सेना को खलनायक साबित करता हो, बर्बर व हिंसक साबित करने का पराक्रम शामिल हो।
 भारतीय कश्मीर ही क्यों बल्कि गुलाम कश्मीर को आईएसआई और पाकिस्तानी सेना ने नर्क बना कर छोड़ा है। क्या कभी पाकिस्तानी फिल्मीकार ने लादेन पर कोई फिल्म बनाई है जिसमें आईएसआई व पाकिस्तानी सेना को ओसामा बिन लादेन को पालते-संरक्षण देते और ओसामा बिन लादेन को मोहरा बना कर भारत, ब्रिटेन और अमेरिका में आतंकवादी हमला कराते हुए आईएसआई व पाकिस्तानी सेना को दिखाया गया हो।
दुनिया जानती है कि भारतीय कश्मीर ही नहीं बल्कि गुलाम कश्मीर को आईएसआई और पाकिस्तानी सेना ने नर्क बना कर छोड़ा है। अमेरिका का ही हम यहां उदाहरण लेकर देखे लेते हैं। अमेरिका ने इराक में नरसंहार पर नरसंहार किया, अफगानिस्तान में तालिबान-अलकायदा के सफाए के अभियान में लाखों निर्दोश लोग भी मारे गए। क्या किसी अमेरिकी फिल्मकार ने अमेरिकी सेना को खलनायक, बर्बर, हिंसक व अमानवीय साबित करने वाला फिल्म बनाया है।
पाकिस्तान सहित अन्य मुस्लिम देश इस्लाम की तौहीन के नाम पर हर साल अपने सैकड़ों-हजारों लोगों को फांसी पर लटका देते हैं, मौत के अन्य माध्यमों का हथकंडा अपना कर अमानवीय करतूत करते हैं पर इस घिनौनी व अमानवीय करतूत पर कोई फिल्म आपने देखी है? ऐसी कुचेष्टा करने वाले फिल्मकार-बुद्धिजीवी सीधे फांसी पर चढ़ाया जा सकता है या फिर जेल के अंदर होंगे और उन्हें देशद्रोही करार दे दिया जाएगा।
दो प्रश्नों का जवाब यहां प्रस्तुत है जो फिल्म ‘हैदर’ और तथाकथित बुद्धिजीवियों की पुस्तकों में बार-बार उठाया जाता है। पहला सवाल यह कि कश्मीर के लोग भारत विरोधी क्यों है और दूसरा प्रश्न यह कि कश्मीर में लापाता युवकों के लिए दोषी कौन हैं? इन दोनों प्रश्नों पर कभी ईमानदारी से बात हुई नहीं, सिर्फ तथ्यहीन और आतंकवादी-पाकिस्तानी सोच को दायरे में रखकर ही बात हुई है। आजादी के समय कश्मीरी लोग भारत के साथ रहना चाहते थे। यही कारण है कि पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा जनमत सर्वेक्षण कराने के प्रस्ताव का विरोध किया था। धीरे-धीरे पाकिस्तान ने इस्लाम के आधार पर जहर घोला। पाकिस्तान के पैसे पर पलने वाले हुर्रियत के नेता यह बार-बार कहते हैं कि इस्लाम के आधार पर उन्हें पाकिस्तान में मिलना है, हुर्रियत नेता गिलानी का बयान और भाषण इसके प्रमाण है।
आतंकवादियों के डर से कश्मीर की अधिकतर जनता भारत विरोधी बयान देने के लिए बाध्य होती हैं। यह भी ध्यान रखना होगा कि कश्मीर सिर्फ मुसलमानों का नहीं है, कश्मीर जितना मुसलमानों का है, उतना ही हिन्दुओं, उतना ही सिखों और उतना ही बौद्धों का है। तथ्य यह भी है कि लद्दाख में रहने वाले बौद्धों को कश्मीरी मुसलमानों के उपनिवेशवाद से मुक्ति चाहिए, लद्दाख के बौद्ध कश्मीर वर्चस्व वाली सरकारी व्यवस्था में रहना नहीं चाहते हैं, इसी तरह जम्मू संभाग में रहने वाले सिखों व हिन्दुओं को कश्मीरी मुसलमानों के उपनिवेशवाद व हिंसा तथा तिरस्कार से मुक्ति चाहिए। फिर कश्मीर पर सिर्फ मुस्लिम आबादी की सोच पर बात क्यों होती है? भारत समर्थक आवाज को जमीदोज करने के लिए ही कश्मीर से हिन्दुओं को खदेड़ा गया। कश्मीर से भगाये गए हिन्दू भी अपने लिए कश्मीर में होम लैंड मांग करते हैं।
कश्मीर में जो युवक है लापाता हैं उसके लिए सिर्फ भारतीय सेना को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। कश्मीर के जो युवक लापाता है उसके लिए आईएसआई दोषी है, पाकिस्तान की सेना दोषी है, इस्लामिक आतंकवादी संगठन दोषी है, लापाता युकवों के अपने परिजन भी दोषी हैं जो आईएसआई, पाकिस्तानी सेना और इस्लामिक आतंकवादी संगठनों की जाल में अपने बच्चों को फंसने दिया।
क्या इस तथ्य से इनकार किया जा सकता है कि कश्मीर के युवक इस्लामिक सोच, पैसे व पावर के लालच में पाकिस्तान जाकर आतंकवादी नहीं बनते हैं। कश्मीर के हजारों युवक पाकिस्तान जाकर इस्लामिक आतंकवादी संगठनों के लिए काम कर रहे हैं, कोई पाकिस्तान, तो कोई अफगानिस्तान, कोई सूडान तो कोई चेचन्या में आतंकवादी हिंसा की बागडौर संभाले हुए हैं। पाकिस्तान, अफगानिस्तान,सूडान, चैचन्या गए कश्मीरी युवक खुद भी संबंधित देशों के सुरक्षा बलों या फिर प्रतिद्वंद्वी आतंकवादी संगठनों के शिकार हो जाते हैं। आतंकवादी प्रशिक्षण के दौरान और पाकिस्तान से सीमा पार करने के दौरान भी कश्मीरी युवक बर्फ और दुरूह पहाड़ी क्षेत्र का शिकार हो जाते हैं।
इराक में भीषण हिंसा और अमानवीय करतूत के लिए कुख्यात इस्लामिक आतंकवादी संगठन ‘ आईएसआईएस ‘ के पक्ष में कोई एक नहीं बल्कि सैकड़ों मुस्लिम युवक इराक गए हुए हैं। सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया जैसे देशो के हजारों मुस्लिम युवक-युवतियां हिंसा और बर्बरता के हथियार चलाने में शामिल हैं। इराकी सुरक्षा बलों और कूर्द सुरक्षा बलों के साथ लड़ाई में अगर ऐसे मुस्लिम युवक-युवतियां मारे जाते हैं तो इसके लिए भारत, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों और इनकी सेना व पुलिस को दोषी ठहराया जा सकता है? खासकर मेरे देश में जब भी आईएसआईएस, अलकायदा, तालिबान जैसे इस्लामिक आतंकवादी संगठनों से संबंध रखने वाले मुस्लिम युवकों से पुलिस या सैनिक बल पूछताछ करती है तो फिर कैसा बखेड़ा खड़ा किया जाता है यह सब भी जगजाहिर है। बटला आतंकवादी कांड पर मीडिया और राजनीतिज्ञों तथा तथाकथित बुद्धिजीवियों ने कैसी तेजाबी और विखंडनकारी प्रक्रिया अपना रखी थी यह भी जगजाहिर है।
भारतीय सेना को मानवीय होना चाहिए। भारतीय सेना पूरी दुनिया में अपने सैनिक अभियानों से साबित कर चुकी है कि सबसे अधिक मानवीय, तटस्थ और सभ्य है। संयुक्त राश्टसंघ के षांति अभियानों में भारतीय सेना की भूमिका सर्वश्रेष्ठ व अतुलनीय रही है। यह बात संयुक्त राष्ट्रसंघ बार-बार दोहराता है। भारतीय सेना या अन्य अर्द्धसैनिक बलों के अभियानों में कुछ निर्दोष लोग भी शिकार होते हैं, यह मानवीय भूल होने के साथ ही साथ आतंकवादियों के खिलाफ सैनिक अभियान में सामने आ जाने पर निर्दोष लोग शिकार हो जाते हैं। एक-दो घटनाओं को आधार बना कर भारतीय सेना को बर्बर, हिंसक और अमानवीय साबित करने नहीं दिया जाना चाहिए। अभिव्यक्ति के नाम पर फिल्मकारों या फिर मीडिया का भारतीय सेना को बर्बर, हिंसक, अमानवीय बताने का खेल घातक है। इस ज्वलंत प्रश्न पर भारतीय सरकार को गौर करना चाहिए और भारतीय सेना की चिंताओ का निराकरण होना चाहिए।
(समाचार4मीडिया से साभार)

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