Saturday 1 November 2014

चुनावी वायदे भूलकर हवा-हवाई बातें

नरेंद्र मोदी दो नवंबर (रविवार) को एक बार फिर रेडियो पर (चुनावी वायदे भूलकर) 'मन की बात' सुनाएंगे! इससे पहले चार अक्तूबर को उन्होंने अपने मन की जो बातें सुनाई थीं, उसे जान लिया जाये तो पता चल जायेगा कि रविवार की कथनी भी कमोबेश उसी रंग-ढंग की होगी.... हवा-हवाई।

चार अक्तूबर को मोदी ने कहा था - 'यह सरल माध्यम है और इसके जरिये वह दूर दराज और गरीब लोगों के घरों तक पहुंच सकते हैं। देश की शक्ति गरीबों की झोपड़ी में है, मेरे देश की ताकत गांवों में बसती है, मेरे देश की ताकत मां, बहन, युवा और किसानों में है।' .... ये तो सबको मालूम है। जरूरत लोगों को गरीब बनाने वाली ताकतों के खिलाफ उठ खड़े होने की है। अडानी, अंबानी के साथ गलबहियां और गरीबों को मुफ्त का 'रेडियो-राग'।

चार अक्तूबर को मोदी ने एक राहगीर की कहानी सुनाते हुए कहा था - 'सवा सौ करोड़ देशवासियों में अपार सामर्थ्य है।'..... ये बात भी सवा सौ करोड़ देशवासियों को मालूम है। उन सवा सौ करोड़ लोगों में से सिर्फ पचीस-तीस फीसदी अमीर-उमराव के लिए हुक्मरान हांफते रहते हैं, बाकी के लिए भाषण की घुट्टी।

प्रधानमंत्री ने चार अक्तूबर को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ में हिस्सा लेने के लिए नौ लोगों को आमंत्रित करने, उन सभी से नौ और लोगों को जोड़ने तथा इस तरह से इस श्रृंखला को आगे बढ़ाने का आग्रह किया था। काश इसी तरह की श्रृंखला देश की राजनीतिक गंदगी साफ करने के लिए बन जाये तो देश का कायाकल्प हो जाये और देश-विदेश का कालाधन मुल्क के पचास फीसदी लोगों की कंगाली मिटा दे।

उस दिन प्रधानमंत्री ने कहा था - 'हम अपनी शक्तियों को भूल चुके हैं, हमें अपनी ताकत पहचाननी होगी।' ..... वो तो सबको मालूम है। पूंजीपतियों के पैसे से चुनाव लड़कर जनता को ठेंगा दिखाने वालो ने जनता की ये गत की है। लगता नहीं कि कांग्रेसी राज से इतर कुछ हो रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा था - 'हम विश्व के अजोड़ लोग हैं। हम मंगल पर कितने कम खर्च में पहुंचे।' ..... अंतरिक्ष में पहली बार पहुंचने के बाद से आज तक गरीबों और अमीरो के बीच की खाईं  कितने गुना चौड़ी होती गयी है, इसकी भी नाप-जोख हो जाये तो मंगल ग्रह पर जाने के निहितार्थ स्पष्ट हो जाएंगे।

मोदी ने कहा था - 'बच्चे केवल मां-बाप की जिम्मेदारी नहीं होते बल्कि पूरे समाज का दायित्व होते हैं। पूरे समाज का दायित्व है कि वह विशेष रूप से अशक्त बच्चों से खुद को जोड़े।' ....... हमारे शहर के गरीब बच्चे तो आज भी वैसे ही बिलबिला रहे हैं। नेहरू को भी गुलाब जैसे खिले खिले बच्चे ही प्यारे लगते थे।

मोदी ने कहा था - 'यह देश सभी लोगों का है, केवल सरकार का नहीं है। बच्चों के लिए स्कूलों में पांचवी कक्षा से कौशल विकास का कार्यक्रम होना चाहिए ताकि जब वे पढ़ाई खत्म करके निकलें तब अपने हुनर की बदौलत रोजगार प्राप्त कर सकें।' ...... पढ़ाई और रोजगार का दर्द तो वे करोड़ो युवा ही अच्छी तरह जानते हैं, जिन्हें मुल्क की आजादी का आज तक कोई मतलब समझ में नहीं आ रहा है।

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