Friday 17 January 2014

बेटियां


अजहर हाशमी के शब्दों में ......बेटियां शुभकामनाएं हैं, दुआएं हैं, बेटियां जीनत हदीसों की, बेटियां जातक कथाएं हैं, वैदिक ऋचाएं हैं, गौरव गाथाएं हैं,  मुस्कुरा के पीर पीती हैं, हर्षित व्यथाएं हैं, जल की घटाएं हैं, दुर्दिनों के दौर में भी तरल संवेदनाएं हैं, बने रहें गर्म झोके तो क्या, बेटियां ठंडी हवाएं हैं। नन्हीं दूब पर अटकी हुई ओस की बूँद और सर्दी में पेड़ की फुनगी पर उतरती हुई मुलायम धूप की तरह बेटियों ने ऊँचा उठाया तिरंगे को, छू लीं चोटियाँ, तैर रहीं दूर-दूर आसमानों के पार तक तो इस अजगर समय पर तंज कसते हुए जीशान साहिल लिखते हैं- 'लड़कियों के लिए प्यार करना उतना ही मुश्किल है, जितना किसी पेड़ के तने पर बैठकर पहाड़ी नदी को पार करना या सुखाना किसी गीले कागज़ को। हिरन की पीठ पर बैठे परिन्दे की शरारत सी बच्चियों पर बशीर बद्र लिखते हैं- 'वो शाख है न फूल, अगर तितलियां न हों, वो घर भी कोई घर है जहां बच्चियां न हों।'

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