Saturday 20 July 2013

तुम चुप रहो



जयप्रकाश त्रिपाठी

यह मेरा साम्राज्य है
मेरा आर्य-विश्व,
जब ईसा-मूसा का नामोनिशां नहीं था
तब से.....
समझे!
मैं महान था, महान हूं और महान रहूंगा.

तुम्हे कुछ पता भी है देश-दुनिया के बारे में-
कितनी गहरे तक हैं
हमारी सनातन एकता-अखंडता की जड़ें!
हमारी सांस्कृतिक महानता के
अभिन्न अवयव रहे हैं 'सभ्यता-युद्ध',

पढ़ा नहीं तुमने-
'हिंदू चा विश्वजयी इतिहास'!
बार-बार पिटे
या गुलाम रहे तो क्या हुआ,
दादा-परदादा के जमाने से जगदगुरु तो हम ही रहे,
सदा-सर्वदा अनंतकाल तक।

.....और आज भी हमने ही दुनिया को दिया है
स्वदेशी और भूमंडलीकरण में तालमेल का तिलिस्म,
एक साथ हंसने
और गाल फुलाने का हुनर,
कोलंबस तो बहुत बाद में पहुंचा अमेरिका,
सैकड़ो साल पहले
वहां के शैलचित्रों पर रेखांकित हो चुकी थी
हमारी आर्य-छवि।

झूठ, तो एक झूठ और सही.....
सर्वव्यापी थे,
रहेंगे और हैं हम ही,
हमने पूरी कर ली थी पूरी दुनिया की परिक्रमा,
अंग्रेज सदियों बाद आये
लूटने-पीटने और हमारा हाथ-पैर तोड़ कर बैठाने।

नास्तिक और अनपढ़ हो क्या!
नेस्त्रादमस को नहीं जानते,
सुनी भी नहीं उसकी कभी भी....कितनी ऊंची फेकता था वह,
नारद भी गूंगे लगें उसके आगे,
और हमारे अगस्त्य मुनि,

हमारी संस्कृति के दादा मुनि-
ससुरे चार्वाकियों ने
झूठ-मूठ का उड़ा दिया कि गोमांस-भक्षी थे,
बताइए कि इतने महान विश्वयात्री पर
ऐसी घिनौनी तोहमत!

मूरख,
कितना समझायें तुम्हें,
तुम भी सुरा के बाद सुड़कने के बाद
बिना जनेऊ के लघुशंका नहीं कर पाते हो क्या!
....और हां
रास्ट्र-फास्ट्र तो बाद में आये,
बहुत पहले आ चुकी थी 'मातृभूमि'
भारत बाद में बना
हिंदू पहले,
सर्व संग्रहवादी, आत्मसात्य, अखंड और अर्वाचीन,
'सर्वाभोगी ढकोसला है भारत,
विश्वात्मा का पाप'!

तुम लोग
असभ्य, उजड्ड, निरे गंवार जो ठहरे,
कि हमारे पुरखों के सारे किये-कराये को कर दिया
अपवित्र,
कर लेते किंचित सांस्कृतिक विर्मश,
जान लेते यह भी
कि वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति... कृण्वंतो विश्वमार्यम्।

आओ
पढ़ो और जानो हमे
कि हम कौन थे, कौन हैं
और क्या होंगे अभी....
हम ही थे शैव, वैष्णव, बौद्ध, जैन,
क्षत्रिय-ब्राह्मण-वैश्य-शूद्र
समस्त चराचर में, दिग-दिगंत तक
व्याप्त।

झूठ है
कि बारहवीं सदी में
अयोध्या में नहीं था राम मंदिर,
हमीरपुर की मृण्मूर्तियां,
नवादा की प्रतिमाएं,
रामायण का फलक;
सत्रहवीं शताब्दी में थोड़े ही बना था-
कनक भवन, कनक मंडप, साकेत और अयोध्या,
असत्य है
कि जन्मस्थान की कभी नहीं होती थी पूजा,
मिथक है
कालाहांडी का चावल-पानी,
होटलों के नाबदान में बहता अरबों रुपये का जूठन,
किताब-कापी से महरूम
और मिड डे मील पर बिलबिलाते देश के
तीस करोड़ बच्चे,
करोड़ो बाल मजदूर।

तुम्हे दिखे-न-दिखे
कोई अंधा भी देख लेगा
कि कितना खुशहाल है देश,
पचीस-तीस करोड़ नेता, अफसर, दलाल, व्यापारी, उद्योगपति और ठेकेदार
विश्वबैंक की टुकड़खोरी पर
अकूत ऐशोआराम हराम का,
साक्षरता के नाम पर
अरबो-खरबो की खैरात।

कितना पवित्र है हमारी उदारीकरण,
हमारी कंप्यूटर क्रांति,
हमारा परमाणु विस्फोट,
हमारी उपग्रह छलांग,
धत्..
तुम क्या जानो भुक्खड़ विकास-दर के मायने,
शेयर का शौर्य,
स्विस बैंक का सच,
देख सको, तो देखो, हम हैं विश्व-संप्रभुओं के चाटुकार,
सूद और मुनाफे के दलदल में
धंसे-फंसे हुए,
तुम्हे चूस-निचोड़ कर
कितने मुस्टंड और मालदार हो चले हैं
दुनिया भर के मरगिल्ले,
दूध पीती हैं उनकी मुर्गियां
....और हम भी तो
झोपड़पट्टियों के अगल-बगल
गगनचुंबी इमारतों में,
कोई कम थोड़े ही किसी ससुरे से,
हम भी हैं
अपने कुबेरों के जमूरे,
नाकेबंद मुल्क के
काले-सांवले लुटेरों की प्रजा।

हमे क्या करना पचपन प्रतिशत गांवों का घास-फूस
और महानगरों की
चार करोड़ बस्तियों का
छिः.....
कितने आदर्श और सनातन हैं
हमारे आदर्श और उसूल,
कितनी जायज हैं
हमारी स्वर्ग-नर्क की परिकल्पनाएं,
सांसद घूस लेते हैं,
बिना कुछ किये-धरे दिन-रात दंड-बैठक पेलते हैं
दस-बीस लाख साधु-संन्यासी, संत-महंत,
पत्तियां चबाते हैं
पांच करोड़ जंगली, चबायें न, कौन रोकता है उन्हें,
या मरें भूखे पेट अपनी बला से,
मेरी महानता के कलंक!!

तुम चुप रहो,
अभी हम व्यस्त हैं,
तुम्हे नही मालूम हमारा ताजा एजेंडा,
देश के भले के लिए
हमारी सांप्रदायिक-सांस्कृतिक-आर्थिक और राजनीतिक रणनीतियां,
हमारी झूठ-घृणा और हिंसा की मुहिम,
हमारा धर्मयुद्ध,
इसलिए मुखौटे बेच रहे हैं हम इस्लामीकरण के,
चेहरे चमका रहे हैं ईसाइयत के,
और एक झूठ को सौ बार फिर से दुहरा रहा है हमारा हिंदू राष्ट्रवाद,
हम महान हैं,
हम हैं तो हैं, क्या कर लोगे तुम लोग,
बांटते रहो परचे,
लगाते रहो जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे,
हमने तुम सबके ऊपर जो थोप दिया, सो थोप दिया,
लीप दिया है, पोत दिया,
अभी और
देखते जाओ, आगे-आगे हम करते हैं क्या।

एक बार और सुन लो जरा ध्यान से,
नाना रंग-रूप में
हम हैं अय़ोध्या से गुजरात तक,
असम से पंजाब तक,
कश्मीर से न्यूयार्क तक,
हमारे पास है
कश्मीर के बासठ मंदिरों
और बांग्लादेशी घुसपैठियों की सूची,
ट्रेन में जिंदा जलाये गये लोगों की फेहरिस्त
और तीज-त्योहारों की हर तालिका,
तुम गिनते रहो
गुजरात की लाशें और बाबरियों के गुंबद,
इमेरजेंसी की नसबंदियां और चौरासी के सिख।

हर्ज क्या है हिटलर, मुसोलिनी हो लेने में,
ठीक ही रहा यहूदियों को पढ़ाना जर्मन कारसेवा का पाठ,
किसी से कम पूत-पवित्र नहीं रहे थे
हमारे भी वे गुजराती अनुष्ठान,
हमारा आस्थाचार
और हमारी लोमहर्षक लीलाएं,
नाजी-फासी गिरोहबंदियां,
परंपराओं में है हमारा अटूट विश्वास
तानाशाह तांगशाई की न्यू लाइफ लाइन से लिये हैं हमने ऐतिहासिक सबक,
यूं ही नहीं बोल गये जनाब मौलाना मौदूदी....
कि 'हम अगर मनुस्मृति के आधार पर बना लें हिंद राष्ट्र तो खुशी होगी।'
जय जवान से जय विज्ञान तक
हमारे हैं विविध रूप,
कर्जखोरी के उत्तुंग पर आण्विक मुस्कान,
निर्धन ठहाके हैं हमारी अक्षुण्ण भारतीयता की थाती,
गिल्ली-डंडा वाले भूखे-नंगे ही सही
बन तो लिये हैं हम भी
महाशक्ति,
ह्वाइट हाऊस तक गूंज तो रहा है हमारा
'किरकेट अट्टहास'
हमे भी आ गया है कटोरे फैलाना और सपने बेचना,
पूरी दुनिया में
फैल चुका है हमारे इतने तरह के मुखौटों का कारोबार,
सुना नहीं तुमने!

('ईश्वर तुम नहीं हो' संग्रह की एक रचना)

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