Sunday 22 March 2015

23 मार्च 2015

23 साल की उम्र में ही भगत सिंह इतना कुछ लिख-पढ़ गए, जिससे हमेशा युवा पीढ़ी प्रेरणा लेती रहेगी। भगत सिंह जानबूझकर अपने विचार लिखकर गए ताकि उनके बाद लोग जान-समझ सकें कि क्रांतिकारी आंदोलन के पीछे केवल अंधी राष्ट्रवादिता नहीं बल्कि कुछ बदलने की मंशा थी। हंसते-हंसते फांसी पर झूलने से पहले भगत सिंह ने पत्र लिखा था। यह पत्र सुखदेव की गिरफ़्तारी के बाद उनके पास से बरामद किया गया और लाहौर षड्यंत्र केस में सबूत के तौर पर पेश किया गया....प्रिय भाई, जैसे ही यह पत्र तुम्हे मिलेगा, मैं जा चुका होगा-दूर एक मंजिल की तरफ। मैं तुम्हें विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आज बहुत खुश हूं। ख्याल रखना कि तुम्हें जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए। जल्दबाजी में मौका पा लेने का प्रयत्न न करना। जनता के प्रति तुम्हारा कुछ कर्तव्य है, उसे निभाते हुए काम को निरंतर सावधानी से करते रहना। तुम स्वयं अच्छे निर्णायक होगे। आओ भाई, अब हम बहुत खुश हो लें.... भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरू को अंग्रेजों ने फांसी के तय समय से एक दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया था और फिर बर्बर तरीके से उनके शवों के टुकड़े-टुकड़े कर सतलुज नदी के किनारे स्थित हुसैनीवाला के पास जला दिया था, लेकिन बाद में लोगों ने अगाध सम्मान के साथ उन तीनों वीर सपूतों का अंतिम संस्कार लाहौर में रावी नदी के किनारे किया। 

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