Monday 23 March 2015

10वें गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल का समापन

मीडिया कॉरपोरेट के कब्जे में, अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरे

गोरखपुर : 10वें गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल में प्रसिद्ध लेखिया अरुंधति राय ने देश में अभिव्यक्ति के खतरों की ओर इशारा करते हुए सरकारी सेंसरशिप को जरविरोधी करार दिया। उन्होंने महात्मा गांधी संबंधी अपने बयान के समर्थन में डॉ.अंबेडकर की किताब के कुछ अंश पढ़े। उन्होंने कहा कि गांधी हिंदुस्तान के पहले कॉरपोरेट एनजीओ थे।
सोमवार को पत्रकारों से बातचीत करते हुए अरुंधति रॉय ने कहा कि प्रतिरोध के लिए स्ट्रिट सेंसरशिप चिंता का विषय है। इंडियाज डॉटर तो विदेशी ने प्रसारित किया। कोई भारतीय होता तो उसके ठिकाने पर अब तक गुंडे भेज दिए गये होते। मैं तो घृणित से घृणित फिल्म भी दिखाने के पक्ष में हूं क्योंकि उससे ही समस्या के समाधान का रास्ता मिल सकेगा।

उन्होंने कहा कि इस समय मीडिया और सरकार, दोनो कॉरपोरेट के कब्जे में हैं और संसद में मजबूत विपक्ष नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कॉरपोरेट जगत की कठपुतली हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी पूंजीपतियों के हाथों में खेलते हैं। केंद्र सरकार स्वच्छता की बात तो करती है लेकिन जो कीचड़ में रहकर कीचड़ की सफाई करते हैं, उन पर पहले ध्यान देने की जरूरत है। आज अच्छे दिन उन लोगों के हैं, जो किसानों की जमीन हड़प रहे हैं। अब तो महाभ्रष्ट भी भ्रष्टाचार हटाने की बात करने लगा है।

सोमवार की शाम 10वें गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल का समापन हो गया। उत्सव के अंतिम दिन पांच फिल्मों दस्तावेजी फिल्म 'समथिंग लाइक अ वार', पंजाबी फिल्म 'मिलागे बाबे रतन ते मेले ते', फीचर फिल्म 'हमारे घर', फिल्म 'सेवा' और नकुल सिंह साहनी की फिल्म 'मुजफ्फरनगर बाकी हैं', के प्रदर्शन के अलावा जनचिंतकों के बीच मीडिया और सिनेमा में लोकतंत्र और सेंसरशिप चर्चा के केंद्र में रही।
इससे एक दिन पूर्व फिल्मोत्सव में अजय टीजी की दस्तावेजी फिल्म 'पहली आवाज', विक्रमजीत गुप्ता की फिल्म 'अचल', पवन कुमार श्रीवास्तव की भोजपुरी फिल्म 'नया पता' का रविवार को प्रदर्शन किया गया था। उसी दिन फिल्मोत्सव में एक सत्र बच्चों के लिए था। प्रो. बीरेन दास शर्मा ने दृश्यों और ध्वनियों के जरिए बाइस्कोप से लेकर सिनेमा के विकास की कहानी से बच्चों को अवगत कराया। इसके बाद संजय मट्टू की किस्सागोई ने बच्चों का मनोरंजन किया। 'भाग गई पूड़ी' व 'राक्षस' कहानी के जरिए उन्होंने बच्चों को मनोरंजन के साथ शिक्षा देने की कोशिश की। जिस नाटकीयता, बातचीत और कल्पनाशीलता का इस्तेमाल करते हुए संजय मट्टू ने बच्चों को कहानी सुनाई, उससे उन्हें खूब मजा आया।
समन हबीब और संजय मट्टू की प्रस्तुति 'आसमान हिलता है जब गाते हैं हम' के जरिए प्रगतिशील-लोकतात्रिक रचनाओं की साझी विरासत बड़े ही प्रभावशाली तरीके से सामने आई। इस प्रस्तुति ने न सिर्फ प्रगतिशील रचनाकारों की रचनात्मक प्रतिभा, उनके सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों से बावस्ता कराया, बल्कि इसका भी अहसास कराया कि उस दौर में सवाल उठाए गए थे, वे आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं। संगीत संकलन अमित मिश्र ने किया था।

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